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Showing posts from August, 2020

पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी

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प्रणब कुमार मुखर्जी ~~~~~~~~~~ प्रणव कुमार मुखर्जी (बांग्ला: প্রণবকুমার মুখোপাধ্যায়, जन्म: 11 दिसम्बर 1935, पश्चिम बंगाल) भारत के तेरहवें राष्ट्रपति रह चुके हैं। 26 जनवरी 2019 को प्रणब मुखर्जीको भारत रत्न से सम्मानित किया गया है और 8 अगस्त, 2019 को उन्हें ये भारत रत्न माननीय राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी द्वारा प्रदान किया गया! वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया। सीधे मुकाबले में उन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए. संगमा को हराया। उन्होंने 25 जुलाई 2012 को भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली। संक्षिप्त परिचय : राष्ट्रपति पद बहाल 25 जुलाई 2012 – 25 जुलाई 2017 भारत के वित्त मंत्री पद बहाल 24 जनवरी 2009 – 26 जून 2012 पद बहाल 15 जनवरी 1982 – 31 दिसम्बर 1984 भारत के विदेश मंत्री पद बहाल 10 फरबरी 1995 – 16 मई 1996 भारत के रक्षा मंत्री पद बहाल 22 मई 2004 – 26 अक्टूबर 2006 भारतीय योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद बह

वीर क्रांतिकारी कनाईलाल दत्त

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वीर क्रांतिकारी कनाईलाल दत्त ~~~~~~~~~~~~~~~~ तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी.... भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अनेक वीर-वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें से कुछ तो हमें आज भी बखूबी याद हैं और कुछ को हम लगभग विस्मृत सा कर बैठे हैं। इस स्मृति और विस्मृति के बीच हमें ये कतई नहीं भूलना चाहिए कि इन्हीं शहीदों के कारण आज हम सब स्वतंत्र हैं। हमारे महान भारत देश को आज़ाद कराने के लिए बहुत सारे वीर क्रांतिकारी हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर लटक गये। मगर एक ऐसा महान क्रांतिकारी भी था जिसको अंग्रेजी सरकार ने फांसी की सजा दी और साथ ही ये भी प्रतिबंध लगा दिया कि इस फैसले के खिलाफ अपील नही की जा सकती। वो महान क्रांतिकारी थे .... कनाईलाल दत्त जी। ऐसे ही एक वीर बाँकुरे कनाईलाल दत्त का जन्म 30अगस्त 1888 को बंगाल के हुगली ज़िले में चंद्रनगर में हुआ था। उनके पिता चुन्नीलाल दत्त तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की सेवा में थे। मुंबई में उनके पिता की नियुक्ति होने के कारण कनाईलाल पाँच वर्ष की उम्र में मुंबई आ गए। यहीं उनकी आरम्भिक शि

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद जी

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हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद सिंह ************************** मेजर ध्यानचंद सिंह (२९ अगस्त, १९०५ -३ दिसंबर, १९७९) भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे। भारत एवं विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाडड़ियों में उनकी गिनती होती है। वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे ( जिनमें १९२८ का एम्सटर्डम ओलोम्पिक, १९३२ का लॉस एंजेल्स ओलोम्पिक एवं १९३६ का बर्लिन ओलम्पिक)। उनकी जन्मतिथि को भारत में "राष्ट्रीय खेल दिवस" के के रूप में मनाया जाता है। उनके छोटे भाई रूप सिंह भी अच्छे हॉकी खिलाड़ी थे जिन्होने ओलम्पिक में कई गोल दागे थे। उन्हें हॉकी का जादूगर ही कहा जाता है। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा बहुत से संगठन और प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हे 'भारतरत्न' से सम्मानित करने की माँग करते रहे हैं किन्तु अब केन्द्र में भारतीय जनता पार्ट

खेजड़ली बलिदान

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“★ खेजड़ली बलिदान ★” ~~~~~~~~~~~~~~ दान में सबसे बड़ा दान प्राणों का दान होता है. पर्यावरण संरक्षण हेतु पेड़ों को बचाने के लिए 363 बिश्नोई समाज के लोगों ने प्राणों की आहुति दी। सन् 1730 में राजस्थान के जोधपुर से 25 किलोमीटर दूर छोटे से गांव खेजड़ली में यह घटना घटित हुई. सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह ने नया महल बनाने के कार्य में चूने का भट्टा जलाने के लिए इंर्धन हेतु खेजड़ियाँ काटने के लिए अपने कर्मचारियों को भेजा। वहां अमृतादेवी बेनीवाल सहित कुल 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। विश्व में ऐसा अनूठा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। “सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” – को सही साबित कर दिया. अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा ने वृक्षों की रक्षा हेतु खेजड़ली में बलिदान होने वाले 363 शहीदों का विवरण, महलाणा के भाटों की सहायता से तैयार करके ‘खेजड़ली के 363 बिश्नोई अमर-शहीद’ नाम से प्रकाशित करवाया था। क्या है खेजड़ली बलिदान ~~~~~~~~~~~~~ जोधपुर जिले के गांव खेजड़ली में घटित हुई थी ये घटना...... खेजडली गांव में वृक्षों की अत्यधिक मात्रा होने के कारण इस ग

राणा बेनी माधव बख्श सिंह

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राणा बेनी माधव बख्श सिंह ~~~~~~~~~~~~~~ 'अवध में राणा भयो मरदाना' तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी...... भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे नायक हुए हैं जिनकी कहानियां किसी इतिहास की किताबों से इतर लोक की कथाओं में आज भी जीवंत हैं। लोक के मन मस्तिष्क में अमर होने वाले ऐसे ही एक नायक हैं रायबरेली के शंकरपुर रियासत के राजा राणा बेनी माधव सिंह। जिनकी कहानियां आज भी घर-घर में सुनाई जाती हैं। राणा बेनीमाधव की काट नहीं खोज पाए अंग्रेज ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 1856 में अवध के नबाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों द्वारा पद से हटाने का सबसे मुखर विरोध राणा बेनी माधव ने ही किया था। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाया गया रायबरेली का सलोन जिला मुख्यालय पर हुआ विद्रोह राणा की ही संगठन क्षमता की देन थी। राणा के नेतृत्व और संगठन को लेकर ऐसी दूर दृष्टि थी कि 1857 की क्रांति के पहले ही पूरे रायबरेली ज़िले में जगह-जगह विद्रोह शुरू हो गया था। कंपनी के मेजर गाल की हत्या और न्यायालय पर हमला करके आग लगा देना यह सब राणा की गुरिल्ला रणनीति का एक उदाहरण था। 10 मई 1857 के विद्रो

पूर्व वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली जी

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अरुण जेटली ~~~~~~~ सभी देशवासियों के दिलों पर राज करने वाले पुर्व वित्त मंत्री श्री अरुण जेट्ली जी को प्रथम पुण्य तिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि ! जनसंघ से शुरू हुआ था अरुण जेटली जी राजनैतिक सफ़र.. जानिये उनके बारे में वो बातें, जिससे शायद आप अनजान हों..... ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता तथा पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली जी, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते थे। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में उनके पास वित्त जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय था तो वहीं उन्होंने रक्षा मंत्रालय का प्रभार भी संभाला था। उनकी गिनती प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के बाद दूसरे नंबर के नेताओं के साथ होती थी। बतौर वित्त मंत्री जेटली ने आम बजट और रेल बजट को एकसाथ पेश करने की व्यवस्था लागू की। इतना ही नहीं, गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (जीएसटी) को पूरे देश में लागू करने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। बतौर वित्त मंत्री वो हमेशा कहते थे कि जिस तरह से बीमारी को जड़ से ठीक करने के लिए कई बार कड़वी दवा पीनी पड़ती है, ठीक वैसे ही देश की अर

शहीद शिवराम राजगुरु

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शहीद शिवराम राजगुरु ~~~~~~~~~~~~ तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी..... भारत को गुलामी से मुक्त करवाने के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपना जीवन हमारे देश के लिए कुर्बान किया है। इन्हीं क्रांतिकारियों के बलिदान की वजह से ही हमारा देश एक आजाद देश बन सका है। हमारे देश के क्रांतिकारियों के नामों की सूची में अनगिनत क्रांतिकारियों के नाम मौजूद हैं और इन्हीं क्रांतिकारियों के नामों में से एक नाम ‘राजगुरु’ जी का भी है, जिन्होंने अपने जीवन को हमारे देश के लिए समर्पित कर दिया था। बेहद ही छोटी सी आयु में इन्होंने अपने देश के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान कर दिया था और इनकी कुर्बानी को आज भी भारत वासियों द्वारा याद किया जाता है। राजगुरु जी के जीवन से जुड़ी जानकारी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ पूरा नाम : शिवराम हरि राजगुरु उप नाम : रघुनाथ, एम.महाराष्ट्र जन्म स्थान : पुणे, महाराष्ट्र, ब्रिटिश भारत जन्म तिथि : 24 अगस्त, 1908 मृत्यु तिथि : 23 मार्च, 1931 किस आयु में हुई मृत्यु : 22 वर्ष मृत्यु स्थान : लाहौर, ब्रिटिश भारत (अब पंजाब,

श्री गुरु रामदास जी

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श्री गुरु रामदास साहेब जी ~~~~~~~~~~~~~ श्री गुरु रामदास साहेबजी का प्रकाश (जन्‍म) कार्तिक वदी 2, विक्रमी संवत् 1591 (24 सितंबर सन् 1534) को पिता हरदासजी के घर माता दयाजी की कोख से लाहौर (अब  पाकिस्तान में) की चूना मंडी में हुआ था। श्री रामदासजी सिखों के चौथे गुरु थे। उनके जन्मदिवस को प्रकाश पर्व या गुरुपर्व भी कहा जाता है। बाल्‍यकाल में आपको 'भाई जेठाजी'  के नाम से बुलाया जाता था। छोटी उम्र में ही आपके माता-पिता का स्‍वर्गवास हो गया। इसके बाद बालक जेठा अपने नाना-नानी के पास बासरके गांव में आकर रहने लगे। कम उम्र में ही आपने जीविकोपार्जन प्रारंभ कर दिया था।  कुछ सत्‍संगी लोगों के साथ बचपन में ही आपने गुरु अमरदासजी के दर्शन किए और आप उनकी सेवा में पहुंचे। आपकी सेवा से प्रसन्‍न होकर गुरु अमरदासजी ने अपनी बेटी भानीजी  का विवाह भाई जेठाजी से करने का निर्णय लिया। आपका विवाह होने के बाद आप गुरु अमरदासजी की सेवा जमाई बनकर ना करते हुए एक सिख की तरह तन-मन से करते रहे।  गुरु अमरदासजी जानते थे कि जेठाजी गुरुगद्दी के लायक हैं, पर लोक-मर्यादा को ध्‍यान में रखते हुए आपने

अमर बलिदानी मदनलाल ढींगरा

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अमर बलिदानी मदनलाल ढींगरा ~~~~~~~~~~~~~~~~~ बलिदान दिवस – 17 अगस्त 1909 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी .... तेजस्वी तथा लक्ष्यप्रेरित लोग किसी के जीवन को कैसे बदल सकते हैं, मदनलाल ढींगरा इसका एक उदाहरण है। उनका जन्म अमृतसर में हुआ था। उनके पिता तथा भाई वहाँ प्रसिद्ध चिकित्सक थे। बी.ए. करने के बाद मदनलाल को उन्होंने लन्दन भेज दिया। वहाँ उनहे क्रान्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित ‘इण्डिया हाउस’ में एक कमरा मिल गया। उन दिनों विनायक दामोदर सावरकर भी वहीं थे। 10 मई, 1908 को इण्डिया हाउस में 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की अर्द्धशताब्दी मनायी गयी। उसमें बलिदानी वीरों को श्रधांजलि दी गयी तथा सभी को स्वाधीनता के बैज भेंट दिये गये। सावरकर जी के भाषण ने मदनलाल के मन में हलचल मचा दी थी। अगले दिन बैज लगाकर वह जब कॉलेज गए, तो किसी बात पर कुछ अंग्रेज छात्र उनसे मारपीट करने लगे। ढींगरा का मन बदले की आग में जल उठा। उसने वापस आकर सावरकर जी को सब बताया। उन्होंने पूछा, क्या तुम कुछ कष्ट उठा सकते हो ? मदनलाल ने अपना हा

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर एक कविता

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क्रांति के देवता सुभाष चन्द्र बोस को प्रणाम  ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ यह कटे फटे नक्शे वाला फिर हिंदुस्तान नहीं होता|  सुभाष विजयी जाते तो यह भंग विधान नहीं होता ||  भारत के खण्ड खण्ड करके गाँधी जिन्ना थे हुए मौन | आज़ाद हिन्द के नक्शे मैं यह पाकिस्तान नहीं होता ||  भाई भाई हो गये विलग माँ के कितने ही अंग कटे |  दंगा फसाद की लपटों मैं माँ के मुह बोले लाल मिटे ||  परचम इक शांति का अहिंसा का गाँधी लहराते रहे वहां | लाशों पर लाशें बिखर गयी माँ बहनो के श्रृंगार मिटे ||  खुन मुझे दो लो आज़ादी निर्भय सुभाष का नारा था | आपदाएं बेबस हार गयी पर वीर सुभाष ना हारा था ||  जब तेग सुभाष की मचली तो सतधारी भयभीत हुये | किस्मत उनको मार न सकी अपनों ने उनको मारा था ||  आज़ाद हिन्द का सेनानी आज़ादी का मतवाला था |  माँ की बेड़ी मै काटूगा अरमाँ वक्ष में पाला था ||  वह भारत का सच्चा सपूत था वीर शिरोमणि औ अजये | आफत से लड़ने वाला वह माँ का सच्चा रखवाला था || आज़ादी संग मंगनी होगी आज़ाद चमन दे जाउंगा |  मेरी अखंड भारत माँ की तस्वीर कभी न खण्डित हो,  एक बार नहीं शत बार सही इन चरणों में मिट जाऊगा ||  व

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

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नेताजी सुभाषचंद्र बोस ~~~~~~~~~~~~ स्वतंत्रता अभियान के एक और महान क्रान्तिकारियो में सुभाष चंद्र बोस – Netaji Subhash Chandra Bose का नाम भी आता है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रिय सेना का निर्माण किया था। जो विशेषतः “आजाद हिन्द फ़ौज़” के नाम से प्रसिद्ध थी। सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद को बहुत मानते थे। “तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा”  सुभाष चंद्र बोस का ये प्रसिद्ध नारा था। उन्होंने अपने स्वतंत्रता अभियान में बहुत से प्रेरणादायक भाषण दिये और भारत के लोगो को आज़ादी के लिये संघर्ष करने की प्रेरणा दी। सुभाषचंद्र बोस की जीवनी ~~~~~~~~~~~~~~ पूरा नाम   – सुभाषचंद्र जानकीनाथ बोस जन्म        – 23 जनवरी 1897 जन्मस्थान – कटक (ओरिसा) पिता         – जानकीनाथ माता         – प्रभावती देवी शिक्षा        – 1919 में बी.ए. 1920 में आय.सी.एस . परिक्षा उत्तीर्ण। सुभास चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। जिनकी निडर देशभक्ति ने उन्हें देश का हीरो बनाया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग स