दलित क्रान्तिकारी महिलाएं, जिन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाई

दलित क्रान्तिकारी महिलाएं, 
जिन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाई
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तुम भूल ना जाओ उनको, 
इसलिए लिखी ये कहानी, 
जो शहीद हुए हैं उनकी, 
ज़रा याद करो कुर्बानी...
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दलितों को लेकर देश में अक्सर विरोधी माहौल बनते रहते हैं, पर सच यह है कि चाहे सामाजिक व्यवस्था हो, आजादी की लड़ाई हो या देश की रक्षा दलितों ने हर जगह बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया है। दलित महिलाएं भी कभी किसी से कम नहीं रहीं। समाज में तमाम उपेक्षा और दुश्वारियों के बावजूद वह आगे बढ़ीं और समाज के विकास में सहयोग दिया। अपना और अपने परिवार का एक आधार बनी। उत्तर प्रदेश की भूतपूर्व मुख्यमंत्री मायावती, व्यवसायी कल्पना सरोज जैसे महिलाओं ने दलित महिलाओं के लिए समाज में एक सम्मानित मुकाम बनाया। आपको जान कर हैरानी होगी कि भारत की आजादी के समय भी दलित महिलाओं ने निडरता पूर्वक अंग्रेजों से लोहा लिया।  आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर आपको कुछ महान दलित वीरांगनाओं के बारे में बताती हूँ...... 

वीरांगना झलकारी बाई 
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झलकारी बाई नाम की साहसी महिला झांसी की रानी की सहयोगी थीं। वह चमार जाति की उपजाति कोरी जति से थी।  युद्ध कौशल में उन्हें महारत हासिल था। उनके सहयोग से ही झांसी की रानी लक्ष्मी बाई प्रतापगढ या नेपाल जाने में सफ़ल हो सकीं, उनकी सूरत झांसी की रानी से इतनी मिलती थी कि अंग्रेज़ भी धोखा खा जाते थे, जिसका फायदा उठा कर वह अंग्रेजों को भ्रमित कर देती थीं। उन्होंने आखिरी समय तक महारानी लक्ष्मी बाई का साथ दिया और महारानी लक्ष्मीबाई को अपने पुत्र दामोदर सहित झाँसी के किले से सकुशल निकल जाने में सहायता की और महारानी लक्ष्मीबाई की जगह खुद लक्ष्मीबाई बनकर अंग्रेजों से आखिरी समय तक युद्घ किया ।    

उदा देवी 
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इतिहासकारों के मुताबिक बेगम हजरत महल का एक पासी पलटन भी था। वीरांगना उदा देवी लखनऊ के उजेरियन गांव की रहने वाली थीं। उनके पति मक्का पासी थे, जो चिनहट बाराबंकी में अग्रेज़ों द्वारा मार दिए गए थे। पति की लाश पर रोते हुये मक्का देवी ने प्रतिशोध की कसम खाई।  बाद में वह बेगम हजरत महल द्वारा बनाई गई आर्मी की कमांडर बन गईं।    

उन्होंने 35 अंग्रेजों को मार गिराया था, लेकिन में बाद में वह मार दी गईं। दरअसल गर्मी में पीपल के पेड़ के नीचे जब अंग्रेज आराम कर रहे थे तब उन्होंने कई अंग्रेजों को मार गिराया। जनरल डावसन को संदेह हुआ तो वह मुआयना करने लगा। उसने देखा अंग्रेज सिपाहियों को गोली मारी गयी है। ऐसा लगा जैसे गोली ऊपर से मरी गई है। उसने अपने सहयोगी  वैलेक को बुलाया और दोनों ने पेड़ पर किसी साया को देखा। वैलेक ने उस दिशा में एक के बाद एक कई फायर कर दिये और गोली लगने से वीरांगना ’उदा देवी’ नीचे गिर पड़ी। गोली लगने से उनकी मृत्यु हो चुकी थी लेकिन उन्होंने कई अंग्रेजों को मरने से पहले मार दिया था।   

महावीरी देवी 
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुज़फ़्फ़र नगर हाल के दिनों में दंगों के लिए जाना जाता है लेकिन यहां कि एक वीरांगना थीं महावीरी देवी, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राण निछावर कर दिये। उनके साहस के कारनामों को यहां लोक गीतों में गाया जाता है-  

1. 'महावीरी भंगन के गनवा भैया गावत के परत 
सन 57 के गदर में दी उसने कुरबानी,
अंग्रेज़ों के सामने उसने हार नही मानी'  

२. 'चमक उठी सन 57 में, वह तलवार पुरानी थी,
महावीरी भंगन, वो बडी मरदानी थी'  

आप सभी अमर शहीद महान वीरांगनाओं को हम सभी देशवासियों का शत-शत नमन.....💐💐💐💐
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#VijetaMalikBJP

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