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Showing posts from August, 2018

क्रांतिकारी कनाईलाल दत्त 

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वीर क्रांतिकारी कनाईलाल दत्त ~~~~~~~~~~~~~~~~ भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अनेक वीर-वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें से कुछ तो हमें आज भी बखूबी याद हैं और कुछ को हम लगभग विस्मृत सा कर बैठे हैं। इस स्मृति और विस्मृति के बीच हमें ये कतई नहीं भूलना चाहिए कि इन्हीं शहीदों के कारण आज हम सब स्वतंत्र हैं। हमारे महान भारत देश को आज़ाद कराने के लिए बहुत सारे वीर क्रांतिकारी हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर लटक गये। मगर एक ऐसा महान क्रांतिकारी भी था जिसको अंग्रेजी सरकार ने फांसी की सजा दी और साथ ही ये भी प्रतिबंध लगा दिया कि इस फैसले के खिलाफ अपील नही की जा सकती। वो महान क्रांतिकारी थे .... कनाईलाल दत्त जी। ऐसे ही एक वीर बाँकुरे कनाईलाल दत्त का जन्म 30अगस्त 1888 को बंगाल के हुगली ज़िले में चंद्रनगर में हुआ था। उनके पिता चुन्नीलाल दत्त तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की सेवा में थे। मुंबई में उनके पिता की नियुक्ति होने के कारण कनाईलाल पाँच वर्ष की उम्र में मुंबई आ गए। यहीं उनकी आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा हुई. बाद में उन्होंने हुगली कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की किन्तु उनकी राजनीतिक गतिविधिय

मेजर ध्यानचंद सिंह

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मेजर ध्यानचंद सिंह ~~~~~~~~~~         मेजर ध्यानचंद सिंह भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाडी एवं कप्तान थे। उन्हें भारत एवं विश्व हॉकी के क्षेत्र में सबसे बेहतरीन खिलाडियों में शुमार किया जाता है। वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं जिनमें १९२८ का एम्सटर्डम ओलोम्पिक, १९३२ का लॉस एंजेल्स ओलोम्पिक एवं १९३६ का बर्लिन ओलम्पिक शामिल है। उनकी जन्म तिथि को भारत में "राष्ट्रीय खेल दिवस" के तौर पर मनाया जाता है | प्रारंभिक जीवन : ~~~~~~~~~         मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त सन्‌ 1905 ई. को इलाहाबाद में हुआ था। उनके बाल्य-जीवन में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे। इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी। साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में 1922 ई. में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भरती हो गए। जब 'फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट' में भरती हु

रक्षाबंधन

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चार वर्ण के चार मुख्य त्यौहार हैं..... १-रक्षाबंधन ब्राह्मण. 2-दशहरा क्षत्रिय का. 3-दीपावली वैश्य का. 4-होली शूद्र का. त्यौहार है अलग-अलग, मगर चारों वर्ण ये चारों त्योहारों को एक साथ मनाकर राष्ट्रीय एकता का संकल्प दोहराते हैं..... सबसे पहले लक्ष्मी जी ने दैत्यराज वलि को राखी बाँधी थी, तबसे यह परम्परा चली आ रही है...... ✍सर्वप्रथम किसने बांधी राखी किस को और क्यों ?? 👉लक्ष्मी जी ने सर्वप्रथम बलि को बांधी थी। ये बात हैं जब की जब दानबेन्द्र राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे, तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में सब कुछ ले लिया, तब उसे भगवान ने पाताल लोक का राज्य रहने के लिये दें दिया, तब उसने प्रभु से कहा की कोई बात नहीँ मैं पाताल लोक में रहने के लिये तैयार हूँ, पर मेरी भी एक शर्त होगी, भगवान अपने भक्तो की बात कभी टाल नहीँ सकते, उन्होने कहा ऐसे नहीँ प्रभु आप छलिया हो पहले मुझे वचन दें की जो मांगूँगा वो आप दोगे, नारायण ने कहा दूँगा दूँगा दूँगा । जब त्रिबाचा करा लिया तब बोले बलि, की मैं जब सोने जाऊँ तो जब उठूं तो जिधर भी नजर जाये उधर आपको ही

Best Wishes for Raksha Bandhan

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I wish All of You, My Brothers and Sisters of My Great Country "BHARAT"  ..... A Very Happy Raksha Bandhan Festival. .......... Vijeta Malik The spirit of Raksha Bandhan ----------------------------------------------- The word ritual is derived from the word ritu which means season in Sanskrit. Rituals reflect the change of seasons and change of times. Accordingly the symbolism and meaning of the rituals also change in their perception by people. The tying of the thread - suraksha kavach, today has acquired the meaning of a brother promising to protect his sister.  Feminists wail and complain that this is a patriarchal festival as festival assumes women need protection by their brothers.Let’s examine this claim with some history, some facts and our beliefs behind this celebration. I. Origins of tying the thread: Devi Shachi, in her role akin to adi shakti , tied the thread to dev Indra , gracing him with her strength, motivating him to fight the asurs who had repeatedly

शिवराम राजगुरु

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शिवराम राजगुरु ~~~~~~~~~ भारत को गुलामी से मुक्त करवाने के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपना जीवन हमारे देश के लिए कुर्बान किया है। इन्हीं क्रांतिकारियों के बलिदान की वजह से ही हमारा देश एक आजाद देश बन सका है। हमारे देश के क्रांतिकारियों के नामों की सूची में अनगिनत क्रांतिकारियों के नाम मौजूद हैं और इन्हीं क्रांतिकारियों के नामों में से एक नाम ‘राजगुरु’ जी का भी है, जिन्होंने अपने जीवन को हमारे देश के लिए समर्पित कर दिया था। बेहद ही छोटी सी आयु में इन्होंने अपने देश के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान कर दिया था और इनकी कुर्बानी को आज भी भारत वासियों द्वारा याद किया जाता है। राजगुरु जी के जीवन से जुड़ी जानकारी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ पूरा नाम : शिवराम हरि राजगुरु उप नाम : रघुनाथ, एम.महाराष्ट्र जन्म स्थान : पुणे, महाराष्ट्र, ब्रिटिश भारत जन्म तिथि : 24 अगस्त, 1908 मृत्यु तिथि : 23 मार्च, 1931 किस आयु में हुई मृत्यु : 22 वर्ष मृत्यु स्थान : लाहौर, ब्रिटिश भारत (अब पंजाब, पाकिस्तान में) माता का नाम : पार्वती बाई पिता का नाम : हरि नारायण कुल भाई बहन : दिनकर (भाई) और चन्द्रभागा, वारिणी औ