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Showing posts from March, 2023

द्वितीय सिख गुरु अंगद देव जी

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गुरू अंगद देव जी सिखों के द्वितीय गुरु  ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ अंगद देव या गुरू अंगद देव सिखो के एक गुरू थे। गुरू अंगद देव महाराज जी का सृजनात्मक व्यक्तित्व था। उनमें ऐसी अध्यात्मिक क्रियाशीलता थी जिससे पहले वे एक सच्चे सिख बनें और फिर एक महान गुरु। गुरू अंगद साहिब जी (भाई लहना जी) का जन्म हरीके नामक गांव में, जो कि फिरोजपुर, पंजाब में आता है, वैसाख वदी १, (पंचम् वैसाख) सम्वत १५६१ (३१ मार्च १५०४) को हुआ था। गुरुजी एक व्यापारी श्री फेरू जी के पुत्र थे। उनकी माता जी का नाम माता रामो जी था। बाबा नारायण दास त्रेहन उनके दादा जी थे, जिनका पैतृक निवास मत्ते-दी-सराय, जो मुख्तसर के समीप है, में था। फेरू जी बाद में इसी स्थान पर आकर निवास करने लगे।  प्रारंभिक जीवन : ~~~~~~~~~         अंगद देव का पूर्व नाम लहना था। भाई लहणा जी के ऊपर सनातन मत का प्रभाव था, जिस के कारण वह देवी दुर्गा को एक स्त्री एंवम मूर्ती रूप में देवी मान कर, उसकी पूजा अर्चना करते थे। वो प्रतिवर्ष भक्तों के एक जत्थे का नेतृत्व कर ज्वालामुखी मंदिर जाया करता था। १५२० में, विवाह माता खीवीं जी से हुआ। उनसे उनके दो पुत्र -

शहीद पंडित कांशीराम जी

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शहीद पंडित कांशीराम जी ~~~~~~~~~~~~~~ 🌺💐🌻🙏🌻💐🌺 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी.. 🌺💐🌻🙏🌻💐🌺 पंडित कांशीराम ग़दर पार्टी के प्रमुख नेता थे और उन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे। पंडित कांशीराम का जन्म 1883 ई. में पंजाब के अंबाला ज़िले में हुआ था। मैट्रिक पास करने के बाद उन्होंने तार भेजने प्राप्त करने का काम सीखा और कुछ दिन अंबाला और दिल्ली में नौकरी की। इसके बाद वे अमेरिका चले गए। यहीं से उनका क्रांतिकारी जीवन आरंभ होता है। आजीविका के लिए पंडित कांशीराम ने ठेकेदारी का काम किया। साथ ही वे 'इंडियन एसोसिएशन ऑफ अमेरिका' और 'इंडियन इंडिपैंडेंट लीग' में शामिल हो गए। उनके ऊपर लाला हरदयाल का बहुत प्रभाव पड़ा। वे संगठन भारत को अंग्रेजों की चुंगल से छुड़ाने के लिए बनाए गए थे। 1913 में पंडित कांशीराम ‘ग़दर पार्टी’ के कोषाध्यक्ष बन गए। जिस समय यूरोप में प्रथम विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे, ग़दर पार्टी ने निश्चय किया कि कुछ लोगों को अमेरिका से भारत वापस जाना चाहिए। वे वहां जाकर भ

शहीद दिवस : भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को देश ऐसे कर रहा है याद

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★ ज़रा याद करो कुर्बानी ★ ~~~~~~~~~~~~~~ शहीद दिवस : भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को देश ऐसे कर रहा है याद ...... अमर महान शहीद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु ...... ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 23 मार्च, 1931 को अंग्रेजी हुकूमत ने भारत के तीन वीर सपूतों- भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटका दिया था। शहीद दिवस के रूप में जाना जाने वाला यह दिन यूं तो भारतीय इतिहास के लिए काला दिन माना जाता है, पर स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं। इन तीनों वीरों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है। तीनों क्रांतिकारियों की इस शहादत को आज पूरा देश याद कर रहा है. लोग सोशल मीडिया पर इन क्रांतिकारियों से जुड़े किस्‍से, इनके बयानों को शेयर कर रहे हैं। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत पर जानें उनसे जुड़ी बातें और देशभक्तों के देशभक्त शहीदों के लिए किये कुछ कमैंट्स....... शहीद दिवस पर भगत सिंह को याद करते हुए एक ने लिखा :- तीन परिंदे उड़े तो आसमान रो पड़ा, ये हंस रहे थे मगर हिंदुस्तान रो पड़ा..!! दूसरे ने लिखा :- #इंकलाब_जिन्दाबाद

डॉ. राम मनोहर लोहिया जी

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डॉ. राम मनोहर लोहिया जी ~~~~~~~~~~~~~~ राजनेता व स्वतंत्रता सेनानी  जन्म : 23 मार्च, 1910, अकबरपुर, फैजाबाद निधन : 12 अक्टूबर, 1967, नई दिल्ली कार्य क्षेत्र : स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता  राम मनोहर लोहिया एक स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर समाजवादी और सम्मानित राजनीतिज्ञ थे. राम मनोहर ने हमेशा सत्य का अनुकरण किया और आजादी की लड़ाई में अद्भुत काम किया. भारत की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और उसके बाद ऐसे कई नेता आये जिन्होंने अपने दम पर राजनीति का रुख़ बदल दिया उन्ही नेताओं में एक थे राममनोहर लोहिया। वे अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्‍वी समाजवादी विचारों के लिए जाने गए और इन्ही गुडों के कारण अपने समर्थकों के साथ-साथ उन्होंने अपने विरोधियों से भी बहुत  सम्‍मान हासिल किया।  बचपन और प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~~~~~~~~ राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था। उनकी मां एक शिक्षिका थीं। जब वे बहुत छोटे थे तभी उनकी मां का निधन हो गया था। अपने पिता से जो एक राष्ट्रभक्त थे, उन्हें युवा अवस्था में ही विभिन्न रैलियों और विरोध सभाओं के माध्यम से भारत के स

शहीदेआजम भगत सिंह

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शहीदेआजम भगत सिंह  ~~~~~~~~~~~~ ★जरा याद करो कुर्बानी★ 💐💐💐💐💐💐💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 💐💐💐💐💐💐💐 #बलिदान_दिवस  #भगत_सिंह -- उनकी जेब में करतार सिंह साराभाई, भगवत गीता और स्वामी विवेकानंद की जीवनी रहती थी और फिर वो लिखते हैं ‘वाइ आई एम एन अथीस्ट’? मैं नास्तिक क्यों हूँ ?? जी हाँ मैं बात कर रही हूँ अमर शहीद भगत सिंह जी की ...... आज उनका बलिदान दिवस है तो आइए उनके कुछ अनसुने किस्से आपसे साझा करती हूँ -- मेरे जीने का मकसद ~~~~~~~~~~~ ★★ लाहौर जेल में बंद कुछ कैदियों की ‌एक चिट्ठी जेल में ही बंद एक नौजवान के पास पहुंची, जिसमें लिखा था कि "हमने अपने भागने के लिए एक रास्ता बनाया है, लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी जगह आप उससे निकल जाएं"।  युवक ने चिट्ठी के बदले में जवाब भेजा। "धन्यवाद.....मैं आपका आभारी हूं लेकिन ये आग्रह स्वीकार नहीं कर सकता अगर ऐसा किया तो मेरे जीने का मकसद ही खत्म हो जाएगा। मैं चाहता हूं मेरी शहादत देश के काम आए और युवाओं में प्रेरणा और जोश भरने का काम करे, जिससे देश को जल्द स

शहीद सुखदेव थापर

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सुखदेव थापर ~~~~~~~ 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 सुखदेव (वर्ष 1907-1931) एक प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह उन महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।  इनका पूरा नाम सुखदेव थापर है और इनका जन्म 15 मई 1907 को हुआ था। इनका पैतृक घर भारत के लुधियाना शहर, नाघरा मोहल्ला, पंजाब में है। इनके पिता का नाम राम लाल था। अपने बचपन के दिनों से, सुखदेव ने उन क्रूर अत्याचारों को देखा था, जो शाही ब्रिटिश सरकार ने भारत पर किए थे, जिसने उन्हें क्रांतिकारियों से मिलने के लिए बाध्य करदिया और उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन के बंधनों से मुक्त करने का प्रण किया। सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के सदस्य थे और उन्होंने पंजाब व उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों के क्रांतिकारी समूहों को संगठित किया। एक देश भक्त नेता सुखदेव लाहौर नेशनल कॉलेज मे

शहीद शिवराम राजगुरु

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शहीद शिवराम राजगुरु ~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹💐🙏💐🌹🌺 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी..... 🌺💐🌹🙏🌹💐🌺  भारत को गुलामी से मुक्त करवाने के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपना जीवन हमारे देश के लिए कुर्बान किया है। इन्हीं क्रांतिकारियों के बलिदान की वजह से ही हमारा देश एक आजाद देश बन सका है। हमारे देश के क्रांतिकारियों के नामों की सूची में अनगिनत क्रांतिकारियों के नाम मौजूद हैं और इन्हीं क्रांतिकारियों के नामों में से एक नाम ‘राजगुरु’ जी का भी है, जिन्होंने अपने जीवन को हमारे देश के लिए समर्पित कर दिया था।  बेहद ही छोटी सी आयु में इन्होंने अपने देश के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान कर दिया था और इनकी कुर्बानी को आज भी भारत वासियों द्वारा याद किया जाता है।  राजगुरु जी के जीवन से जुड़ी जानकारी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ पूरा नाम : शिवराम हरि राजगुरु उप नाम : रघुनाथ, एम.महाराष्ट्र जन्म स्थान : पुणे, महाराष्ट्र, ब्रिटिश भारत जन्म तिथि : 24 अगस्त, 1908 मृत्यु तिथि : 23 मार्च, 1931 किस आयु में हुई मृत्यु : 22 वर्ष मृत्यु स्थान : लाहौर, ब्रिटिश भा

वीरांगना रानी अवन्तिबाई लोधी

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वीरांगना रानी अवन्तिबाई लोधी ~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌺🙏🙏🌺🌺 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌺🙏🙏🌺🌺  ✍️भारत की पूर्वाग्रही लेखनी ने देश के बहुत से त्यागी, बलिदानियों, शहीदों और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले वीर-वीरांगनाओं को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की पुस्तकों में उचित सम्मानपूर्ण स्थान नहीं दिया है, परंतु आज भी इन वीर-वीरांगनाओं की शौर्यपूर्ण गाथाएं भारत की पवित्र भूमि पर गूंजती हैं और उनका शौर्यपूर्ण जीवन प्रत्येक भारतीय के जीवन को मार्गदर्शित करता है।  ऐसी ही 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की एक वीरांगना हैं रानी अवंतीबाई लोधी जिनके योगदान को हमेशा से इतिहासकारों ने कोई अहम स्थान न देकर नाइंसाफी की है। आज देश में बहुत से लोग हैं, जो इनके बारे में जानते भी नहीं हैं। लेकिन इनका योगदान भी 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अग्रणी नेता वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कम नहीं हैं।   लेकिन इतिहासकारों की पिछड़ा और दलित विरोधी मानसिकता ने हमेशा से इनके बलिदान और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम

मल्हारराव होल्कर

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मल्हारराव होल्कर ~~~~~~~~~~ जन्म : 16 मार्च 1693 ई. मृत्यु तिथि : 20 मई 1766 ई. वंश : होल्कर वंश ~~~~~~~~~ मराठा साम्राज्य, पेशवा, बालाजी विश्वनाथ, बालाजी बाजीराव, शिवाजी, बाजीराव प्रथम, शाहजी भोंसले, शम्भाजी पेशवा, बाजीराव द्वितीय, राजाराम शिवाजी, दौलतराव शिन्दे, नाना फड़नवीस, दादोजी कोंडदेव, होल्कर वंश अन्य जानकारी ~~~~~~~~ मल्हारराव होल्कर होल्कर वंश के प्रवर्तक थे। वह प्रारम्भ में पेशवा बाजीराव प्रथम (1720-1740 ई.) की सेवा में रहे, उसने पेशवा की काफ़ी दिनों तक सेवा की तथा कई विजय अभियानों में भी भाग लिया था। मल्हाराव होल्कर ~~~~~~~~~~ मल्हारराव होल्कर (अंग्रेज़ी: Malhar Rao Holkar, जन्म:16 मार्च 1693 ई.- मृत्य: 20 मई 1766 ई.) इंदौर के होल्कर वंश का प्रवर्तक थे। मल्हार राव विशेष रूप से मध्य भारत में मालवा के पहले मराठा सूबेदार होने के लिये जाना जाते थे। यह होल्कर परिवार के पहले राजकुमार थे, जिन्होंने इंदौर के राज्य पर शासन किया था। उन्होंने पेशवा बाजीराव प्रथम को कई युद्धों में विजय दिलवाई थी। उनके वंशजों द्वारा शासित राज्य को 1948 ई. में भारतीय गणराज्य में

भक्त शिरोमणी संत 'नरसी मेहता'

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भक्त शिरोमणी संत 'नरसी मेहता' ~~~~~~~~~~~~~~~~~ यधपि भक्तराज नरसिंहराम ने स्वाभाव से ही सभी पर दया की उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में कभी भी किसी पर क्रोध नही किया। फिर भी लोग कई तरह के षड्यंत्र कर उन्हें कष्ट पहुचाने के प्रपंच करते ही रहते थे , समय के साथ जितनी अधिक उनकी हरिभक्ति प्रगाढ़ होती जा रही थी उतने ही उनसे बैर रखने वाले मूर्खो की मंडलीय भी बढ़ती ही जा रही थी। किन्तु हर बार किसी की एक न चलती, . हरिभक्त का अहित भला हो भी कैसे सकता हे ( स्वयं गीता में श्रीकृष्ण ने कहा हे " मेरे भक्त का कभी नाश नही होता ") . अनेक प्रयास के उपरांत भी जब कुछ ना हुआ तो इस बार  पुरे गाँव की मुर्ख मण्डली एकत्र हो राजमहल पहुँची। उस समय जूनागढ़ के राज्यआसन पर 'रावमंडलीक ' राजा विद्यमान थे, सभी ने भक्तराज की झूठी निंदा व् अनेक प्रकार के झूठ रचकर राजा से नरसिंहराम को दण्डित करने की याचना की। . राजा ने नरसिंहराम को अपराधी की तरह दरबार में में बुलाया व् भरे दरबार में उनसे भक्त होने का प्रमाण माँगा गया। (उस काल से लेकर आज भी मुर्ख वृत्ति के लोग यहि करते हे

कल्पना चावला

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कल्पना चावला ~~~~~~~~ कल्पना चावला पहली भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और अन्तरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। 1997 में वह अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थी और 2003 में कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा में मारे गये सात यात्रियों के दल में से एक थी। पूरा नाम    –  कल्पना जीन पियरे हैरिसन (विवाहपूर्व – कल्पना बनारसी लाल चावला) जन्म         – 17 मार्च 1962 जन्म स्थान –   करनाल, पंजाब, (जो अभी हरयाणा, भारत में है) पिता         –  बनारसी लाल चावला माता         –  संज्योथी चावला विवाह       –  जीन पियरे हैरिसन भारत की बेटी – कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 को करनाल, पंजाब, में हुआ जो अभी हरयाणा, भारत में है। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा टैगोर बाल निकेतन सीनियर सेकेंडरी स्कूल, करनाल से और बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग) 1982 में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़ से पूरी की। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए 1982 में चली गयी और 1984 में वैमानिक अभियांत्रिकी (एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग) में विज्ञानं स्नातक की उपाधि टेक्सास विश्वविद्यालय आरलिन्गटन से प्राप्त की। फ

मनोहर पर्रीकर जी

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मनोहर पर्रीकर जी ~~~~~~~~~~ मनोहर पर्रीकर जी का पूरा नाम 'मनोहर गोपालकृष्‍ण प्रभु पर्रीकर' है। इनका जन्‍म 13 दिसंबर 1955 को गोवा के मापुसा में हुआ। उन्‍होंने अपने स्‍कूल की शिक्षा मारगाव में पूरी की। इसके बाद आई.आई.टी. मुम्बई से इंजीनियरिंग और 1978 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। पर्रिकर के दो बेटे उत्पल और अभिजात हैं। अभिजात गोवा में ही अपना बिजनेस चलाते हैं तो बेटे उत्पल ने अमेरिका से इंजीनियरिंग की डिग्री ली है। पर्रिकर की पत्नी मेधा अब इस दुनिया में नहीं हैं। 2001 में उनकी पत्नी का कैंसर के चलते निधन हो गया था। 1978 में अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने वाले मनोहर पर्रीकर का मुंबई की पढ़ाई से लेकर गोवा के मुख्यमंत्री और बाद में रक्षामंत्री तक का सफर काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है, जिसे इन्होने ने बहुत ही समझदारी और सूझ-बूझ से पूरा किया। मनोहर परिकर का राजनीतिक कैरियर 1994 में तब शुरू हुआ जब वे गोवा विधानसभा के विधायक चुने गए, उसके बाद वह 24 अक्टूबर साल 2000 में गोवा के मुख्यमंत्री के तौर पर नियुक्त हुए और 27 फरवरी 2002 तक मुख्यमंत्री के कार्य बखूबी संभाला। वह 2002

अपराजेय, अप्रतिम वीर छत्रपति संभाजी महाराज

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अपराजेय, अप्रतिम वीर छत्रपति संभाजी महाराज ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 हिन्दुस्थान में हिंदवी स्वराज एवं हिन्दू पातशाही की गौरवपूर्ण स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के जयेष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर गढ पर हुआ। छत्रपति संभाजी के जीवन को यदि चार पंक्तियों में संजोया जाए तो यही कहा जाएगा कि: 'देश धरम पर मिटने वाला, शेर शिवा का छावा था। महा पराक्रमी परम प्रतापी, एक ही शंभू राजा था।।' संभाजी महाराज का जीवन एवं उनकी वीरता ऐसी थी कि उनका नाम लेते ही औरंगजेब के साथ तमाम मुगल सेना डर से थर्राने लगती थी। संभाजी के घोड़े की टाप सुनते ही मुगल सैनिकों के हाथों से अस्त्र-शस्त्र छूटकर गिरने लगते थे। यही कारण था कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद भी संभाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज को अक्षुण्ण रखा था। वैसे शूरता-वीरता के साथ निडरता का वरदान भी संभाजी को अपने पिता शिवाजी महाराज से मानों विरासत में प्राप्त हुआ