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Showing posts from September, 2020

शहीद भगत सिंह

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शहीद भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी ~~~~~~~~~~ तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... भगत सिंह (जन्म: 28 सितम्बर १९०७, मृत्यु: २३ मार्च १९३१) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके इस बलिदान को अश्रुपूरित नम आंखों से बड़ी ही गम्भीरता से याद रखा। भगत सिंह ~~~~~~ जन्म स्थल : गाँव बंगा, जिला यलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में) जटृ (जाट सिक्ख) मृत्यु स्थल : लाहौर जेल, पंजाब (अब पाकिस्तान में) आन्दोलन : भारतीय स्वतन्त

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी

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* प्रेरक संस्मरण * पंडित दीनदयाल उपाध्याय : * एकात्म मानववाद के प्रणेता * ~~~~~~~~~~~~~~~ किसी ने सच ही कहा है कि कुछ लोग सिर्फ समाज बदलने के लिए जन्म लेते हैं और समाज का भला करते हुए ही खुशी से मौत को गले लगा लेते हैं । उन्हीं में से एक हैं पं. दीनदयाल उपाध्याय जी, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी समाज के लोगों को ही समर्पित कर दी । * पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के बचपन की कहानी * ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कहते हैं कि जो व्यक्ति प्रतिभाशाली होता है, उसने बचपन से प्रतिभा का अर्थ समझा होता है और उनके बचपन के कुछ किस्से ऐसे होते हैं जो उन्हें प्रतिभाशाली बना देते हैं । उनमें से एक हैं पं. दीनदयाल उपाध्याय जी , जिन्होंने अपने बचपन से ही जिन्दगी के महत्व को समझा और अपनी जिन्दगी में समय बर्बाद करने की अपेक्षा समाज के लिए नेक कार्य करने में समय व्यतीत किया । पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को ब्रज के मथुरा ज़िले के छोटे से गांव, जिसका नाम “नगला चंद्रभान” था, में हुआ था । पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का बचपन घनी परेशानियों के बीच बीता । पं. दीनदयाल जी के पिता का नाम ‘श्री

मैडम भीकाजी कामा जी

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🇮🇳🇮🇳🇮🇳तिरंगे की प्रथम निर्माता मैडम भीकाजी कामा  🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *** पावन दिवस *** ******२४ सितंबर १८६१ *** 🇮🇳🇮🇳🇮🇳आज स्वतन्त्र भारत के झण्डे के रूप में जिस तिरंगे को हम प्राणों से भी अधिक सम्मान देते हैं, उसका पहला रूप बनाने और उसे जर्मनी में फहराने का श्रेय जिस स्वतन्त्रता सेनानी को है, उन मादाम भीकाजी रुस्तम कामा का जन्म मुम्बई के एक पारसी परिवार में 24 सितम्बर, 1861 को हुआ था। उनके पिता सोराबजी फ्रामजी मुम्बई के सम्पन्न व्यापारी थे। भीकाजी में बचपन से ही देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी। 1885 में भीकाजी का विवाह रुस्तमजी कामा के साथ हुआ; पर यह विवाह सुखद नहीं रहा। रुस्तमजी अंग्रेज शासन को भारत के विकास के लिए वरदान मानते थे, जबकि भीकाजी उसे हटाने के लिए प्रयासरत थीं। 1896 में मुम्बई में भारी हैजा फैला। भीकाजी अपने साथियों के साथ हैजाग्रस्त बस्तियों में जाकर सेवाकार्य में जुट गयीं। उनके पति को यह पसन्द नहीं आया। उनकी रुचि सामाजिक कार्यों में बिल्कुल नहीं थी। मतभेद बढ़ने पर मादाम कामा ने उनका घर सदा के लिए छोड़ दिया। अत्यधिक परिश्रम के कारण उनका स्वास्थ्य ब

राव तुलाराम जी

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राव तुलाराम ~~~~~~~ भारत की आजादी के लिए दर-दर भटकता एक महानायक ..... 9 दिसम्बर 1825 को जन्में राव तुलाराम जी का 23 सितंबर को हरियाणा राज्य वीर शहीद दिवस मनाता है क्योंकि 1863 मे इसी दिन राव तुला राम की मृत्यु हुई थी। हवाई मार्ग से दिल्ली आने और जाने वाले जिस सड़क का इस्तेमाल करते हैं उसका नाम है राव तुला राम मार्ग. शांति पथ से आगे बढ़ते हुए जैसे ही आप आरकेपुरम के ट्रैफिक-सिग्नल को पार करते हैं, राव तुला राम मार्ग शुरू हो जाता है, जो इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास से होते हुए गुरुग्राम (गुडगांव) की ओर बढ़ जाता है और दिल्ली-अजमेर एक्सप्रेसवे से जुड़ जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि दुनियाभर से दिल्ली आने वाले और दिल्ली से दुनिया भर में जाने वाले बिना राव तुला राम मार्ग पर आए अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सकते। लेकिन भागती-दौड़ती जिंदगी में शायद ही कभी आप यह जानने की कोशिश करते होंगे कि आखिर राव तुला राम थे कौन? हरियाणा का वीर शहीद ~~~~~~~~~~~~ हो सकता है कि आज इस नाम की अहमियत लोगों के लिए सिर्फ एक साइन-बोर्ड से ज्यादा न हो लेकिन रेवाड़ी, हरियाणा का यह सपूत 1857 की

रामधारी सिंह दिनकर जी

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क्रांतिकारी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ हिन्दी के प्रसिद्ध कवियों में से एक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को  सिमरिया नामक स्थान पे हुआ। इनकी मृत्यु 24 अप्रैल, 1974 को चेन्नई) में हुई । जीवन परिचय : हिन्दी के सुविख्यात कवि रामाधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं। दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे और दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनका देहावसान हो गया। परिणामत: दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालान-पोषण उनकी विधवा माता ने किया। दिनकर का बचपन और कैशोर्य देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांसों के झुरमुट, आमों के बगीचे और कांस के विस्तार थे। प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव दिनकर के मन में बस गया, पर शायद इसीलिए वास्तविक जीवन की कठोरताओं का भी अ

गुरु नानक देव की - सीख

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गुरु नानक देव जी ~~~~~~~~~~ गुरू नानक जी सिखों के प्रथम गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें गुरु नानक, गुरु नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। बाबा नानक जी के महाप्रयाण दिवस पर उन्हें शत-शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि🙏 मुर्दा खाने का हुक्म : ~~~~~~~~~~~ एक बार गुरु नानक देव जी ने अपने शिष्यों से मुर्दा खाने के लिए कहा। यह बात सुनकर सभी शिष्य हक्के-बक्के रह गए। वे सोचने लगे कि हम मुर्दा छू जाने पर भी नहाते हैं तो मुर्दा खाना तो बिल्कुल भी संभव नहीं है। एक भाई लहणा खड़े रहे, बाकी सब शिष्य वहां से चले गए क्योंकि मुर्दा खाना सभी को नामुमकिन हुक्म लगा था। लेकिन भाई लहणा को नहीं। जब वह मुर्दे के इर्द-गिर्द घूमने लगा तो गुरु साहिब ने उससे पूछा:-” यह तुम क्या कर रहे हो?” भाई लहणे ने उत्तर दिया:-” हुजूर ! मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि इस मुर्दे को किस तरफ से खाना शुरू करूं।” जब वह उस मुर्दे को खाने लगा तो देखा कि वहां कोई मुर्दा ही नहीं था, बल्कि मुर्दे की जगह उसके सामने गुरु का प्रसाद और मीठा हलवा रखा हुआ था। गुरु नानक देव जी ने उनको गुरु गद्दी का हकदार बना

ईमानदारी की सीख -गुरु नानक देव जी

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ईमानदारी की सीख  ~~~~~~~~~~~ ज्ञानवर्षावाहेगुरु गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरु थे। एक बार भ्रमण के दौरान वे सैदपुर पहुंचे। सारे शहर में ये बात फैल गई कि एक परम दिव्य महापुरुष शहर में पधारे हैं। शहर का मुखिया मलिक भागो जुल्म और बेईमानी से धनी बना था। वो गरीब किसानों से बहुत ज़्यादा लगान वसूलता था। कई बार उनकी फसल भी हड़प लेता था। जिससे कई गरीब किसान परिवार भूखे मरने पर मजबूर थे। जब मलिक भागो को नानक देव जी के आने का पता चला, तो वो उन्हें अपने महल में ठहराना चाहता था, लेकिन गुरु जी ने एक गरीब के छोटे से घर को ठहरने के लिए चुना। उस आदमी का नाम भाई लालो था। भाई लालो बहुत खुश हुआ और वो बड़े आदर-सत्कार से गुरुजी की सेवा करने लगा। नानक देव जी बड़े प्रेम से उसकी रूखी-सूखी रोटी खाते थे। जब मलिक भागो को ये पता चला तो उसने एक बड़ा आयोजन किया। उसने इलाके के सभी जाने माने लोगों के साथ गुरु नानक जी को भी उसमें निमंत्रित किया। गुरुजी ने उसका निमंत्रण ठुकरा दिया।  ये सुनकर, मलिक को बहुत गुस्सा आया और उसने गुरुजी को अपने यहां लाने का हुक्म दिया। मलिक के आदमी, नानक द

गुरु नानक देव जी

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गुरू नानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें गुरु नानक, गुरु नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से भी संबोधित करते हैं। बाबा नानक जी के महाप्रयाण दिवस पर उन्हें शत-शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि🙏 उनकी अगर एक भी बात हमने अपना ली, तो जीवन कामयाब है... जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल... गुरु नानक देव जी ~~~~~~~~~~ नानक वाणी आदि गुरु गुरु नानक जी के अनुसार परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान, सत्य, कर्त्ता, निर्भय, निर्वर, अयोनि, स्वयंभू है। गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत है। उनकी वाणी में यत्र-तत्र तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति की मनोहर झाँकी मिलती है, जिसमें उनकी असाधारण देश-भक्ति और राष्ट्र-प्रेम परिलक्षित होता है। गुरुनानक देव जी  द्वारा अपने अनु‍यायियों को दी गई  शिक्षाएँ - ईश्वर एक है। सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो। ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है। ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता। ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए। बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सता

अमर बलिदानी मदनलाल ढींगरा

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अमर बलिदानी मदनलाल ढींगरा ~~~~~~~~~~~~~~~~~ तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी ..... 18 फरवरी – जन्मदिवस क्रांतिवीर मदनलाल ढींगरा. लंदन में जा कर क्रूर कर्जन वाइली का वध किया और वहीं श्रीमद्भागवत गीता ले कर झूल गए थे फाँसी ........ जरा खुद से सोचिये कि हमको क्या क्या पढाया गया और हम क्या क्या पढ़ते रहे .. पढाया गया कि बदले अगर कहीं कहीं रटाया गया शब्द प्रयोग किया जाय तो निश्चित रुप से कुछ गलत नहीं माना जायेगा क्योंकि बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी आना एक दिवस्वप्न ही होगा.. भारत को आज़ाद करवाने के लिए बलिवेदी पर चढ़ गए तमाम ज्ञात व अज्ञात वीरों की अंतहीन श्रृंखला में आज जन्मदिवस है उस महान क्रांतिकारी का जिसने ब्रिटिश धरती पर ही एक ब्रिटिश अत्याचारी का वध कर के भारत के शौर्य का वो परचम फहराया था जो आज तक ब्रिटिश लोगों को अक्षरशः याद है, भले ही भारत की सेकुलर और तथाकथित अहिंसावादी नीति के चलते उनको कुछ लोगों के प्रभाव में विस्मृत कर दिया गया हो.... ना जाने कितने फांसी पर झूले थे, कितनो ने गोलियां खाई थी क्यों झूठ बोलते हो कि

जयदेव कपूर

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जयदेव कपूर ~~~~~~~ भारत की स्वाधीनता के लिए कई वीरों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। कुछ ऐसे थे जिनका नाम आज भी देशवासी लेते हैं, कुछ ऐसे थे जिनके, नाम कुछ लोगों को याद हैं और कई लोगों को उनके बारे में जानकारी नहीं है लेकिन, कुछ क्रांतिकारी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ऐसे भी हैं, जिनके बारे में कोई नहीं जानता। भारत को स्वाधीन करवाने में इन लोगों ने अनेकों यातनाएं सही, जेल गए और अपने प्राण तक बलिदान कर दिए लेकिन, इनके बारे में कोई नहीं जानता। ऐसा ही एक नाम था जयदेव कपूर। जयदेव कपूर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के महान क्रांतिकारियों में से एक थे। जयदेव कपूर का जन्म दिवाली की तिथि पर 1908 में हुआ था। उनके जन्मोत्सव पर परिवार के सदस्यों ने जमकर दीपावली मनाई थी। क्रांतिकारी जयदेव कपूर जी का जन्म दिवाली पर 1908 को हरदोई, उत्तर प्रदेश में हुआ था । उनके पिता, शालिग्राम कपूर , आर्य समाज के सदस्य थे । जयदेव ने छोटे महाराज और ठाकुर राम सिंह के संरक्षण में कुश्ती सीखी । एक किशोर के रूप में, वह ' हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ' में शामिल होने के लिए इच्छुक

कुप्पाहाली सीतारमैया सुदर्शन जी

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कुप्पाहाली सीतारमैया सुदर्शन ~~~~~~~~~~~~~~~~ कुप्पाहाली सीतारमैया सुदर्शन जी मूलतः तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) ग्राम के निवासी थे। कन्नड़ परम्परा में सबसे पहले गांव, फिर पिता और फिर अपना नाम बोलते हैं। के. एस. सुदर्शन के पिता श्री सीतारामैया वन-विभाग की नौकरी के कारण अधिकांश समय मध्यप्रदेश में ही रहे और वहीं तत्कालीन मध्यप्रदेश (मौजूदा छत्तीसगढ़) की राजधानी रायपुर ज़िले में एक ब्राह्मण परिवार में 18 जून, 1931 को श्री सुदर्शन जी का जन्म हुआ। आजीवन अविवाहित रहे सुदर्शन के परिवार में उनसे छोटी बहन वत्सला, बहनोई, छोटा भाई रमेश और भाभी हैं। तीन भाई और एक बहिन वाले परिवार में सुदर्शन जी सबसे बड़े थे। शिक्षा सुदर्शन की प्रारंभिक शिक्षा रायपुर, दामोह, मंडला और चंद्रपुर में हुई। महज 9 साल की उम्र में ही उन्होंने पहली बार आरएसएस शाखा में भाग लिया। उन्होंने वर्ष 1954 में जबलपुर के सागर विश्वविद्यालय (इंजीनिरिंग कालेज) से दूरसंचार विषय (टेलीकाम/ टेलीकम्युनिकेशंस) में बी.ई की उपाधि प्राप्त कर वो 23 साल की उम्र में पहली बार सुदर्शन जी आरएसएस के पूर्णकालिक प्

लांस नायक करम सिंह

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साथियों, "मन की बात" कार्यक्रम में हमारे महान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था, बल्कि एक आग्रह किया था  कि ..... "मैं, देख रहा हूँ कि, आज देश भर में लोग कारगिल विजय को याद कर रहे है | Social Media पर एक hashtag #courageinkargil के साथ लोग अपने वीरों को नमन कर रहें हैं, जो शहीद हुए हैं उन्हें श्रद्धांजलि दे रहें हैं | मैं, आज, सभी देशवासियों की तरफ से, हमारे इन वीर जवानों के साथ-साथ, उन वीर माताओं को भी नमन करता हूँ, जिन्होंने, माँ-भारती के सच्चे सपूतों को जन्म दिया | मेरा, देश के नौजवानों से आग्रह है, कि, आज दिन-भर कारगिल विजय से जुड़े हमारे जाबाजों की कहानियाँ, वीर-माताओं के त्याग के बारे में, एक-दूसरे को बताएँ, share करें | मैं, साथियो, आपसे एक आग्रह करता हूँ - आज | एक Website है www.gallantryawards.gov.in आप उसको ज़रूर Visit करें | वहां आपको, हमारे वीर पराक्रमी योद्धाओं के बारे में, उनके पराक्रम के बारे में, बहुत सारी जानकारियां प्राप्त होगी, और वो जानकारियां, जब, आप, अपने साथियों के साथ चर्चा करेंगे - उनके लिए भी प्रेरणा का कारण बनेगी | आप ज़रूर

सारागढ़ी युद्ध स्मृति दिवस

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12 सितम्बर- "सारागढ़ी युद्ध स्मृति दिवस"। जब मात्र २१ बहादुर सरदारों ने मार गिराए थे 1400 क्रूर अफगानी आक्रान्ता ....... अंग्रेजों द्वारा तैयार की गयी हमारी शिक्षा प्रणाली में वैसे तो न जाने कितने छिद्र हैं ! यहाँ न जाने किन किन महानुभावों की गौरवगाथा पढ़ाई जाती हैं, जो वास्तविक जीवन में इन कहानियों से बिलकुल विपरीत थे ! लेकिन इन गाथाओं का कोई ज़िक्र तक नहीं जो वास्ताविक है ! आइये जानते है ऐसी ही एक गौरव गाथा अगर आप को इसके बारे नहीं पता तो आप अपने इतिहास से परिचित ही नहीं है ! सारागढ़ी युद्ध विश्व इतिहास की एक प्रमुख घटना है और इसमें 21 सिक्ख सैनिक ने अपना सारागढ़ी किला को बचाने के लिए पठानों से अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी ! ये कोई मिथक नहीं है बल्कि असंभव सी दिखने वाली नितांत सत्य घटना है ! ये सब कैसे हुआ,आज हम इतिहास की इस सबसे महान जंग पर प्रकाश डालेंगे ताकि हमें एक बार फिर अपने 'सिख' वीरों के पराक्रम पर गर्व महसूस हो सके ! ये घटना सन 1897 की है ! नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 12 हजार अफगान आक्रांताओं ने भीषण हमला कर दिया ! वे गुलिस्तान और लोखार्ट के कि

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया

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मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ~~~~~~~~~~~ भारत रत्न से सम्मानित सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की आज 159वीं जयंती है। उन्हीं की याद में भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे (अभियंता दिवस) मनाया जाता है। विश्वेश्वरैया शिक्षा की महत्ता को भलीभांति समझते थे। लोगों की गरीबी व कठिनाइयों का मुख्य कारण वह अशिक्षा को मानते थे। वह किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने में विश्वास करते थे। यही कारण है कि उन्हें देश के एक महान इंजीनियर के तौर पर जाना जाता है। विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर, 1861 को एक तेलुगु परिवार में हुआ था। वह 100 वर्षों से अधिक जीवित रहे थे और अंत तक सक्रिय जीवन ही व्यतीत किया था। उनसे जुड़ा एक किस्सा काफी मशहूर है कि एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, 'आपके चिर यौवन (दीर्घायु) का रहस्य क्या है?' तब डॉ. विश्वेश्वरैया ने उत्तर दिया, 'जब बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है और वह निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं ह