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Showing posts from November, 2023

डॉ० जगदीश चन्द्र बोस जी

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डॉ जगदीश चंद्र बोस ~~~~~~~~~~~ जिन्हें कहा जाता है "फादर आॅफ रेडियो साइंस" भारत के पहले आधुनिक वैज्ञानिक कहे जाने वाले जगदीश चंद्र बोस की आज जयंती है। रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की दुनिया में इनका एक अहम योगदान रहा है। आइए जानें इस महान वैज्ञानिक के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें..... सर जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवंबर, 1858 काे बंगाल के मेमनसिंह में हुआ था। अब यह जगह बांग्लादेश में है। आधिकारिक वेबसाइट ब्रिटानिकाडाॅटकाॅम के अनुसार इनका परिवार  भारतीय परंपराओं और संस्कृति काे मानने वाला था। इनके पिता का मानना था कि बोस को अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषा का अध्ययन करने से पहले उन्हें अपनी मातृभाषा, बंगाली सीखनी चाहिए। बोस की बचपन से वनस्पति व भाैतिक विज्ञान में ज्यादा थी। प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर हुए इसके बाद में जगदीश चंद्र बोस ने कोलकाता में सेंट जेवियर्स स्कूल और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की डिग्री के हासिल की। फिर उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और प्राकृतिक विज्ञान में बीएससी कर 1884 में भारत लौट आए। इसक

महान वैज्ञानिक एवं भारत रत्न से सर सी. वी. रमन जी

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महान वैज्ञानिक एवं भारत रत्न सर चंद्रशेखर वेंटक रमन जी (C V Raman – सी. वी. रमन) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ देश के महान वैज्ञानिक एवं भारत रत्न से सुसज्जित सर सी. वी. रमन जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। पूरा नाम  – चंद्रशेखर वेंटकरमन जन्म       – 7 नवंबर, 1888 जन्मस्थान – तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडू) पिता       – चंद्रशेखर अय्यर माता       – पार्वती अम्मल शिक्षा      – 1906 में M. Sc. (भौतिक शास्त्र) विवाह     – लोकसुंदरी सी. वी. रमन की जीवनी – वेंकटरमन का जीवन सादगी और सरलता से भरा था। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। वेंकटरमन शोध करना चाहते थे। लेकिन प्रेसिडेंसी कॉलेज की प्रयोगशालाएं लचर अवस्था में थीं। इसके बावजूद सी. वी. रमन एक साधारण-सी प्रयोगशाला में भौतिक विज्ञान का प्रैक्टिकल करते रहे। प्रैक्टिकल के दौरान उन्होंने अचानक विवर्तन के सिध्दांत को कैच किया। सी. वी. रमन इसकी खोज में लग गए। खोज पर आधारित उन्होंने अपना एक शोधपत्र तैयार किया। इसका प्रकाशन लंदन की फिलॉसोफिकल मैगजीन में हुआ था। 1906 में रमन ने

विरांगना झलकारी बाई जी

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वीरांगना झलकारी बाई ~~~~~~~~~~~~ 🌷🌹🌺🙏🚩🙏🌹🌷 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌷🌹🌺🙏🚩🙏🌹🌷 "जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झांसी की झलकारी थी", इन्हें कहते हैं दूसरी रानी लक्ष्मीबाई..... देश के लिए मर-मिटने वाली झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का नाम हर किसी के दिल में बसा है। कोई अगर भुलाना भी चाहे तब भी भारत माँ की इस महान बेटी को नहीं भुला सकता। लेकिन रानी लक्ष्मी बाई के ही साथ देश की एक और बेटी थी, जिसके सर पर ना रानी का ताज था और ना ही सत्ता पर। फिर भी अपनी मिट्टी के लिए वह जी-जान से लड़ी और इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ गयी। वह वीरांगना, जिसने ना केवल 1857 की क्रांति में भाग लिया बल्कि अपने देशवासियों और अपनी रानी की रक्षा के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की! वो थी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की परछाई बन अंग्रेजों से लोहा लेने वाली, वीरांगना झलकारी बाई। झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर, 1830 को ग्राम भोजला (झांसी, उ.प्र.) में हुआ था। उसके पिता मूलचन्द्र जी सेना में काम करते थे। इस कारण घर के व

मेजर शैतान सिंह भाटी जी

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मेजर शैतान सिंह भाटी ~~~~~~~~~~~~ 🌺🌻🌷🥀🙏🌹🪷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌺🌻🌷🥀🙏🌹🪷💐 मिलिए 1962 युद्ध के असली हीरो मेजर शैतान सिंह से ..... जब 120 सैनिकों ने मारा था 1300 चीनी सैनिक, हथियार खत्म थे तो भी ...... बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे शैतान सिंह, 37 की उम्र में शहीद ...... भारत-चीन युद्ध के असली हीरो हैं मेजर शैतान सिंह ...... 120 भारतीय जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को ढेर किया ...... भारत-चीन युद्ध से पहले हिन्दी-चीनी भाई-भाई का वो नारा, जिसमें यकीन के महत्व और भाईचारे का संदेश है. लेकिन चीन ने भारत के साथ धोखा किया और युद्ध छेड़ दिया। इस युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा। खास बात ये है कि भारतीय जवानों ने बेहद कम संसाधन होने के बावजूद पूरा दम-खम दिखाया था। साल 1962 में हुए इस युद्ध में कई जाबांज अफसर अपनी कुर्बानी देकर अमर हो गए। ऐसे ही बहादुर थे मेजर शैतान सिंह। शहीद मेजर शैतान सिंह भाटी ~~~~~~~~~~~~~~~~ आइए बताती हूँ, इस जाबांज अफसर की पूरी दास्तां ....... शैतान सिंह जी 37

झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई जी

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★ झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई ★ ●~~~~~~~~~~~~~~~~●  🌿 चमक उठी सन 57 में,  वो तलवार पुरानी थी.. 🌿 🌿 घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीर गति पानी थी..🌿 🌿दिखा गई पथ, सीखा गई हमको,  जो सीख सिखानी थी..🌿 🌿 खुब लड़ी मर्दानी वो तो,  झाँसी वाली रानी थी.. 🌿  रानी लक्ष्मीबाई उर्फ़ झाँसी की रानी मराठा शासित राज्य झाँसी की रानी थी। जो उत्तर-मध्य भारत में स्थित है। रानी लक्ष्मीबाई 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थी जिन्होंने अल्पायु में ही ब्रिटिश साम्राज्य से संग्राम किया था।  पूरा नाम    – राणी लक्ष्मीबाई गंगाधरराव जन्म         – 19 नवम्बर, 1835 जन्मस्थान – वाराणसी पिता        – श्री मोरोपन्त माता        – भागीरथी शिक्षा       – मल्लविद्या, घुसडवारी और शत्रविद्याए सीखी विवाह      – राजा गंगाधरराव के साथ  ★Queen of Jhansi Rani Lakshmi Bai – झांसी की रानी लक्ष्मी बाई★  घुड़सवारी करने में रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही निपुण थी। उनके पास बहोत से जाबाज़ घोड़े भी थे जिनमे उनके पसंदीदा सारंगी, पवन और बादल भी शामिल है। जिसमे परम्पराओ और इतिहास के अनुसार 1858 के समय किले से भागत

एकनाथ रानाडे जी

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★ एकनाथ रानाडे ★ ~~~~~~~~~~~ एकनाथ रानाडे - पुण्यतिथि 22 अगस्त 1980 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी... 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 सुप्रसिद्ध विवेकानंद शिला स्मारक के संस्थापक व सत्याग्रह के नायक, मानवता के प्रतीक एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक एकनाथ रानाडे जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। स्वामी विवेकानंद शीला स्मारक (विवेकानंद रॉक मेमोरियल-कन्याकुमारी ) एवं विवेकानंद केंद्र के संस्थापक एकनाथजी रानडे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक समर्पित कार्यकर्ता थे। 1963 में स्वामी विवेकानन्द की जन्म शताब्दी मनायी गयी। इसी समय कन्याकुमारी में जिस शिला पर बैठकर स्वामी जी ने ध्यान किया था, वहाँ स्मारक बनाने का निर्णय कर श्री एकनाथ जी को यह कार्य सौंपा गया। इसके स्मारक के लिए बहुत धन चाहिए था। विवेकानन्द युवाओं के आदर्श हैं, इस आधार पर एकनाथ जी ने जो योजना बनायी, उससे देश भर के विद्यालयों, छात्रों, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और धनपतियों ने इसके लिए पैसा दिया। इस प्रकार सबके सहयोग से बने स्मारक का उद्घाटन 1970 में उन्होंने राष्ट्रपति श्री वराहगिरि वेंकटगिरि से

महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त जी

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क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त ~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐  "जो देश अपने वीर और महान सपूतों को भूल जाता है, उस देश के आत्मसम्मान को हीनता की दीमक चट कर जाता है।" ....... याद रखना दोस्तों। हमें समय समय पर इन महान हस्तियों को याद करते रहना चाहिए। अपने बच्चों, छोटे भाई-बहनों, आदि को इन वीर सपूतों की वीर गाथाओं को समय-समय पर सुनाना चाहिए। इन अमर बलिदानियों के किस्से-कहानियों को कॉपी-पेस्ट करके अपने-अपने सोशल नेटवर्क पर डालना चाहिए व एक दूसरे शेयर करना चाहिए , ताकि और लोगो को भी इन अमर शहीदों के बारे में पता लग सके। भगत सिंह के साथ असेंबली में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त की कहानी बताती है कि अपने महान अमर शहीद क्रांतिकारियों को पूजने वाला यह देश जीते जी उनके साथ क्या सुलूक करता है......  हुसैनीवाला में एक और भी समाधि है.... यह आजादी के उस सिपाही की समाधि है, जो भगत सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा था लेकिन, उसे भुला दिया गया। भगत सिंह के इस साथी का नाम था.... बट

अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल जी

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अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🪷🌻🌷🙏🥀🌹🌸💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी..... 🌺🪷🌻🌷🙏🥀🌹🌸💐 साथियों, आज अमर शहीद करतार सिंह सराभा जी की जयंती हैं, हम सब भारतवासी उन्हें याद कर रहे हैं। पर एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसके शहीद करतार सिंह सराभा, शहीद भगत सिंह, शहीद ऊधम सिंह, जैसे महान अमर शहीद जिसके आदर्श थे और वो अपने स्कूल में व अन्य मीटिंग में अक्सर इनके क़िस्से, कहानियां व गीत अपने साथियों को सुनाया करते थे और अपने आदर्श इन्हीं अमर शहीदों की तरह एक दिन खुद भी शहीद हो गए। वो थे "अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ( बेनीवाल )"। आइये जानते हैं कुछ उनके बारे मे ........ अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ( बेनीवाल ) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ करनैल सिंह बेनिपाल जी का जन्म 9 सितम्बर 1930 को ज़िला लुधियाना के खन्ना क़स्बे के पास इस्सरू गाँव में हुआ था । उनके पिता का नाम सरदार सुन्दर सिंह व माता का नाम हरनाम कौर था। जब करनैल सिंह मात्र 7 वर्ष के ही थे तो इनके पिता जी चल बसे। करनैल सिंह की चार बहने व

शहीद करतार सिंह सराभा जी

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शहीद करतार सिंह सराभा ~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌻🌷🌼🌹🌸🥀💐 ★तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी...★ 🌺🌻🌷🌼🌹🌸🥀💐 करतार सिंह ‘सराभा’: वह भारतीय क्रांतिकारी, जिसे ब्रिटिश मानते थे ‘अंग्रेजी राज के लिए सबसे बड़ा खतरा’!  “देस नूँ चल्लो देस नूँ चल्लो देस माँगता है क़ुर्बानियाँ कानूं परदेसां विच रोलिये जवानियाँ ओय देस नूं चल्लो…  ...देशभक्ति की भावना से भरे इस गीत के बोलों को सही मायने में सार्थक किया करतार सिंह सराभा ने। करतार सिंह ‘सराभा’, एक क्रांतिकारी और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, जिसने अमेरिका में रहकर भारतियों में क्रांति की अलख जगाई थी।  सिर्फ 19 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल जाने वाले इस सपूत को उसके शौर्य, साहस, त्याग एवं बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।   करतार सिंह ~~~~~~ सराभा, पंजाब के लुधियाना ज़िले का एक चर्चित गांव है। लुधियाना शहर से यह करीब पंद्रह मील की दूरी पर स्थित है। गांव बसाने वाले रामा व सद्दा दो भाई थे। गांव में तीन पत्तियां हैं-सद्दा पत्ती, रामा पत्ती व अराइयां पत्ती। सराभा गांव करी

भगवान बिरसा मुंडा जी

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भगवान बिरसा मुंडा ~~~~~~~~~~ 🌺🌷🌻🥀🌹🌼🌸💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌷🌻🥀🌹🌼🌸💐 स्वाधीनता संग्राम के महानायक, जनजातीय गौरव के प्रतीक, धर्म, अस्मिता और मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग की सीख देने वाले 'धरती आबा' भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि!💐💐 पूरा नाम : बिरसा मुंडा जन्म : 15 नवम्बर, 1875 ई. जन्म भूमि : राँची, झारखण्ड मृत्यु : 9 जून, 1900 ई. मृत्यु स्थान : राँची जेल अभिभावक : सुगना मुंडा  नागरिकता : भारतीय प्रसिद्धि : क्रांतिकारी विशेष योगदान : बिरसा मुंडा ने अनुयायियों को संगठित करके दो दल बनाए। एक दल मुंडा धर्म का प्रचार करता था और दूसरा राजनीतिक कार्य।  अन्य जानकारी : कहा जाता है कि 1895 में कुछ ऐसी आलौकिक घटनाएँ घटीं, जिनके कारण लोग बिरसा जी को भगवान का अवतार मानने लगे। लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि बिरसा जी के स्पर्श मात्र से ही समस्त रोग दूर हो जाते हैं। बिरसा मुंडा (अंग्रेज़ी: Birsa Munda, जन्म- 15 नवम्बर, 1875 ई., राँची, झारखण्ड; मृत्यु- 9 जून, 1900 ई., राँ

शहीद वासुदेव बलवंत फड़के

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वासुदेव बलवंत फड़के - एक अमर स्वतंत्रता सेनानी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 वासुदेव बलवंत फडके ~~~~~~~~~~~~~ (4 नवम्बर, 1845 – 17 फरवरी, 1883) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे जिन्हें आदि क्रांतिकारी कहा जाता है। जिनका केवल नाम लेने से युवकोंमें राष्ट्रभक्ति जागृत हो जाती थी, ऐसे थे वासुदेव बलवंत फडके । वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आद्य क्रांतिकारी थे। स्वतंत्र भारत के इस मन्दिर की नींव में पड़े हुए असंख्य पत्थरों को कौन भुला सकता है? जो स्वयं स्वाहा हो गए किन्तु भारत के इस भव्य और स्वाभिमानी मंदिर की आधारशिला बन गए। ऐसे ही एक गुमनाम पत्थर के रूप में थे, बासुदेव बलवन्त फड़के, जिन्होंने 1857 की प्रथम संगठित महाक्रांति की विफलता के बाद आजादी के महासमर की पहली चिनगारी जलायी थी। बासुदेव महाराष्ट्र के कालवा जिले के श्रीधर ग्राम में जन्मे थे। बासुदेव के पिता चाहते थे कि वह एक व्यापारी की दुकान पर दस रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर लें, पढ़ाई