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Showing posts from October, 2020

पढो-सुनो-गर्व करो अपने गुमनाम गौरवशाली इतिहास को

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हमारा गुमनाम गौरवशाली इतिहास ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ दोस्तों,  भारत के इतिहास को तोडा मरोड़ा गया और कोई सवाल उठाने वाला नहीं था। इतना बड़ा झूठ बोला, सुनाया और पढ़ाया गया। ऐसी मक्कारी, बेईमानी क्यों और कैसे हुई...? किसके इशारों पर हुई...? जिस देश को अपने इतिहास में भी भ्रष्टता स्वीकार हो वह कभी वास्तविक तरक्की नहीं कर सकता और ना ही ऊँची या मौलिक सोच रख सकता है, ऐसा मेरा मानना हैं। मगर फिर भी दिल तो यही कहता हैं.... अपना भारत वो भारत हैं, जिसके पीछे संसार चला, संसार चला और आगे बढ़ा। भगवान करें भारत बढ़े और आगे बढ़े, बढ़ता ही रहे और फूले-फले। हिंदुस्तान के हजारों नहीं लाखों वर्षों के स्वर्णिम इतिहास को अँधेरे में रखकर पिछले कुछ अध्याय ही पढ़ाना, वह भी केवल आक्रमण कर्ताओं और हिन्दुओं, सिखों आदि अन्य सभी भारतवासियों पर अत्याचार करने व जबरदस्ती उनका धर्म परिवर्तन कराने वाले उन जालिमों को महान सिद्ध करना बहुत ही दुःख और शर्म का कारण है। कृपया अपने पुराने कांग्रेसी शिक्षा बोर्ड और मंत्रिओं को पूछें की ऐसा क्यों हैं..? बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष तक राज किया। हुमायूं को कभी टिक कर राज नहीं करन

सरदार वल्लभ भाई पटेल जी

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#SardarVallabhbhaiPatel दोस्तों,  फेसबुक पर हमारे एक आदरणीय बड़े भाई सरीखे विद्वान मित्र हैं। कुछ दिन पूर्व उन्होंने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने सरदार पटेल द्वारा गुरुजी गोलवलकर को लिखे एक पत्र का उल्लेख किया था। सरदार पटेल के उस पत्र की भाषा निस्संदेह अच्छी नहीं थी किन्तु यहाँ यह देखना भी आवश्यक है कि पटेल ने गुरुजी गोलवलकर को वह पत्र गांधी जी की हत्या से क्षुब्ध होकर लिखा था। उस समय गाँधी जी की हत्या से पूरा देश क्षुब्ध था और गोडसे के संघ से जुड़े होने की अफवाहें चरम पर थीं। ऐसी परिस्थितियों में गोलवलकर जी को बंदी बनाया गया था और संघ पर प्रतिबन्ध लगाया गया था। यह प्रतिबन्ध 1949 में हटाया गया जब लगभग अस्सी हजार स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारी दी थी। यह सत्य है कि नेहरूजी की वजह से सरदार के संघ से मतभेद बहुत गहरे थे किंतु यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि सरदार पटेल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुशासन से भी बहुत प्रभावित थे, यह उनके द्वारा लिखे अन्य पत्रों में झलकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि फरवरी 1948 में सरदार ने जवाहरलाल को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा, ...... “मैं निरंतर बा

प्रमोद महाजन

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प्रमोद महाजन ~~~~~~~~ पूरा नाम :  प्रमोद व्यंकटेश महाजन जन्म :  30 अक्टूबर, 1949 जन्म भूमि  :  महबूबनगर, आंध्र प्रदेश मृत्यु   :  3 मई, 2006 मृत्यु स्थान। :   मुम्बई, महाराष्ट्र मृत्यु कारण  :  हत्या पत्नी  :  श्रीमती रेखा महाजन संतान  :  राहुल महाजन (पुत्र) और पूनम महाजन (पुत्री) नागरिकता :  भारतीय पार्टी   :  भारतीय जनता पार्टी पद  :  महासचिव अन्य जानकारी  :  अपनी मौत से पहले राज्यसभा के सदस्य प्रमोद महाजन की कार्यभूमि मुंबई ही रही है और यहीं से वे लोकसभा सदस्य रहे। प्रमोद व्यंकटेश महाजन (अंग्रेज़ी: Pramod Vyankatesh Mahajan, जन्म: 30 अक्टूबर, 1949 – मृत्यु: 3 मई, 2006) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। प्रमोद महाजन भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक थे। प्रमोद महाजन अपने गृहराज्य महाराष्ट्र और भारत के पश्चिमी क्षेत्र में काफ़ी लोकप्रिय थे। जीवन परिचय ~~~~~~~~ प्रमोद महाजन कहने को तो भारतीय जनता पार्टी के महासचिव थे लेकिन वे पार्टी के सबसे हाईप्रोफ़ाइल नेताओं में से एक थे। 56 वर्ष के प्रमोद महाजन भाजपा की दूसरी पीढ़ी के नेताओं में सबसे सक्रिय थे ही, दे

स्वामी दयानंद सरस्वती जी

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स्वामी दयानन्द सरस्वती  ~~~~~~~~~~~~~ भारत प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा है । भगवान ने अनेक बार स्वयं अवतार लेकर इस भूमि को पवित्र किया है । राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर के रूप में इस धरती का परम कल्याण किया है । अनेक महान आध्यात्मिक गुरु उच्च कोटि के संत और समाज सुधारक इस देश में हुए । नव जागरण क्य शंख नाद करने वाले राजा राम मोहनराय, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द की भांति ही स्वामी दयानन्द का नाम भी अग्रगण्य है । स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म गुजरात के भूतपूर्व मोरवी राज्य के टकारा गाँव में 12 फरवरी 1824 (फाल्गुन बदि दशमी संवत् 1881) को हुआ था।  मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण आपका नाम मूलशंकर रखा गया।  आपके पिता का नाम अम्बाशंकर था। आप बड़े मेधावी और होनहार थे।  मूलशंकर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।  दो वर्ष की आयु में ही आपने गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण करना सीख लिया था। घर में पूजा-पाठ और शिव-भक्ति का वातावरण होने के कारण भगवान् शिव के प्रति बचपन से ही आपके मन में गहरी श्रद्धा उत्पन्न हो गयी। अत: बाल्यकाल में आप शंकर के भक्त थे।  कुछ बड़ा

डॉ होमी जहांगीर भाभा

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वैज्ञानिक  डॉ होमी जहांगीर भाभा ★★★★★★★★★ जन्म: 30 अक्टूबर 1909, मुंबई कार्य/पद: भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम के जनक ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ होमी जहांगीर भाभा भारत के महान परमाणु वैज्ञानिक थे। उन्हे भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। उन्होंने देश के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की ऐसी मजबूत नींव रखी, जिसके चलते भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा है। मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से परमाणु क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य शुरू वाले डॉ भाभा ने समय से पहले ही परमाणु ऊर्जा की क्षमता और विभिन्न क्षेत्रों में उसके उपयोग की संभावनाओं को परख लिया था। उन्होंने नाभिकीय विज्ञान के क्षेत्र में उस समय कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्होंने कॉस्केट थ्योरी ऑफ इलेक्ट्रान का प्रतिपादन करने साथ ही कॉस्मिक किरणों पर भी काम किया जो पृथ्वी की ओर आते हुए वायुमंडल में प्रवेश करती है। उन्होंने ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिस

शहीद जतीन्द्रनाथ दास

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जतीन्द्रनाथ दास ~~~~~~~~~ 🙏🙏 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 🙏👏🇮🇳 महान देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी, जेल में क्रान्तिकारियों के साथ पक्षपाती व्यवहार के लिए 63 दिनों की भूख हड़ताल कर माँ भारती के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले अमर शहीद "जतिन दा" जतीन्द्रनाथ दास जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन। 🙏👏🇮🇳 पूरा नाम : जतीन्द्रनाथ दास जन्म  : 27 अक्टूबर, 1904 जन्म : भूमि कलकत्ता, ब्रिटिश भारत मृत्यु : 13 सितम्बर, 1929 मृत्यु स्थान : लाहौर, पाकिस्तान मृत्यु कारण : भूख हड़ताल अभिभावक : बंकिम बिहारी दास और सुहासिनी देवी नागरिकता : भारतीय प्रसिद्धि : क्रांतिकारी जेल यात्रा : इन्हें 1925 में 'दक्षिणेश्वर बम कांड' और 'काकोरी कांड' के सिलसिले में और फिर 14 जून, 1929 को 'केन्द्रीय असेम्बली बमकाण्ड' के सिलसिले में जेल हुई। संबंधित लेख : भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, सुभाषचन्द्र बोस अन्य जानकारी : 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंक

गणेश शंकर विद्यार्थी जी

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हिंदी पत्रकारिता के पितामह गणेश शंकर विद्यार्थी जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ तुम भूल ना जाओ उनकी, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 🙏 श्री गणेश शंकर विद्यार्थी एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार तो थे ही, इसके साथ ही वे एक समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेजी शासन की नींव हिलाकर रख दी थी। आज हिंदी ज्ञानोदय के प्रतीक और हिंदी पत्रकारिता के पितामह गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती है। जिनका जन्म 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में हुआ था। उनके पिता मुंशी जयनारायण लाल ग्वालियर रियासत में मुंगावली के ऐंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल के प्रधानाध्यापक थे। पत्रकारिता के ‘प्रताप’, गांधी जीके अनुयायी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ विद्यार्थी जी, उनकी पत्रकारिता का ‘प्रताप’, उस समय जी जनता के प्यारे अखबार ‘प्रताप’ की लोकप्रियता को हम नमन करते हैं। वह मूर्धन्य पत्रकार थे। वह क्रांतिकारी थे। वह हिंदी जाति के ज्ञानोदय के प्रतीक और हिंदी पत्रकारिता के पितामह कहे जाते रहेंगे। वह एक जीताजागता पत्रका

शहीद अशफाक़उल्ला खान

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अमर शहीद अशफाक़उल्ला खान ~~~~~~~~~~~~~~~~~ 💐🙏💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 💐🙏💐 जीवन परिचय : ~~~~~~~~ अमर शहीद अशफाक़उल्ला खान (22 Oct 1900 -19 Dec 1927)  भारत माता के वीर सपूत थे जिन्होंने देश की आजादी के लिये हँसते –हँसते फांसी पर झूल गए। उनका पूरा नाम अशफाक़उल्ला खान वारसी ‘हसरत’ था। वे शाहजहांपुर के एक रईस खानदान से आते थे। बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी ब

मातंगिनी हाजरा

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मातंगिनी हाजरा ~~~~~~~~~ मातंगिनी हाजरा जी, एक महान वीरांगना, जिन्होंने गोलियों से छलनी होने के बाद भी तिरंगे को ना तो झुकने दिया और नाही गिरने दिया ! 💐💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए है उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 🙏🙏 मातंगिनी हाजरा जी भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाली बंगाल की वीरांगनाओं में से थीं। भारतीय इतिहास में उनका नाम बड़े ही मान-सम्मान के साथ लिया जाता है। मातंगिनी हज़ारा जी एक विधवा स्त्री अवश्य थीं, किंतु अवसर आने पर उन्होंने अदम्य शौर्य और साहस का परिचय दिया था। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के तहत ही सशस्त्र अंग्रेज़ सेना ने आन्दोलनकारियों को रुकने के लिए कहा। मातंगिनी हज़ारा जी ने साहस का परिचय देते हुए राष्ट्रीय ध्‍वज को अपने हाथों में ले लिया और जुलूस में सबसे आगे आ गईं। इसी समय उन पर गोलियाँ दागी गईं और इस वीरांगना ने देश के लिए अपनी कुर्बानी दी। जन्म तथा विवाह ~~~~~~~~~~~~~ मातंगिनी हज़ारा जी का जन्म 19 अक्टूबर, 1870 ई. में पश्चिम बंगाल के मिदनापुर ज़िले में हुआ था। वे एक ग़रीब किसान की बेटी थीं। उन

गुर्जर सम्राट मिहिर भोज

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धर्म रक्षक सम्राट मिहिर भोज ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ भारत में एक महान हिन्दू सम्राट हुए है जिन्होंने पूरी जिन्दगी अरब आक्रान्ताओं से टक्कर ली और हिन्दू धर्म  की रक्षा की ! इनके शासनकाल में ही भारत को सोने की चिड़िया बोला जाता था। आइये आपको सम्राट मिहिर भोज गुर्जर के बारे में बताते है..... सम्राट मिहिर भोज गुर्जर  ने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 49 साल तक राज किया। मिहिर भोज गुर्जर के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल में गुर्जरपुर तक और कश्मीर से कर्नाटक तक था। मिहिर भोज के साम्राज्य को तब गुर्जर देश के नाम से जाना जाता था। ये धर्म रक्षक सम्राट शिव के परम भक्त थे । स्कंध पुराण के प्रभास खंड में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। 50 वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्र पाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे।अरब यात्री सुलेमान ने भारत भ्रमण के दौरान पुस्तक लिखी। इस पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में सम्राट मिहिर भोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है। साथ ही मिहिर भोज की महान सेना की तारीफ भी की है।

महाराजा अग्रसेन जी

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महाराजा अग्रसेन जी  ~~~~~~~~~~~ आप सभी भाइयों और बहनों को अग्रसेन जयंती की असीम शुभकामनाएं।  दुर्भाग्य से... अग्रपुरुष अग्रसेन जी का जीवन चरित्र, धर्म नीति, सिद्धांतों की पावन कथा सदियों से विलुप्त रही। इसलिए मेरी यह छोटी सी कोशिश है, उनका जीवन परिचय कराने की। महाराजा अग्रसेन लगभग पांच हजार दो सौ वर्ष बाद भी पूजनीय है, तो इसलिए नहीं कि वे एक प्रतापी राजा थे अपितु इसलिए कि क्षमता, ममता और समता की त्रिविध मूर्ति थे महाराजा अग्रसेन। उनके राज में कोई दु:खी या लाचार नहीं था। वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजावत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले सभी जीव मात्र से प्रेम रखने वाले दयालु राजा थे। जन्म ~~~ महाराजा अग्रसेन जी का जन्म सुर्यवंशी भगवान श्रीरामचन्द्र जी की चौतीस वी पीढ़ी में द्वापर के अंतिम काल (याने महाभारत काल) एवं कलयुग के प्रारंभ में अश्विन शुक्ल एकम को हुआ। कालगणना के अनुसार विक्रम संवत आरंभ होने से 3130 वर्ष पूर्व अर्थात ( 3130+ संवत 2073) याने आज से 5203 वर्ष पूर्व हुआ। वे प्रतापनगर के महाराजा वल्लभसेन एवं माता भगवती देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। प्रतापनगर, वर्

पांड्य नरेश कट्टबोमन जी

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पांड्य नरेश कट्टबोमन जी ~~~~~~~~~~~~~ 🙏💐🌷🕉️🚩🇮🇳🙏 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी..... 17वीं शताब्दी के अन्त में दक्षिण भारत का अधिकांश भाग अर्काट के नवाब के अधीन था। वह एक बेदम व्यक्तित्व का था, प्रजा में भी अप्रशंसनीय था और लगान भी ठीक से वसूल नहीं कर पाता था। अतः उसने यह काम ईस्ट इंडिया कम्पनी को दे दिया। फिर क्या था; अंग्रेज छल, बल से लगान वसूलने लगे। उनकी शक्ति से अधिकांश राजा डर गये; पर तमिलनाडु के पांड्य नरेश कट्टबोमन ने झुकने से मना कर दिया। उसने अपने जीते जी धूर्त अंग्रेजों को एक पैसा नहीं दिया। कट्टबोमन (बोम्मु) का जन्म 3 जनवरी, 1760 को हुआ था। उनके कुमारस्वामी और दोरेसिंह नामक दो भाई और थे। दोरेसिंह जन्म से ही गूँगा-बहरा थे; पर उसने कई बार अपने भाई कट्टबोमन को संकट से बचाया था। बोम्मु पांड्य नरेश जगवीर के सेनापति थे। उनकी योग्यता एवं वीरता देखकर राजा ने अपनी मृत्यु से पूर्व उन्हें ही राजा बना दिया। राज्य का भार सँभालते ही बोम्मु ने नगर के चारों ओर सुरक्षा हेतु मजबूत परकोटे बनवाये और सेना में नयी

डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम जी

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डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम ~~~~~~~~~~~~~~ प्रसिद्ध वैज्ञानिक, लेखक, अध्येता, प्राध्यापक, एयरोस्पेस इंजीनियर व देश के 11वें राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्र को अपनी सेवाएँ देने वाले भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी को उनके जन्मदिन पर हम सब भारतवासी उन्हें नमन करते हैं। मशहूर सांइटिस्ट और देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति रह चुके डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आज भी लोगों की जु़बा पर है। उन्होंने अपने उम्दा कार्य से युवा पीढ़ि को तरक्की की एक राह दिखाई है। वे करोड़ों लोगों के प्रेरणा स्त्रोत हैं। उन्होंने अपने जीवन में ऊंचे मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है। जन्म - डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडू के एक छोटे से गांव धनुषकोडी में हुआ। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर देते थे। वहीं उनकी माता एक गृहिणी थीं। अखबार बेचकर की पढ़ाई - घर की आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण डॉ. कलाम को पढ़ाई करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम के एक प्राथमिक स्कूल से ली। जबकि आगे की पढ़ाई के लिए उन्