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Showing posts from October, 2019

वीर सावरकर के बारे में 25 खास बातें

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वीर सावरकर ~~~~~~~ वीर सावरकर कौन थे..? जिन्हें अक्सर कांग्रेसी और वामपंथी कोसते रहते हैं और क्यों..?? ये 25 बातें पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो उठेगा। इसको पढ़े बिना आज़ादी का ज्ञान अधूरा है! आइए जानते हैं एक ऐसे महान क्रांतिकारी के बारे में जिनका नाम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया। जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा इतनी यातनाएं झेलीं की उसके बारे में कल्पना करके ही इस देश के करोड़ों भारत माँ के पुत्रों में सिहरन पैदा हो जायेगी। जिनका नाम लेने मात्र से आज भी हमारे देश के राजनेता भयभीत होते हैं क्योंकि उन्होंने माँ भारती की निस्वार्थ सेवा की थी। वो थे हमारे परमवीर सावरकर.... 1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.? 2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्

दामोदर चाफेकर, बालकृष्ण चाफेकर और वासुदेव चाफेकर

दामोदर चाफेकर, बालकृष्ण चाफेकर और वासुदेव चाफेकर ...... तीन सगे चाफेकर भाई जो देश के लिए फांसी पर चढ़ गये उनका जन्म पेशवाओं की राजधानी रही पूना के पास चिंचवाड़ नामक गाँव में हरि विनायक चाफेकर और द्वारका चाफेकर के घर में एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जो मूलतः कोंकण के वेलानेश्वर से संबध रखता था। एक समय में यह परिवार धनाढ्य था पर परिस्थितयोंवश निर्धनता के भंवर में फंस गया था, जिस कारण हरि विनायक चाफेकर ने कीर्तनकार का कार्य करना शुरू कर दिया था और बचपन से ही तीनों भाई इस कार्य में अपने पिता का सहयोग करने लगे थे। परिवार के सबसे बड़े पुत्र दामोदर बचपन से ही खेलकूद के शौक़ीन थे और अनवरत अभ्यास और प्रशिक्षण के बल पर उन्होंने अपने शरीर को फौलाद का सा बना लिया था। वह अपने हृदय की गहराइयों से राष्ट्रवादी थे और चाहते थे कि युवा पीढ़ी भारत को परम वैभव पर पहुंचाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने वाली बने। उनके जोशीले भाषणों, प्रभावशाली व्यक्तित्व और उत्कट राष्ट्रप्रेम से प्रभावित कितने ही युवा उनके संपर्क में आकर शारीरिक प्रशिक्षण एवं सैनिक अभ्यास प्राप्त किया करते थे ताकि समय आने पर

उत्कलमणि गोपबन्धु दास जी

उत्कलमणि गोपबन्धु दास ~~~~~~~~~~~~~ उत्कलमणि गोपबन्धु दास का जन्म ग्राम सुवान्दो (जिला पुरी) में  9 अक्तूबर, 1877 को हुआ था। इनके परदादा को उत्कल के गंग शासकों ने जयपुर से बुलाकर अपने यहाँ बसाया था। इनके पिता श्री दैत्यारि तथा माता श्रीमती स्वर्णमयी देवी थीं। जन्म के कुछ दिन बाद ही इनकी माता का देहान्त हो गया। अतः इनका पालन ताई जी ने किया। इनके परिवार में परम्परा से पुरोहिताई होती थी। अतः बचपन से ही इन्हें पूजा-पाठ के संस्कार मिले। इनके पिताजी यों तो एक कर्मकांडी ब्राह्मण थे, पर उनकी इच्छा थी कि गोपबन्धु अंग्रेजी पढ़ें। अतः उन्होंने अपने गाँव में ही अंग्रेजी पढ़ाने वाले एक विद्यालय की स्थापना कराई। 12 वर्ष की अवस्था में गोपबन्धु का विवाह हो गया। पढ़ाई में उनकी रुचि थी ही, अतः उन्होंने कटक से बी.ए और फिर कोलकाता से एम.ए तथा काूनन की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं।  कोलकाता में रहते हुए भी उनका मन अपने प्रदेश की सेवा के लिए छटपटाता रहता था। उन दिनों बंगाल में उड़ीसा के लोग रसोइये और कुली का काम करते थे, अतः उन्हें हीन दृष्टि से देखा जाता था। यह देखकर गोपबन्धु दास रात्रिकालीन कक्षाएँ लगाकर उन

वीरांगना रानी दुर्गावती

वीरांगना रानी दुर्गावती ~~~~~~~~~~~ 5 अक्टूबर: जन्म जयंती वीरांगना रानी दुर्गावती, जिन्होंने उस अत्याचारी अकबर को तीन बार युद्ध में हराया, जिसे बताया जाता है महान ..... आज के ही दिन अवतरित हुई थी भारतीय नारियो की वो महाशक्ति जिसने अकबर जैसे क्रूर और दुराचारी के आगे एक नारी हो कर भी उस समय हार नहीं स्वीकार की जब अकबर भारत का इस्लामीकरण करता जा रहा था। ये वो समय था जब अकबर के खौफ से भयाक्रांत होकर अनेक कायर रजवाड़ों ने उसकी दासता स्वीकार कर ली थी। उस अत्याचारी मुग़ल आक्रान्ता अकबर से लड़कर हिंदुत्व के गौरव को जीवित रखने वाली और नारी शक्ति की एक नई गाथा लिखने वाली रानी दुर्गावती जी का आज जन्मदिवस है। रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को महोबा में हुआ था. दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे. रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी। बचपन में ही उसे वीरतापूर्ण एवं साहस भरी कहानियां सुनना व पढ़ना अच्छा लगता था. पढाई के साथ – साथ दुर्गावती ने घोड़े पर चढ़ना, तीर तलवार चलाना, अच्छी तरह सीख लिया था। शिकार खेलना उसका शौक था। वे अपने पिता के साथ शिकार खेलने जाया करती थी।