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Showing posts from January, 2022

महात्मा गांधी जी

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महात्मा गांधी ~~~~~~~ आज उनकी  पुण्य तिथि पर हम देशवासी उन्हें याद करते हैं....... महात्मा गांधी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने जिंदगीभर भारत को आज़ादी दिलाने के लिये संघर्ष किया। महात्मा गांधी एक ऐसे महापुरुष थे जो प्राचीन काल से भारतीयों के दिल में रह रहे है। महात्मा गांधी अपने अतुल्य योगदान के लिये ज्यादातर “राष्ट्रपिता और बापू” के नाम से जाने जाते है। वे एक ऐसे महापुरुष थे जो अहिंसा और सामाजिक एकता पर विश्वास करते थे। उन्होंने भारत में ग्रामीण भागो के सामाजिक विकास के लिये आवाज़ उठाई थी, उन्होंने भारतीयों को स्वदेशी वस्तुओ के उपयोग के लिये प्रेरित किया और बहोत से सामाजिक मुद्दों पर भी उन्होंने ब्रिटिशो के खिलाफ आवाज़ उठायी। वे भारतीय संस्कृति से अछूत और भेदभाव की परंपरा को नष्ट करना चाहते थे। बाद में वे भारतीय स्वतंत्रता अभियान में शामिल होकर संघर्ष करने लगे। भारतीय इतिहास में वे एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने भारतीयों की आज़ादी के सपने को सच्चाई में बदला था। आज भी लोग उन्हें उनके महान और अतुल्य कार्यो के लिये याद करते है। आज भी लोगो को उनके जीवन की मिसाल दी जाती

फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा जी

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फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा Field Marshal K. M. Cariappa ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जीवनी ~~~~ जन्म: 28 जनवरी, 1899, कुर्ग, कर्नाटक मृत्यु: 15 मई, 1993, बंगलौर कार्यक्षेत्र: प्रथम भारतीय सेनाध्यक्ष, फ़ील्ड मार्शल फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा भारतीय सेना के प्रथम कमांडर-इन-चीफ थे। के. एम. करिअप्पा ने सन् 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर सेना का नेतृत्व किया था। वे भारतीय सेना के उन दो अधिकारियों में शामिल हैं जिन्हें फील्ड मार्शल की पदवी दी गयी। फील्ड मार्शल सैम मानेकशा दूसरे ऐसे अधिकारी थे जिन्हें फील्ड मार्शल का रैंक दिया गया था। उनका मिलिटरी करियर लगभग 3 दशक लम्बा था जिसके दौरान 15 जनवरी 1949 में उन्हें सेना प्रमुख नियुक्त किया गया। इसके बाद से ही 15 जनवरी ‘सेना दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। करिअप्पा का सम्बन्ध राजपूत रेजीमेन्ट से था। वे सन 1953 में सेवानिवृत्त हो गये फिर भी किसी न किसी रूप में भारतीय सेना को सहयोग देते रहे। प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~ फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी, 1899 में कर्नाटक के कोडागु (कुर्ग) में शनिवर्सांथि न

लाला लाजपत राय जी

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लाला लाजपत राय ~~~~~~~~~~ 🥀🌹🌻🌼🌺🌸💐🌷 ★तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी...★ 🥀🌹🌻🌼🌺🌸💐🌷 लाला लाजपत राय: जिनकी मौत ने ब्रिटिश राज के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी.....। साइमन कमीशन के विरोध में ब्रिटिश पुलिस की लाठियों से घायल होकर 17 नवंबर 1928 को हुआ था लाला लाजपत राय जी का देहांत। एक दौर था जब ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता था। पूरी दुनिया में अंग्रेजों की तूती बोलती थी. सर्वशक्तिमान ब्रिटिश राज के खिलाफ 1857 में भारत में हुए बहुत बड़े सशस्त्र आंदोलन को बेहद निर्ममता के साथ कुचल दिया गया था. अंग्रेज भी यह मानते थे अब उन्हें भारत से कोई हिला भी नहीं सकता। साल 1928 में भारत में एक शख्स की ब्रिटिश पुलिस की लाठियों के मौत हुई. और इस मौत ने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलों को हिला दिया। 30 अक्टूबर 1928 को पंजाब में महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय पर बरसीं ब्रिटिश लाठियां दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील साबित हुईं और 17 नवंबर को हुई उनकी मौत के लगभग 20 साल के भीतर ही भार

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ~~~~~~~~~~~~~ 23 जनवरी / जन्म-तिथि 🌺 🌺 🙏 🙏 💐 💐 तुम भूल ना जाओ उनको इसलिए लिखी ये कहानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌺 🌺 🙏 🙏 💐 💐 भारत स्वतन्त्रता आन्दोलन के दिनों में जिनकी एक पुकार पर हजारों महिलाओं ने अपने कीमती गहने अर्पित कर दिये, जिनके आह्नान पर हजारों युवक और युवतियाँ आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गये, उन नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जी का जन्म उड़ीसा की राजधानी कटक के एक मध्यमवर्गीय परिवार में 23 जनवरी, 1897 को हुआ था। सुभाष चन्द्र जी के अंग्रेजभक्त पिता रायबहादुर जानकी नाथ जी चाहते थे कि वह अंग्रेजी आचार-विचार और शिक्षा को अपनाएँ। विदेश में जाकर पढ़ें तथा आई.सी.एस . बनकर अपने कुल का नाम रोशन करें; पर सुभाष चन्द्र जी की माता श्रीमती प्रभावती जी हिन्दुत्व और देश से प्रेम करने वाली महिला थीं। वे उन्हें 1857 के संग्राम, मंगल पाण्डेय तथा विवेकानन्द आदि जैसे महापुरुषों की कहानियाँ सुनाती थीं। इससे सुभाष चन्द्र जी के मन में भी देश के लिए कुछ करने की भावना प्रबल हो उठी। सुभाष चन्द्र जी ने कटक और कोलकाता से विभिन्न परीक्ष

शहीद राजा नाहर सिंह जी

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राजा नाहर सिंह ~~~~~~~~~ 🌺🌻💐🙏💐🌻🌺 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌻💐🙏💐🌻🌺 सन् 1857 की रक्तिम क्रांति के समय दिल्ली के बीस मील पूर्व में जाटों की एक रियासत थी। इस रियासत के नवयुवक राजा नाहर सिंह बहुत वीर, पराक्रमी और चतुर थे। दिल्ली के मुगल दरबार में उनका बहुत सम्मान था और उनके लिए सम्राट के सिंहासन के नीचे ही सोने की कुर्सी रखी जाती थी। मेरठ के क्रांतिकारियों ने जब दिल्ली पहुँचकर उन्हें ब्रितानियों के चंगुल से मुक्त कर दिया और मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को फिर सिंहासन पर बैठा दिया तो प्रश्न उपस्थित हुआ कि दिल्ली की सुरक्षा का दायित्व किसे दिया जाए? इस समय तक शाही सहायता के लिए मोहम्मद बख्त खाँ पंद्रह हजार की फौज लेकर दिल्ली चुके थे। उन्होंने भी यही उचित समझा कि दिल्ली के पूर्वी मोर्चे की कमान राजा नाहर सिंह के पास ही रहने दी जाए। बहादुरशाह जफर तो नाहर सिंह जी को बहुत मानते ही थे। ब्रितानी दासता से मुक्त होने के पश्चात् दिल्ली ने 140 दिन स्वतंत्र जीवन व्यतित किया। इस काल में राजा नाहर सिंह ने दिल्ली

राव बहादुर सर छोटूराम जी

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राव बहादुर सर छोटूराम ~~~~~~~~~~~~~ जन्म : 24 नवम्बर 1881 रोहतक जिला , हरयाणा मृत्यु : 9 जनवरी 1945 (उम्र 63) लहौर, पंजाब, ब्रिटिश इंडिया राजनैतिक पार्टी : यूनियनिस्ट पार्टी विद्या : अर्जनसेंट स्टीफन कालेज धर्म : हिन्दू वेबसाइट : www.sirchhoturam.com सर छोटूराम जी का जन्म २४नवम्बर १८८१ में झज्जर के छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ (झज्जर उस समय रोहतक जिले का ही अंग था)। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था। अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे इसलिए सारे परिवार के लोग इन्हें छोटू कहकर पुकारते थे। स्कूल रजिस्टर में भी इनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादाश्री रामरत्‍न के पास 10 एकड़ बंजर व बारानी जमीन थी। छोटूराम जी के पिता श्री सुखीराम कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे। आरंभिक शिक्षा :- ~~~~~~~~~ जनवरी सन् १८९१ में छोटूराम ने अपने गांव से 12 मील की दूरी पर स्थित मिडिल स्कूल झज्जर में प्राइमरी शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद झज्जर छोड़कर उन्होंने क्रिश्‍चियन मिशन स्कूल दिल्ली में प्रवेश

गुरु गोविंद सिंह जी

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गुरु गोबिंद सिंह जी ~~~~~~~~~~ "सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ" का उद्घोष करने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरू थे। उन्हों ही सिख समुदाय को एकजुट करके “खालसा पंथ” की स्थापना की। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही सिखों को “पंज प्यारे” और “पंच ककार” दिए। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंति आज 09 जनवरी, दिन रविवार को मनाई जा रही है। सिख समुदाय के लोग इस दिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं। इस दिन प्रभात फेरी निकाली जाती है गुरुद्वारों में सबद, कीर्तन, अरदास और लंगर का आयोजन होता है। एक महान योद्धा, कवि और विचारक गोबिंद सिंह जी ने 1699 में खालसा पन्थ के स्थापना की थी। उन्होंने मुगल बादशाह के साथ कई युद्ध किये और  ज्यादातर में में विजय हासिल की। उनके पिता सिक्ख धर्म के नौवे गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी देवी थी। उन्होंने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनन्दपुर साहिब में एक बड़ी सभा का आयोजन कर खालसा पंथ की स्थापना की थी। नौ वर्ष की उम्र में सम्भाली गद्दी ~~~~~~~~~~~~~~~~ श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर 666 ईस्वी में पटना

सावित्रीबाई फुले

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सावित्रीबाई फुले ~~~~~~~~~ नाम –सावित्रीबाई फुले जन्म – 3 जनवरी सन् 1831 मृत्यु – 10 मार्च सन् 1897 उपलब्धि – कर्मठ समाजसेवी जिन्होंने समाज के पिछड़े वर्ग खासतौर पर महिलाओं के लिए अनेक कल्याणकारी काम किये। उन्हें उनकी मराठी कविताओं के लिए भी जाना जाता है। जन्म व विवाह :- ~~~~~~~~~~ सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगाँव नामक स्थान पर 3 जनवरी सन् 1831 को हुआ। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सन् 1840 में मात्र नौ वर्ष की आयु में ही उनका विवाह बारह वर्ष के ज्योतिबा फुले से हुआ। महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की प्रेरणा से सावित्रीबाई फुले स्वयं हुईं शिक्षित और छेड़ी महिला-शिक्षा की मुहीम :- ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ महात्मा ज्योतिबा फुले स्वयं एक महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, संपादक और क्रांतिकारी थे। सावित्रीबाई पढ़ी-लिखी नहीं थीं। शादी के बाद ज्योतिबा ने ही उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। बाद में सावित्रीबाई ने ही दलित समाज की ही नहीं, बल्कि देश की प्रथम शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त किया।