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Showing posts from June, 2023

क्रांतिवीर नलिनीकांत बागची

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क्रांतिवीर नलिनीकान्त बागची ~~~~~~~~~~~~~~~ 💐💐💐💐💐💐💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 💐💐💐💐💐💐💐 भारतीय स्वतन्त्रता के इतिहास में यद्यपि क्रान्तिकारियों की चर्चा कम ही हुई है; पर सच यह है कि उनका योगदान अहिंसक आन्दोलन से बहुत अधिक था। बंगाल क्रान्तिकारियों का गढ़ था। इसी से घबराकर अंग्रेजों ने राजधानी कोलकाता से हटाकर दिल्ली में स्थापित की थी। इन्हीं क्रान्तिकारियों में एक थे नलिनीकान्त बागची, जो सदा अपनी जान हथेली पर लिये रहते थे। एक बार बागची अपने साथियों के साथ गुवाहाटी के एक मकान में रह रहे थे। सब लोग सारी रात बारी-बारी जागते थे; क्योंकि पुलिस उनके पीछे पड़ी थी। एक बार रात में पुलिस ने मकान को घेर लिया। जो क्रान्तिकारी जाग रहा था, उसने सबको जगाकर सावधान कर दिया। सबने निश्चय किया कि पुलिस के मोर्चा सँभालने से पहले ही उन पर हमला कर दिया जाये। निश्चय करते ही सब गोलीवर्षा करते हुए पुलिस पर टूट पड़े। इससे पुलिस वाले हक्के बक्के रह गये। वे अपनी जान बचाने के लिए छिपने लगे। इसका लाभ उठाकर क्रान्तिकारी वहाँ से भाग

मधुकर दत्तात्रेय देवरस "बालासाहब" - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक

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मधुकर दत्तात्रेय देवरस "बालासाहब"  - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यपद्धति के निर्माण एवं विकास में जिनकी प्रमुख भूमिका रही है, उन श्री मधुकर दत्तात्रेय देवरस का जन्म 11 दिसम्बर, 1915 को नागपुर में हुआ था। वे बालासाहब के नाम से अधिक परिचित हैं। वे ही आगे चलकर संघ के तृतीय सरसंघचालक बने। बालासाहब ने 1927 में शाखा जाना शुरू किया। धीरे-धीरे उनका सम्पर्क डा0 हेडगेवार से बढ़ता गया। उन्हें मोहिते के बाड़े में लगने वाली सायं शाखा के ‘कुश पथक’ में शामिल किया गया। इसमें विशेष प्रतिभावान छात्रों को ही रखा जाता था। बालासाहब खेल में बहुत निपुण थे। कबड्डी में उन्हें विशेष मजा आता था; पर वे सदा प्रथम श्रेणी पाकर उत्तीर्ण भी होते थे। बालासाहब देवरस बचपन से ही खुले विचारों के थे। वे कुरीतियों तथा कालबाह्य हो चुकी परम्पराओं के घोर विरोधी थे। उनके घर पर उनके सभी जातियों के मित्र आते थे। वे सब एक साथ खाते-पीते थे। प्रारम्भ में उनकी माताजी ने इस पर आपत्ति की; पर बालासाहब के आग्रह पर वे मान गयीं। कानून की पढ़ाई पूरी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन जी

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन (१८ जून १९३१-१५ सितंबर २०१२) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पाँचवें सरसंघचालक थे। मार्च २००९ में श्री मोहन भागवत को छठवाँ सरसंघचालक नियुक्त कर स्वेच्छा से पदमुक्त हो गये। 15 सितम्बर 2012 को अपने जन्मस्थान रायपुर में 81 वर्ष की अवस्था में इनका निधन हो गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री के० सी० सुदर्शन जी मूलतः तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) ग्राम के निवासी थे। कन्नड़ परम्परा में सबसे पहले गांव, फिर पिता और फिर अपना नाम बोलते हैं। उनके पिता श्री सीतारामैया वन-विभाग की नौकरी के कारण अधिकांश समय मध्यप्रदेश में ही रहे और वहीं रायपुर (वर्तमान छत्तीसगढ़) में १८ जून, १९३१ को श्री सुदर्शन जी का जन्म हुआ। तीन भाई और एक बहन वाले परिवार में सुदर्शन जी सबसे बड़े थे। रायपुर, दमोह, मंडला तथा चन्द्रपुर में प्रारम्भिक शिक्षा पाकर उन्होंने जबलपुर (सागर विश्वविद्यालय) से १९५४ में दूरसंचार विषय में बी.ई की उ

झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई जी

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★ झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई ★ ●~~~~~~~~~~~~~~~● 🌿 चमक उठी सन 57 में,  वो तलवार पुरानी थी.. 🌿 🌿 घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीर गति पानी थी..🌿 🌿दिखा गई पथ, सीखा गई हमको,  जो सीख सिखानी थी..🌿 🌿 खुब लड़ी मर्दानी वो तो,  झाँसी वाली रानी थी.. 🌿 रानी लक्ष्मीबाई उर्फ़ झाँसी की रानी मराठा शासित राज्य झाँसी की रानी थी। जो उत्तर-मध्य भारत में स्थित है। रानी लक्ष्मीबाई 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थी जिन्होंने अल्पायु में ही ब्रिटिश साम्राज्य से संग्राम किया था। पूरा नाम    – राणी लक्ष्मीबाई गंगाधरराव जन्म         – 19 नवम्बर, 1835 जन्मस्थान – वाराणसी पिता        – श्री मोरोपन्त माता        – भागीरथी शिक्षा       – मल्लविद्या, घुसडवारी और शत्रविद्याए सीखी विवाह      – राजा गंगाधरराव के साथ ★Queen of Jhansi Rani Lakshmi Bai – झांसी की रानी लक्ष्मी बाई★ घुड़सवारी करने में रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही निपुण थी। उनके पास बहोत से जाबाज़ घोड़े भी थे जिनमे उनके पसंदीदा सारंगी, पवन और बादल भी शामिल है। जिसमे परम्पराओ और इतिहास के अनुसार 1858 के समय किले से भागते समय

अमर शहीद सेठ रामदास जी गुड़वाले

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अमर शहीद सेठ रामदास जी गुड़वाले ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 💐💐💐💐💐💐💐💐 तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 💐💐💐💐💐💐💐💐 इतिहास के पन्नों में कहाँ हैं ये नाम.....?? सेठ रामदास जी गुड़वाले - 1857 के महान क्रांतिकारी, दानवीर जिन्हें फांसी पर चढ़ाने से पहले अंग्रेजों ने उन पर शिकारी कुत्ते छोड़े, जिन्होंने जीवित ही उनके शरीर को नोच खाया। सेठ रामदास जी गुडवाले दिल्ली के अरबपति सेठ और बेंकर थे। इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था। इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी। उनकी अमीरी की एक कहावत थी “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना, चांदी और जवाहरात है की उनकी दीवारो से वो गंगा जी का पानी भी रोक सकते है...” जब 1857 में मेरठ से आरम्भ होकर स्वाधीनता क्रांति की चिंगारी जब दिल्ली पहुँची और दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। इससे उनके भोजन और वेतन की गंभीर समस्या पैदा हो गई । रामजी दास गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे। रामदास

महाराजा सूरजमल जी की आगरा विजय

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महाराजा सूरजमल जी की आगरा विजय ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ महाराजा सूरजमल जी अजेय योद्धा रहे हैं ‌। उन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए मुगलों को कई बार परास्त किया, उन्होंने आगरा और दिल्ली को भी फतह किया था । लेकिन कुछ कुत्सित मानसिकता के साहित्यकारों की वजह से उनके महान पराक्रम को सही नहीं दर्शाया गया । 12 जून 1761 की तारीख जाटों के गौरवशाली इतिहास में स्वर्णिम रूप में अंकित है। 12 जून 1761 को जाट सेना ने ब्रजेन्द्र बहादुर द्वारा महाराजा सूरजमल के आदेशानुसार मुगलो की दूसरी राजधानी आगरा के लाल किले के किलेदार फाजिल खान को आत्मसमर्पण के लिए बाध्य क़र दिया था l इस अभियान मे जाट सेना का नेतृत्व राजा बहादुर सिंह (वैर ) के द्वारा किया था l महाराजा इस दौरान मथुरा में डेरा डाले रहे l आगरा शहर एवं लाल किले पर कब्जे के बाद महाराजा के द्वारा बक्शी मोहनराम को किले का किलेदार बनाया गया l               आगरा का लाल किला फरवरी 1774 तक जाटों के कब्जे में रहा l आज ही के दिन महाराजा सूरजमल ने आगरा फतह किया था। जय हो महाराजा सूरजमल जी की। 🙏🙏 #VijetaMalikBJP #HamaraAppNaMoApp

भगवान बिरसा मुंडा जी

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भगवान बिरसा मुंडा जी ~~~~~~~~~~~~ 🌺🌷🌻🥀🌹🌼🌸💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌷🌻🥀🌹🌼🌸💐 पूरा नाम : बिरसा मुंडा जन्म : 15 नवम्बर, 1875 ई. जन्म भूमि : राँची, झारखण्ड मृत्यु : 9 जून, 1900 ई. मृत्यु स्थान : राँची जेल अभिभावक : सुगना मुंडा  नागरिकता : भारतीय प्रसिद्धि : क्रांतिकारी विशेष योगदान : बिरसा मुंडा ने अनुयायियों को संगठित करके दो दल बनाए। एक दल मुंडा धर्म का प्रचार करता था और दूसरा राजनीतिक कार्य।  अन्य जानकारी : कहा जाता है कि 1895 में कुछ ऐसी आलौकिक घटनाएँ घटीं, जिनके कारण लोग बिरसा जी को भगवान का अवतार मानने लगे। लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि बिरसा जी के स्पर्श मात्र से ही समस्त रोग दूर हो जाते हैं। बिरसा मुंडा (अंग्रेज़ी: Birsa Munda, जन्म- 15 नवम्बर, 1875 ई., राँची, झारखण्ड; मृत्यु- 9 जून, 1900 ई., राँची जेल) एक आदिवासी नेता और लोकनायक थे। ये मुंडा जाति से सम्बन्धित थे। वर्तमान भारत में रांची और सिंहभूमि के आदिवासी बिरसा मुंडा को अब 'बिरसा भगवान' या 'भगवान बिरसा' कहकर याद करते

अमर शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी

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राम प्रसाद 'बिस्मिल' ~~~~~~~~~~~ 💐💐💐💐💐💐💐 तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी.. 💐💐💐💐💐💐💐 जीवन परिचय : ~~~~~~~~ पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ किसी परिचय के मोहताज नहीं। उनके लिखे ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ जैसे अमर गीत ने हर भारतीय के दिल में जगह बनाई और अंग्रेज़ों से भारत की आज़ादी के लिए वो चिंगारी छेड़ी जिसने ज्वाला का रूप लेकर ब्रिटिश शासन के भवन को लाक्षागृह में परिवर्तित कर दिया। ब्रिटिश साम्राज्य को दहला देने वाले काकोरी काण्ड को रामप्रसाद बिस्मिल ने ही अंजाम दिया था। जन्म : ~~~ ज्येष्ठ शुक्ल 11 संवत् 1954 सन 1897 में पंडित मुरलीधर की धर्मपत्नी ने द्वितीय पुत्र को जन्म दिया। इस पुत्र का जन्म मैनपुरी में हुआ था। सम्भवत: वहाँ बालक का ननिहाल रहा हो। इस विषय में श्री व्यथित हृदय ने लिखा है- 'यहाँ यह बात बड़े आश्चर्य की मालूम होती है कि बिस्मिल के दादा और पिता ग्वालियर के निवासी थे। फिर भी उनका जन्म मैनपुरी में क्यों हुआ? हो सकता है कि मैनपुरी में बिस्मिल जी का ननिहाल रहा हो।' इस पुत्र से पूर्व

महाराजा सुहेलदेव जी

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महाराजा सुहेलदेव जी ~~~~~~~~~~~~ ग्यारवी सदी के प्रारंभिक काल मे भारत मे एक घटना घटी जिसके नायक श्रावस्ती सम्राट वीर सुहलदेव राजभर थे ! राष्ट्रवादियों पर लिखा हुआ कोई भी साहित्य तब तक पूर्ण नहीं कहलाएगा जब तक उसमे राष्ट्रवीर श्रावस्ती सम्राट वीर सुहलदेव राजभर की वीर गाथा शामिल न हो ! कहानियों के अनुसार वह सुहलदेव, सकर्देव, सुहिर्दाध्वाज राय, सुहृद देव, सुह्रिदिल, सुसज, शहर्देव, सहर्देव, सुहाह्ल्देव, सुहिल्देव और सुहेलदेव जैसे कई नामों से जाने जाते है ! श्रावस्ती सम्राट वीर सुहलदेव राजभर का जन्म बसंत पंचमी सन् १००९ ई. मे हुआ था ! इनके पिता का नाम बिहारिमल एवं माता का नाम जयलक्ष्मी था ! सुहलदेव राजभर के तीन भाई और एक बहन थी बिहारिमल के संतानों का विवरण इस प्रकार है ..... १. सुहलदेव २. रुद्र्मल ३. बागमल ४. सहारमल या भूराय्देव तथा पुत्री अंबे देवी ! सुहलदेवराजभर की शिक्षा-दीक्षा योग्य गुरुजनों के बिच संपन्न हुई ! अपने पिता बिहारिमल एवं राज्य के योग्य युद्ध कौशल विज्ञो की देखरेख मे सुहलदेवराजभर ने युद्ध कौशल, घुड़सवारी, आदि की शिक्षा ली ! सुहलदेव राजभर की बहुमुखी प्रतिभा एव

अमर शहीद मैना कुमारी जी

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अमर शहीद मैना कुमारी जी ~~~~~~~~~~~~~~~ 💐💐💐💐💐💐💐💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 💐💐💐💐💐💐💐💐 ये थी मैना कुमारी ... 11 सितम्बर 1857 का दिन था जब बिठूर में एक पेड़ से बांध कर 13 वर्ष की लड़की मैना कुमारी को ब्रिटिश सेना ने जिंदा ही आग के हवाले कर दिया! धूँ धूँ कर जलती वो लड़की उफ़ तक भी ना बोली और जिंदा लाश की तरह जलती हुई राख में तब्दील हो गई। ये लड़की थी नानासाहब पेशवा जी की दत्तक पुत्री, जिसका नाम था मैना कुमारी जिसे 166 वर्ष पूर्व आउटरम नामक ब्रिटिश अधिकारी ने जिंदा जला दिया था। जिसने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम  के दौरान अपने पिता के साथ जाने से इसलिए मना कर दिया कि कहीं उसकी सुरक्षा के चलते उसके पिता को देश सेवा में कोई समस्या ना आये और उन्होंने बिठूर के महल में रहना ही उचित समझा। नाना साहब जी पर ब्रिटिश सरकार इनाम घोषित कर चुकी थी और जैसे ही उन्हें पता चला नाना साहब महल से बाहर हैं, ब्रिटिश सरकार ने महल घेर लिया, जहाँ उन्हें कुछ सैनिको के साथ बस मैना कुमारी ही मिली। मैना कुमारी ब्रटिश

जोधासिंह अटैया जी और उनके 51 क्रान्तिकारी साथी

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जोधासिंह अटैया जी और उनके 51 क्रान्तिकारी साथी....... भारत की वो #एकलौती ऐसी घटना जब, अंग्रेज़ों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था...... ~~~~~~~~~~~~~~~ 💐💐💐💐💐💐💐💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 💐💐💐💐💐💐💐💐 #भारत की वो #एकलौती ऐसी घटना जब, अंग्रेज़ों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था, पर वामपंथियों ने इतिहास की इतनी बड़ी घटना को आज तक गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा। #उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित बावनी इमली एक प्रसिद्ध इमली का पेड़ है, जो भारत में एक शहीद स्मारक भी है। इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को गौतम क्षत्रिय, जोधा सिंह अटैया और उनके इक्यावन साथी फांसी पर झूले थे। यह स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम में मुगल रोड पर स्थित है। यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता

वीरांगना किरण देवी

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वीरांगना किरण देवी ~~~~~~~~~~~ बीकानेर के संग्रहालय में लगी यह तस्वीर साक्षी हैं वीरांगना किरण देवी की और साक्षी हैं इस बात की कि मुगल बादशाह अकबर एक चरित्रहीन आक्रांता के सिवाय कुछ भी नही था और इस सत्यकथा में यह स्पष्ट है... राजस्थान वीरों ओर योद्धाओं की धरती है। यहां के रेतीले धोरों का वीरता और शौर्य से बहुत पुराना रिश्ता रहा है। इतिहास आज भी ऐसे वीरों और वीरांगनाओं की कहानी कहता है जिनके त्याग और बलिदान ने इस धरा की शान बढ़ाई। ऐसी ही कहानियों में एक वीरांगना किरण देवी का भी जिक्र आता है। कहते हैं कि उसने शहंशाह अकबर को अपने आगे झुकने के लिए मजबूर कर दिया था। अकबर ने किरण देवी से अपने प्राणों की भीख मांगी थी। इस घटना का संबंध नौरोज मेले से है। यह मेला अकबर आयोजित करता था। ऐसी मान्यता है कि अकबर इस मेले में वेश बदलकर आता और यहां सुंदर महिलाओं की तलाश करता था और फिर उन्हें अपने हरम में बुला कर उनसे अपने शरीर की भूख शांत करता था। एक बार अकबर नौरोज के मेले में बुरका पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर ही रहा था कि उसकी नजर मेले में घूम रही किरण देवी पर जा पड़ी। वह किरण देवी

सन्त कबीरदास जी

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सन्त कबीरदास जी ~~~~~~~~~~ कबीर हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व हैं। कबीर के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कुछ लोगों के अनुसार वे रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे, जिसको भूल से रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी। कबीर के माता- पिता के विषय में एक राय निश्चित नहीं है कि कबीर "नीमा' और "नीरु' की वास्तविक संतान थे या नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था। कहा जाता है कि नीरु जुलाहे को यह बच्चा लहरतारा ताल पर पड़ा पाया, जिसे वह अपने घर ले आया और उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया। कबीर ने स्वयं को जुलाहे के रुप में प्रस्तुत किया है - "जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरो उदासी।' कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर की उत्पत्ति काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुई। ऐसा भी कहा जाता है कि कबीर जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानन्द के प्रभा