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Showing posts from April, 2022

पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट

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पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट ★★★★★★★★★★★ पेशवा बाजीराव का परिचय :  ~~~~~~~~~~~~~~~ पेशवा बाजीराव का जन्म 18 अगस्त सन् 1700 को एक भट्ट परिवार में पिता बालाजी विश्वनाथ और माता राधाबाई के घर में हुआ था। उनके पिताजी छत्रपति शाहू के प्रथम पेशवा थे। बाजीराव का एक छोटा भाई भी था चिमाजी अप्पा। बाजीराव अपने पिताजी के साथ हमेशा सैन्य अभियानों में जाया करते थे।   पेशवा बाजीराव की पहली पत्नी का नाम काशीबाई था जिसके 3 पुत्र थे- बालाजी बाजी राव, रघुनाथ राव जिसकी बचपन में भी मृत्यु हो गई थी। पेशवा बाजीराव की दूसरी पत्नी का नाम था मस्तानी, जो छत्रसाल के राजा की बेटी थी। बाजीराव उनसे बहुत अधिक प्रेम करते थे और उनके लिए पुणे के पास एक महल भी बाजीराव ने बनवाया जिसका नाम उन्होंने 'मस्तानी महल' रखा। सन 1734 में बाजीराव और मस्तानी का एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णा राव रखा गया था।   पेशवा बाजीराव, जिन्हें बाजीराव प्रथम भी कहा जाता है, मराठा साम्राज्य के एक महान पेशवा थे। पेशवा का अर्थ होता है प्रधानमंत्री। वे मराठा छत्रपति राजा शाहू के 4थे प्रधानमंत्री थे। बाजीराव ने अपना प्रधानमं

योगेश चन्द्र चटर्जी

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क्रान्ति और सेवा के राही योगेश चन्द्र चटर्जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 22 अप्रैल/पुण्य-तिथि क्रान्तिवीर योगेश चन्द्र चटर्जी का जीवन देश को विदेशी दासता से मुक्त कराने की गौरवमय गाथा है। उनका जन्म अखंड भारत के ढाका जिले के ग्राम गोकाडिया, थाना लोहागंज में तथा लालन-पालन और शिक्षा कोमिल्ला में हुई। 1905 में बंग-भंग से जो आन्दोलन शुरू हुआ, योगेश दा उसमें जुड़ गये। पुलिन दा ने जब 'अनुशीलन पार्टी' बनायी, तो ये उसमें भी शामिल हो गये। उस समय इनकी अवस्था केवल दस वर्ष की थी। अनुशीलन पार्टी की सदस्यता बहुत ठोक बजाकर दी जाती थी; पर योगेश दा हर कसौटी पर खरे उतरे। 1916 में उन्हें पार्टी कार्यालय से गिरफ्तार कर कोलकाता के कुख्यात ‘नालन्दा हाउस’ में रखा गया। वहाँ बन्दियों पर अमानुषिक अत्याचार होते थे। योगेश दा ने भी यह सब सहा। 1919 में आम रिहाई के समय वे छूटे और बाहर आकर फिर पार्टी के काम में लग गये। अतः बंगाल शासन ने 1923 में इन्हें राज्य से निष्कासित कर दिया। 1925 में जब क्रान्तिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल ने अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे क्रान्तिकारियों को एक साथ और एक संस्था क

युवा बलिदानी अनन्त कान्हेरे

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युवा बलिदानी अनन्त कान्हेरे ~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 भारत माँ की कोख कभी सपूतों से खाली नहीं रही। ऐसे ही एक सपूत थे.... अनन्त लक्ष्मण कान्हेरे, जिन्होंने देश की स्वतन्त्रता के लिए केवल 19 साल की युवावस्था में ही फाँसी के फन्दे को चूम लिया था। महाराष्ट्र के नासिक नगर में उन दिनों जैक्सन नामक अंग्रेज जिलाधीश कार्यरत था। उसने मराठी और संस्कृत सीखकर अनेक लोगों को प्रभावित कर लिया था; पर उसके मन में भारत के प्रति घृणा भरी थी। वह नासिक के पवित्र रामकुंड में भी घोड़े पर चढ़कर घूमता था; पर भयवश कोई कुछ बोलता नहीं था। उन दिनों नासिक में वीर सावरकर की ‘अभिनव भारत’ नामक संस्था सक्रिय थी। लोकमान्य तिलक के प्रभाव के कारण गणेशोत्सव और शिवाजी जयन्ती आदि कार्यक्रम भी पूरे उत्साह से मनाये जाते थे। इन सबमें स्थानीय युवक बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। विजयादशमी पर नासिक के लोग नगर की सीमा से बाहर कालिका मन्दिर पर पूजा करने जाते थे। युवकों ने योजना बनायी कि सब लोग इस बार वन्देमातर

तात्या टोपे जी

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तात्या टोपे  ~~~~~~  पूरा नाम  – रामचंद्रराव पांडुरंगराव येवलकर जन्म     – सन 1814 जन्मस्थान – यवला (महाराष्ट्र) पिता     – पांडुरंग माता     – रुकमाबाई  तात्या टोपे का जन्म सन 1814 ई. में नासिक के निकट पटौदा ज़िले में येवला नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम पाण्डुरंग त्र्यम्बक भट्ट तथा माता का नाम रुक्मिणी बाई था। तात्या टोपे देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे थे। इनके पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के गृह-विभाग का काम देखते थे। उनके विषय में थोड़े बहुत तथ्य उस बयान से इकट्ठे किए जा सकते हैं, जो उन्होंने अपनी गिरफ़्तारी के बाद दिया और कुछ तथ्य तात्या के सौतेले भाई रामकृष्ण टोपे के उस बयान से इकट्ठे किए जा सकते हैं, जो उन्होंने 1862 ई. में बड़ौदा के सहायक रेजीडेंस के समक्ष दिया था। तात्या का वास्तविक नाम 'रामचंद्र पांडुरंग येवलकर' था। 'तात्या' मात्र उपनाम था। तात्या शब्द का प्रयोग अधिक प्यार के लिए होता था। टोपे भी उनका उपनाम ही था, जो उनके साथ ही चिपका रहा। क्योंकि उनका परिवार मूलतः नासिक के निकट पटौदा ज़िले में छोटे से गांव येवला में रहता था, इसलिए उनका उप

भारत रत्न डॉ बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर

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भारत रत्न डॉ बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी भारतीय संविधान के शिल्पकार और आज़ाद भारत के पहले न्याय मंत्री थे। वे प्रमुख कार्यकर्ता और सामाज सुधारक थे। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलितों के उत्थान और भारत में पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए अपना पूरे जीवन का परित्याग कर दिया। वे दलितों के मसीहा के रूप में मशहूर हैं। आज समाज में दलितों का जो स्थान मिला है। उसका पूरा श्रेय डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को जाता है। ”देश प्रेम में जिसने आराम को ठुकराया था गिरे हुए इंसान को स्वाभिमान सिखाया था जिसने हमको मुश्किलों से लड़ना सिखाया था इस आसमां पर ऐसा इक दीपक बाबा साहेब कहलाया था।” डॉ. भीमराव अम्बेडकर जीवनी ~~~~~~~~~~~~~~~~ नाम : डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर जन्म : 14 अप्रैल, 1891 (अम्बेडकर जयन्ती) जन्मस्थान : महू, इंदौर, मध्यप्रदेश पिता : रामजी मालोजी सकपाल माता : भीमाबाई मुबारदकर जीवनसाथी : पहला विवाह– रामाबाई अम्बेडकर (1906-1935) दूसरा विवाह– सविता अम्बेडकर (1948-1956) शिक्षा : एलफिंस्टन हाई स्कूल, बॉम्बे विश्वविद्यालय, 1915 में एम. ए.

राजकुमारी रत्नावती

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राजकुमारी रत्नावती ~~~~~~~~~~~ सदियों से भारत देश का  इतिहास स्वर्णिम रहा है जहाँ हमारे देश को “सोने की चिड़िया” कहा जाता था। वही इस देश के दामन पर दाग लगाने और इस भूमि पर अपना कब्ज़ा करने के उद्देश्य से ब्रिटिश से लेकर विदेशी लुटेरों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। जहाँ उन ताकतवर हमलावरों ने देश के कई राज्यों पर आक्रमण कर उनपर अपनी हुकूमत की, तो देश में कुछ महाराजा-महारानी ऐसे भी थे जिन्होंने उनके शासन के खिलाफ जंग छेड़ दी। इन विदेशी हमलावरों के खिलाफ आवाज़ उठाने वालो में सिर्फ देश के राजा-महाराजा ही नहीं बल्कि देश की वीरांगनाए भी आती थी। जिन्होंने अपने पराक्रम से विदेशी हमलावरों के दांत खट्टे करे। आज मैं आपको देश की ऐसी ही एक वीरांगना राजकुमारी के बारे में बताऊंगी, जिन्होंने अपने शौर्य से दुश्मनों के दांत खट्टे किये थे और अपना नाम इतिहास में सदेव के लिए अमर कर लिया। जैसलमेर नरेश महारावल रत्नसिंह ने जैसलमेर किले की रक्षा अपनी पुत्री राजकुमारी रत्नावती को सौंप दी थी। इसी दौरान दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन की सेना ने किले को घेर लिया जिसका सेनापति मलिक काफूर था। राजकुमारी रत्नावत

महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले

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ज्योतिराव गोविंदराव फुले ~~~~~~~~~~~~~ दलित उत्थान और महिला सशक्तिकरण के लिए सदैव समर्पित रहे महान समाज सेवक, दार्शनिक व सत्यशोधक समाज के संस्थापक महात्मा ज्योतिबा फुले की जयन्ती पर शत्-शत् नमन। 🙏🙏 ज्योतिराव गोविंदराव फुले (जन्म - ११ अप्रैल १८२७, मृत्यु - २८ नवम्बर १८९०), महात्मा फुले एवं ज्‍योतिबा फुले के नाम से प्रचलित 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। सितम्बर १८७३ में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाजनामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे।  ज्योतिराव गोविंदराव फुले ~~~~~~~~~~~~~ जन्म : 11 अप्रैल 1827 खानवाडी, पुणे, ब्रिटिश भारत (अब महाराष्ट्र में) मृत्यु : 28 नवम्बर 1890 (उम्र 63) पुणे, ब्रिटिश भारत अन्य नाम : महात्मा फुले/ज्योतिबा फुले/ ज्योतिराव फुले धार्मिक मान्यता : सत्य शोधक समाज जीवन साथी : सावित्रीबाई फुले युग१९वी सदीं  आरंभिक जीवन :- ~~~~~~~~~ महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में

तीसरे सिख गुरु अमरदास जी

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तीसरे सिख गुरु अमरदास जी ~~~~~~~~~~~~~~~ गुरु की सेवा साधु जाने, गुरु सेवा क्या मूढ पिछाने । गुरु सेवा सबहुन पर भारी, समझ करो सोई नर-नारी ।। आप सभी देशवासियों को परिवार सहित तीसरे सिख गुरु श्री गुरु अमरदास जी की जन्म जयन्ती पर हार्दिक बधाई व ढ़ेर सारी शुभकामनाएं! श्री गुरु अमरदास जी 62 वर्ष तक आत्मशांति की खोज में व्यथित रहे.! संयोगवश उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी तो वर्षों से अशांत मन तृप्त हो गया.! वह श्री गुरु अंगद देव जी के दरबार में पहुंचे और तन - मन से समर्पित हो गये.! श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु अमरदास जी को गुरुगद्दी सौंप दी.! गुरु जी श्री गोइंदवाल साहिब आकर रहने लगे.! उन्होंने सेवा को परमात्मा की शरण पाने का सबसे उत्तम मार्ग बतलाया.! श्री गुरु अमरदास जी ने धर्म को सामाजिक कार्यों से जोड़कर लंगर प्रथा को समानता व समरसता का माध्यम बनाया.! उन्होंने नियम बनाया कि प्रत्येक व्यक्ति को संगत में एक साथ बैठकर लंगर छकना होगा.! मुगल शासक अकबर जब उनके दर्शन करने आया तो उसे भी इस नियम का पालन करना पड़ा.! गुरु साहिब ने स्त्रियों को समाज में सम्मान दि

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी

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एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ *श्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 को ग्राम बाबई, जिला होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में श्री नन्दलाल एवं श्रीमती सुन्दराबाई के घर में हुआ था। उन पर अपनी माँ और घर के वैष्णव वातावरण का बहुत असर था। वे बहुत बुद्धिमान भी थे। एक बार सुनने पर ही कोई पाठ उन्हें याद हो जाता था। चैदह वर्ष की अवस्था में उनका विवाह हो गया। इस समय तक वे ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से कविताएँ व नाटक लिखने लगे थे।* 1906 में कांग्रेस के कोलकाता में सम्पन्न हुए अधिवेशन में माखनलाल जी ने पहली बार लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के दर्शन किये। अपने तरुण साथियों के साथ उनकी सुरक्षा करते हुए वे प्रयाग तक गये। तिलक जी के माध्यम से वे क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आये। महाराष्ट्र के क्रान्तिवीर सखाराम गणेश देउस्कर से दीक्षा लेकर उन्होंने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किये। फिर उन्होंने पिस्तौल चलाना भी सीखा। इसके बाद उनका रुझान पत्रकारिता की ओर हो गया। उन्होंने अनेक हिन्दी और मराठी के पत्रों में सम्पादन एवं लेखन का कार्य किया। इनमें कर्मवीर, प्र

वीरांगना झलकारी बाई

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वीरांगना झलकारी बाई ~~~~~~~~~~~~ "जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झांसी की झलकारी थी", इन्हें कहते हैं दूसरी रानी लक्ष्मीबाई..... देश के लिए मर-मिटने वाली झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का नाम हर किसी के दिल में बसा है। कोई अगर भुलाना भी चाहे तब भी भारत माँ की इस महान बेटी को नहीं भुला सकता। लेकिन रानी लक्ष्मी बाई के ही साथ देश की एक और बेटी थी, जिसके सर पर ना रानी का ताज था और ना ही सत्ता पर। फिर भी अपनी मिट्टी के लिए वह जी-जान से लड़ी और इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ गयी। वह वीरांगना, जिसने न केवल 1857 की क्रांति में भाग लिया बल्कि अपने देशवासियों और अपनी रानी की रक्षा के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की! वो थी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की परछाई बन अंग्रेजों से लोहा लेने वाली, वीरांगना झलकारी बाई। झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को उत्तर प्रदेश के झांसी के पास के भोजला गाँव में एक कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी। उनके पिता ने उन्हें एक पुत्