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Showing posts from July, 2023

अमर शहीद ऊधम सिंह जी

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★अमर शहीद ऊधम सिंह ★ ~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🪷🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको,  इसलिए लिखी ये कहानी,  जो शहीद हुए हैं उनकी,  ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌺🌹🥀🙏🙏🪷🌷💐 दोस्तों, भारत के इतिहास में कुछ तारीख कभी नहीं भूली जा सकती हैं........ जैसे 31जुलाई और 13अप्रैल ।  13अप्रेल 1919 को बैसाखी के पर्व कर पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर द्वारा किए गए निहत्थे मासूमों के हत्याकांड से ब्रिटिश औपनिवेशिक राज की बर्बरता का ही परिचय मिलता हैं। ऊधम सिंह जी 13अप्रैल 1919 को, उस जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के दिल दहला देने वाले, बैसाखी के दिन में वहीँ मजूद थे। ये ह्रदयविदारक घटना ऊधम सिंह जी के दिल मे घर कर गई। वह जलियावाला बाग हत्या कांड का बदला लेने का मौका ढूंढ रहे थे। यह मौका बहुत दिन बाद, लगभग 21वर्षों के बाद, 13मार्च 1940 को आया। उस दिन काक्सटन हॉल, लन्दन Caxton Hall, London में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन East India Association और रॉयल सेंट्रल एशियाई सोसाइटी Royal Central Asian Society की मीटिंग थी। लगभग शाम 4.30 बजे उधम सिंह ने पिस्तौल से 5-6 गोलिया

मुंशी प्रेमचन्द जी

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मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जन्म ~~~ प्रेमचन्द जी का जन्म ३१ जुलाई सन् १८८० को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे। जीवन ~~~~ प्रेमचंद जी की उम्र जब केवल आठ साल की थी तो माता के स्वर्गवास हो जाने के बाद से अपने जीवन के अन्त तक लगातार विषम परिस्थितियों का सामना धनपतराय को करना पड़ा। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक प्रेम व स्नेह को चाहते हुए भी ना पा सका। आपका जीवन गरीबी में ही पला। कहा जाता है कि आपके घर में भयंकर गरीबी थी। पहनने के लिए कपड़े नहीं होते थे और ना ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली माँ का व्यवहार भी हालत को खस्ता करने वाला था। शादी ~~~ आपके पिता ने केवल १५ साल की आयू में आपका विवाह करा दिया। आपकी पत्नी उम्र में आपसे बड़ी और बदसूरत थी। पत्नी की सूरत और उसकी जबान ने आपके जले पर नमक का काम किया। आप स्वयं लिखते हैं, "उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया।..

महान क्रान्तिकारी "मास्टर दा" सूर्य सेन जी

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महान क्रान्तिकारी "मास्टर दा" सूर्य सेन जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 मास्टर सूर्यसेन के नाम से ही दहल जाती थी अंग्रेजी सरकार। 12 जनवरी प्रसिद्द क्रन्तिकारी अमर बलिदानी एवं अंग्रेजों को हिला कर रख देने वाले चटगांव शस्त्रागार काण्ड के मुख्य शिल्पी मास्टर सूर्यसेन का बलिदान दिवस है जिन्हें 1934 में 12 जनवरी के दिन ही बेहोशी की हालत में फांसी पर लटका दिया गया था। जीवन परिचय ~~~~~~~~ चटगांव (वर्तमान में बंगलादेश का जनपद) के नोआपारा में कार्यरत एक शिक्षक श्री रामनिरंजन के पुत्र के रूप में 22 मार्च 1894 को जन्में सूर्यसेन की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा चटगांव में ही हुई थी। जब वह इंटरमीडिएट में थे तभी अपने एक राष्ट्रप्रेमी शिक्षक की प्रेरणा से वह बंगाल की प्रमुख क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति के सदस्य बन गए और क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे लगे। इस समय उनकी आयु 22 वर्ष थी। आगे की शिक्षा के लिए वह बहरामपुर गए और उन्होंने बहरामपुर कॉलेज म

महान क्रान्तिकारी कल्पना दत्त जी

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कल्पना दत्त ~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो लड़े आजादी के लिए, उनकी जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 अफ़सोस कल्पना दत्त जिसको हम सभी भुला चुके हैं काफी लोगो ने तो इनका नाम भी नही सुना होगा.... यह वो वीरगाना थी जब लड़कियां घर से भी बाहर नहीं निकलती थी, उस दौर में आज़ादी की लड़ाई में हथियार उठाने वाली वो अकेली थी, पर अफ़सोस हममें से किसी को यह याद नही। कल्पना दत्त का जन्म वर्तमान बंग्लादेश के चटगांव ज़िले के श्रीपुर गांव में एक मध्यम वर्गीय परिवार में 27 जुलाई 1913 को हुआ था| 1929 में चटगाँव से मैट्रिक पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए ये कलकत्ता आ गयीं| यहाँ अनेकों प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़कर वह प्रभावित हुईं और शीघ्र ही स्वयं भी कुछ करने के लिए आतुर हो उठीं। कल्पना और उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन को और जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त गिरफ्तार कर ली गईं, पर अभियोग सिद्ध ना हो

डॉ० ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी

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डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम ~~~~~~~~~~~~~~ प्रसिद्ध वैज्ञानिक, लेखक, अध्येता, प्राध्यापक, एयरोस्पेस इंजीनियर व देश के 11वें राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्र को अपनी सेवाएँ देने वाले भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी को उनके जन्मदिन पर हम सब भारतवासी उन्हें नमन करते हैं। मशहूर सांइटिस्ट और देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति रह चुके डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आज भी लोगों की जु़बा पर है। उन्होंने अपने उम्दा कार्य से युवा पीढ़ि को तरक्की की एक राह दिखाई है। वे करोड़ों लोगों के प्रेरणा स्त्रोत हैं। उन्होंने अपने जीवन में ऊंचे मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है। जन्म - डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडू के एक छोटे से गांव धनुषकोडी में हुआ। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर देते थे। वहीं उनकी माता एक गृहिणी थीं। अखबार बेचकर की पढ़ाई - घर की आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण डॉ. कलाम को पढ़ाई करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम के एक प्राथमिक स्कूल से ली। जबकि आगे की पढ़ाई के लिए उन्

बाल गंगाधर तिलक जी

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बाल गंगाधर तिलक जी ~~~~~~~~~~~~ जन्म: 23 जुलाई 1856, रत्नागिरी, महाराष्ट्र मृत्यु: 1 अगस्त 1920 बाल गंगाधर तिलक जी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जनक माना जाता है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह एक समाज  सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रीय नेता के साथ-साथ भारतीय इतिहास, संस्कृत, हिन्दू धर्म, गणित और खगोल विज्ञानं जैसे विषयों के विद्वान भी थे। बाल गंगाधर तिलक ‘लोकमान्य’ के नाम से भी जाने जाते थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनके नारे ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूँगा’ ने लाखों भारतियों को प्रेरित किया। प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~ बाल गंगाधर तिलक का जन्म २३ जुलाई १८५६ को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक चित्पवन ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता गंगाधर रामचन्द्र तिलक संस्कृत के विद्वान और एक प्रख्यात शिक्षक थे। तिलक एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे और गणित विषय से उनको खास लगाव था। बचपन से ही वे अन्याय के घोर विरोधी थे और अपनी बात बिना हिचक के साफ़-साफ कह जाते थे| आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने वाले पहली पीढ़ी के भारतीय  युवाओं में से एक तिलक भी थे। जब बालक

अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद

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अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद ~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 मुछों पर ताव, कमर में पिस्टल, कांधे पर जनेऊ, शेर सी शख्सियत....... वो याद थे, वो याद हैं, वो याद ही रहेंगे, वो आज़ाद थे, आज़ाद है, आज़ाद ही रहेंगे... पंडित चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध और महान क्रांतिकारी थे। 17 वर्ष के चंद्रशेखर आज़ाद क्रांतिकारी दल ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ में सम्मिलित हो गए। दल में उनका नाम ‘क्विक सिल्वर’ (पारा) तय पाया गया। पार्टी की ओर से धन एकत्र करने के लिए जितने भी कार्य हुए, चंद्रशेखर उन सबमें आगे रहे। सांडर्स वध, सेण्ट्रल असेम्बली में भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वाइसराय को ट्रेन बम से उड़ाने की चेष्टा, सबके नेता वही थे। इससे पूर्व उन्होंने प्रसिद्ध ‘काकोरी कांड’ में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। एक बार दल के लिये धन प्राप्त करने के उद्देश्य से वे गाजीपुर के एक महंत के शिष्य भी बने। इरादा था कि महंत के मरने के बा

सिर्फ पांच फीट जमीन और जगरानी देवी जी

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सिर्फ पांच फीट जमीन और जगरानी देवी ========================= 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐  “ अरे बुढिया तू यहाँ ना आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए गोरों ने उसे मार दिया “ जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़ें भील ने हंसते हुए कहा। “ नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं “ बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा.. उस बुजुर्ग औरत का नाम जगरानी देवी था और इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमे आखरी बेटा कुछ दिन पहले ही शहीद हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से चंदू कहती थी और दुनियां कहती थीं उसे “आजाद“। जी हाँ ! दुनियां उन्हें शहीद चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है। हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, चंद्रशेखरआजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करतें हुए उनके गाँव पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद गरीबी में उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी। गरीबी में ही आज़ाद के भाई

नेहरू पर कई बार लगे महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की हत्या कराने के आरोप..

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नेहरू पर कई बार लगे महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की हत्या कराने के आरोप........ https://hindi.opindia.com/ ‘मैंने सुना वह आतंकवादियों के समूह में शामिल हो गया है’: नेहरू ने ही करवाई चंद्रशेखर आजाद की हत्या, भतीजे ने बताई असली कहानी, CID ऑफिस में भी एक सीक्रेट • सुनीता मिश्रा | 27 February, 2023 नेहरू पर कई बार लगे महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की हत्या कराने के आरोप........ महान स्वतंत्रता सेनानी महान चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) की आज पुण्यतिथि है। वह 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि वह चंद्रशेखर आजाद की हत्या में शामिल थे। क्रांतिकारी बलिदानी चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस (23 जुलाई) के अवसर पर 2018 में उनके भतीजे सुजीत आजाद ने ‘दैनिक जागरण’ से बातचीत में कहा था, “नेहरू ने देश के साथ गद्दारी कर चंद्रशेखर आजाद की हत्या कराई। यह बात किसी से छिपी नहीं है। कॉन्ग्रेस ने हमेशा देश को बाँटने का काम किया है।” इसी तरह राजस्थान के कोट

अमर शहीद श्रीशेषव विशाल जी

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अमर शहीद श्रीशेषव विशाल जी ~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 प्रखर राष्ट्रवादी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्पित कार्यकर्ता #श्रीशेषव_विशाल जी #11वे_बलिदान दिवस पर सादर नमन व भावपूर्ण श्रद्धांजलि 💐💐। जन्म और शिक्षा दीक्षा लंदन इंगलैंड मे हुआ परन्तु उन्हें पूर्वजोंं की पुण्यभुमि अपनी मातृभूमि से इतना लगाव था कि जिस देश को उसने केवल किताबो में ही पढ़ा था, उसका ॠण चुकाने वह सब कुछ छोड़कर भारत में अपने पैतृक गाँव चेंगुर केरल आ पहुँचे। श्रीशेषव जी ने मात्र १९ वर्ष की बाल आयु मे ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नगर प्रमुख तथा राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के शारीरिक प्रमुख के दायित्व का निर्वहन बेहद कुशलता पुर्वक किया। उन्होंने केरल की नस-नस मे समाती जा रही इस्लामिक जेहाद का पुरजोर विरोध किया। स्वयंसेवक बनने की चाह मे अत्यंत मेधावी छात्र ने अपनी पढ़ाई तक को दांव पे लगा दिया। #१६जुलाई२०१२ को कॉलेज के सामान्य कार्यक्रम मे एक सुनियोजित षड़यन्

महान क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त जी

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महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त ~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 भगत सिंह के साथ असेंबली में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त की कहानी बताती है कि अपने महान अमर शहीद क्रांतिकारियों को पूजने वाला यह देश जीते जी उनके साथ क्या सुलूक करता है...... हुसैनीवाला में एक और भी समाधि है.... यह आजादी के उस सिपाही की समाधि है, जो भगत सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा था लेकिन, उसे भुला दिया गया। भगत सिंह के इस साथी का नाम था.... बटुकेश्वर दत्त । भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को लोग फिर भी शहीद दिवस या जन्म दिन के बहाने याद कर लेते हैं लेकिन, बटुकेश्वर दत्त की जिंदगी और उनकी स्मृति, दोनों की आजाद भारत में उपेक्षा हुई है....... बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को तत्कालीन बंगाल में बर्दवान जिले के ओरी गांव में हुआ था। कानपुर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उनकी भगत सिंह से भेंट हुई। यह 1924 की बात है। भगत सिंह से प्रभावित होकर बटुकेश्वर दत्त उनके क्रांतिकारी संगठन हिन्दुस्तान