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Showing posts from January, 2021

बाबा दीप सिंह जी

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बाबा दीप सिंह जी ~~~~~~~~~~ एक हाथ में सिर और एक हाथ में तलवार लेकर लड़ने वाले वीर योद्धा बाबा दीप सिंह जी ...... बाबा दीप सिंह जी का जन्म 27 जनवरी, 1682 ईस्वी को गाँव पहूविंड जिला श्री अमृतसर साहिब जी में हुआ ! बाबा दीप सिंह जी की माता का नाम जीऊणी एवं पिता का नाम भक्तू जी था ! बचपन में माता-पिता बाबा दीप सिंह जी को दीपा नाम से पुकारते थे ! 1699 ईस्वी की वैशाखी के शुभ अवसर माता-पिता के साथ बाबा दीप सिंह १६ वर्ष की तरुण आयु में आनन्दपुर साहिब गए एवं गुरू गोबिन्द सिंह जी के दर्शन के बाद आपने उन्हीं दिनों अमृतधारण किया और उस नये वातावरण में आनन्दित होने लगे ! गुरु गोबिन्द सिंह के आशीर्वाद से आपने भिन्न भिन्न दायित्वों पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया ! श्री गुरु गोबिन्द सिंह बाबा दीप सिंह जी से गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरबाणी लिखाई थी,क्योंकि बाबा दीप सिंह जी लिखते बहुत अच्छा थे ! अमृतर संचार और गुरमत प्रचार का काम दमदमी टकसाल का दायित्व था ! दीप सिंह जी ने गुरू आज्ञा अनुसार श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी की चार प्रतियां तैयार की जिन्हें अलग अलग तख्तों पर स्थापित किया गया ! दीप सिंह

शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल जी

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शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल ~~~~~~~~~~~~~~~~ सहायता के लिए लिखे पत्र पर अंग्रेजों ने चढ़ा दिया था फांसी........ शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल के वंशजों ने सहेज रखी हैं उनकी यादें........ देश को अंग्रेजी हुकुमत से आजाद करवाने के लिए हुई 1857 की क्रांति के पहले शहीद कानपुर के मंगल पांडे थे, यह तो सभी जानते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि देश के दूसरे शहीद थे, हरियाणा में हांसी के रहने वाले शहीद लाला हुकमचंद अग्रवाल (जैन)।  अंग्रेजो को उत्तर भारत में हरियाणा और पंजाब की सीमा पर रोकने की तैयारी करने के लिए रसद व सहायता के लिए लिखे गए पत्र को आधार बना कर उन्हें उनकी हवेली के सामने फांसी पर टांग दिया गया था। उस समय उनकी आयु मात्र 40 वर्ष थी। पत्र लिखने में जुर्म में अंग्रेजों ने उनके भतीजे फकीरचंद को भी पकड़ा था, लेकिन 13 वर्ष की उम्र को देखते हुए उसे छोड दिया गया। लाला हुकमचंद के परिजन बताते हैं कि फकीरचंद ने खिड़की से खड़े होकर अंग्रेजी हुकुमत की खिलाफत की तो तत्काल उसे भी फांसी पर चढ़ा दिया। इस दर्दनाक दृश्य की साक्षी हुकमचंद की पत्नी ने अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को लंहगे में छुपाया

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय

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★ लाला लाजपत राय ★  ~~~~~~~~~~~~~ जिनकी मौत ने ब्रिटिश राज के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ साइमन कमीशन के विरोध में ब्रिटिश पुलिस की लाठियों से घायल होकर 17 नवंबर 1928 को हुआ था लाला लाजपत राय का देहांत । तब लालाजी ने मरते वक्त कहा था कि मेरे शरीर पर पड़ी एक एक लाठी, ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में गड़ी एक एक कील साबित होगी ....... और आज ही के दिन पंजाब के मोंगा जिले में 28 जनवरी 1865 को उर्दू के अध्यापक के घर में जन्मे थे ये महान व्यक्तित्व *लाला लाजपत राय* ....... एक दौर था जब ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता था. पूरी दुनिया में अंग्रेजों की तूती बोलती थी। सर्वशक्तिमान ब्रिटिश राज के खिलाफ 1857 में भारत में हुए बहुत बड़े सशस्त्र आंदोलन को बेहद निर्ममता के साथ कुचल दिया गया था. अंग्रेज भी यह मानते थे अब उन्हें भारत से कोई हिला भी नहीं सकता. साल 1928 में भारत में एक शख्स की ब्रिटिश पुलिस की लाठियों के मौत हुई. और इस मौत ने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलों को हिला दिया। 30 अक्टूबर 1928 को पंजाब में महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय प

फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा जी

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फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा Field Marshal K. M. Cariappa ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जीवनी ~~~~ जन्म: 28 जनवरी, 1899, कुर्ग, कर्नाटक मृत्यु: 15 मई, 1993, बंगलौर कार्यक्षेत्र: प्रथम भारतीय सेनाध्यक्ष, फ़ील्ड मार्शल फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा भारतीय सेना के प्रथम कमांडर-इन-चीफ थे। के. एम. करिअप्पा ने सन् 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर सेना का नेतृत्व किया था। वे भारतीय सेना के उन दो अधिकारियों में शामिल हैं जिन्हें फील्ड मार्शल की पदवी दी गयी। फील्ड मार्शल सैम मानेकशा दूसरे ऐसे अधिकारी थे जिन्हें फील्ड मार्शल का रैंक दिया गया था। उनका मिलिटरी करियर लगभग 3 दशक लम्बा था जिसके दौरान 15 जनवरी 1949 में उन्हें सेना प्रमुख नियुक्त किया गया। इसके बाद से ही 15 जनवरी ‘सेना दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। करिअप्पा का सम्बन्ध राजपूत रेजीमेन्ट से था। वे सन 1953 में सेवानिवृत्त हो गये फिर भी किसी न किसी रूप में भारतीय सेना को सहयोग देते रहे। प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~ फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी, 1899 में कर्नाटक के कोडागु (कुर्ग) में शनिवर्सांथि न

पंडित जसराज जी

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पंडित जसराज ~~~~~~~~ पंडित जसराज की सालगिरह पर, उनके संघर्ष की कहानी........ वो साल 1933 था, जब हैदराबाद के आख़िरी निज़ाम उस्मान अली खां के दरबार में उस दोपहर बड़ी चहल-पहल थी। उस शाम मेवाती घराने से ताल्लुक रखने वाले हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे जाने-माने गायक पंडित मोती राम को 'राज संगीतज्ञ' घोषित किया जाना था। इधर समारोह की तैयारी हो रही थी और उधर मोती राम के घर में जश्न मनाया जा रहा था। उनके दोनों बेटे भी पिता को मिलने वाले इस सम्मान से खुश थे। लेकिन कुदरत का भी ये अजीब संयोग हुआ। शाम होते-होते खुशी गम में बदल गई। उसी शाम पंडित मोती राम जी का देहांत हो गया। सजे धजे घर में अचानक मातम होने लगा, रोने चीखने की आवाज़ें गूंजने लगी।उस वक्त उनके छोटे बेटे की उम्र महज़ तीन साल थी। ज़रा सी उम्र में पिता का साया सर से उठ जाने से वो खुद को अंदर से बेहद टूटा हुआ महसूस कर रहा था। लेकिन उस मुश्किल वक्त में उसने क़सम खाई को वो भी पिता जी की तरह बड़ा संगीतज्ञ बनेगा। इसके कुछ साल बाद दोनों भाइयों ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाना शुरु किया। छोटा बेटा तबला बजाता था और बड़ा गान

मैं, नरेन्द्र मोदी एप्प के साथ सोशल मीडिया पर

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मेरे दोस्तों, मेरे सहयोगियों, मेरे साथियों, हमारे महान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी दिन-रात बिना थके, बिना रुके, लगातार हम भारतवासियों के लिए काम कर रहे हैं, तो क्या हम उन कामों को Narendra Modi App से लेकर अपने सोशल मीडिया द्वारा आपने देशवासियों तक शेयर करके क्यों नही पहुँचा सकते.....? पर क्षमा करना, दोस्तों मैंने ये बात नोट कि हैं, हम लोग अपने इस नरेन्द्र मोदी एप्प पर डाली हर पोस्ट को बहुत ही कम लाईक करते हैं, बहुत ही कम कमेंट करते हैं, बहुत ही कम रिपोस्ट करते हैं और बहुत ही कम शेयर करते हैं। ये बहुत ही गलत बात हैं। अपने महान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के इस एप्प पर हम कोई टाइमपास करने के लिए नही जुड़े हैं। बल्कि हम जुड़े हैं ..... 1. अपने महान प्रधानमंत्री जी के विचारों को जानने के लिए .... 2. अपने महान प्रधानमंत्री जी के द्वारा अपने भारत देश व देश के लोगो के लिए किये जा रहे कार्यों को जानने के लिए .... 3. अपनी महान भाजपा पार्टी व पार्टी के अन्य नेताओं व मंत्रियों के द्वारा अपने भारत देश व देश के लोगो के लिए किये जा रहे कार्यों को जानने के लिए .... 4. अपने सामाजिक

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस - पराक्रम दिवस

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नेताजी सुभाषचंद्र बोस ~~~~~~~~~~~~ "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" .....यह सिर्फ़ नारा नहीं था। इस नारे ने देश में राष्ट्रभक्ति का ज्वार पैदा किया, जो भारत की आज़ादी का बड़ा आधार बना। इस नारे को भारत व समस्त भू मंडल पर प्रवाहित करने वाले, आजाद हिंद फ़ौज के संस्थापक, महान स्वतंत्रता सेनानी एवं माँ भारती के वीर सपूत नेताजी #SubhasChandraBose जी की जयंती पर सादर नमन। देश के प्रति आपका समर्पण एवं बलिदान अनंतकाल तक सभी को राष्ट्रभक्ति के लिए प्रेरित करता रहेगा। उनकी जयंती को #पराक्रमदिवस के रूप में मनाकर हमारे महान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने उन्हें एक अभूतपूर्व श्रद्धांजलि दी है। 💐💐 🙏🙏 स्वतंत्रता अभियान के एक और महान क्रान्तिकारियो में सुभाष चंद्र बोस – Netaji Subhash Chandra Bose का नाम भी आता है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रिय सेना का निर्माण किया था। जो विशेषतः “आजाद हिन्द फ़ौज़” के नाम से प्रसिद्ध थी। सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद को बहुत मानते थे। “तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा”  सुभाष चंद्र बोस का ये प्रसिद्ध न

महादेव गोविन्द रानाडे

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महादेव गोविन्द रानाडे ~~~~~~~~~~~ समाज सुधारक जन्म : 18 जनवरी, 1842, निफाड, नाशिक, महाराष्ट्र मृत्यु : 16 जनवरी, 1901, कार्यक्षेत्र : भारतीय समाज सुधारक, विद्वान और न्यायविद महादेव गोविन्द रानाडे एक प्रसिद्ध भारतीय राष्ट्रवादी, विद्वान, समाज सुधारक और न्यायविद थे। रानाडे ने सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों का कड़ा विरोध किया और समाज सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। समाज सुधारक संगठनों जैसे प्रार्थना समाज, आर्य समाज और ब्रह्म समाज ने रानाडे को बहुत प्रभावित किया था। जस्टिस गोविंद रानाडे ‘दक्कन एजुकेशनल सोसायटी’ के संस्थापकों में से एक थे। एक राष्ट्रवादी होने के नाते उन्होंने ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना का भी समर्थन किया और वे स्वदेशी के समर्थक भी थे। अपने जीवनकाल में वे कई महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित पदों पर रहे जिनमें प्रमुख थे बॉम्बे विधान परिषद् का सदस्य, केंद्र सरकार के वित्त समिति के सदस्य और बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश। अपने जीवन काल में उन्होंने कई सार्वजनिक संगठनों के गठन में योगदान दिया। इनमें प्रमुख थे वक्त्रुत्त्वोतेजक सभा, पूना सार्वजानि

#IndiaForMtSikdar

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साथियों,  Zee News ने Mount Everest को Mount Sikdar कहने की एक बहुत ही अच्छी मुहिम चलाई हैं। इसके तहत भारत के श्री राधानाथ सिकदर जी जिन्होंने कई सालों की कोशिश व बहुत मेहनत के बाद दुनिया को सन 1852 में एवरेस्ट की ऊंचाई बताई थी और जिन्हें अंग्रेज अधिकारियों ने एक तरफ किनारे करके, हिमालय पर्वत की सबसे ऊँची चोटी जो आज नेपाल में हैं, उसका नाम सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रख दिया गया जो इस चोटी पर कभी गए भी नही थे। इस मुहिम के द्वारा Zee News की एक ईमानदार कोशिश हैं कि भारत, नेपाल व सारी दुनियां द्वारा Mount Everest को Mount Sikdar कहा जाए। Zee News की इस मुहिम मकसद Mount Everest पर भारत का हक जताना या नेपाल का हक हटाना नहीं हैं। Mount Everest नेपाल में हैं, नेपाल का हैं और उस पर नेपाल का ही हक रहेगा। सिर्फ Mount Everest का नाम अब बदल देना चाहिए व Mount Everest को अब Mount Sikdar कहना चाहिए। मेरी सभी देशवासियों से हाथ जोड़कर प्राथना हैं कि इस पोस्ट को  #IndiaForMtSikdar  हैशटैग के तहत आगे शेयर जरूर करें, ताकि एक देशभक्त न्यूज़ चैनल Zee News के द्वारा चलाई जा रही ये मु

राधानाथ सिकदर : दुनिया को एवरेस्ट की ऊंचाई बताने वाला महान भारतीय

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राधानाथ सिकदर  ~~~~~~~~~ दुनिया को एवरेस्ट की ऊंचाई बताने वाला महान भारतीय  साल 1852 के आसपास का वक्त रहा होगा। एक रोज सुबह सवेरे सर्वे जनरल ऑफ इंडिया के डॉयरेक्टर ‘एंड्रयू स्कॉट वा’ अपने दफ्तर में थे। उनके साथ दूसरे कर्मचारी भी दफ्तर पहुंच कर काम में व्यस्त हो चले थे। उसी वक्त एक शख्स तूफान की तरफ ‘स्कॉट’ के कमरे में  दाखिल होता है और खुशी से चींखते हुए कहता है, ‘सर, मैंने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी का पता लगा लिया है!’  यह सुनकर स्कॉट हक्के-बक्के रह जाते हैं। वह शख्स आगे बताता है कि सबसे ऊंची चोटी 29002 फीट है। कालांतर में ‘सर्वे ऑफ इंडिया‘ के पूर्व डॉयरेक्टर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर उक्त पर्वत का नाम ‘माउंट एवरेस्ट’ रखा गया और जिसने दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत की ऊँचाई नापने का महान कार्य किया था, उसे नज़रंदाज़ कर दिया गया।  चूंकि, उस दौर में पर्वत की ऊंचाई को नापा गया, था जिसमें तकनीक उतनी विकसित नहीं थी। साथ ही संसाधन सीमित थे, इसलिए इसे मुमकिन बनाने वाले ‘राधानाथ सिकदर’ और उनके इसमें अद्भुत कारनामे को जानना दिलचस्प रहेगा—  कलकत्ता में जन्म, स्कॉलरशिप से की पढ़ाई  ~~~~~