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Showing posts from November, 2019

राजीव दीक्षित

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राजीव दीक्षित ~~~~~~~       राजीव दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1967 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के नाह गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम राजीव राधाशम दीक्षित था। उन्होनें फिरोजाबाद जिले में गांव पी.डी. जैन इंटर कॉलेज में 12 वीं कक्षा तक शिक्षा ली। उसके बाद उन्होंने 1984 में के.के.एम. कालेज, जामूई, बिहार से इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार में बी.टेक की डिग्री के लिये दाखिला लिया। लेकिन उनकी मातृभूमि के लिए उनके जुनून ने उन्हें “राष्ट्र धर्म” के कारण सेवारत भारतीय संस्कृति और स्वदेशी आंदोलन के लिए उन्होनें उसे बीच में ही छोड़ दीया। उन्होंने 1991 में आजादी बचाओ आंदोलन शुरू किया। वह एक ब्रह्मचारी थे। 1999 में वह भारत स्वाभिमान ट्रस्ट में सचिव के रूप में काम कर रहे थे और पंतजलि योग पिठ हरिद्वार में बाबा रामदेव के साथ काम कर रहे थे। वह चंद्रशेखर आजाद, उधम सिंह और भगत सिंह जैसे भारतीय क्रांतिकारियों की विचारधाराओं से प्रभावित थे। जीवन में, उन्होंने महात्मा गांधी के शुरुआती कार्यों की सराहना की। उनका जीवन भी शराब और “गुटखा” उत्पादन, गाय-कोमलता और सामाजिक अन्यायों को रोकना जैसे कारणों के

गऊ माता - भारत माता

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गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं । 2. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं । 3. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है । 4. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है । 5. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते । 6. गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है । 7. गौ माता कि एक आंख में सुर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है । 8. गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है। 9. गौ माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है । 10. गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है , उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजा

कोटली के अमर बलिदानी स्वयंसेवक

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27 नवम्बर / इतिहास स्मृति – कोटली के अमर बलिदानी स्वयंसेवक ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ नई दिल्ली. ‘हंस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान’ की पूर्ति के लिए नवनिर्मित पाकिस्तान ने वर्ष 1947 में ही कश्मीर पर हमला कर दिया था. देश रक्षा के दीवाने संघ के स्वयंसेवकों ने उनका प्रबल प्रतिकार किया. उन्होंने भारतीय सेना, शासन तथा जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह को इन षड्यन्त्रों की समय पर सूचना दी. इस गाथा का एक अमर अध्याय 27 नवम्बर, 1948 को कोटली में लिखा गया, जो इस समय पाक अधिकृत कश्मीर में है. युद्ध के समय भारतीय वायुयानों द्वारा फेंकी गयी गोला-बारूद की कुछ पेटियां शत्रु सेना क्षेत्र में जा गिरीं थीं. उन्हें उठाकर लाने में बहुत जोखिम था. वहां नियुक्त कमांडर अपने सैनिकों को गंवाना नहीं चाहते थे, अतः उन्होंने संघ कार्यालय में सम्पर्क किया. उन दिनों स्थानीय पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधक चंद्रप्रकाश जी कोटली में नगर कार्यवाह थे. उन्होंने कमांडर से पूछा कि कितने जवान चाहिए ? कमांडर ने कहा – आठ से काम चल जाएगा. चंद्रप्रकाश जी ने कहा – एक तो मैं हूं, बाकी सात को लेकर आधे घंटे

संविधान दिवस 50वां एपिसोड मन की बात

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"मन की बात" 50वां एपिसोड दिनांक : 25-11-2018 हमारे महान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा संविधान दिवस के बारे की गई उनके 'मन की बात' ..... मेरे प्यारे देशवासियो,  नमस्कार | 3 अक्टूबर, 2014 विजयादशमी का पावन पर्व | ‘मन की बात’ के माध्यम से हम सबने एक साथ, एक यात्रा का प्रारम्भ किया था | ‘मन की बात’, इस यात्रा के आज 50 एपिसोड पूरे हो गए हैं | इस तरह आज ये Golden Jubilee Episode स्वर्णिम एपिसोड है | इस बार आपके जो पत्र और फ़ोन आये हैं, अधिकतर वे इस 50 एपिसोड के सन्दर्भ में ही हैं | हाँ, कल ‘संविधान दिवस’ है | उन महान विभूतियों को याद करने का दिन जिन्होंने हमारा संविधान बनाया | 26 नवम्बर, 1949 को हमारे संविधान को अपनाया गया था | संविधान draft करने के इस ऐतिहासिक कार्य को पूरा करने में संविधान सभा को 2 वर्ष, 11 महीने और 17 दिन लगे | कल्पना कीजिये 3 वर्ष के भीतर ही इन महान विभूतियों ने हमें इतना व्यापक और विस्तृत संविधान दिया | इन्होंने जिस असाधारण गति से संविधान का निर्माण किया वो आज भी time management और productivity का एक उदाहरण है | ये हमें भी अपने

संविधान दिवस

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संविधान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ! संविधान समाज,राष्ट्र की सभी व्यवस्थाओं को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करने का सबसे प्रभावशाली स्रोत है। संविधान का पालन करना हम सबका प्राथमिक दायित्व है। *संविधान की प्रस्तावना* हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :- न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा, उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए, दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।" भारतीय संविधान का मूल अर्थ इन्हीं पंक्तियों में सम्मिलित है। #VijetaMalikBJP

26/11 जरा याद करो कुर्बानी

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😢 26/11 😢 💐💐💐💐💐 आज 26/11 मुंबई हमले के 11साल 😞 आज हम उन सभी शहीदों को याद करके उन सभी अमर शहीदों को नमन करते हैं 🌺🌺🌺 🌼🌼🌼🌼 आज फिर याद जहन में 26/11 का मंजर आया, करने छलनी सीना सरहद पार से खंजर आया । बीती थी इक सुहानी रात नव प्रभात फूटा था, मुंबई की उस सुबह को वहसी- दरिंदों ने लूटा था । बे-गुनाह निहत्थे लोगों पर पिशाचो ने वार किया , हेमंत,सलास्कर, आप्टे जैसे सपूतों को मार दिया । लहू उबल जाता है, दिल भी भर आता है ?…. इतने बड़े देश में कोई कैसे ये कर जाता है । कितने दिनों तक प्रेम निमन्त्रण इनको बांटे जायेंगे, कब तक? ये हत्यारे हिंदुस्तान की बिरयानी खायेंगे? सदा न्याय मिले सबको, कोई कब क्या कहता है, इस दरिन्दे [कसाब} की खातिर क्या कोई सबूत रहता है । वक्त आ गया है इन दुष्टों की जड़ को खत्म करो, बन भस्मासुर इनके शिविरों को बमों से भस्म करो । तब तक ये कुत्ते की ”पाक-पूंछ ”नही कभी सीधी होगी, जब तक नही ”ब्रह्मोस ”की जद में पूरी पाक परिधि होगी । ”हमारा ” नमन उन शहीदों को जो देश पर कुर्बान गए, अब भी जागो देशवासियों यह करते वो आह्वान गए …!! दोस्तों,

तुकाराम गोपाल ओंबले

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तुकाराम गोपाल ओंबले ~~~~~~~~~~~~ 26/11 के अमर शहीद शरीर से आर-पार हो रही थी गोलियां, तुकाराम ने फिर भी नहीं छोड़ी कसाब की गर्दन..... उम्र यही कुछ 53-54 के आस-पास, खाता-पीता शरीर और लंबाई यही होगी कुछ 5 फीट 6 इंच के आस-पास। ताऱीख थी- 26 नवंबर 2008, पूरे शहर में आंतक मचा हुआ था। पता था कि अभी पूरे शहर में सब कुछ काफी खराब चल रहा है। लोग डरे हुए हैं, अभी यही सब दिमाग में चल रहा था कि अचानक वायरलेस पर अनाउंसमेंट हुआ कि एक सिल्वर कलर की स्कोडा जा रही है, उसे किसी भी कीमत पर रोकना है। ऑर्डर मिलते ही मुंबई पुलिस का ये एएसआई चौकन्ना हो गया और अपनी पूरी टीम को अटेंशन मोड पर कर दिया। रोड पर खड़ी हुई सभी गाड़ियों को निकाल कर बैरीकेडिंग करने के लिए कहा गया, ताकि वो सिल्वर कलर की स्कोडा हाथ से निकल न जाए जिसके लिए अनाउंसमेंट की गई थी। थोड़ी ही देर हुई कि एएसआई साहब ने आवाज़ लगाई कि सर, स्कोडा लग रही है बैरिकेड लगाओ। गाड़ी आई और बेरिकेडिंग देखकर खड़ी हो गई। पूरी सड़क पर सिर्फ पुलिस की गाड़ियां और वो सिल्वर कलर की स्कोडा ही थी। आवाज़ों की बात करें तो वहां सिर्फ मुंबई पुलिस क

धर्मरक्षक स्वामी सत्यानन्द सरस्वती जी

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धर्मरक्षक स्वामी सत्यानन्द सरस्वती जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ *शत्-शत् नमन 24 नवम्बर/पुण्य-तिथि, केरल में धर्मरक्षक स्वामी सत्यानन्द सरस्वती* केरल भारत का ऐसा तटवर्ती राज्य है, जहाँ मुसलमान, ईसाई तथा कम्युनिस्ट मिलकर हिन्दू अस्मिता को मिटाने हेतु प्रयासरत हैं। यद्यपि वहाँ के हिन्दुओं में धर्म भावना असीम है, पर संगठन न होने के कारण उन्हें अपमान झेलना पड़ता है। जातिगत भेदभाव की अत्यधिक प्रबलता के कारण एक बार स्वामी विवेकानन्द ने केरल को पागलखाना कहा था। इसके बाद भी अनेक साधु सन्त वहाँ हिन्दू समाज के स्वाभिमान को जगाने में सक्रिय हैं। 25 सितम्बर, 1933 को तिरुअनन्तपुरम् के अण्डुरकोणम् ग्राम में जन्मे स्वामी सत्यानन्द उनमें से ही एक थे। उनका नाम पहले शेखरन् पिल्लै था। शिक्षा पूर्ण कर वे माधव विलासम् हाई स्कूल में पढ़ाने लगे। 1965 में उनका सम्पर्क रामदास आश्रम से हुआ और फिर वे उसी के होकर रह गये। आगे चलकर उन्होंने संन्यास लिया और उनका नाम स्वामी सत्यानन्द सरस्वती हुआ। केरल में ‘हिन्दू ऐक्य वेदी’ नामक संगठन के अध्यक्ष के नाते स्वामी जी अपने प्रखर भाषणों से जन जागरण का कार्य सदा करते रहे

गुरु तेगबहादुर सिंह जी

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गुरु तेग़ बहादुर सिंह ~~~~~~~~~~ पूरा नाम    : गुरु तेग़ बहादुर सिंह जन्म         : 18 अप्रैल, 1621 जन्म भूमि  : अमृतसर, पंजाब मृत्यु          : 24 नवम्बर, 1675 मृत्यु स्थान  : चांदनी चौक, नई दिल्ली अभिभावक : गुरु हरगोविंद सिंह और माता नानकी पत्नी          : माता गुजरी संतान         : गुरु गोविन्द सिंह उपाधि        : सिक्खों के नौवें गुरु नागरिकता   : भारतीय गुरु तेग़ बहादुर सिंह जी (जन्म: 18 अप्रैल, 1621 ई.; मृत्यु: 24 नवम्बर, 1675 ई.) सिक्खों के नौवें गुरु थे। विश्व के इतिहास में धर्म एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में इनका अद्वितीय स्थान है। तेग़ बहादुर जी के बलिदान से हिंदुओं व हिन्दू धर्म की रक्षा हुई। हिन्दू धर्म के लोग भी उन्हें याद करते और उनसे संबंधित कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। तेग़ बहादुर सिंह 20 मार्च, 1664 को सिक्खों के गुरु नियुक्त हुए थे और 24 नवंबर, 1675 तक गद्दी पर आसीन रहे। जीवन परिचय :- ~~~~~~~~ गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। ये गुरु हरगोविन्द जी के पाँचवें पुत्र थे। आठवें गुरु इनके

राव बहादुर सर छोटूराम

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राव बहादुर सर छोटूराम ~~~~~~~~~~~~~ जन्म : 24 नवम्बर 1881 रोहतक जिला , हरयाणा मृत्यु : 9 जनवरी 1945 (उम्र 63) लहौर, पंजाब, ब्रिटिश इंडिया राजनैतिक पार्टी : यूनियनिस्ट पार्टी विद्या : अर्जनसेंट स्टीफन कालेज धर्म : हिन्दू वेबसाइट : www.sirchhoturam.com सर छोटूराम का जन्म २४नवम्बर १८८१ में रोहतक के छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था। अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे इसलिए सारे परिवार के लोग इन्हें छोटू कहकर पुकारते थे। स्कूल रजिस्टर में भी इनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादाश्री रामरत्‍न के पास 10 एकड़ बंजर व बारानी जमीन थी। छोटूराम जी के पिता श्री सुखीराम कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे। आरंभिक शिक्षा :- ~~~~~~~~~ जनवरी सन् १८९१ में छोटूराम ने अपने गांव से 12 मील की दूरी पर स्थित मिडिल स्कूल झज्जर में प्राइमरी शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद झज्जर छोड़कर उन्होंने क्रिश्‍चियन मिशन स्कूल दिल्ली में प्रवेश लिया। लेकिन फीस और शिक्षा का

डॉ जगदीश चन्द्र बोस

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डॉ जगदीश चंद्र बोस ~~~~~~~~~~~ जिन्हें कहा जाता है "फादर आॅफ रेडियो साइंस" भारत के पहले आधुनिक वैज्ञानिक कहे जाने वाले जगदीश चंद्र बोस की आज जयंती है। रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की दुनिया में इनका एक अहम योगदान रहा है। आइए जानें इस महान वैज्ञानिक के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें..... सर जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवंबर, 1858 काे बंगाल के मेमनसिंह में हुआ था। अब यह जगह बांग्लादेश में है। आधिकारिक वेबसाइट ब्रिटानिकाडाॅटकाॅम के अनुसार इनका परिवार  भारतीय परंपराओं और संस्कृति काे मानने वाला था। इनके पिता का मानना था कि बोस को अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषा का अध्ययन करने से पहले उन्हें अपनी मातृभाषा, बंगाली सीखनी चाहिए। बोस की बचपन से वनस्पति व भाैतिक विज्ञान में ज्यादा थी। प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर हुए इसके बाद में जगदीश चंद्र बोस ने कोलकाता में सेंट जेवियर्स स्कूल और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की डिग्री के हासिल की। फिर उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और प्राकृतिक विज्ञान में बीएससी कर 1884 में भारत लौट आए। इसके बाद जगद

वीरांगना झलकारी बाई

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वीरांगना झलकारी बाई ~~~~~~~~~~~~ "जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झांसी की झलकारी थी", इन्हें कहते हैं दूसरी रानी लक्ष्मीबाई..... देश के लिए मर-मिटने वाली झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का नाम हर किसी के दिल में बसा है। कोई अगर भुलाना भी चाहे तब भी भारत माँ की इस महान बेटी को नहीं भुला सकता। लेकिन रानी लक्ष्मी बाई के ही साथ देश की एक और बेटी थी, जिसके सर पर ना रानी का ताज था और ना ही सत्ता पर। फिर भी अपनी मिट्टी के लिए वह जी-जान से लड़ी और इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ गयी। वह वीरांगना, जिसने न केवल 1857 की क्रांति में भाग लिया बल्कि अपने देशवासियों और अपनी रानी की रक्षा के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की! वो थी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की परछाई बन अंग्रेजों से लोहा लेने वाली, वीरांगना झलकारी बाई। झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को उत्तर प्रदेश के झांसी के पास के भोजला गाँव में एक कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी। उनके पिता ने उन्हें ए

नायक जदुनाथ सिंह

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नायक जदुनाथ सिंह ~~~~~~~~~~~ पाकिस्तानी सैनिकों को भारत से खदेड़ने वाले परमवीर सिपाही ..... ★परमवीर चक्र विजेता★ वतन पर मिट जाने वाले अमर शहीद नौजवान !    आपकी हर साँस का कर्ज़दार है हिन्दुस्तान !! उपरोक्त ये पक्तियां हमारे देश के उन वीर जवानों को समर्पित हैं, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दीं। आज हम उन्हीं वीर सिपाहियों की वजह से अपने देश मे चैन की साँस ले रहे हैं। बहरहाल, 1947 में अंग्रेजों ने गुलाम भारत को आज़ाद करने का फैसला लिया। देश आज़ाद तो हुआ, मगर उसके दो टुकड़े हो चुके थे। बटवारें के बाद पाकिस्तान की नज़र पूरे कश्मीर पर थी. ऐसी परिस्थिति में हमारे देश के वीर सिपाहियों ने विरोधी पाकिस्तान से जमकर लोहा लिया था। उन्हीं वीर सपूतों में एक नाम नायक जदुनाथ सिंह का भी आता है। देश के इस वीर सिपाही ने ना सिर्फ अपनी मुठ्ठीभर टुकड़ी का कुशल नेतृत्व किया बल्कि अंत में पाकिस्तान के सैनिकों पर अकेले ही जमकर गोलियां बरसाई। इनके अदम्य साहस के सामने विरोधी पाकिस्तान को कई बार पीछे हटना पड़ा था, मगर अफ़सोस देश की रक्षा करते हुए सिपाही नायक जदुनाथ शहीद हो