Posts

Showing posts from June, 2022

रानी दुर्गावती जी

Image
रानी दुर्गावती ~~~~~~~ 🌺🥀🙏🙏🌷💐🌻 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🙏🙏🌷💐🌻  "चंदेलों की बेटी थी, गौंडवाने की रानी थी।  चंडी थी रणचंडी थी, वह दुर्गा भवानी थी।।"  रानी दुर्गावती जी का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में हुआ था। 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी थी । रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिवर्मन (कीर्तिसिंह) चंदेल की एकमात्र संतान थीं। चंदेल लोधी राजपूत वंश की शाखा का ही एक भाग है। दुर्गावती को तीर तथा बंदूक चलाने का अच्छा अभ्यास था। चीते के शिकार में इनकी विशेष रुचि थी। उनके राज्य का नाम गोंडवाना था जिसका केन्द्र जबलपुर था।  गढ़मंडल के जंगलो में उस समय एक शेर का आतंक छाया हुआ था। शेर कई जानवरों को मार चुका था। रानी कुछ सैनिको को लेकर शेर को मारने निकल पड़ी। रास्ते में उन्होंने सैनिको से कहा, ” शेर को मैं ही मारूंगी” शेर को ढूँढने में सुबह से शाम हो गई। अंत

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

Image
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी  ~~~~~~~~~~~~~ पुण्यतिथि : जून 23, 1953 🌺🌹🥀🙏🌻🌼💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🌹🥀🙏🌻🌼💐 डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी कौन नहीं जानता। वे एक महान चिन्तक थे। देश के लिए कुछ भी करने की लगन थी। ऐसे महान चिंतक की आज (23 जून) पुण्य तिथि है। आइए ऐसे महान व्यक्ति को हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। संक्षिप्त जीवन परिचय ........ अपने पुत्र की असामयिक मृत्यु का समाचार सुनने के पश्चात डॉ मुखर्जी की माता योगमाया देवी ने कहा था : “मेरे पुत्र की मृत्यु भारत माता के पुत्र की मृत्यु है।” भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6  जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे शिक्षाविद् के रूप में जाने जाते थे। डॉ॰ मुखर्जीजी ने वर्ष 1917 में मैट्रिक उत्तीर्ण हुए। वर्ष 1921 में BA की डिग्री हासिल की। वर्ष 1923 में विधि की उपाधि पास की। इसके

राजा दाहरसेन जी

Image
*राजा दाहरसेन का बलिदान।* *उनकी महान पत्नी लाड़ी, बहन पद्मा और दोनों पुत्रियों सूर्या व परमाल  का बलिदान* ................ *शत्-शत् नमन* 20 जून/बलिदान-दिवस, भारत को लूटने और इस पर कब्जा करने के लिए पश्चिम के रेगिस्तानों से आने वाले मजहबी हमलावरों का वार सबसे पहले सिन्ध की वीरभूमि को ही झेलना पड़ता था। इसी सिन्ध के राजा थे दाहरसेन, जिन्होंने युद्धभूमि में लड़ते हुए प्राणाहुति दी। उनके बाद उनकी पत्नी, बहिन और दोनों पुत्रियों ने भी अपना बलिदान देकर भारत में एक नयी परम्परा का सूत्रपात किया। सिन्ध के महाराजा चच के असमय देहांत के बाद उनके 12 वर्षीय पुत्र दाहरसेन गद्दी पर बैठे। राज्य की देखभाल उनके चाचा चन्द्रसेन करते थे, पर छह वर्ष बाद चन्द्रसेन का भी देहांत हो गया। अतः राज्य की जिम्मेदारी 18 वर्षीय दाहरसेन पर आ गयी। उन्होंने देवल को राजधानी बनाकर अपने शौर्य से राज्य की सीमाओं का कन्नौज, कंधार, कश्मीर और कच्छ तक विस्तार किया। राजा दाहरसेन एक प्रजावत्सल राजा थे। गोरक्षक के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। यह देखकर ईरान के शासक हज्जाम ने 712 ई0 में अपने सेनापति मोहम्मद

डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार जी

Image
संघ संस्थापक डा. केशवराव हेडगेवार जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 21जून/पुण्यतिथि विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आज कौन नहीं जानता ? भारत के कोने-कोने में इसकी शाखाएँ हैं। विश्व में जिस देश में भी हिन्दू रहते हैं, वहाँ किसी ना किसी रूप में संघ का काम है। संघ के निर्माता डा. केशवराव हेडगेवार का जन्म एक अप्रेल, 1889 (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वि. सम्वत् 1946) को नागपुर में हुआ था। इनके पिता श्री बलिराम हेडगेवार तथा माता श्रीमती रेवतीवाई थीं। केशव जी जन्मजात देशभक्त थे। बचपन से ही उन्हें नगर में घूमते  हुए अंग्रेज सैनिक, सीताबर्डी के किले पर फहराता अंग्रेजों का झण्डा यूनियन जैक तथा विद्यालय में गाया जाने वाला गीत ‘गाॅड सेव दि किंग’ बहुत बुरा लगता था। उन्होंने एक बार सुरंग खोदकर उस झंडे को उतारने की योजना भी बनाई; पर बालपन की यह योजना सफल नहीं हो पाई। वे सोचते थे कि इतने बड़े देश पर पहले मुगलों ने और फिर सात समुन्दर पार से आये अंग्रेजों ने अधिकार कैसे कर लिया ? वे अपने अध्यापकों और अन्य बड़े लोगों से बार-बार यह प्रश्न पूछा करते थे। बहुत दिनों बाद उनकी स

मधुकर दत्तात्रेय देवरस "बालासाहब"

Image
मधुकर दत्तात्रेय देवरस "बालासाहब"  - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यपद्धति के निर्माण एवं विकास में जिनकी प्रमुख भूमिका रही है, उन श्री मधुकर दत्तात्रेय देवरस का जन्म 11 दिसम्बर, 1915 को नागपुर में हुआ था। वे बालासाहब के नाम से अधिक परिचित हैं। वे ही आगे चलकर संघ के तृतीय सरसंघचालक बने। बालासाहब ने 1927 में शाखा जाना शुरू किया। धीरे-धीरे उनका सम्पर्क डा0 हेडगेवार से बढ़ता गया। उन्हें मोहिते के बाड़े में लगने वाली सायं शाखा के ‘कुश पथक’ में शामिल किया गया। इसमें विशेष प्रतिभावान छात्रों को ही रखा जाता था। बालासाहब खेल में बहुत निपुण थे। कबड्डी में उन्हें विशेष मजा आता था; पर वे सदा प्रथम श्रेणी पाकर उत्तीर्ण भी होते थे। बालासाहब देवरस बचपन से ही खुले विचारों के थे। वे कुरीतियों तथा कालबाह्य हो चुकी परम्पराओं के घोर विरोधी थे। उनके घर पर उनके सभी जातियों के मित्र आते थे। वे सब एक साथ खाते-पीते थे। प्रारम्भ में उनकी माताजी ने इस पर आपत्ति की; पर बालासाहब के आग्रह पर वे मान गयीं। कानून की पढ़ाई पूरी

सरसंघचालक श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन जी

Image
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ *शत्-शत् नमन 18 जून/ जन्मदिवस  नवीन सोच के धनी: श्री के० सी० सुदर्शन जी।* श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन (१८ जून १९३१-१५ सितंबर २०१२) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पाँचवें सरसंघचालक थे। मार्च २००९ में श्री मोहन भागवत को छठवाँ सरसंघचालक नियुक्त कर स्वेच्छा से पदमुक्त हो गये। 15 सितम्बर 2012 को अपने जन्मस्थान रायपुर में 81 वर्ष की अवस्था में इनका निधन हो गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री के० सी० सुदर्शन जी मूलतः तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) ग्राम के निवासी थे। कन्नड़ परम्परा में सबसे पहले गांव, फिर पिता और फिर अपना नाम बोलते हैं। उनके पिता श्री सीतारामैया वन-विभाग की नौकरी के कारण अधिकांश समय मध्यप्रदेश में ही रहे और वहीं रायपुर (वर्तमान छत्तीसगढ़) में १८ जून, १९३१ को श्री सुदर्शन जी का जन्म हुआ। तीन भाई और एक बहन वाले परिवार में सुदर्शन जी सबसे बड़े थे। रायपुर, दमोह, मंडला तथा चन्द्रपुर में प्रारम्भिक शिक्षा पाकर उन्हो

झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई

Image
★ झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई ★ ●~~~~~~~~~~~~~~~~● 🌿 चमक उठी सन 57 में,  वो तलवार पुरानी थी.. 🌿 🌿 घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीर गति पानी थी..🌿 🌿दिखा गई पथ, सीखा गई हमको,  जो सीख सिखानी थी..🌿 🌿 खुब लड़ी मर्दानी वो तो,  झाँसी वाली रानी थी.. 🌿 रानी लक्ष्मीबाई उर्फ़ झाँसी की रानी मराठा शासित राज्य झाँसी की रानी थी। जो उत्तर-मध्य भारत में स्थित है। रानी लक्ष्मीबाई 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थी जिन्होंने अल्पायु में ही ब्रिटिश साम्राज्य से संग्राम किया था। पूरा नाम    – राणी लक्ष्मीबाई गंगाधरराव जन्म         – 19 नवम्बर, 1835 जन्मस्थान – वाराणसी पिता        – श्री मोरोपन्त माता        – भागीरथी शिक्षा       – मल्लविद्या, घुसडवारी और शत्रविद्याए सीखी विवाह      – राजा गंगाधरराव के साथ ★Queen of Jhansi Rani Lakshmi Bai – झांसी की रानी लक्ष्मी बाई★ घुड़सवारी करने में रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही निपुण थी। उनके पास बहोत से जाबाज़ घोड़े भी थे जिनमे उनके पसंदीदा सारंगी, पवन और बादल भी शामिल है। जिसमे परम्पराओ और इतिहास के अनुसार 1858 के समय किले से भागते समय

गणेश दामोदर सावरकर

Image
गणेश दामोदर सावरकर ~~~~~~~~~~~~ 🌺🌺🙏🌷🙏💐💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जिए वतन खातिर उनकी, जरा याद करो कुर्बानी..... 🌺🌺🙏🌷🙏💐💐 प्रसिद्ध क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर (बाबा सावरकर) का जन्म 13 जून 1879 ई. में महाराष्ट्र राज्य के नासिक नगर के निकट भागपुर नामक स्थान में हुआ था।नासिक में ही उनकी शिक्षा हुई। आरंभ में उनकी रुचि धर्म, योग, जप, तप आदि विषयों की ओर थी। 1897 में प्लेग आफीसर रेंड के अत्याचारों से क्रुद्ध चापेकर बंधुओं ने उसकी हत्या की और उससे पूरे महाराष्ट्र में हलचल मच गई तो गणेश पर जो बाबा सावरकर कहलाते थे, उन पर भी इसका प्रभाव पड़ा और वो अँगेजो के विरुद्ध हो गए और परेशान भी हो गए कि क्या करें। एक बार तो वे सन्न्यास लेने की भी सोचने लगे थे, पर प्लेग में पिता की मृत्यु हो जाने से छोटे भाईयों की शिक्षा-दीक्षा आदि का दायित्व उन पर आ जाने से उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। महाराष्ट्र में उस समय ‘अभिनव भारत’ नामक क्रांतिकारी दल काम कर रहा था। उनके छोटे भाई विनायक सावरकर इस दल से संबद्ध थे। वे जब इंग्लैण्ड

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह

Image
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ महाराणा प्रताप जन्मभूमि की स्वतंत्रता के संघर्ष के प्रतिक है। वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, आदर्श संगठनकर्ता और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहने वाले महान सेनानी थे।  अपनी संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए उन्होंने वन-वन भटकना तो स्वीकार किया मगर क्रूर मुग़ल सम्राट अकबर के सामने अधीनता स्वीकार नहीं की।  महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के ऐसे महानायक है, जिनकी अनन्य विशेषताओ पर भारतीय इतिहासकारों ही नहीं, पाश्चात्य लेखकों और कवियों को भी अपनी लेखनी चालायी है। प्रताप स्वदेश पर अभिमान करने वाले, स्वतंत्रता के पुजारी, दृढ़ प्रतिज्ञ और एक वीर क्षत्रिये थे।  सम्राट अकबर ने अपना समस्त बुद्धिबल, धनबल और बाहुबल लगा दिया था, मगर वो महाराणा प्रताप को झुका नहीं पाया था। महाराणा प्रताप का प्रण था की बाप्पा रावल का वंशज, अपने गुरु, भगवान, और अपने माता-पिता को छोड़ कर किसी के आगे शीश नहीं झुकाएगा।  महाराणा प्रताप अपनी सारी जिंदगी अपने दृढ़ संकल्प पर अटल रहे, वे अकबर को ‘बादशाह’ कह कर सम्बोधित कर दे ऐसा असंभव माना जा