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Showing posts from April, 2023

आदि गुरु शंकराचार्य जी

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आदि गुरु शंकराचार्य जी आदि गुरु शंकराचार्य जी की जयंती पर कोटि कोटि नमन..... आदि गुरु शंकराचार्य जी के जन्मदिवस को आदि शंकराचार्य जयंती के रूप में मनाया जाता है। गुरु शंकराचार्य भारतीय गुरु और दार्शनिक थे, उनका जन्म केरल के कालपी नामक स्थान पर हुआ था। आद्य शंकराचार्य को भगवान शिव अवतार के रूप मे माना जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के दर्शन का विस्तार किया। उन्होंने उपनिषदों, भगवद गीता और ब्रह्मसूत्रों के प्राथमिक सिद्धांतों जैसे हिंदू धर्मग्रंथों की व्याख्या एवं पुनर्व्याख्या की। उन्होंने हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की। जो आज भी हिंदू धर्म के सबसे पवित्र एवं प्रामाणिक संस्थान माने जाते हैं, जिनका नाम क्रमशः 1. ज्योतिर्मठ- यह मठ उत्तर भारत में बदरीनाथ में अवस्थित है। इस मठ के अन्तर्गत वर्तमान दिल्ली, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि प्रांत आते हैं। 2. श्रृंगेरी मठ- यह मठ दक्षिण में स्थित है। आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल आदि प्रांत इसके अन्तर्गत आते हैं। 3. गोवर्धन मठ- पूरब में वर्तमान

मेरे पिता मेरी ताकत–मेरी प्रेरणा–मेरी पहचान

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*मेरे पिता* मेरी ताकत–मेरी प्रेरणा–मेरी पहचान मेरे पिता आदरणीय श्री वेद पाल सिंह  (जन्म: 15–06–1944 ;  मृत्यु : 07–04–2023)  मेरी ताकत, मेरी प्रेरणा और मेरी पहचान थे। आप कृषि विभाग, हरियाणा में कार्यरत थे और डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चर के पद से रिटायर हुए थे। एक सरकारी अधिकारी के तौर पर आपने हमेशा किसानों के हित मे काम किया। जहा–जहा भी आपकी पोस्टिंग रही, वहा के किसानों को आपने सरकारी योजनाओं की जानकारी दी और वहा के किसानों को सभी तरह की सरकारी योजनाओं के तहत लाभ पहुंचाया। इसी वजह से आज भी ये लोग उन्हें सम्मान से याद करते हैं। मेरे अन्दर की कुछ खूबियों को आपने ही समझा और मुझे लोगों की भलाई के लिए सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करने को प्रेरित किया। मेरे पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे और उन्ही की प्रेरणा पाकर मैं 2012 से भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी। चूंकि गांव के लोगों व किसानों में उनका विशेष सम्मान था, इसलिए 2012 से अब तक हर लोकसभा व विधानसभा चुनावों में आप मेरे साथ भाजपा के प्रचार में अपना पूर्ण सहयोग देते थे। मेरे सामाजिक कार्यों में मेरे पिता हर तरह से

सिखों के आठवें गुरु हर किशन सिंह जी

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सिखों के आठवें गुरु हर किशन सिंह साहेब जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ सिखों के आठवें गुरु हर किशन सिंह जी का जन्म श्रावण मास, कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को सन् 1656 ई. में कीरतपुर साहिब में हुआ था। उनके पिता सिख धर्म के सातवें गुरु, गुरु हरि राय जी थे और उनकी माता का नाम किशन कौर था। बचपन से ही गुरु हर किशन जी बहुत ही गंभीर और सहनशील प्रवृत्ति के थे। वे 5 वर्ष की उम्र में भी आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। उनके पिता अकसर हर किशन जी के बड़े भाई राम राय और उनकी कठीन से कठीन परीक्षा लेते रहते थे। जब हर किशन जी गुरुबाणी पाठ कर रहे होते तो वे उन्हें सुई चुभाते, किंतु बाल हर किशन जी गुरुबाणी में ही रमे रहते।  उनके पिता गुरु हरि राय जी ने गुरु हर किशन को हर तरह से योग्य मानते हुए सन् 1661 में गुरुगद्दी सौंपी। उस समय उनकी आयु मात्र 5 वर्ष की थी। इसीलिए उन्हें बाल गुरु कहा गया है। गुरु हर किशन जी ने अपने जीवन काल में मात्र तीन वर्ष तक ही सिखों का नेतृत्व किया।  गुरु हर किशन जी ने बहुत ही कम समय में जनता के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करके लोकप्रियता हासिल की थी। ऊंच-नीच और जाति का भेदभाव मि

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जी

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फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ~~~~~~~~~~~~~~ क्या इन्हें जानते हैं आप ?? 👉 भारत के सबसे जांबाज़ सेनापतियों में से एक #फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ.. 👉 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान को धूल चटाने वाली भारतीय फौज के #सेनापति.. 👉 लौह महिला और कठोर #प्रशासक मानी जाने वाली स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी को भी जवाब देने की हिम्मत रखने वाले बहादुर #सेनानायक.. 👉 इनकी बहादुरी के किस्से दूसरे विश्व #युद्ध से लेकर भारत पाकिस्तान और भारत चीन के युद्ध में हर सैनिक की जुबान पर रहे हैं ... 👉 महान सेनानायक फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ 👉 आइए महान #आत्मा को प्रणाम करें.. नमन करें... सैम मानेकशॉ कौन थे ? ~~~~~~~~~~~~ 3 अप्रैल, 1914 को सैम मानेकशॉ का जन्म अमृतसर, पंजाब में एक पारसी दम्पति के यहाँ हुआ, उनके पिता एक डॉक्टर थे। स्कूल की पढ़ाई ख़त्म करके वो अपने पिता की तरह डॉक्टर बनने के लिए लंदन जाना चाहते थे, पर उनके पिता ने इसकी अनुमति नहीं दी। पिता के इस फैसले के विद्रोह में उन्होंने इंडियन मिलिट्री अकादमी (आई.एम.ए) देहरादून की प्रवेश परीक्षा दी और उसमें सफल हुए। 4 फरवरी, 1934 को वो आईएमए से ग

झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई जी

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★ झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई ★ ●~~~~~~~~~~~~~~~~● 🌿 चमक उठी सन 57 में, वो तलवार पुरानी थी.. 🌿 🌿 घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीर गति पानी थी..🌿 🌿दिखा गई पथ, सीखा गई हमको, जो सीख सिखानी थी..🌿 🌿 खुब लड़ी मर्दानी वो तो, झाँसी वाली रानी थी.. 🌿 रानी लक्ष्मीबाई उर्फ़ झाँसी की रानी मराठा शासित राज्य झाँसी की रानी थी। जो उत्तर-मध्य भारत में स्थित है। रानी लक्ष्मीबाई 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थी जिन्होंने अल्पायु में ही ब्रिटिश साम्राज्य से संग्राम किया था। पूरा नाम    – राणी लक्ष्मीबाई गंगाधरराव जन्म         – 19 नवम्बर, 1835 जन्मस्थान – वाराणसी पिता        – श्री मोरोपन्त माता        – भागीरथी शिक्षा       – मल्लविद्या, घुसडवारी और शत्रविद्याए सीखी विवाह      – राजा गंगाधरराव के साथ ★Queen of Jhansi Rani Lakshmi Bai – झांसी की रानी लक्ष्मी बाई★ घुड़सवारी करने में रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही निपुण थी। उनके पास बहोत से जाबाज़ घोड़े भी थे जिनमे उनके पसंदीदा सारंगी, पवन और बादल भी शामिल है। जिसमे परम्पराओ और इतिहास के अनुसार 1858 के समय क

दलित क्रान्तिकारी, जिन्होंने अंगेजो को धूल चटाई

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दलित क्रान्तिकारी, जिन्होंने अंगेजो को धूल चटाई  ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ दलितों क्रांतिकारियों ने लिया था अंग्रेजों से लोहा, कई अंग्रेजों को मार गिराया था...... ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🥀🌹🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🌹🙏🙏🌻🌷💐 आज देश में कई तरह की विचारधाराएं हैं और श्रेष्ठता के चक्कर में समाज में मतभेद इस कदर बढ़ गया है कि देश की सामाजिक एकता, अखण्डता भी प्रभावित हो रही है और देश का नुकसान हो रहा है। दलित, मुसलमान और हिन्दू में बंटे समाज में रोज दुखद घटनाएं घट रही हैं। खास कर दलित राजनीति के केंद्र में आ गया है। दलितों को दया का पात्र बनाकर सभी पार्टियों के नेता अपना भला करने में लगे हैं। सवाल यह है कि किया वाकई दलित इतना कमजोर है? आज देश आजाद है और हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मानाने जा रहे हैं, लेकिन हम में से बहुत कम लोग यह जानते हैं कि देश की आजादी की लड़ाई में दलितों ने बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया था और आजादी कि पहली लड़ाई की बिगुल दलितों ने बजाई थी। आज शायद हम उनका योगदान भूल गए हैं या वह

वीरांगना झलकारी बाई जी

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वीरांगना झलकारी बाई ~~~~~~~~~~~~ 🌷🌹🌺🙏🚩🙏🌹🌷 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌷🌹🌺🙏🚩🙏🌹🌷 "जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झांसी की झलकारी थी", इन्हें कहते हैं दूसरी रानी लक्ष्मीबाई..... देश के लिए मर-मिटने वाली झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का नाम हर किसी के दिल में बसा है। कोई अगर भुलाना भी चाहे तब भी भारत माँ की इस महान बेटी को नहीं भुला सकता। लेकिन रानी लक्ष्मी बाई के ही साथ देश की एक और बेटी थी, जिसके सर पर ना रानी का ताज था और ना ही सत्ता पर। फिर भी अपनी मिट्टी के लिए वह जी-जान से लड़ी और इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ गयी। वह वीरांगना, जिसने ना केवल 1857 की क्रांति में भाग लिया बल्कि अपने देशवासियों और अपनी रानी की रक्षा के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की! वो थी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की परछाई बन अंग्रेजों से लोहा लेने वाली, वीरांगना झलकारी बाई। झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर, 1830 को ग्राम भोजला (झांसी, उ.प्र.) में हुआ था। उसके पिता मूलचन्द्र जी सेना में काम करते थे। इस कारण घर के व

दलित क्रान्तिकारी महिलाएं, जिन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाई

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दलित क्रान्तिकारी महिलाएं,  जिन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाई ~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🥀🌹🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको,  इसलिए लिखी ये कहानी,  जो शहीद हुए हैं उनकी,  ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🌹🙏🙏🌻🌷💐  दलितों को लेकर देश में अक्सर विरोधी माहौल बनते रहते हैं, पर सच यह है कि चाहे सामाजिक व्यवस्था हो, आजादी की लड़ाई हो या देश की रक्षा दलितों ने हर जगह बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया है। दलित महिलाएं भी कभी किसी से कम नहीं रहीं। समाज में तमाम उपेक्षा और दुश्वारियों के बावजूद वह आगे बढ़ीं और समाज के विकास में सहयोग दिया। अपना और अपने परिवार का एक आधार बनी। उत्तर प्रदेश की भूतपूर्व मुख्यमंत्री मायावती, व्यवसायी कल्पना सरोज जैसे महिलाओं ने दलित महिलाओं के लिए समाज में एक सम्मानित मुकाम बनाया। आपको जान कर हैरानी होगी कि भारत की आजादी के समय भी दलित महिलाओं ने निडरता पूर्वक अंग्रेजों से लोहा लिया।  आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर आपको कुछ महान दलित वीरांगनाओं के बारे में बताती हूँ......  वीरांगना झलकारी बाई  ~~~~~~~~~~~~ झलकारी बाई नाम की साहसी महिला झांसी की रानी की सहयोगी थीं। वह चमार जाति

वीर सावरकर जी को सहायता

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वीर सावरकर जी को सहायता ~~~~~~~~~~~~~~~~~ साल 1907 में सावरकर बंधुओं की पुश्तैनी जायदाद अंग्रेज सरकार ने जब्त कर ली। साल 1911 में सावरकर के श्वसुर की सारी संपत्ति भी अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त कर ली गई। उसी वर्ष बंबई विश्वविद्यालय द्वारा सावरकर की बीए की डिग्री वापस ले ली गई। लंदन से वकालत की डिग्री पूरी करने के बावजूद उन्हें बार में स्थान नहीं दिया गया। इस तरह काला पानी से जिंदा लौटे सावरकर के पास मात्र 10वीं पास की शैक्षिक योग्यता रह गई थी। उनकी लिखी सारी किताबों पर पाबंदी थी इस तरह किसी प्रकार रॉयल्टी मिलने की संभावना भी नहीं थी। बड़े भाई बाबा राव स्ट्रेचर पर जेल से रिहा हुए थे। तो ऐसे में पूरा परिवार सबसे छोटे भाई नारायण राव की डिस्पेंसरी पर निर्भर था। अहमदाबाद बम धमाके में पकड़े गए और नासिक षड़यंत्र केस में छह माह की जेल काट चुके नारायण राव पर और उनसे इलाज कराने आने वालों पर भी पुलिस की सख्त नजर रहती थी। ऐसे स्थिति में एक बार सावरकर को लगा कि इससे बेहतर स्थिति तो शायद काला पानी में ही थी कम से कम वहां रोटी का संकट नहीं था। इन तमाम परेशानियों के बीच केसरी के संपादक

महारानी नाइकी देवी जी

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महारानी नाइकी देवी ~~~~~~~~~~~ 🌷🥀🌺🙏🙏💐🌻🌷 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी... महारानी नाइकी देवी का इतिहास...... जिनकी तलवार मुहम्मद गोरी की सेना पर बिजली की तरह टूटी और मुहम्मद गोरी घायल अवस्था में सेना सहित भाग खड़ा हुआ ! -आज से 843 साल पहले गुजरात की एक महारानी नाइकी देवी ने मुहम्मद गोरी को युद्ध के मैदान में बहुत बुरी तरह पराजित किया था। मुहम्मद गोरी जैसे विदेशी आक्रमणकारी को देश से भागने पर मजबूर करने वाली भारत की इतनी महान वीरांगना का इतिहास... कम्युनिस्ट और दोगले इतिहासकारों ने भारतवासियों से छुपा लिया । -चालुक्य राजवंश की महारानी नाइकी देवी और मुहम्मद गोरी के युद्ध का वर्णन कई मुस्लिम इतिहासकारों... समकालीन हिंदू कवियों और साहित्यकारों ने अपने ग्रंथों में किया है । -1178 ईस्वी में राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू की पहाड़ियों के पास कसाहर्दा नाम की जगह पर ये भयंकर युद्ध हुआ था जिसे इतिहास में बैटल ऑफ कसाहर्दा के नाम से जाना जाता है । -13वीं शताब्दी के इतिहासकार मिनहास सिराज ने अपने फारसी ग्रंथ में मुहम्मद गोरी की हार का जिक्र करते हुए लि

शहीद हेमू कालाणी

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शहीद हेमू कालाणी ~~~~~~~~~~~ वीर क्रांतिकारी, अमर शहीद हेमू कालाणी जी की शहादत को कोटि - कोटि नमन I अमर शहीद हेमू कालाणी ने मात्र 19 वर्ष की आयु में अपने साथियों के साथ अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बग़ावत का बिगुल फूँक दिया था। उनका बलिदान देश कभी भुला नहीं सकता। जन्म : 23 मार्च 1923 सुक्कूर, सिन्ध मृत्यु : 21 जनवरी 1943 (उम्र 19) सुक्कूर, सिन्ध पिता : पेसूमल कालाणी माता : जेठी बाई राष्ट्रीयता : भारतीय आरम्भिक जीवन :-- ~~~~~~~~~~~~ हेमू कालाणी (23 मार्च, 1923) भारत के एक क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी पर लटका दिया था। हेमू कालाणी सिन्ध के सख्खर (Sukkur) में 23 मार्च सन् 1923 को जन्मे थे। उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था। स्वतन्त्रता संग्राम :-- ~~~~~~~~~~~ जब वे किशोर वयस्‍क अवस्‍था के थे तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया। सन् 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े। 1

छत्रपति शिवाजी महाराज जी

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छत्रपति शिवाजी महाराज जी ~~~~~~~~~~~~~~~ शिवाजी महाराज भारतीय शासक और मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। शिवाजी महाराज एक बहादुर, बुद्धिमान और निडर शासक थे। धार्मिक अभ्यासों में उनकी काफी रूचि थी। रामायण और महाभारत का अभ्यास वे बड़े ध्यान से करते थे। पूरा नाम   – शिवाजी शहाजी भोसले जन्म        – 19 फरवरी, 1630 जन्मस्थान – शिवनेरी दुर्ग (पुणे) पिता         – शहाजी भोसले माता         – जिजाबाई शहाजी भोसले विवाह       – सइबाई के साथ छत्रपती शिवाजी महाराज – ~~~~~~~~~~~~~~ शाहजी भोंसले की पत्नी जीजाबाई (राजमाता जिजाऊ)की कोख से शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। शिवनेरी दुर्ग पूना (पुणे) से उत्तर की तरफ़ जुन्नार नगर के पास था। उनका बचपन राजा राम, संतों तथा रामायण, महाभारत की कहानियों और सत्संग में बीता। वह सभी कलाओ में माहिर थे, उन्होंने बचपन में राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। उनके पिता शहाजी भोसले अप्रतिम शूरवीर थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को बहली प्रकार समझने लगे

गुरु तेग़ बहादुर सिंह जी

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गुरु तेग़ बहादुर सिंह जी ~~~~~~~~~~~~ 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 💐💐💐💐💐💐💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 💐💐💐💐💐💐💐 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर जी के बारे में स्कालर राजिंदर सिंह कहते हैं कि गुरु तेग बहादुर जी ने गुरु गद्दी, गुरु हरिकृष्ण साहिब से ली जो उस समय दिल्ली में हैजा जैसी बीमारी के बीच जान गंवा रहे लोगों की सेवा करते हुए ज्योति जोत समा गए। अब एक बार फिर वैसे ही हालात हैं। जो संस्थाएं श्री गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाशोत्सव मना रही हैं उनके कंधों पर यह जिम्मेदारी है कि वह मानवता की सेवा करके गुरु के संदेश को दुनिया तक पहुंचाएं। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी 21अप्रैल को रात 9.30 बजे से पहली बार दिन छुपने के लाल किले से गुरु तेगबहादुरजी के 400 वें प्रकाश पर्व राष्ट्र को सम्बोधित करेंगे। पीएम नरेन्द्र मोदी जी ने ट्विटर पर लिखा था “अपने 400 वें प्रकाश पूरब के विशेष अवसर पर, मैं श्री गुरु तेग बहादुर जी को नमन करता हूं। उनके साहस और दलितों की सेवा के उनके प्रयासों के लिए उन्ह

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. केशव राव बलीराम हेडगेवार

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डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. केशव राव बलीराम हेडगेवार जन्म : 1 अप्रैल 1889 मृत्यु  : 21 जून 1940 डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं प्रकाण्ड क्रान्तिकारी थे। उनका जन्म हिन्दू वर्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था।घर से कलकत्ता गये तो थे डाक्टरी पढने, परन्तु वापस आये उग्र क्रान्तिकारी बनकर। कलकत्ते में श्याम सुन्दर चक्रवर्ती के यहाँ रहते हुए बंगाल की गुप्त क्रान्तिकारी संस्था अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य बन गये। सन् १९१६ के कांग्रेस अधिवेशन में लखनऊ गये। वहाँ संयुक्त प्रान्त (वर्तमान यू० पी०) की युवा टोली के सम्पर्क में आये। बाद में जब कांग्रेस से मोह भंग हुआ और उन्होंने नागपुर में संघ की स्थापना कर डाली। मृत्युपर्यन्त सन् १९४० तक वे इस संगठन के सर्वेसर्वा रहे। डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी का जीवन परिचय ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ डॉ॰ हेडगेवार जी का जन्म १अप्रैल, १८८९ को महाराष्ट्र के नागपुर जिले में पण्डित बलिराम पन्त हेडगेवार के घर हुआ था। इनकी माता का नाम रेवतीबाई था। माता-पिता ने पुत