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Showing posts from May, 2023

वीर सावरकर जी

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वीर सावरकर जी ~~~~~~~~~ सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व, सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य, सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार। ......... अटल बिहारी वाजपेयी #VeerSavarkar जी भारत के स्वंत्रता सेनानियों में विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें वीर सावरकर / Veer Savarkar के नाम से हम सब भलीभांति परिचित है। वीर सावरकर एक ऐसे सिद्धहस्त लेखक थे जब इन्होने पहली बार लेखनी चलायी तो सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजो के दमनकारी सन 1857 के स्वंत्रता संग्राम का इतना सटीक वर्णन किया की इनके पहले ही प्रकाशन से अंगेजी सत्ता इतनी डर गयी कि यहाँ तक की अंगेजो को इनके प्रकाशन पर रोक लगाना पड़ा था। वीर सावरकर एक ऐसे देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया पर जब नाशिक में शोक सभा का आयोजन किया गया तो सबसे पहले इसका खुलकर विरोध वीर सावरकर ने ही किया था और विरोध करते हुए सावरकर ने कहा था की क्या कोई अंग्रेज हमारे देश के महापुरुषों की मृत्यु पर शोक सभा करते है। जब अंग्रेज हमारे देश में होकर भी हमारे बारे में नही सोचते, तो भला हमे दुश्मन क

गुरु अर्जुन देव जी (पंचम सिख गुरु)

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गुरु अर्जुन देव (पंचम सिख गुरु) ~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🥀🌹🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल न जाओ उनको,  इसलिए लिखी यह कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी,  ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🌹🙏🙏🌻🌷💐  गुरू अर्जुन देव सिखों के 5वे गुरु थे। गुरु अर्जुन देव जी शहीदों के सरताज एवं शान्तिपुंज हैं। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है। गुरुग्रंथ साहिब में तीस रागों में गुरु जी की वाणी संकलित है। गणना की दृष्टि से श्री गुरुग्रंथ साहिब में सर्वाधिक वाणी पंचम गुरु की ही है।  ग्रंथ साहिब का संपादन गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास की सहायता से 1604में किया। ग्रंथ साहिब की संपादन कला अद्वितीय है, जिसमें गुरु जी की विद्वत्ता झलकती है। उन्होंने रागों के आधार पर ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझबूझ का ही प्रमाण है कि ग्रंथ साहिब में 36महान वाणीकारों की वाणियां बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई।  अर्जुन देव जी गुरु राम दास के सुपुत्र थे। उनकी माता का नाम बीवी भानी जी था। गोइंदवाल स

अमर शहीद करतार सिंह सराभा जी

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अमर शहीद करतार सिंह सराभा जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌻🌷🌼🌹🌸🥀💐 ★तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी...★ 🌺🌻🌷🌼🌹🌸🥀💐 करतार सिंह ‘सराभा’: वह भारतीय क्रांतिकारी, जिसे ब्रिटिश मानते थे ‘अंग्रेजी राज के लिए सबसे बड़ा खतरा’!  “देस नूँ चल्लो देस नूँ चल्लो देस माँगता है क़ुर्बानियाँ कानूं परदेसां विच रोलिये जवानियाँ ओय देस नूं चल्लो…  ...देशभक्ति की भावना से भरे इस गीत के बोलों को सही मायने में सार्थक किया करतार सिंह सराभा ने। करतार सिंह ‘सराभा’, एक क्रांतिकारी और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, जिसने अमेरिका में रहकर भारतियों में क्रांति की अलख जगाई थी।  सिर्फ 19 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल जाने वाले इस सपूत को उसके शौर्य, साहस, त्याग एवं बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।   करतार सिंह ~~~~~~ सराभा, पंजाब के लुधियाना ज़िले का एक चर्चित गांव है। लुधियाना शहर से यह करीब पंद्रह मील की दूरी पर स्थित है। गांव बसाने वाले रामा व सद्दा दो भाई थे। गांव में तीन पत्तियां हैं-सद्दा पत्ती, रामा पत्ती व अराइयां पत्ती। सर

हिन्दू कुलभूषण चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी

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हिन्दू कुलभूषण चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है। हिंदुत्व के योद्धा कहे जाने वाले चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे। महज 11 वर्ष की उम्र मे, उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था, परंतु अंत मे वे विश्वासघात के शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया। पृथ्वीराज को राय पिथोरा भी कहा जाता था। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे, उन्होने युध्द के अनेक गुण सीखे थे। उन्होने अपने बाल्यकाल से ही शब्ध्भेदी बाण विद्या का भी अभ्यास किया था और इसमें वे अत्यंत कुशल थे। पृथ्वीराज चौहान का जन्म ~~~~~~~~~~~~~~ भारत धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 मे हुआ। पृथ्वीराज अजमेर के महाराज सोमेश्र्वर और क

अमर शहीद सुखदेव थापर

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शहीद सुखदेव थापर ~~~~~~~~~~~~ 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 सुखदेव (वर्ष 1907-1931) एक प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह उन महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।  इनका पूरा नाम सुखदेव थापर है और इनका जन्म 15 मई 1907 को हुआ था। इनका पैतृक घर भारत के लुधियाना शहर, नाघरा मोहल्ला, पंजाब में है। इनके पिता का नाम राम लाल था। अपने बचपन के दिनों से, सुखदेव ने उन क्रूर अत्याचारों को देखा था, जो शाही ब्रिटिश सरकार ने भारत पर किए थे, जिसने उन्हें क्रांतिकारियों से मिलने के लिए बाध्य करदिया और उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन के बंधनों से मुक्त करने का प्रण किया। सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के सदस्य थे और उन्होंने पंजाब व उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों के क्रांतिकारी समूहों को संगठित किया। एक देश भक्त नेता सुखदेव लाहौर नेशन

अपराजेय अप्रतिम वीर छत्रपति संभाजी महाराज

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अपराजेय, अप्रतिम वीर छत्रपति संभाजी महाराज ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐  हिन्दुस्थान में हिंदवी स्वराज एवं हिन्दू पातशाही की गौरवपूर्ण स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के जयेष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर गढ पर हुआ। छत्रपति संभाजी के जीवन को यदि चार पंक्तियों में संजोया जाए तो यही कहा जाएगा कि:  'देश धरम पर मिटने वाला, शेर शिवा का छावा था। महा पराक्रमी परम प्रतापी, एक ही शंभू राजा था।।'  संभाजी महाराज का जीवन एवं उनकी वीरता ऐसी थी कि उनका नाम लेते ही औरंगजेब के साथ तमाम मुगल सेना डर से थर्राने लगती थी। संभाजी के घोड़े की टाप सुनते ही मुगल सैनिकों के हाथों से अस्त्र-शस्त्र छूटकर गिरने लगते थे। यही कारण था कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद भी संभाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज को अक्षुण्ण रखा था। वैसे शूरता-वीरता के साथ निडरता का वरदान भी संभाजी को अपने पिता शिवाजी महाराज से मानों विरासत में प्राप्त हुआ था। राजप

पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट

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पेशवा बाजीराव बल्लाल ~~~~~~~~~~~~~ 🚩 💐💐🙏🙏💐💐🚩 तुम भूल न जाओ उनको,  इसलिए लिखी यह कहानी,  🚩 💐💐🙏🙏💐💐🚩 जिस व्यक्ति ने अपनी आयु के 20 वे वर्ष में पेशवाई के सूत्र संभाले हों,|| 40 वर्ष तक के कार्यकाल में 42 युद्ध लड़े हों और सभी जीते हों यानि जो सदा "अपराजेय" रहा हो,|| जिसके एक युद्ध को अमेरिका जैसा राष्ट्र अपने सैनिकों को पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ा रहा हो ..ऐसे 'परमवीर' को आप क्या कहेंगे ...? आप उसे नाम नहीं दे पाएंगे ..क्योंकि आपका उससे ज्यादा परिचय ही नहीं,|| सन 18 अगस्त सन् 1700 में जन्मे उस महान पराक्रमी पेशवा का नाम है -  " बाजीराव बल्लाल पेशवा "|| "अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि एक राजपूत ने मदद मांगी और ब्राह्मण केवल भोजन करता रहा||" ऐसा कहते हुए भोजन की थाली छोड़कर बाजीराव अपनी सेना के साथ राजा छत्रसाल की मदद को बिजली की गति से दौड़ पड़े,|| धरती के महानतम योद्धाओं में से एक, अद्वितीय, अपराजेय और अनुपम योद्धा थे पेशवा बाजीराव बल्लाल,|| छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज का सपना जिसे पूरा कर दिखा

पंडित कृपा राम दत्त जी

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पंडित कृपा राम दत्त  ~~~~~~~~~~ 🚩 💐💐🙏🙏💐💐🚩 तुम भूल न जाओ उनको,  इसलिए लिखी यह कहानी,  जो शहीद हुए हैं उनकी,  ज़रा याद करो कुर्बानी... 🚩 💐💐🙏🙏💐💐🚩 ✍️सिख इतिहास में अगर सबसे ताकतवर सेनापतियों की बात होती है, तो उसमे पंडित कृपा राम दत्त का नाम अव्वल है।  ✍️ पंडित कृपा राम दत्त ने गुरु गोबिंद सिंह जी को शस्त्र और शास्त्र की विद्या दी थी।  ✍️ खालसा सेना को एकत्रित करके मुख्य पटल में लाने का काम पंडित कृपा दत्त का था।  ✍️ गुरु तेगबहादुर जब पंडित सतीदास, पंडीत मतिदास और पंडित दयाल दास के साथ उस क्रूर, ज़ालिम, निर्देयी मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा शहीदी दिए थे, उस वक्त खालसा सेना में पंडित कृपा दत्त की भागीदारी ज्यादा हो गई थी  ✍️ पंडित कृपा दत्त ने चमकौर के युद्ध मे अपने जीवन का बलिदान दिया था। गुरु गोविंद सिंह, जो कि सिखों के दसवें गुरु थे, उन्हें वर्ष 1704 में 20 दिसंबर को आनंदपुर साहिब किले को अचानक से बेहद कडक़ड़ाती ठंड में छोडऩा पड़ा था, क्योंकि मुगल सेना ने इस पर आक्रमण कर दिया था। गुरु गोविंद सिंह चाहते थे कि वे किले में ही रुक कर आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ा दें,

गोपाल कृष्ण गोखले जी

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गोपाल कृष्ण गोखले जी ~~~~~~~~~~~~ जन्म: 9 मई, 1866 निधन: 19 फरवरी, 1915 उपलब्धियां: महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरु, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मार्ग दर्शकों में से एक, सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी के संस्थापक गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मार्गदर्शकों में से एक थे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। गांधीजी उन्हें अपना राजनैतिक गुरु मानते थे। राजनैतिक नेता होने के आलावा वह एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने एक संस्था “सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी” की स्थापना की जो आम लोगों के हितों के लिए समर्पित थी। देश की आजादी और राष्ट्र निर्माण में गोपाल कृष्ण गोखले का योगदान अमूल्य है। गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई 1866 को महाराष्ट्र के कोथापुर में हुआ था। उनके पिता कृष्ण राव एक किसान थे पर चूँकि क्षेत्र की मिट्टी कृषि के लिए अनुकूल नहीं थी इस कारण क्लर्क का काम करने पर मजबूर हो गए। उनकी माता वालूबाई एक साधारण महिला थीं। गोखले ने अपने बड़े भाई द्वारा आर्थिक सहायता से कोथापुर के राजाराम हाई स्कूल में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में वह मुंबई चले गए और 18

महाराणा प्रताप सिंह

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🙏🙏 ★आओ कुछ अच्छी बातें करें★ दोस्तों, जब भी मुझे, कोई भी अच्छी बात, सोशल मीडिया या प्रिंट मीडिया पर पढ़ने को मिलती हैं, तो वो मैं कॉपी-पेस्ट-एडिट करके आप सब तक ★आओ कुछ अच्छी बातें करें★ के तहत शेयर जरूर करती हूँ। आज भी "महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी" विषय पर कुछ अच्छी बातें आपसे शेयर कर रही हूँ, इस प्राथना के साथ कि अगर आपको भी ये बातें अच्छी लगें, तो कृपया दूसरों के लिए, आगे ज़रूर शेयर करे ........ ........विजेता मलिक महाराणा प्रताप ~~~~~~~~ महाराणा प्रताप जन्मभूमि की स्वतंत्रता के संघर्ष के प्रतिक है। वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, आदर्श संगठनकर्ता और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहने वाले महान सेनानी थे। अपनी संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए उन्होंने वन-वन भटकना तो स्वीकार किया मगर क्रूर मुग़ल सम्राट अकबर के सामने अधीनता स्वीकार नहीं की। महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के ऐसे महानायक है, जिनकी अनन्य विशेषताओ पर भारतीय इतिहासकारों ही नहीं, पाश्चात्य लेखकों और कवियों को भी अपनी लेखनी चालायी है। प्रताप स्वदेश पर अभिमान

हिन्दुओं में विवाह रात्रि में क्यों होने लगे ?

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हिन्दुओं में विवाह रात्रि में क्यों होने लगे ? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ क्या कभी आपने सोचा है कि हिन्दुओं में रात्रि को विवाह क्यों होने लगे हैं, जबकि हिन्दुओं में रात में शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है ? रात को देर तक जागना और सुबह को देर तक सोने को, राक्षसी प्रवृति बताया जाता है। रात में जागने वाले को निशाचर कहते हैं। केवल तंत्र सिद्धि करने वालों को ही रात्रि में हवन यज्ञ की अनुमति है। वैसे भी प्राचीन समय से ही सनातन धर्मी हिन्दू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे हैं। तब हिन्दुओं में रात की विवाह की परम्परा कैसे पड़ी ? कभी हम अपने पूर्वजों के सामने यह सवाल क्यों नहीं उठाते हैं  या  स्वयं इस प्रश्न का हल क्यों नहीं खोजते हैं ? दरअसल भारत में सभी उत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संस्कार दिन में ही किये जाते थे। सीता और द्रौपदी का स्वयंवर भी दिन में ही हुआ था। शिव विवाह से लेकर संयोगिता स्वयंवर (बाद में पृथ्वीराज चौहान जी द्वारा संयोगिता जी की इच्छा से उनका अपहरण) आदि सभी शुभ कार्यक्रम दिन में ही होते थे। प्राचीन काल से लेकर मुगलों के आने तक भारत में विवाह