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Showing posts from March, 2021

पंडित कांशीराम जी

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पंडित कांशीराम ~~~~~~~~~ 🌺💐🌻🙏🌻💐🌺 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी.. 🌺💐🌻🙏🌻💐🌺 पंडित कांशीराम ग़दर पार्टी के प्रमुख नेता थे और उन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे। पंडित कांशीराम का जन्म 1883 ई. में पंजाब के अंबाला ज़िले में हुआ था। मैट्रिक पास करने के बाद उन्होंने तार भेजने प्राप्त करने का काम सीखा और कुछ दिन अंबाला और दिल्ली में नौकरी की। इसके बाद वे अमेरिका चले गए। यहीं से उनका क्रांतिकारी जीवन आरंभ होता है। आजीविका के लिए पंडित कांशीराम ने ठेकेदारी का काम किया। साथ ही वे 'इंडियन एसोसिएशन ऑफ अमेरिका' और 'इंडियन इंडिपैंडेंट लीग' में शामिल हो गए। उनके ऊपर लाला हरदयाल का बहुत प्रभाव पड़ा। वे संगठन भारत को अंग्रेजों की चुंगल से छुड़ाने के लिए बनाए गए थे। 1913 में पंडित कांशीराम ‘ग़दर पार्टी’ के कोषाध्यक्ष बन गए। जिस समय यूरोप में प्रथम विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे, ग़दर पार्टी ने निश्चय किया कि कुछ लोगों को अमेरिका से भारत वापस जाना चाहिए। वे वहां जाकर भार

कू (Koo) एप्प पर एक लाख से ज्यादा फॉलोवर्स

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कू (Koo) एप्प पर 1 लाख से अधिक फॉलोवर्स ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ दोस्तों, मैं अगस्त, 2020 को कू (Koo) एप्प डाउनलोड कर उस पर नरेन्द्र मोदी एप्प (Narendra Modi App) से मिली सारी जानकारी को लगातार शेयर कर रही हूँ। अब तक मैं कुल 2400 पोस्ट/जानकारी कू कर चुकी हूँ और लोग भी इन सब जानकारियों/योजनाओं को पसन्द कर रहे हैं व उनका लाभ भी उठा रहे हैं। इस वजह से ही मेरे कू (Koo) एकाउंट पर नरेन्द्र मोदी एप्प से डाली गई सभी पोस्ट/जानकारी की वजह से 28 फरवरी, 2021, यानी सिर्फ 7 महीनों में ही मुझे 1,00,000 (एक लाख) से भी ज्यादा लोग फॉलो करना शुरू कर चुके हैं। आप सभी मेरी ही तरह हमारे महान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रशंसक/भक्त हैं। आप सभी के सहयोग का हार्दिक आभार व शुभकामनाएं। पर क्षमा करना, दोस्तों मैंने ये बात नोट कि हैं, हम लोग अपने इस नरेन्द्र मोदी एप्प पर डाली हर पोस्ट को बहुत ही कम लाईक करते हैं, बहुत ही कम कमेंट करते हैं, बहुत ही कम रिपोस्ट करते हैं और बहुत ही कम शेयर करते हैं। ये बहुत ही गलत बात हैं। अपने इस महान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के एप्प पर हम कोई टाइमपास कर

23 मार्च : भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव - शहीद दिवस

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23 मार्च : भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव - शहीद दिवस ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹💐🙏💐🌹🌺 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹💐🙏💐🌹🌺 23 मार्च यानि, देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्यौछावर करने वाले तीन वीर सपूतों का शहीद दिवस। यह दिवस ना केवल देश के प्रति सम्मान और हिंदुस्तानी होने वा गौरव का अनुभव कराता है, बल्कि वीर सपूतों के बलिदान को भीगे मन से श्रृद्धांजलि देता है। उन अमर क्रांतिकारियों के बारे में आम मनुष्य की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है। उनके उज्ज्वल चरित्रों को बस याद किया जा सकता है कि ऐसे मानव भी इस दुनिया में हुए हैं, जिनके आचरण किंवदंति हैं। भगतसिंह ने अपने अति संक्षिप्त जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई, उनके बाद अब किसी के लिए संभव न होगी। 'आदमी को मारा जा सकता है उसके विचार को नहीं। बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है।' ........... बम फेंकने के बाद भगतसिंह द

राम मनोहर लोहिया

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राम मनोहर लोहिया ~~~~~~~~~~ राजनेता व स्वतंत्रता सेनानी जन्म : 23 मार्च, 1910, अकबरपुर, फैजाबाद निधन : 12 अक्टूबर, 1967, नई दिल्ली कार्य क्षेत्र : स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता राम मनोहर लोहिया एक स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर समाजवादी और सम्मानित राजनीतिज्ञ थे. राम मनोहर ने हमेशा सत्य का अनुकरण किया और आजादी की लड़ाई में अद्भुत काम किया. भारत की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और उसके बाद ऐसे कई नेता आये जिन्होंने अपने दम पर राजनीति का रुख़ बदल दिया उन्ही नेताओं में एक थे राममनोहर लोहिया। वे अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्‍वी समाजवादी विचारों के लिए जाने गए और इन्ही गुडों के कारण अपने समर्थकों के साथ-साथ उन्होंने अपने विरोधियों से भी बहुत  सम्‍मान हासिल किया। बचपन और प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~~~~~~~~ राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था। उनकी मां एक शिक्षिका थीं। जब वे बहुत छोटे थे तभी उनकी मां का निधन हो गया था। अपने पिता से जो एक राष्ट्रभक्त थे, उन्हें युवा अवस्था में ही विभिन्न रैलियों और विरोध सभाओं के माध्यम से भारत के स्वतंत

शहीदी दिवस (भगत सिंह)

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★जरा याद करो कुर्बानी★ #बलिदान_दिवस #भगत_सिंह -- उनकी जेब में करतार सिंह साराभाई, भगवत गीता और स्वामी विवेकानंद की जीवनी रहती थी और फिर वो लिखते हैं ‘वाइ आई एम एन अथीस्ट’? मैं नास्तिक क्यों हूँ ?? जी हाँ मैं बात कर रही हूँ अमर शहीद भगत सिंह जी की ...... आज उनका बलिदान दिवस है तो आइए उनके कुछ अनसुने किस्से आपसे साझा करती हूँ -- मेरे जीने का मकसद ~~~~~~~~~~~ ★★ लाहौर जेल में बंद कुछ कैदियों की ‌एक चिट्ठी जेल में ही बंद एक नौजवान के पास पहुंची, जिसमें लिखा था कि "हमने अपने भागने के लिए एक रास्ता बनाया है, लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी जगह आप उससे निकल जाएं"। युवक ने चिट्ठी के बदले में जवाब भेजा। "धन्यवाद.....मैं आपका आभारी हूं लेकिन ये आग्रह स्वीकार नहीं कर सकता अगर ऐसा किया तो मेरे जीने का मकसद ही खत्म हो जाएगा। मैं चाहता हूं मेरी शहादत देश के काम आए और युवाओं में प्रेरणा और जोश भरने का काम करे, जिससे देश को जल्द से जल्द आजादी मिल सके।" वो युवक थे 24 साल के भगत सिंह। #फाँसी_के_वक़्त_वो_लेनिन_को_पढ़_रहे_थे_ये_सफेद_झूठ -- ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

विश्व वानिकी दिवस

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विश्व वानिकी दिवस ~~~~~~~~~~ विश्व वानिकी दिवस (World Forest Day ) प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। विश्व वानिकी दिवस पहली बार वर्ष 1971 ई. में इस उद्देश्य से मनाया गया था कि दुनिया के तमाम देश अपनी मातृभूमि की मिट्टी और वन-सम्पदा का महत्व समझे तथा अपने - अपने देश के वनों और जंगलों का संरक्षण करें। अगर हम भारत की बात करें तो 22.7% भूमि पर ही वनों और जंगलों का अस्तित्व रह गया। भारत में वन महोत्सव जुलाई 1950 से ही मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत तत्कालीन गृहमंत्री कुलपति कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने की थी।  उद्देश्य : ~~~~~ विश्व वानिकी दिवस का उद्देश्य है कि विश्व के सभी देश अपनी वन-सम्पदा की तरफ ध्यान दें और वनों को संरक्षण प्रदान करें। भारत में भी वन-सम्पदा पर्याप्त रूप से है। भारत में 657.6 लाख हेक्टेयर भूमि (22.7 %) पर वन पाए जाते हैं। वर्तमान समय में भारत 19.39 % भूमि पर वनों का विस्तार है और छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज्यादा वन-सम्पदा है उसके बाद क्रमश: मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य में।   भारत सरकार द्वारा सन 1952 ई. में निर्धारित "राष्ट्रीय वन नीति" के त

वीरांगना रानी अवन्तिबाई लोधी

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वीरांगना रानी अवन्तिबाई लोधी ~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌺🙏🙏🌺🌺 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌺🙏🙏🌺🌺 ✍️ भारत की पूर्वाग्रही लेखनी ने देश के बहुत से त्यागी, बलिदानियों, शहीदों और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले वीर-वीरांगनाओं को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की पुस्तकों में उचित सम्मानपूर्ण स्थान नहीं दिया है, परंतु आज भी इन वीर-वीरांगनाओं की शौर्यपूर्ण गाथाएं भारत की पवित्र भूमि पर गूंजती हैं और उनका शौर्यपूर्ण जीवन प्रत्येक भारतीय के जीवन को मार्गदर्शित करता है। ऐसी ही 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की एक वीरांगना हैं रानी अवंतीबाई लोधी जिनके योगदान को हमेशा से इतिहासकारों ने कोई अहम स्थान न देकर नाइंसाफी की है। आज देश में बहुत से लोग हैं, जो इनके बारे में जानते भी नहीं हैं। लेकिन इनका योगदान भी 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अग्रणी नेता वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कम नहीं हैं।  लेकिन इतिहासकारों की पिछड़ा और दलित विरोधी मानसिकता ने हमेशा से इनके बलिदान और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता

कल्पना चावला

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कल्पना चावला  ~~~~~~~~ कल्पना चावला पहली भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और अन्तरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। 1997 में वह अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थी और 2003 में कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा में मारे गये सात यात्रियों के दल में से एक थी। पूरा नाम    –  कल्पना जीन पियरे हैरिसन (विवाहपूर्व – कल्पना बनारसी लाल चावला) जन्म         – 17 मार्च 1962 जन्म स्थान –   करनाल, पंजाब, (जो अभी हरयाणा, भारत में है) पिता         –  बनारसी लाल चावला माता         –  संज्योथी चावला विवाह       –  जीन पियरे हैरिसन  भारत की बेटी – कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 को करनाल, पंजाब, में हुआ जो अभी हरयाणा, भारत में है। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा टैगोर बाल निकेतन सीनियर सेकेंडरी स्कूल, करनाल से और बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग) 1982 में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़ से पूरी की। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए 1982 में चली गयी और 1984 में वैमानिक अभियांत्रिकी (एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग) में विज्ञानं स्नातक की उपाधि टेक्सास विश्वविद्यालय आरलिन्गटन से प्राप्त की। फिर उन्ह

मनोहर पर्रीकर जी

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मनोहर पर्रीकर जी ~~~~~~~~~~      मनोहर पर्रीकर का पूरा नाम 'मनोहर गोपालकृष्‍ण प्रभु पर्रीकर' है। इनका जन्‍म 13 दिसंबर 1955 को गोवा के मापुसा में हुआ। उन्‍होंने अपने स्‍कूल की शिक्षा मारगाव में पूरी की। इसके बाद आई.आई.टी. मुम्बई से इंजीनियरिंग और 1978 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। पर्रिकर के दो बेटे उत्पल और अभिजात हैं। अभिजात गोवा में ही अपना बिजनेस चलाते हैं तो बेटे उत्पल ने अमेरिका से इंजीनियरिंग की डिग्री ली है। पर्रिकर की पत्नी मेधा अब इस दुनिया में नहीं हैं। 2001 में उनकी पत्नी का कैंसर के चलते निधन हो गया था। 1978 में अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने वाले मनोहर पर्रीकर का मुंबई की पढ़ाई से लेकर गोवा के मुख्यमंत्री और बाद में रक्षामंत्री तक का सफर काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है, जिसे इन्होने ने बहुत ही समझदारी और सूझ-बूझ से पूरा किया. मनोहर परिकर का राजनीतिक कैरियर 1994 में तब शुरू हुआ जब वे गोवा विधानसभा के विधायक चुने गए, उसके बाद वह 24 अक्टूबर साल 2000 में गोवा के मुख्यमंत्री के तौर पर नियुक्त हुए और 27 फरवरी 2002 तक मुख्यमंत्री के कार्य बखूबी संभाला. वह 20

छत्रपति संभाजी महाराज

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छत्रपति संभाजी महाराज ~~~~~~~~~~~~~ छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज जिसके नाम से थर्राते थे मुग़ल। हिन्दुस्थान में हिंदवी स्वराज एवं हिन्दू पातशाही की गौरवपूर्ण स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन को यदि चार पंक्तियों में संजोया जाए तो यही कहा जाएगा कि :- 'देश धरम पर मिटने वाला, शेर शिवा का छावा था। महा पराक्रमी परम प्रतापी, एक ही शंभू राजा था।।' संभाजी महाराज का जीवन एवं उनकी वीरता ऐसी थी कि उनका नाम लेते ही औरंगजेब के साथ तमाम मुगल सेना थर्राने लगती थी। संभाजी के घोड़े की टाप सुनते ही मुगल सैनिकों के हाथों से अस्त्र-शस्त्र छूटकर गिरने लगते थे। यही कारण था कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद भी संभाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज को अक्षुण्ण रखा था। वैसे शूरता-वीरता के साथ निडरता का वरदान भी संभाजी को अपने पिता शिवाजी महाराज से मानों विरासत में प्राप्त हुआ था। राजपूत वीर राजा जयसिंह के कहने पर, उन पर भरोसा रखते हुए जब छत्रपति शिवाजी औरंगजेब से मिलने आगरा पहुंचे थे तो दूरदृष्टि रखते हुए वे अपने पुत

सावित्रीबाई फुले

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सावित्रीबाई फुले  ~~~~~~~~~ नाम –सावित्रीबाई फुले जन्म – 3 जनवरी सन् 1831 मृत्यु – 10 मार्च सन् 1897 उपलब्धि – कर्मठ समाजसेवी जिन्होंने समाज के पिछड़े वर्ग खासतौर पर महिलाओं के लिए अनेक कल्याणकारी काम किये.उन्हें उनकी मराठी कविताओं के लिए भी जाना जाता है। जन्म व विवाह :- ~~~~~~~~~~ सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगाँव नामक स्थान पर 3 जनवरी सन् 1831 को हुआ। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सन् 1840 में मात्र नौ वर्ष की आयु में ही उनका विवाह बारह वर्ष के ज्योतिबा फुले से हुआ। महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की प्रेरणा से सावित्रीबाई फुले स्वयं हुईं शिक्षित और छेड़ी महिला-शिक्षा की मुहीम :- ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ महात्मा ज्योतिबा फुले स्वयं एक महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, संपादक और क्रांतिकारी थे। सावित्रीबाई पढ़ी-लिखी नहीं थीं। शादी के बाद ज्योतिबा ने ही उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। बाद में सावित्रीबाई ने ही दलित समाज की ही नहीं, बल्कि देश की प्रथम शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त किया। उस समय लड़क