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Showing posts from June, 2018

बलात्कार का बलात्कार

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बलात्कार का बलात्कार कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ दोस्तों,  बलात्कार जैसी घिनोनी घटना की मैं, मेरे साथी मित्रगण, मेरा परिवार और मेरा समाज जितनी भी घोर से घोर, कडे से कड़े और कठोर से कठोर शब्दो मे हो सके, निंदा करते है। और भी बहुत से लोग बलात्कार और बलात्कारियों का विरोध करते हैं, मगर वो ना जाने कैसे इसमे धर्म व जाती ढूढ़ लेते हैं। बलात्कार बलात्कार होता हैं, फिर वो बलात्कार की शिकार लड़की चाहे किसी भी धर्म, जाती, पंथ, सम्प्रदाय से सम्बन्ध/ताल्लुक रखती हो। बलात्कार की शिकार हर लड़की को एक सी पीड़ा, एक सा मानसिक और शारीरिक कष्ट, एक सा अपमान महसूस होता हैं। ऐसी हर लड़की को एक सी मायूसी, एक सी लाचारी, एक सी बेबसी और एक सा ही तिरस्कार महसूस होता हैं। ये हर धर्म या हर समुदाय की लड़कियों में अलग-अलग नही होता हैं। फिर पता नही ये चन्द लोग किस लालच में बलात्कार को भी धर्म व समुदाय से जोड़ देते हैं। पता नही इसके पीछे इनका क्या स्वार्थ छिपा होता हैं। मैं इन छपे चित्रों की बात कर रही हूँ, ये लोग पता नही कौन से समाज से है, ये जिस भी समाज से है मैं उस समाज को कोई दोष नही देती हूँ। मैं इ

★ वीर सिद्धू और कान्हू का बलिदान ★

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*शत्-शत् नमन * 30 जून/इतिहास-स्मृति ..... संथाल परगना में स्वाधीनता संग्राम ...... ★ वीर सिद्धू और कान्हू का बलिदान ★ स्वाधीनता संग्राम में 1857 ई. एक मील का पत्थर है, पर वस्तुतः यह समर इससे भी पहले प्रारम्भ हो गया था। वर्तमान झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में हुआ ‘संथाल हूल’ या ‘संथाल विद्रोह’ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। संथाल परगना उपजाऊ भूमि वाला वनवासी क्षेत्र है। वनवासी स्वभाव से धर्म और प्रकृति के प्रेमी तथा सरल होते हैं। इसका जमींदारों ने सदा लाभ उठाया है। कीमती वन उपज लेकर उसी के भार के बराबर नमक जैसी सस्ती चीज देना वहां आम बात थी। अंग्रेजों के आने के बाद ये जमींदार उनसे मिल गये और संथालों पर दोहरी मार पड़ने लगी। घरेलू आवश्यकता हेतु लिये गये कर्ज पर कई बार साहूकार 50 से 500 प्रतिशत तक ब्याज ले लेते थे। 1789 में संथाल क्षेत्र के एक वीर बाबा तिलका मांझी ने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध कई सप्ताह तक सशस्त्र संघर्ष किया था। उन्हें पकड़ कर अंग्रेजों ने घोड़े की पूंछ से बांधकर सड़क पर घसीटा और फिर उनकी खून से लथपथ देह को भागलपुर में पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी। 30 जून,

डॉ. हेडगेवार जी का जीवन सन्देश

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संघ को समझे ... संघ से जुड़ें ... डॉक्टर जी का जीवन सन्देश ..... परमपूजनीय डॉक्टरजी के कष्टपूर्ण, परिश्रमी एवं कर्मठ जीवन से सर्वसाधारण व्यक्ति को एक आशादायी सन्देश मिलता है। दरिद्रता, प्रसिद्धिविहीनता, बड़ों की उदासीनता, परिस्थिति की प्रतिकूलता, पग-पग पर बाधाएँ, विरोध, उपेक्षा, उपहास आदि के कटु अनुभव के साथ-साथ स्वीकृत कार्य की पूर्ति के लिए आवश्यक साधनों का अत्यन्त अभाव आदि कितनी ही कठिनाइयाँ मार्ग में आयें तो भी अपने कार्य के साथ तन्मय होकर ‘मुक्तसंगोऽनहंवादी.....’ इस वृत्ति से सुख-दुख, मानापमान, यशापयश आदि किसी की भी चिन्ता न करते हुए यदि कोई प्रयत्नरत रहेगा तो उसे अवश्य ही सफलता मिलेगी।’’ डॉक्टरजी के छोटे जीवनचिरत्र के आरम्भ में ‘‘क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां पकरणे’’ यह जो सुभाषित दिया है वह उनके ऊपर पूरी तरह घटता है; किंबहुना उनका सम्पूर्ण जीवन ही इस उक्ति का मूर्तिमन्त उदाहरण था। अपने घरबार के कामकाज में हताश होकर हाथ-पाँव छोड़ देनेवालों को, किसी भी सामाजिक कार्य को करते समय बाधाओं से घबड़ाकर निराशा से कार्यविमुख होनेवालों को, इस पवित्र जीवन से आशा का सन्देश प्राप्त होकर

सन्त कबीरदास

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सन्त कबीरदास ~~~~~~~~ कबीर हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व हैं। कबीर के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कुछ लोगों के अनुसार वे रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे, जिसको भूल से रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी। कबीर के माता- पिता के विषय में एक राय निश्चित नहीं है कि कबीर "नीमा' और "नीरु' की वास्तविक संतान थे या नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था। कहा जाता है कि नीरु जुलाहे को यह बच्चा लहरतारा ताल पर पड़ा पाया, जिसे वह अपने घर ले आया और उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया। कबीर ने स्वयं को जुलाहे के रुप में प्रस्तुत किया है - "जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरो उदासी।' कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर की उत्पत्ति काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुई। ऐसा भी कहा जाता है कि कबीर जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानन्द के प्रभाव से उन्हे