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Showing posts from May, 2020

हिन्दी व हिन्दुत्व के पुजारी रामनारायण त्रिपाठी ‘पर्यटक’

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हिन्दी व हिन्दुत्व के पुजारी रामनारायण त्रिपाठी ‘पर्यटक’ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 31मई/ जयन्ती..... शत-शत नमन ‘पर्यटक’ तथा ‘दद्दा बैसवारी’ के नाम से कई विधाओं में कविता लिखने वाले श्री रामनारायण त्रिपाठी का जन्म 31 मई, 1958 को ग्राम टेढ़वा (जिला उन्नाव, उ.प्र.) में श्रीमती मायादेवी तथा श्री महादेव त्रिपाठी के घर में हुआ था। घर में मिले धर्म और देशप्रेम के संस्कार स्वयंसेवक बनने पर और प्रगाढ़ हो गये। अतः बी.ए. कर वे डेढ़ वर्ष तक पुरवा तहसील में प्रचारक रहे। 1978 में वे लखनऊ स्थित ‘राष्ट्रधर्म प्रकाशन’ में काम करने लगे।  1984 में तुलसी जयन्ती पर उन्होंने ‘नवोदित साहित्यकार परिषद’ की स्थापना की। ‘नवोदित स्वर साधना’ नामक पत्र में नये साहित्यकारों की रचनाएं छापकर उन्होंने सैकड़ों नये और युवा राष्ट्रप्रेमी लेखक तैयार किये। कुछ समय बाद वे मासिक ‘राष्ट्रधर्म’ में सह सम्पादक बनाये गये। निर्धारित काम को जिदपूर्वक समय से पूरा करना उनके स्वभाव का अंग था। ‘राष्ट्र साधना विशेषांक’ के प्रकाशन से पूर्व सम्पादक श्री आनंद मिश्र ‘अभय’ एक दुर्घटना के कारण बिस्तर पर पड़े थे। ऐसे में पर्यटक

हिन्दी व हिन्दुत्व के पुजारी रामनारायण त्रिपाठी ‘पर्यटक’

हिन्दी व हिन्दुत्व के पुजारी रामनारायण त्रिपाठी ‘पर्यटक’ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 31मई/ जयन्ती..... शत-शत नमन ‘पर्यटक’ तथा ‘दद्दा बैसवारी’ के नाम से कई विधाओं में कविता लिखने वाले श्री रामनारायण त्रिपाठी का जन्म 31 मई, 1958 को ग्राम टेढ़वा (जिला उन्नाव, उ.प्र.) में श्रीमती मायादेवी तथा श्री महादेव त्रिपाठी के घर में हुआ था। घर में मिले धर्म और देशप्रेम के संस्कार स्वयंसेवक बनने पर और प्रगाढ़ हो गये। अतः बी.ए. कर वे डेढ़ वर्ष तक पुरवा तहसील में प्रचारक रहे। 1978 में वे लखनऊ स्थित ‘राष्ट्रधर्म प्रकाशन’ में काम करने लगे।  1984 में तुलसी जयन्ती पर उन्होंने ‘नवोदित साहित्यकार परिषद’ की स्थापना की। ‘नवोदित स्वर साधना’ नामक पत्र में नये साहित्यकारों की रचनाएं छापकर उन्होंने सैकड़ों नये और युवा राष्ट्रप्रेमी लेखक तैयार किये। कुछ समय बाद वे मासिक ‘राष्ट्रधर्म’ में सह सम्पादक बनाये गये। निर्धारित काम को जिदपूर्वक समय से पूरा करना उनके स्वभाव का अंग था। ‘राष्ट्र साधना विशेषांक’ के प्रकाशन से पूर्व सम्पादक श्री आनंद मिश्र ‘अभय’ एक दुर्घटना के कारण बिस्तर पर पड़े थे। ऐसे में पर्यटक जी ने बुरी त

केरल की प्रथम शाखा के स्वयंसेवक पी.माधव

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केरल की प्रथम शाखा के स्वयंसेवक पी.माधव ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 31 मई/जन्म-दिवस.... शत-शत नमन केरल के कार्यकर्ताओं में श्री पी.माधव का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। वहां शाखा कार्य का प्रारम्भ 1942 में कोझीकोड (कालीकट) में श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी ने किया। श्री पी.माधव उसी शाखा के स्वयंसेवक थे। माधव जी का जन्म कोझीकोड के प्रतिष्ठित सामोरिन राजपरिवार में 31 मई, 1926 को हुआ था। उनके पिता श्री मानविक्रमन राजा वकील थे। लोग उन्हें सम्मानपूर्वक कुन्मुणि राजा कहते थे। उनकी माता जी का नाम श्रीमती सावित्री था। इस दम्पति की आठ सन्तानों में माधव सबसे बड़े थे। कोझीकोड से प्रारम्भिक शिक्षा लेकर माधव जी चेन्नई चले गये और वहां से रसायनशास्त्र में बी.एस-सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। गणित तथा संस्कृत में उनकी विशेष रुचि थी। वहां पढ़ते समय तमिलनाडु के तत्कालीन प्रान्त प्रचारक श्री दादाराव परमार्थ से भी उनका अच्छा सम्पर्क हो गया। चेन्नई में श्री गुरुजी के आगमन पर माधव जी को उनकी सेवा व्यवस्था में रखा गया। श्री गुरुजी के आग्रह पर वे प्रचारक बन गयेे। सर्वप्रथम उन्हें 1947-48 में केरल के कन्नूर जि

इतिहास के अमर योद्धा, जिन्हें हमनें भुला दिया

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तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी..... सन् 1840 में काबुल में युद्ध में 8000 पठान मिलकर भी 1200 राजपूतो का मुकाबला 1 घंटे भी नही कर पाये वही इतिहासकारो का कहना था की चित्तोड की तीसरी लड़ाई जो 8000 राजपूतो और 60000 मुगलो के मध्य हुयी थी, वहा अगर राजपूत 15000 राजपूत होते तो अकबर भी आज जिन्दा नही होता, इस युद्ध में 48000 सैनिक मारे गए थे जिसमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे, वही 10000 के करीब घायल थे। और दूसरी तरफ गिररी सुमेल की लड़ाई में 15000 राजपूत 80000 तुर्को से लडे थे इस पर घबराकर में शेर शाह सूरी ने कहा था "मुट्टी भर बाजरे (मारवाड़) की खातिर हिन्दुस्तान की सल्लनत खो बैठता" उस युद्ध से पहले जोधपुर महाराजा मालदेव जी नही गए होते तो शेर शाह सूरी ये बोलने के लिए जीवित भी नही रहता। इस देश के इतिहासकारो ने और स्कूल कॉलेजो की किताबो मे आजतक सिर्फ वो ही लडाई पढाई जाती है जिसमे हम कमजोर रहे वरना बप्पा रावल और राणा सांगा जैसे योद्धाओ का नाम तक सुनकर मुगल की औरतो के गर्भ गिर जाया करते थे, रावत रत्न सिंह चुंडावत की रानी हाड

तपस्वी राजमाता अहिल्याबाई होल्कर

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तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी..... तपस्वी राजमाता अहिल्याबाई होल्कर ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ शत्-शत् नमन 31 मई/जन्म-दिवस भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है, उनमें रानी अहल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहिल्या पर भी पड़े। जीवनगाथा ~~~~~~ एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते, उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी। इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालान्तर में उन्हें दो पुत्री तथा

चौधरी चरण सिंह

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चौधरी चरण सिंह ~~~~~~~~~ राजनेता व भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जन्म: 23 दिसम्बर, 1902, नूरपुर, यूनाइटेड प्रोविंस, ब्रिटिश इंडिया निधन: 29 मई, 1987 कार्य: राजनेता, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह एक भारतीय राजनेता और देश के पांचवे प्रधानमंत्री थे। भारत में उन्हें किसानों की आवाज़ बुलन्द करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है। हालांकि वे भारत के प्रधानमंत्री बने पर उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा। प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने भारत के गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के तौर पर भी कार्य किया था। वे दो बार उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे और उसके पूर्व दूसरे मंत्रालयों का कार्यभार भी संभाला था। वे महज 5 महीने और कुछ दिन ही देश का प्रधानमंत्री रह पाए और बहुमत सिद्ध करने से पहले ही त्यागपत्र दे दिया। प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~ चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को यूनाइटेड प्रोविंस (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के नूरपुर गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। इनके परिवार का सम्बन्ध बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह से था जिन्होंने 1887 की क्रान्ति में विशेष योगदान दिया था। ब्रिटिश

वीर सावरकर

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सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व, सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य, सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार। #VeerSavarkar जी की जयंती पर कोटि कोटि नमन। वीर सावरकर ~~~~~~~ भारत के स्वंत्रता सेनानियों में विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें वीर सावरकर / Veer Savarkar के नाम से हम सब भलीभांति परिचित है। वीर सावरकर एक ऐसे सिद्धहस्त लेखक थे जब इन्होने पहली बार लेखनी चलायी तो सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजो के दमनकारी सन 1857 के स्वंत्रता संग्राम का इतना सटीक वर्णन किया की इनके पहले ही प्रकाशन से अंगेजी सत्ता इतनी डर गयी कि यहाँ तक की अंगेजो को इनके प्रकाशन पर रोक लगाना पड़ा था। वीर सावरकर एक ऐसे देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया पर जब नाशिक में शोक सभा का आयोजन किया गया तो सबसे पहले इसका खुलकर विरोध वीर सावरकर ने ही किया था और विरोध करते हुए सावरकर ने कहा था की क्या कोई अंग्रेज हमारे देश के महापुरुषों की मृत्यु पर शोक सभा करते है। जब अंग्रेज हमारे देश में होकर भी हमारे बारे में नही सोचते, तो भला हमे दुश्मन की रानी की शोक सभा क

अमर शहीद श्रीदेव सुमन

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श्री देव सुमन ~~~~~~~ अंग्रेजी हुकूमत में हिन्दूस्तान की जनता उनकी दमनकारी नीति से तो त्रस्त थी ही, लेकिन देश के रियासतों के नवाबों तथा राजाओं ने भी जनता पर दमन और शोषण का कहर ढा रखा था। युद्ध के बहाने अभावग्रस्त प्रजा को लूटा जा रहा था। एसे समय बालक श्री दत्त ने जो बाद में श्री देव सुमन के नाम से विख्यात हुए, टिहरी रियासत के खिलाफ जनक्रान्ति का विगुल बजा कर चेतना पुंज का कार्य किया। वीर सुमन का जन्म टिहरी गढ़वाल की बमुण्ड पटृ के जौल गांव में 25 मई, 1915 को हुआ था। उनके पिता का नाम पं. हरिराम बडौनी तथा माता का नाम तारा देवी था। इनके दो बड़े भाई पं. कमलनयन बडौनी व पं. परशुराम बडौनी तथा एक बहन गायत्री देवी थी। पिता वैद्य का कार्य करते थे तथा अक्सर गांव से बाहर ही रहते थे। इसलिए पूरे परिवार की देख-रेख माता तारा देवी ही करती थी। अभी बालक सुमन 3 वर्ष का ही था कि उनके पिता का देहांत हो गया। पिता के इस आकस्मिक देहवासन से परिवार का सारा भार माता जी पर आ पड़ा। बालक सुमन ने प्राईमरी की परीक्षा चंबा स्कूल से पास की और सन 1929ई0 में टिहरी मिडिल स्कूल से हिन्दी की मिड़िल परीक्षा में उत्तीर्

अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ( बेनीवाल )

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🙏 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी..... 🙏 साथियों, आज अमर शहीद करतार सिंह सराभा जी की जयंती हैं, हम सब भारतवासी उन्हें याद कर रहे हैं। पर एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसके शहीद करतार सिंह सराभा, शहीद भगत सिंह, शहीद ऊधम सिंह, जैसे महान अमर शहीद जिसके आदर्श थे और वो अपने स्कूल में व अन्य मीटिंग में अक्सर इनके क़िस्से, कहानियां व गीत अपने साथियों को सुनाया करते थे और अपने आदर्श इन्हीं अमर शहीदों की तरह एक दिन खुद भी शहीद हो गए। वो थे "अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ( बेनीवाल )"। आइये जानते हैं कुछ उनके बारे मे ........ अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ( बेनीवाल ) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ करनैल सिंह बेनिपाल जी का जन्म 9 सितम्बर 1930 को ज़िला लुधियाना के खन्ना क़स्बे के पास इस्सरू गाँव में हुआ था । उनके पिता का नाम सरदार सुन्दर सिंह व माता का नाम हरनाम कौर था। जब करनैल सिंह मात्र 7 वर्ष के ही थे तो इनके पिता जी चल बसे। करनैल सिंह की चार बहने व तीन भाई थे। पिता की मृत्यु ये बाद इनकी माता जी व बड़े भाई ने इनका बड़े लाड़ प्यार से लाल

करतार सिंह सराभा

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करतार सिंह सराभा ~~~~~~~~~~ करतार सिंह ‘सराभा’: वह भारतीय क्रांतिकारी, जिसे ब्रिटिश मानते थे ‘अंग्रेजी राज के लिए सबसे बड़ा खतरा’! “देस नूँ चल्लो देस नूँ चल्लो देस माँगता है क़ुर्बानियाँ कानूं परदेसां विच रोलिये जवानियाँ ओय देस नूं चल्लो… ...देशभक्ति की भावना से भरे इस गीत के बोलों को सही मायने में सार्थक किया करतार सिंह सराभा ने। करतार सिंह ‘सराभा’, एक क्रांतिकारी और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, जिसने अमेरिका में रहकर भारतियों में क्रांति की अलख जगाई थी। सिर्फ 19 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल जाने वाले इस सपूत को उसके शौर्य, साहस, त्याग एवं बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। माँ भारती की स्वाधीनता के लिए अल्पायु (19 वर्ष) में ही अपने प्राणों की आहुति देने वाले शौर्य और बलिदान के पर्याय, महान क्रांतिकारी अमर शहीद करतार सिंह सराभा जी की जयंती पर उन्हें अनंतकोटि नमन।🙏 करतार सिंह ~~~~~~ सराभा, पंजाब के लुधियाना ज़िले का एक चर्चित गांव है। लुधियाना शहर से यह करीब पंद्रह मील की दूरी पर स्थित है। गांव बसाने वाले रामा व सद्दा दो भाई थे। गांव में तीन पत्तियां ह

बिपिन चन्द्र पाल

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बिपिन चन्द्र पाल ~~~~~~~~~ स्वदेशी आंदोलन के अग्रणी महानायक राष्ट्रवादी दिव्यद्रष्टा बिपिन चन्द्र पाल हमारे देश की आजादी में 'गरम दल' के 'लाल-बाल-पाल' की मशहूर तिकड़ी की बहुत ही अहम भूमिका मानी जाती है, इस महान तिकड़ी में 'लाल' थे लाला लाजपत राय, 'बाल' थे बालगंगाधर तिलक और 'पाल' थे बिपिन चन्द्र पाल, इन सभी महान क्रांतिकारियों के नाम भारतीय स्वाधीनता संग्राम आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं। इस तिकड़ी के बिपिन चन्द्र पाल को एक राष्ट्रवादी दिव्यद्रष्टा नेता होने के साथ-साथ, क्रांतिकारी, समाज-सुधारक, शिक्षक, निर्भीक पत्रकार, उच्च कोटि का लेखक व कुशल वक्ता माना जाता था। बिपिन चन्द्र पाल ने अपना सम्पूर्ण जीवन माँ भारती की सेवा में समर्पित कर दिया था, वो देश की आजादी के लिए समर्पित एक महान क्रांतिकारी योद्धा थे। उन्होंने अपने सशक्त प्रयासों से देश में अंग्रेजी हुकुमत की चूलें हिला देने का कार्य किया था, उनको देश में क्रांतिकारी विचारों का जनक माना जाता था, वो देश में स्वदेशी आंदोलन के सूत्राधार व उसके अग्रणी महानायकों में स

हिन्दू कुलभूषण चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान

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हिन्दू कुलभूषण चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है। हिंदुत्व के योद्धा कहे जाने वाले चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे। महज 11 वर्ष की उम्र मे, उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था, परंतु अंत मे वे विश्वासघात के शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया। पृथ्वीराज को राय पिथोरा भी कहा जाता था। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे, उन्होने युध्द के अनेक गुण सीखे थे। उन्होने अपने बाल्यकाल से ही शब्ध्भेदी बाण विद्या का भी अभ्यास किया था और इसमें वे अत्यंत कुशल थे। पृथ्वीराज चौहान का जन्म  ~~~~~~~~~~~~~  भारत धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 मे हुआ। पृथ्वीराज अजमेर के महाराज सोमेश्र्वर और कपूरी देवी की संतान थे। पृथ्वीराज का जन्म उनके माता पिता के विवाह के 12 वर्षो के पश्चात हुआ। यह राज्य मे खलबल

भैरोसिंह शेखावत

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भैरोसिंह शेखावत ~~~~~~~~~ जन्मः 23 अक्टूबर 1923, खचारीवास, सीकर, राजस्थान निधन: 15 मई 2010, जयपुर, राजस्थान कार्य क्षेत्र: राजनेता, मुख्यमंत्री व भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत एक सम्मानित भारतीय राजनेता, राजस्थान के मुख्यमंत्री और देश के पूर्व उप-राष्ट्रपति थे। वह एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने 1952 से राजस्थान के सभी चुनावों में जीत दर्ज की (1972 में विधानसभा चुनाव को छोड़कर)। भारतीय राजनीति में वह दक्ष और परिपक्व नेता के रूप में जाने जाते थे। विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट मैकनामरा ने शेखावत को ‘‘ भारत का रॉकफेलर‘‘ कहा था। उन्हें पुलिस और अफसरशाही व्यवस्था पर कुशल प्रशासन के लिए जाना जाता है। इसके अलावा भैरों सिंह शेखावत को राजस्थान में औद्योगिक और आर्थिक विकास के पिता के तौर पर भी जाना जाता है। राज्यसभा में उन्हें अतुलनीय प्रशासन और काम-काज के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेताओं से सराहना मिली। भैरों सिंह शेखावत को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत के सबसे ऊँचे नेता के तौर पर संबोधित किया था। प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~ भैरों सिंह शेखावत का जन्म 23 अ