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Showing posts from June, 2021

रानी दुर्गावती

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रानी दुर्गावती ~~~~~~~ रानी दुर्गावती जी का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में हुआ था। 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी थी । रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिवर्मन (कीर्तिसिंह) चंदेल की एकमात्र संतान थीं। चंदेल लोधी राजपूत वंश की शाखा का ही एक भाग है। दुर्गावती को तीर तथा बंदूक चलाने का अच्छा अभ्यास था। चीते के शिकार में इनकी विशेष रुचि थी। उनके राज्य का नाम गोंडवाना था जिसका केन्द्र जबलपुर था। गढ़मंडल के जंगलो में उस समय एक शेर का आतंक छाया हुआ था। शेर कई जानवरों को मार चुका था। रानी कुछ सैनिको को लेकर शेर को मारने निकल पड़ी। रास्ते में उन्होंने सैनिको से कहा, ” शेर को मैं ही मारूंगी” शेर को ढूँढने में सुबह से शाम हो गई। अंत में एक झाड़ी में शेर दिखाई दिया, रानी ने एक ही वार में शेर को मार दिया। सैनिक रानी के अचूक निशाने को देखकर आश्चर्यचकित रह गये। ये वीर महिला गोडवाना के राजा दलपतिशाह की पत्नी रानी दुर्गावती थी। रानी दुर्गावती का जन्म

पेड़ लगाओ - पर्यावरण बचाओ

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🙏🙏 ★आओ कुछ अच्छी बातें करें★ दोस्तों, जब भी मुझे, कोई भी अच्छी बात, सोशल मीडिया या प्रिंट मीडिया पर पढ़ने को मिलती हैं, तो वो मैं कॉपी-पेस्ट-एडिट करके आप सब तक ★आओ कुछ अच्छी बातें करें★ के तहत शेयर जरूर करती हूँ। आज भी "पेड़ लगाओ - पर्यावरण बचाओ" विषय पर कुछ अच्छी बातें आपसे शेयर कर रही हूँ, इस प्राथना के साथ कि अगर आपको भी ये बातें अच्छी लगें, तो कृपया दूसरों के लिए, आगे ज़रूर शेयर करे ........ 🙏🙏 #VijetaMalikBJP पेड़ लगाओ - पर्यावरण बचाओ ~~~~~~~~~~~~~~~~ पेड़ हवा, मिट्टी और पानी को शद्ध करने में बड़ी भूमिका निभाता है इस वजह से धरती को रहने के लिये एक बेहतर जगह बनाता है। लोग जो पेड़ों के पास रहते हैं वो आमतौर पर स्वस्थ और खुश रहते हैं। पूरे जीवन भर अपनी असीमित सेवा के द्वारा पेड़ हमारी बहुत मदद करता है। मानव होने के नाते, क्या हम कभी पेड़ों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को समझते हैं या केवल हम उसके फायदे का आनन्द लेते रहेंगे। पेड़ों को बचाना उसके प्रति दया दिखाना नहीं है बल्कि हम अपने जीवन के प्रति दया दिखाते हैं क्योंकि धरती पर बिना पेड़ के जीवन संभव नही

सन्त कबीरदास

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सन्त कबीरदास ~~~~~~~~ कबीर हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व हैं। कबीर के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कुछ लोगों के अनुसार वे रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे, जिसको भूल से रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी। कबीर के माता- पिता के विषय में एक राय निश्चित नहीं है कि कबीर "नीमा' और "नीरु' की वास्तविक संतान थे या नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था। कहा जाता है कि नीरु जुलाहे को यह बच्चा लहरतारा ताल पर पड़ा पाया, जिसे वह अपने घर ले आया और उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया। कबीर ने स्वयं को जुलाहे के रुप में प्रस्तुत किया है - "जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरो उदासी।' कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर की उत्पत्ति काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुई। ऐसा भी कहा जाता है कि कबीर जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानन्द के प्रभाव से

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी

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डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी  ~~~~~~~~~~~~~ पुण्यतिथि जून 23, 1953 डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी कौन नहीं जानता। वे एक महान चिन्तक थे। देश के लिए कुछ भी करने की लगन थी। ऐसे महान चिंतक की आज (23 जून) पुण्य तिथि है। आइए ऐसे महान व्यक्ति को हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। संक्षिप्त जीवन परिचय ........ अपने पुत्र की असामयिक मृत्यु का समाचार सुनने के पश्चात डॉ मुखर्जी की माता योगमाया देवी ने कहा था : “मेरे पुत्र की मृत्यु भारत माता के पुत्र की मृत्यु है।” भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6  जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे शिक्षाविद् के रूप में जाने जाते थे। डॉ॰ मुखर्जीजी ने वर्ष 1917 में मैट्रिक उत्तीर्ण हुए। वर्ष 1921 में BA की डिग्री हासिल की। वर्ष 1923 में विधि की उपाधि पास की। इसके बाद वे विदेश चले गये। वर्ष 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर उपाथि लेकर स्वदेश लौटे आये। डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जब 33 वर्

कश्‍मीर पर ये प्‍लान था इस महान नेता का, हुई श्रीनगर में रहस्‍मयी मौत? ये सच छिपाया नेहरू ने?

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कश्‍मीर पर ये प्‍लान था इस महान नेता का, हुई श्रीनगर में रहस्‍मयी मौत? ये सच छिपाया नेहरू ने?  ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ डॉ. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की रहस्मयी मौत के तुरंत पश्चात् उस समय के तात्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने नम-नेत्रों से... डॉ. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की रहस्मयी मौत के तुरंत पश्चात् उस समय के तात्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने नम-नेत्रों से डॉ मुख़र्जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि, “ अपने सार्वजनिक जीवन में वह अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को एवं अपनी अंदरूनी प्रतिबद्धताओं को व्यक्त करने में कभी डरते नहीं थे। ख़ामोशी में कठोरतम झूठ बोले जाते हैं, जब बड़ी गलतियां की जाती हैं, तब इस उम्मीद में चुप रहना अपराध है कि एक-न-एक दिन कोई सच बोलेगा।” विडम्बना यह है कि तात्कालीन सत्ता के खिलाफ जाकर सच बोलने की जुर्रत करने वाले डॉ. मुखर्जी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, और उससे भी बड़ी विडम्बना की बात ये है कि आज भी देश की जनता उनकी रहस्यमयी मौत के पीछे की सच को जान पाने में नाकामयाब रही है। डॉ. मुखर्जी इस प्रण पर सदैव अडिग रहे कि ज

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन जी

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ *शत्-शत् नमन 18 जून/ जन्मदिवस  नवीन सोच के धनी: श्री के० सी० सुदर्शन जी।* श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन (१८ जून १९३१-१५ सितंबर २०१२) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पाँचवें सरसंघचालक थे। मार्च २००९ में श्री मोहन भागवत को छठवाँ सरसंघचालक नियुक्त कर स्वेच्छा से पदमुक्त हो गये। 15 सितम्बर 2012 को अपने जन्मस्थान रायपुर में 81 वर्ष की अवस्था में इनका निधन हो गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री के० सी० सुदर्शन जी मूलतः तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) ग्राम के निवासी थे। कन्नड़ परम्परा में सबसे पहले गांव, फिर पिता और फिर अपना नाम बोलते हैं। उनके पिता श्री सीतारामैया वन-विभाग की नौकरी के कारण अधिकांश समय मध्यप्रदेश में ही रहे और वहीं रायपुर (वर्तमान छत्तीसगढ़) में १८ जून, १९३१ को श्री सुदर्शन जी का जन्म हुआ। तीन भाई और एक बहन वाले परिवार में सुदर्शन जी सबसे बड़े थे। रायपुर, दमोह, मंडला तथा चन्द्रपुर में प्रारम्भिक शिक्षा पाकर उन्हो

गुरु अर्जुन देव (पंचम सिख गुरु)

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गुरु अर्जुन देव (पंचम सिख गुरु) ~~~~~~~~~~~~~~~~ अपनी शहादत और अध्यात्म दर्शन के लिए मशहूर, सिख पंथ के पांचवें गुरु अर्जन देव जी के प्रकाश पर्व पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। गुरू अर्जुन देव (15 अप्रेल 1563 – 30 मई 1606 सिखों के ५वे गुरु थे। गुरु अर्जुन देव जी शहीदों के सरताज एवं शान्तिपुंज हैं। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है। गुरुग्रंथ साहिब में तीस रागों में गुरु जी की वाणी संकलित है। गणना की दृष्टि से श्री गुरुग्रंथ साहिब में सर्वाधिक वाणी पंचम गुरु की ही है। ग्रंथ साहिब का संपादन गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास की सहायता से 1604में किया। ग्रंथ साहिब की संपादन कला अद्वितीय है, जिसमें गुरु जी की विद्वत्ता झलकती है। उन्होंने रागों के आधार पर ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझबूझ का ही प्रमाण है कि ग्रंथ साहिब में 36महान वाणीकारोंकी वाणियां बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई। अर्जुन देव जी गुरु राम दास के सुपुत्र थे। उनकी माता

मैं, नरेन्द्र मोदी एप्प के साथ सोशल मीडिया पर

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मेरे दोस्तों, मेरे सहयोगियों, मेरे साथियों, मै जब भी कोई अच्छी बात होती है, तो आप सबसे ज़रूर शेयर करती हूँ । मैने बहुत समय पहले अपने मोबाइल में "NARENDER MODI APP" और "MyGov App" डाऊनलोड किया था । इसके द्वारा मैंने अपने महान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व हमारी भारतीय जनता पार्टी द्वारा हमारे महान देश भारत व देश के लोगो के लिये किये गये सभी महान कार्यो को Narendra Modi App से लेकर अपने अलग-अलग सोशल मीडिया एकाउंट जैसे Facebook, Facebook Page, Facebook Groups, Twitter, Instagram, Tumblr, Google+, MeWe, Koo, Tooter, Whatsapp Groups, Telegram Groups आदि पर शेयर करके आप सब तक पहुँचाया। इस वजह से लगभग 4सालों में Narendra Modi App पर मेरे Activity Points 25,00,000 (पच्चीस लाख) से भी ज़्यादा हो गए थे और मैं देशभर में Top Volunteers की लिस्ट में चौथे व महिलाओं में पहले स्थान पर थी, तभी मुझे Top 100 Volunteers में शामिल कर लिया गया व मेरे Activity Points शून्य (0) से दोबारा शुरू हो गए। मैंने Narendra Modi App पर अपना काम जारी रखा और आज फिर से मेरे Activity Poin

परम पूज्य श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी

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परम पूज्य श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जन्म    : 19 फरवरी 1906 रामटेक, महाराष्ट्र, भारत मृत्यु      :  5 जून 1973 नागपुर, महाराष्ट्र, भारत संक्षिप्त जीवन वृत्त ~~~~~~~~~~ उनका जन्म फाल्गुन मास की एकादशी संवत् 1963 तदनुसार 19 फ़रवरी 1906 को महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था। वे अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। उनके पिता का नाम श्री सदाशिव राव उपाख्य ‘भाऊ जी’ तथा माता का श्रीमती लक्ष्मीबाई उपाख्य 'ताई’ था। उनका बचपन में नाम माधव रखा गया पर परिवार में वे मधु के नाम से ही पुकारे जाते थे। पिता सदाशिव राव प्रारम्भ में डाक-तार विभाग में कार्यरत थे परन्तु बाद में सन् 1908 में उनकी नियुक्ति शिक्षा विभाग में अध्यापक पद पर हो गयी। शिक्षा के साथ अन्य अभिरुचियाँ ~~~~~~~~~~~~~~~~~ मधु जब मात्र दो वर्ष के थे तभी से उनकी शिक्षा प्रारम्भ हो गयी थी। पिताश्री भाऊजी जो भी उन्हें पढ़ाते थे उसे वे सहज ही इसे कंठस्थ कर लेते थे। बालक मधु में कुशाग्र बुध्दि, ज्ञान की लालसा, असामान्य स्मरण शक्ति जैसे गुणों का समुच्चय बचपन से ही विकसित हो रहा था। सन् 1919