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Showing posts from January, 2023

प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जु भैया)

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प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जु भैया) ~~~~~~~~~~~~~~~~~ राष्ट्र और समाज के उत्थान के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक श्रद्धेय स्व. राजेंद्र सिंह "रज्जू भैया" जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह का जन्म 29 जनवरी, 1922 को ग्राम बनैल (जिला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश) के एक सम्पन्न एवं शिक्षित परिवार में हुआ था। उनके पिता कुंवर बलबीर सिंह अंग्रेज शासन में पहली बार बने भारतीय मुख्य अभियन्ता थे। इससे पूर्व इस पद पर सदा अंग्रेज ही नियुक्त होते थे। उन्हें घर में सब प्यार से रज्जू कहते थे। आगे चलकर उनका यही नाम सर्वत्र लोकप्रिय हुआ। रज्जू भैया बचपन से ही बहुत मेधावी थे। उनके पिता की इच्छा थी कि वे प्रशासनिक सेवा में जायें। इसीलिए उन्हें पढ़ने के लिए प्रयाग भेजा गया लेकिन रज्जू भैया को अंग्रेजों की गुलामी पसन्द नहीं थी। उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम-एस.सी . उत्तीर्ण की और फिर वहीं भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक हो गए। उनकी एम-एस.सी . की प्रयोगात्मक परीक्षा लेने नोब

फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा जी

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फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा Field Marshal K. M. Cariappa ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जीवनी ~~~~ जन्म: 28 जनवरी, 1899, कुर्ग, कर्नाटक मृत्यु: 15 मई, 1993, बंगलौर कार्यक्षेत्र: प्रथम भारतीय सेनाध्यक्ष, फ़ील्ड मार्शल फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा भारतीय सेना के प्रथम कमांडर-इन-चीफ थे। के. एम. करिअप्पा ने सन् 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर सेना का नेतृत्व किया था। वे भारतीय सेना के उन दो अधिकारियों में शामिल हैं जिन्हें फील्ड मार्शल की पदवी दी गयी। फील्ड मार्शल सैम मानेकशा दूसरे ऐसे अधिकारी थे जिन्हें फील्ड मार्शल का रैंक दिया गया था। उनका मिलिटरी करियर लगभग 3 दशक लम्बा था जिसके दौरान 15 जनवरी 1949 में उन्हें सेना प्रमुख नियुक्त किया गया। इसके बाद से ही 15 जनवरी ‘सेना दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। करिअप्पा का सम्बन्ध राजपूत रेजीमेन्ट से था। वे सन 1953 में सेवानिवृत्त हो गये फिर भी किसी न किसी रूप में भारतीय सेना को सहयोग देते रहे। प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~ फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी, 1899 में कर्नाटक के कोडागु (कुर्ग) में शनिवर्सांथि न

लाला लाजपत राय

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लाला लाजपत राय ~~~~~~~~~~ 🥀🌹🌻🌼🌺🌸💐🌷 ★तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी...★ 🥀🌹🌻🌼🌺🌸💐🌷  लाला लाजपत राय: जिनकी मौत ने ब्रिटिश राज के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी.....।  साइमन कमीशन के विरोध में ब्रिटिश पुलिस की लाठियों से घायल होकर आज ही के दिन 17 नवंबर 1928 को हुआ था लाला लाजपत राय का देहांत ।  एक दौर था जब ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता था। पूरी दुनिया में अंग्रेजों की तूती बोलती थी. सर्वशक्तिमान ब्रिटिश राज के खिलाफ 1857 में भारत में हुए बहुत बड़े सशस्त्र आंदोलन को बेहद निर्ममता के साथ कुचल दिया गया था. अंग्रेज भी यह मानते थे अब उन्हें भारत से कोई हिला भी नहीं सकता। साल 1928 में भारत में एक शख्स की ब्रिटिश पुलिस की लाठियों के मौत हुई. और इस मौत ने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलों को हिला दिया।  30 अक्टूबर 1928 को पंजाब में महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय पर बरसीं ब्रिटिश लाठियां दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील साबित हुईं और आज ही के दिन यानी 17 नवंबर को हुई उनकी मौत के 20 सा

अखंड कर्मयोगी डा. ओमप्रकाश मैंगी

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आजादी का अमृत महोत्सव भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक पहचान के बारे में प्रगतिशील है। “आज़ादी का अमृत महोत्सव” की आधिकारिक यात्रा 12 मार्च, 2021 को शुरू होती है, जो हमारी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के लिए 75 सप्ताह की उलटी गिनती शुरू करती है और 15 अगस्त, 2023 को एक वर्ष के बाद समाप्त होगी। आजादी के इस अमृत महोत्सव में आइए जानते हैं भारत के कुछ महानुभावों के बारे में हर दिन पावन के तहत :.... * #हरदिनपावन * * 🇮🇳स्वतंत्रता का75वां अमृतमहोत्सव🇮🇳 * * 16 जनवरी/जन्म-दिवस * * अखंड कर्मयोगी डा. ओमप्रकाश मैंगी * ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ * संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता डा. ओमप्रकाश मैंगी का जन्म 16 जनवरी 1918 को जम्मू में एक समाजसेवी श्री ईश्वरदास जी के घर में हुआ था।   सामाजिक कार्यों में सक्रिय पिताजी के विचारों का प्रभाव ओमप्रकाश जी पर पड़ा। प्रारम्भिक शिक्षा जम्मू, भद्रवाह और श्रीनगर में पूर्णकर उन्होंने मैडिकल कॉलिज अमृतसर से ‘जनरल फिजीशियन एंड सर्जन’ की उपाधि ली। * इसके बाद वे जम्मू-कश्मीर सरकार में चिकित्सा अधिकारी तथा सतवारी कैंट चिकित्सालय में सेवारत

वीर मोतीराम मेहरा

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*वीर मोतीराम मेहरा का बलिदान* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 3 जनवरी 1705 सनातनी वीर मोतीराम मेहरा का बलिदान* *बाबा मोतीराम मेहरा जिनका वर्णन खालसा पंथ के ग्रंथों में है । इन्हें औरंगजेब की आज्ञा से सरहिन्द के किलेदार वजीर खान ने नृशंस तरीके से परिवार सहित जीवित कोल्हू में पीस दिया था। इनकी वीरता और बलिदान का उल्लेख संत लक्ष्मणदास बंदा बैरागी ने किया था। और इनकी स्मृति में एक गुरुद्वारा फतेहगढ़ में बना है।* ~ *बाबा मोतीराम मेहरा के चाचा हिम्मत राय एक धर्मनिष्ठ सनातनी थे, जिन्होंने गुरु गोविन्द सिंह जी के आह्वान पर धर्मरक्षा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था, और गोविन्द सिंह के पंच प्यारों में से एक बनें। उनके चाचा हिम्मत राय का नाम बदलकर हिम्मत सिंह कर दिया गया।* ~ *बाबा मोतीराम मेहरा के पूर्वज जगन्नाथ पुरी उड़ीसा के रहने वाले थे। समय के साथ पंजाब आये और सरहिन्द में नौकरी कर ली। बाबा मोतीराम जी के पिता हरिराम मुहम्मदियों के कारावास की रसोई घर के इंचार्ज थे।* ~ *दिसम्बर 1704 के अंतिम सप्ताह गुरु गोविन्द सिंह के चारों पुत्र बलिदान हुये थे। वह 27 दिसंबर 1704 की तिथि थी जब यातना