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Showing posts from September, 2023

शहीदेआजम भगत सिंह जी

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शहीदेआजम भगत सिंह  ~~~~~~~~~~~~ ★जरा याद करो कुर्बानी★ 💐💐💐💐💐💐💐💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 💐💐💐💐💐💐💐💐 मैं रहूं या ना रहूं पर, ये वादा है मेरा तुझसे... मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा। अपने बलिदान से हर भारतीय के मन में स्वाधीनता की अलख जगाने वाले महान क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह जी को पावन जयंती पर शत्-शत् नमन‌..!! #BhagatSingh  #भगतसिंह #जयंती_दिवस  #भगत_सिंह -- उनकी जेब में करतार सिंह साराभाई, भगवत गीता और स्वामी विवेकानंद की जीवनी रहती थी और फिर वो लिखते हैं ‘वाइ आई एम एन अथीस्ट’? मैं नास्तिक क्यों हूँ ?? जी हाँ मैं बात कर रही हूँ अमर शहीद भगत सिंह जी की ...... आज उनकी जयंती दिवस है तो आइए उनके कुछ अनसुने किस्से आपसे साझा करती हूँ -- मेरे जीने का मकसद ~~~~~~~~~~~ ★★ लाहौर जेल में बंद कुछ कैदियों की ‌एक चिट्ठी जेल में ही बंद एक नौजवान के पास पहुंची, जिसमें लिखा था कि "हमने अपने भागने के लिए एक रास्ता बनाया है, लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी जगह आप उससे निकल जाएं"।  युवक ने चिट्ठी के ब

मैडम भीकाजी कामा जी

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मैडम भीकाजी कामा  ~~~~~~~~~~~~ 🇮🇳🇮🇳तिरंगे की प्रथम  #निर्माता_भीकाजी_कामा*🇮🇳🇮🇳 ****जयन्ती***  ******24 सितम्बर, 1861******  🇮🇳🇮🇳🇮🇳 आज स्वतन्त्र भारत के झण्डे के रूप में जिस तिरंगे को हम प्राणों से भी अधिक सम्मान देते हैं, उसका पहला रूप बनाने और उसे जर्मनी में फहराने का श्रेय जिस स्वतन्त्रता सेनानी को है, उन मादाम भीकाजी रुस्तम कामा का जन्म मुम्बई के एक पारसी परिवार में 24 सितम्बर, 1861 को हुआ था। उनके पिता सोराबजी फ्रामजी मुम्बई के सम्पन्न व्यापारी थे। भीकाजी में बचपन से ही देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी।  1885 में भीकाजी का विवाह रुस्तमजी कामा के साथ हुआ; पर यह विवाह सुखद नहीं रहा। रुस्तमजी अंग्रेज शासन को भारत के विकास के लिए वरदान मानते थे, जबकि भीकाजी उसे हटाने के लिए प्रयासरत थीं। 1896 में मुम्बई में भारी हैजा फैला। भीकाजी अपने साथियों के साथ हैजाग्रस्त बस्तियों में जाकर सेवाकार्य में जुट गयीं। उनके पति को यह पसन्द नहीं आया। उनकी रुचि सामाजिक कार्यों में बिल्कुल नहीं थी। मतभेद बढ़ने पर मादाम कामा ने उनका घर सदा के लिए छोड़ दिया।  अत्यधिक परिश्रम के का

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी

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*प्रेरक संस्मरण* पंडित दीनदयाल उपाध्याय : *एकात्म मानववाद के प्रणेता* ~~~~~~~~~~~~~~~ किसी ने सच ही कहा है कि कुछ लोग सिर्फ समाज बदलने के लिए जन्म लेते हैं और समाज का भला करते हुए ही खुशी से मौत को गले लगा लेते हैं । उन्हीं में से एक हैं पं. दीनदयाल उपाध्याय जी, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी समाज के लोगों को ही समर्पित कर दी । *पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के बचपन की कहानी* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कहते हैं कि जो व्यक्ति प्रतिभाशाली होता है, उसने बचपन से प्रतिभा का अर्थ समझा होता है और उनके बचपन के कुछ किस्से ऐसे होते हैं जो उन्हें प्रतिभाशाली बना देते हैं । उनमें से एक हैं पं. दीनदयाल उपाध्याय जी, जिन्होंने अपने बचपन से ही जिन्दगी के महत्व को समझा और अपनी जिन्दगी में समय बर्बाद करने की अपेक्षा समाज के लिए नेक कार्य करने में समय व्यतीत किया । पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को ब्रज के मथुरा ज़िले के छोटे से गांव, जिसका नाम “नगला चंद्रभान” था, में हुआ था । पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का बचपन घनी परेशानियों के बीच बीता । पं. दीनदयाल जी के पिता का नाम ‘श्री भगवती

हाइफा दिवस

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हाइफा दिवस ~~~~~~~ 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 #हाइफा_दिबस 💐💐💐 #हाइफा_का_युद्ध: जिसका अहसान आज भी इजरायल मानता है.. आज बेशक हमारे अपने ही देश में राजनैतिक षड्यंत्रों को चलते हमारे अद्वित्य इतिहास को झुठलाने की कोशिशें की जा रही हों, हमें हाशिये पे धकेलने के प्रयत्न किए जा रहे हों, लेकिन हमारा डी.एन.ए. हमेशा वीरता से लड़ने, जीतने और सबकी रक्षा करने का रहा है और इसे विदेशी आज भी स्वीकार करते हैं। प्रथम विश्व युद्ध की जिसमे जोधपुर रियासत की सेना ने भी हिस्सा लिया। इतिहास में इस लड़ाई को हाइफा की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। हाइफा की लड़ाई 23 सितंबर 1918 को लड़ी गयी। इस लड़ाई में राजपूताने की सेना का नेतृत्व जोधपुर रियासत के सेनापति #सेनापति_दलपत_सिंह_शेखावत ने किया। ऑटोमन्स सेना के सामने जब अंग्रेजो की सारी कोशिश नाकाम हो गयी, तब उन्हें दुनिया की सबसे बेहतरीन घुड़सवार भारतीय योद्धाओं की याद आयी, फिर उन्होंने जोधपुर रियासत की सेना को हाइफा पर कब्जा करने के कहा, संदेश मिलते ही जोध

राव तुलाराम सिंह जी

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राव तुलाराम सिंह जी  ~~~~~~~~~~~ भारत की आजादी के लिए दर-दर भटकता एक महानायक ..... 🌺🌹🥀🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🌹🥀🙏🌻🌷💐 9 दिसम्बर 1825 को जन्में राव तुलाराम जी का 23 सितंबर को हरियाणा राज्य वीर शहीद दिवस मनाता है क्योंकि 1863 मे इसी दिन राव तुला राम की मृत्यु हुई थी। हवाई मार्ग से दिल्ली आने और जाने वाले जिस सड़क का इस्तेमाल करते हैं उसका नाम है राव तुला राम मार्ग। शांति पथ से आगे बढ़ते हुए जैसे ही आप आरकेपुरम के ट्रैफिक-सिग्नल को पार करते हैं, राव तुला राम मार्ग शुरू हो जाता है, जो इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास से होते हुए गुरुग्राम (गुडगांव) की ओर बढ़ जाता है और दिल्ली-अजमेर एक्सप्रेसवे से जुड़ जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि दुनियाभर से दिल्ली आने वाले और दिल्ली से दुनिया भर में जाने वाले बिना राव तुला राम मार्ग पर आए अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सकते। लेकिन भागती-दौड़ती जिंदगी में शायद ही कभी आप यह जानने की कोशिश करते होंगे कि आखिर राव तुला राम थे कौन?   हरियाणा का वीर शहीद ~~~~~~~~~~~~

वीरांगना कनकलता बरुआ जी

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वीरांगना कनकलता बरुआ जी ~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🥀🌹🙏🌻🌼💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🌹🙏🌻🌼💐 तिरंगे के लिए छोटी सी उम्र में शहीद होनेवाली क्रांतिकारी.... इस लेख के माध्यम से मैं उसी भूली-बिसरी एक वीरांगना के बारे में बताने जा रही हूँ। वैसे तो अनेक स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान हमारी अमिट स्वतंत्रता की नींव का एक पत्थर है। उन्हीं में से एक थीं कनकलता बरुआ। देश में चौतरफा आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। स्वतंत्रता दिवस एक ऐसा अवसर होता है जब हम अपने उन लोगों को याद करते हैं जिनके दम पर हमें यह आज़ादी मिली, जिन्होंने हमें गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करवाया। इस मौके पर हमारे जहन में कई वीरों के नाम आने लगते हैं। उनमें सबसे कम उम्र के वीरों में भगत सिंह का नाम पहले नंबर पर आता है। उसी तरह सबसे कम उम्र में देश के लिए बलिदान देनेवाली एक वीरांगना भी हैं जिनका नाम है कनकलता बरुआ। देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार हो जानेवाले लोगों की पंक्ति में अक्सर हमारे इतिहास ने वीरांगनाओ

अमर बलिदानी राजा शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह

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अमर शहीद राजा शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 18 सितम्बर- बलिदान दिवस पिता-पुत्र राजा शंकरशाह और रघुनाथ शाह. तोप से उड़ा देने से पहले बता कर गए- "युद्ध ही बचा पायेगा हमारा अस्तित्व" कितना सच है दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल .. इस गाने में कितनी सच्चाई है ये ऐसे वीरों की गौरवगाथा को जान कर और पढ़ कर ही समझा जा सकता है, जिन्होंने अपने रक्त से इस मिटटी को आत्मसात करते हुए अमरता प्राप्त की । उन कई वीर और अमर बलिदानियों में से पिता और पुत्र का आज बलिदान दिवस है जिनका रक्त लगा है, इस देश की आज़ादी में। ज्ञात हो कि 1857 ई0 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजिमेण्ट का कमाण्डर क्लार्क बहुत क्रूर था। वह छोटे राजाओं, जमीदारों एवं जनता को बहुत परेशान करता था। यह देखकर गोण्डवाना (वर्तमान जबलपुर) के राजा शंकरशाह ने उसके अत्याचारों का विरोध करने का निर्णय लिया। राजा एवं राजकुमार दोनों अच्छे कवि थे। उन

लांस नायक करम सिंह जी

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लांस नायक करम सिंह जी ~~~~~~~~~~~~~ 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 भारतीय सेना में लांस नायक एवं परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले प्रथम जीवित अधिकारी लांस नायक करम सिंह (बाद में सूबेदार एवं मानद कैप्टन) (15 सितम्बर 1915 - 20 जनवरी 1993), परमवीर चक्रप्राप्त करने वाले प्रथम जीवित भारतीय सैनिक थे। श्री करम सिंह जी 1941 में सेना में शामिल हुए थे और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा की ओर से भाग लिया था, जिसमे उल्लेखनीय योगदान के कारण उन्हें ब्रिटिश भारत द्वारा मिलिट्री मैडल (एमएम) दिया गया। उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 में भी लड़ा था, जिसमे टिथवाल के दक्षिण में स्थित रीछमार गली में एक अग्रेषित्त पोस्ट को बचाने में उनकी सराहनीय भूमिका के लिए सन 1948 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। सूबेदार एवं मानद कैप्टन करम सिंह परम वीर चक्र, सेना पदक जन्म : 15 सितम्बर 1915  सेहना, बरनाला, पंजाब, भारत देहांत : 20 जनवरी 1993 (उम्र 77) भारतीय सेना सेवा : वर्ष 1941–1969 उपाधि : लांस नायक बाद में मानद क

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन जी

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन (१८ जून १९३१-१५ सितंबर २०१२) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पाँचवें सरसंघचालक थे। मार्च २००९ में श्री मोहन भागवत को छठवाँ सरसंघचालक नियुक्त कर स्वेच्छा से पदमुक्त हो गये। 15 सितम्बर 2012 को अपने जन्मस्थान रायपुर में 81 वर्ष की अवस्था में इनका निधन हो गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री के० सी० सुदर्शन जी मूलतः तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) ग्राम के निवासी थे। कन्नड़ परम्परा में सबसे पहले गांव, फिर पिता और फिर अपना नाम बोलते हैं। उनके पिता श्री सीतारामैया वन-विभाग की नौकरी के कारण अधिकांश समय मध्यप्रदेश में ही रहे और वहीं रायपुर (वर्तमान छत्तीसगढ़) में १८ जून, १९३१ को श्री सुदर्शन जी का जन्म हुआ। तीन भाई और एक बहन वाले परिवार में सुदर्शन जी सबसे बड़े थे। रायपुर, दमोह, मंडला तथा चन्द्रपुर में प्रारम्भिक शिक्षा पाकर उन्होंने जबलपुर (सागर विश्वविद्यालय) से १९५४ में दूरसंचार विषय में बी.ई की उ

डॉ० मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जी

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डॉ० मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जी ~~~~~~~~~~~~~~~ भारत रत्न से सम्मानित सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की आज 162वीं जयंती है। उन्हीं की याद में भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे (अभियंता दिवस) मनाया जाता है। विश्वेश्वरैया शिक्षा की महत्ता को भलीभांति समझते थे। लोगों की गरीबी व कठिनाइयों का मुख्य कारण वह अशिक्षा को मानते थे। वह किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने में विश्वास करते थे। यही कारण है कि उन्हें देश के एक महान इंजीनियर के तौर पर जाना जाता है।  विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर, 1861 को एक तेलुगु परिवार में हुआ था। वह 100 वर्षों से अधिक जीवित रहे थे और अंत तक सक्रिय जीवन ही व्यतीत किया था। उनसे जुड़ा एक किस्सा काफी मशहूर है कि एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, 'आपके चिर यौवन (दीर्घायु) का रहस्य क्या है?' तब डॉ. विश्वेश्वरैया ने उत्तर दिया, 'जब बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है और वह निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात

शहीद राइफ़लमैन रवि कुमार जी

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शहीद राइफ़लमैन रवि कुमार जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ राजोरी मुठभेड़: सेना के जवान रवि कुमार आतंकी से लोहा लेते शहीद, किश्तवाड़ में हुआ अंतिम संस्कार राजोरी में आतंकियों से लोहा लेते हुए राइलमेन रवि कुमार ने वीरगति को प्राप्त किया। बुधवार सुबह रजोरी में शहीद जवान रवि कुमार जी को श्रद्धांजलि देने के लिए पुष्पांजलि समारोह आयोजित किया गया। राजोरी में आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच हुई मुठभेड़ में सेना के जवान रवि कुमार जी बलिदान हो गए। इसमें मुठभेड़ में दो आतंकी को मारे गए हैं। इसके अलावा Jammu and Kashmir के Anantnag जिले में 13 सितंबर को सुरक्षा बलों की आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में कर्नल मनप्रीत सिंह जी, मेजर आशीष धोनौक जी और जम्मू-कश्मीर के DSP हुमायूं भट्ट जी वीरगति को प्राप्त हुए। एक एसपीओ सहित तीन घायल भी हुए हैं। इस ऑपरेशन के दौरान आर्मी डॉग की भी जान गई है। शहीद राइफलमैन रवि कुमार सेना के 63 आरआर में शामिल थे। वह जम्मू संभाग के किश्तवाड़ जिले के रहने वाले थे। उनका जन्म 22 फरवरी 1997 को हुआ था। मंगलवार को राजोरी में आतंकियों से लोहा लेते हुए उन्होंने वीरगति को प्राप्त

भारतीय सेना की '21 डॉग यूनिट' की छह वर्षीय मादा लैब्राडोर 'केंट'

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भारतीय सेना की '21 डॉग यूनिट' की छह वर्षीय मादा लैब्राडोर 'केंट' जम्मू और कश्मीर: चरमपंथी हमले में मारे गए भारतीय सेना के कुत्ते केंट की कहानी.... मंगलवार को राजौरी ज़िले के नारला इलाके में चरमपंथियों के साथ हुई मुठभेड़ के दौरान अपने संचालक को पाकिस्तानी समर्थक चरमपंथियों से बचाते हुए केंट की मौत हो गई थी। केंट दरअसल में चरमपंथियों की तलाश कर रही सैनिकों की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रही थी और इसी दौरान चरमपंथियों की गोलीबारी में उसकी मौत हुई। इसके बारे में रक्षा मंत्रालय के जम्मू स्थित प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल सुनील बर्तवाल ने बताया, "भारतीय सेना की '21 आर्मी डॉग यूनिट' की ट्रैकर डॉग केंट राजौरी में ऑपरेशन सुजालिगला में सबसे आगे थी। भाग रहे चरमपंथियों की तलाश में सैनिकों की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रही थी और पीछा करने के दौरान, यह भारी गोलीबारी की चपेट में आ गई। अपने हैंडलर (संचालक) की रक्षा करते हुए उसने भारतीय सेना की सर्वोत्तम परंपराओं का पालन करते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया।" केंट के अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में सेना के जवान शा

शहीद DSP हुमायूं भट्ट जी

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शहीद DSP हुमायूं भट्ट जी ~~~~~~~~~~~~~~ Anantnag attack: 2 महीने की बेटी के पिता DSP हुमायूं भट्ट नहीं रहे, पिता IG रहे हैं... Jammu and Kashmir के Anantnag जिले में 13 सितंबर को सुरक्षा बलों की आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई, इसमें कर्नल मनप्रीत सिंह जी, मेजर आशीष धोनौक जी और जम्मू-कश्मीर के DSP हुमायूं भट्ट जी वीरगति को प्राप्त हुए। जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ (Anantnag terrorist attack) में सुरक्षा बलों के 3 अधिकारियों की मौत हो गई। 13 सितंबर की देर रात अनंतनाग (Anantnag) जिले के कोकेरनाग इलाके में ये मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में कर्नल मनप्रीत सिंह (Colonel Manpreet Singh) जी, मेजर आशीष धोनौक (Major Ashish Dhonauk) जी और जम्मू-कश्मीर पुलिस के उपाधीक्षक हुमायूं मुज़म्मिल भट्ट (DSP Humayun Bhatt) जी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उन्हें तुरंत श्रीनगर एयरलिफ्ट किया गया, लेकिन यहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। न्यूज़ एजेंसी PTI के मुताबिक, DSP हुमायूं भट्ट जी की हाल ही में शादी हुई थी। उनकी 2 महीने की बेटी भी है। पुलिस महानिदेशक (DGP)

शहीद मेजर आशीष धौंचक जी

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शहीद मेजर आशीष धौंचक जी ~~~~~~~~~~~~~~~~ लगभग छह महीने बाद अपनी पत्नी और छोटी बच्ची से मिलने वाले थे मेजर आशीष धौंचक (Major Ashish Dhonchak) जी। चंद दिनों की छुट्टी मिली थी, प्लान ढेर सारे बनाए थे। अपने जन्मदिन पर नए वाले घर का गृह प्रवेश करना था।  परिवार के साथ मिलकर जागरण भी कराना था. प्लान था ड्यूटी से ब्रेक लेकर घरवालों के साथ अच्छा समय बिताएंगे। फोन पर कहा भी था- "दुश्मनों को निपटा कर लौटूंगा, सब खुशियां मनाएंगे", लेकिन 13 सितंबर को कश्मीर में एक सर्च ऑपरेशन के दौरान आतंकियों के साथ मुठभेड़ में मेजर आशीष धौंचक शहीद हो गए। मेजर आशीष जी सिख लाइट इन्फेंट्री से थे और फिलहाल 19 राष्ट्रीय राइफल्स में कंपनी कमांडर की पोस्ट पर तैनात थे। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, दो साल पहले ही उनकी जम्मू-कश्मीर में पोस्टिंग हुई थी। इस साल 15 अगस्त को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी ने उन्हें बहादुरी के लिए सेना मेडल दिया था। 36 साल के मेजर आशीष जी हरियाणा के पानीपत में बिंझौल गांव के रहने वाले थे। केंद्रीय विद्यालय से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने बरवाला के कॉलेज से इल

शहीद कर्नल मनप्रीत सिंह जी

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शहीद कर्नल मनप्रीत सिंह जी ~~~~~~~~~~~~~~~ Jammu-Kashmir का अनंतनाग जिला (Anantnag Encounter), यहां एक तहसील है कोकेरनाग, एक ऊंचा इलाका है। भारतीय सेना के जवानों के लिए यहां गश्त आसान नहीं होती। फिर भी मुस्तैदी जरूरी है। 12 सितंबर के रोज, कोकेनाग के हलूरा गंडूल इलाके में 2 से 3 आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिली। तत्काल सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक संयुक्त टीम बनाई गई। सेना की यूनिट को लीड कर रहे थे 19 राष्ट्रीय राइफल्स (RR) बटालियन में तैनात कर्नल मनप्रीत सिंह (Manpreet Singh) जी। शाम को सर्च ऑपरेशन शुरू हुआ। रात में बंद कर दिया गया। 13 सितंबर को ऑपरेशन दोबारा शुरू हुआ। जिस इलाके में पाकिस्तान समर्थक आतंकियों के छिपे होने की सूचना थी, टीमें उसी तरफ बढ़ने लगीं। इसी बीच उधर से ताबड़तोड़ गोलियां चलने लगीं। मुठभेड़ शुरू हो चुकी थी। कुछ देर बाद खबर आई कि सेना के एक अधिकारी और जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक DSP को गोली लगी है। उन्हें एयरलिफ्ट कर इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया है और शाम तक खबर आई कि भारतीय सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धौंचक और जम्मू-कश्मीर पुलिस में डिप्ट