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Showing posts from October, 2023

डॉ० होमी जहांगीर भाभा जी

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वैज्ञानिक डॉ होमी जहांगीर भाभा ★★★★★★★★★ जन्म: 30 अक्टूबर 1909, मुंबई कार्य/पद: भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम के जनक ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ होमी जहांगीर भाभा भारत के महान परमाणु वैज्ञानिक थे। उन्हे भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। उन्होंने देश के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की ऐसी मजबूत नींव रखी, जिसके चलते भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा है। मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से परमाणु क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य शुरू वाले डॉ भाभा ने समय से पहले ही परमाणु ऊर्जा की क्षमता और विभिन्न क्षेत्रों में उसके उपयोग की संभावनाओं को परख लिया था। उन्होंने नाभिकीय विज्ञान के क्षेत्र में उस समय कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्होंने कॉस्केट थ्योरी ऑफ इलेक्ट्रान का प्रतिपादन करने साथ ही कॉस्मिक किरणों पर भी काम किया जो पृथ्वी की ओर आते हुए वायुमंडल में प्रवेश करती है। उन्होंने ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर

स्वामी दयानंद सरस्वती जी

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स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ~~~~~~~~~~~~~~ भारत प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा है । भगवान ने अनेक बार स्वयं अवतार लेकर इस भूमि को पवित्र किया है । राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर के रूप में इस धरती का परम कल्याण किया है । अनेक महान आध्यात्मिक गुरु उच्च कोटि के संत और समाज सुधारक इस देश में हुए । नव जागरण क्य शंख नाद करने वाले राजा राम मोहनराय, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द की भांति ही स्वामी दयानन्द का नाम भी अग्रगण्य है । स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म गुजरात के भूतपूर्व मोरवी राज्य के टकारा गाँव में 12 फरवरी 1824 (फाल्गुन बदि दशमी संवत् 1881) को हुआ था।  मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण आपका नाम मूलशंकर रखा गया।  आपके पिता का नाम अम्बाशंकर था। आप बड़े मेधावी और होनहार थे।  मूलशंकर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।  दो वर्ष की आयु में ही आपने गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण करना सीख लिया था। घर में पूजा-पाठ और शिव-भक्ति का वातावरण होने के कारण भगवान् शिव के प्रति बचपन से ही आपके मन में गहरी श्रद्धा उत्पन्न हो गयी। अत: बाल्यकाल में आप शंकर के भक्त थे।  कुछ बड

प्रमोद महाजन जी

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प्रमोद महाजन ~~~~~~~~ पूरा नाम :  प्रमोद व्यंकटेश महाजन जन्म :  30 अक्टूबर, 1949 जन्म भूमि  :  महबूबनगर, आंध्र प्रदेश मृत्यु   :  3 मई, 2006 मृत्यु स्थान। :   मुम्बई, महाराष्ट्र मृत्यु कारण  :  हत्या पत्नी  :  श्रीमती रेखा महाजन संतान  :  राहुल महाजन (पुत्र) और पूनम महाजन (पुत्री) नागरिकता :  भारतीय पार्टी   :  भारतीय जनता पार्टी पद  :  महासचिव अन्य जानकारी  :  अपनी मौत से पहले राज्यसभा के सदस्य प्रमोद महाजन की कार्यभूमि मुंबई ही रही है और यहीं से वे लोकसभा सदस्य रहे। प्रमोद व्यंकटेश महाजन (अंग्रेज़ी: Pramod Vyankatesh Mahajan, जन्म: 30 अक्टूबर, 1949 – मृत्यु: 3 मई, 2006) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। प्रमोद महाजन भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक थे। प्रमोद महाजन अपने गृहराज्य महाराष्ट्र और भारत के पश्चिमी क्षेत्र में काफ़ी लोकप्रिय थे। जीवन परिचय ~~~~~~~~ प्रमोद महाजन कहने को तो भारतीय जनता पार्टी के महासचिव थे लेकिन वे पार्टी के सबसे हाईप्रोफ़ाइल नेताओं में से एक थे। 56 वर्ष के प्रमोद महाजन भाजपा की दूसरी पीढ़ी के नेताओं में सबसे सक्रिय थे ही, दे

30 अक्टूबर : श्रीराम मंदिर अयोध्या के बलिदानियों को शत-शत नमन..

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30 अक्टूबर : अयोध्या के बलिदानियों को शत-शत नमन... आज के ही दिन मुलायम ने निहत्थे कारसेवकों पर चलवाई थी गोलियां... निहत्थे कारसेवकों पर पुलिस पूरी ताकत से अत्याचार कर रही थी...  मुलायम सिंह की तुलना औरंगजेब, गजनवी और बाबर से होने लगी... 30 अक्टूबर 1990 आज ही के दिन मुलायम ने निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां चलवाई थी। निहत्थे कारसेवकों पर पुलिस पूरी ताकत से अत्याचार कर रही थी। मुलायम सिंह की तुलना औरंगजेब, गजनवी और बाबर से होने लगी। बलिदानी कार सेवको के आंकड़े को कम करने के लिए पुलिस ने नया तरीका निकाला। पुलिस ने कार सेवको के शवों को बालू की बोरियों में बांधकर सरयू में फेंकना शुरू कर दिया ताकि वो ऊपर ना आ सके। सरकार द्वारा वर्तमान में चल रहे मुंगेर के अंदाज़ में करवाई गई इसी गोलीबारी में कई कारसेवक बलिदान हो गये थे। ये वो वीर हैं जिनके बलिदान के बिना भगवान् श्रीराम के मन्दिर की बात तो दूर, कल्पना भी करना व्यर्थ होगा। ये 1990 का वर्ष था। 21 से 30 अक्टूबर 1990 तक अयोध्या में लाखों की संख्या में श्रीराम भक्त कारसेवक जुट चुके थे। सब श्रीराम जन्मभूमि की ओर जाने की तैयारी में थे। जन्मभू

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक

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महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक ~~~~~~~~~~~~~~~~~ #महाराणा_प्रताप का अपने वफादार घोड़े चेतक के साथ एक अज्ञात बंधन था, जिसे कुछ ही विरोधी समझ पाए थे। हल्दीघाटी की लड़ाई के दौरान चेतक ने महाराणा प्रताप की घातक चोटों के बावजूद उनकी जान बचाई थी। बाद में, कई हिंदी लेखकों और कवियों ने उनकी बहादुरी का वर्णन करते हुए चेतक के बारे में लिखा है.... रण बीच चौकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था जो तनिक हवा से बाग हिली लेकर सवार उड़ जाता था राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था गिरता ना कभी चेतक तन पर राणा प्रताप का कोड़ा था वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर वह आसमान का घोड़ा था था यहीं रहा अब यहाँ नहीं वह वहीं रहा था यहाँ नहीं थी जगह ना कोई जहाँ नहीं किस अरिमस्तक पर कहाँ नहीं निर्भीक गया वह ढालों में सरपट दौडा करबालों में फँस गया शत्रु की चालों में बढ़ते नद-सा वह लहर गया फिर गया गया फिर ठहर गया विकराल वज्रमय बादल-सा अरि की सेना पर घहर गया भाला गिर गया गिरा निसंग हय टापों से खन गया अंग बैरी समाज रह गया दंग घोड़े का

डॉ. मंगल सेन जी ( शेर - ऐ - हरियाणा )

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डॉ. मंगल सेन जी ( शेर - ऐ - हरियाणा ) ~~~~~~~~~~~ हरियाणा प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री स्व. डा. मंगल सेन महान कर्मयोगी इंसान थे। हरियाणा में भाजपा आज जिस मुकाम पर है और हरियाणा में भाजपा की मनोहर लाल जी के नेतृत्व वाली लगातार दूसरी बार सरकार बनी हैं, उसके पीछे डा. मंगल सेन जी का संघर्ष है। 27 अक्टूबर 1927 को डा. मंगल सेन का जन्म सरगोधा के झांवरिया गांव में हुआ था, जो आज पाकिस्तान में है। डॉ. मंगल सेन जी बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाने लगे थे और अपने सार्वजनिक जीवन का आगाज भी उन्होंने संघ प्रचारक के तौर पर ही किया था। उन्होंने जनसंघ का अध्यक्ष रहते हुए हरियाणा में संगठन को मजबूत किया। डा. मंगल सेन जी ने हरियाणा प्रदेश का समान विकास करवाया। बिना भेदभाव के हर वर्ग को साथ लेकर चलने की कला उनमें थी। इसी के चलते वो लगातार सात बार रोहतक से विधायक रहे। डॉ. मंगल सेन उपमुख्यमंत्री रहने के साथ-साथ रोहतक से 7 बार विधायक रहे, लेकिन उनकी अर्थी उनके किराये के मकान से उठी, वह ईमानदारी की मिसाल थे।  डा. मंगल सेन जी सादगी की प्रतिमूर्ति थे। वह समाज के लिए ही आज

शहीद जतीन्द्रनाथ दास जी

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शहीद जतीन्द्रनाथ दास जी ~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 🙏👏🇮🇳 महान देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी, जेल में क्रान्तिकारियों के साथ पक्षपाती व्यवहार करने के लिए 63 दिनों की भूख हड़ताल कर माँ भारती के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले अमर शहीद "जतिन दा" जतीन्द्रनाथ दास जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन। 🙏👏🇮🇳 पूरा नाम : जतीन्द्रनाथ दास/यतीन्द्रनाथ दास जन्म  : 27 अक्टूबर, 1904 जन्म : भूमि कलकत्ता, ब्रिटिश भारत मृत्यु : 13 सितम्बर, 1929 मृत्यु स्थान : लाहौर, पाकिस्तान मृत्यु कारण : भूख हड़ताल अभिभावक : बंकिम बिहारी दास और सुहासिनी देवी नागरिकता : भारतीय प्रसिद्धि : क्रांतिकारी जेल यात्रा : इन्हें 1925 में 'दक्षिणेश्वर बम कांड' और 'काकोरी कांड' के सिलसिले में और फिर 14 जून, 1929 को 'केन्द्रीय असेम्बली बमकाण्ड' के सिलसिले में जेल हुई। संबंधित लेख : भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, सुभाषचन्द्र बोस अन्य जानकारी : 8 अप्रैल, 1929 को भगत

वीर बन्दा सिंह बहादुर बैरागी जी

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वीर बन्दा सिंह बहादुर बैरागी ~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🪷🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🪷🙏🙏🌻🌷💐 !! वीर बन्दा बहादुर सिंह बैरागी जी के दिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन !! “बन्दा सिंह बहादुर बैरागी” एक सिख सेनानायक थे। उन्हें बन्दा बहादुर, लक्ष्मन दास भी कहते हैं। बन्दा बहादुर (जन्म - 27 अक्टूबर, 1670, राजौरी; मृत्यु - 9 जून, 1716, दिल्ली) प्रसिद्ध सिक्ख सैनिक और राजनीतिक नेता थे। वे भारत के मुग़ल शासकों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने वाले पहले सिक्ख सैन्य प्रमुख थे, जिन्होंने सिक्खों के राज्य का अस्थायी विस्तार भी किया। उन्होंने मुग़लों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा, छोटे साहबज़ादों की शहादत का बदला लिया और गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा संकल्पित प्रभुसत्तासम्पन्न लोक राज्य की राजधानी लोहगढ़ में ख़ालसा राज की नींव रखी। यही नहीं, उन्होंने गुरु नानक देव और गुरू गोबिन्द सिंह के नाम से सिक्का और मोहरे जारी करके, निम्न वर्ग के लोगों को उच्च पद दिलाया और हल वाहक किसान-मज़दूरों को ज़मीन का मालिक बनाया। प्रसिद्ध सिक्ख सै

महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रानी चेन्नम्मा जी

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महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रानी चेन्नम्मा जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रानी चेन्नमा जी जन्म : 23 अक्तूबर, 1778 ई. जन्म भूमि : कित्तूर, कर्नाटक मृत्यु : 21 फरवरी, 1829 ई. अभिभावक : धूलप्पा और पद्मावती पति/जीवन  संगी : राजा मल्लसर्ज कर्म भूमि : दक्षिण भारत भाषा : संस्कृत भाषा, कन्नड़ भाषा, मराठी भाषा और उर्दू भाषा नागरिकता : भारतीय अन्य जानकारी : रानी चेन्नम्मा ने रानी लक्ष्मीबाई से पहले ही अंग्रेज़ों की सत्ता को सशस्त्र चुनौती दी थी और अंग्रेज़ों की सेना को उनके सामने दो बार मुँह की खानी पड़ी थी। रानी चेन्नम्मा (अंग्रेज़ी : Rani Chennamma, जन्म- 23 अक्तूबर, 1778, कित्तूर, कर्नाटक;  मृत्यु- 21 फरवरी, 1829 ई.) का दक्षिण भारत के कर्नाटक में वही स्थान है, जो स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जी का है। रानी चेन्नम्मा ने रानी लक्ष्मीबाई से पहले ही अंग्रेज़ों की सत्ता को सशस्त्र चुनौती दी थी और अंग्रेज़ों की सेना को उनके सामने दो बार मुँह की खानी पड़ी थी। परिचय ~~~~ 'चेन्नम्मा' का अर्थ होता है- 'सुंदर कन्या'। इस सुंदर बालिक

राधा कुंड की मान्यता और इसकी कथा

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"राधा कुंड की मान्यता और इसकी कथा" ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ "अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान से होती है संतान की प्राप्ति"... 🌺भगवान श्री कृष्ण जी की नगरी मथुरा में गोवर्धन गिरधारी की परिक्रमा के मार्ग में एक चमत्कारी कुंड पड़ता है, जिसे राधा कुंड के नाम से जाना जाता है। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि नि:संतान दंपत्ति कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि को यहां दंपत्ति एक साथ स्नान करते हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है। 🌺अहोई अष्टमी का यह पर्व यहां पर प्राचीनकाल से मनाया जाता है। इस दिन पति और पत्नी दोनों ही निर्जला व्रत रखते हैं और मध्य रात्रि में राधाकुंड में डूबकी लगाते हैं तो ऐसा करने पर उस दंपत्ति के घर में बच्चे की किलकारियां शीघ्र ही गूंज उठती है। इतना ही नहीं जिन दंपत्तियों की संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है वह भी अहोई अष्टमी के दिन अपनी संतान के साथ यहां राधा रानी की शरण में हाजरी लगाने आते है। माना जाता है कि यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है। 🌺राधा कुंड की कथा🌺 ~~~~~~~~~~~~~~ इस प्रथा से जुड़ी एक कथा का पुराणों म

आवाज दो, हम एक हैं, हम एक हैं

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🙏🙏 ★आओ कुछ अच्छी बातें करें★ दोस्तों, जब भी मुझे, कोई भी अच्छी बात, सोशल मीडिया या प्रिंट मीडिया पर पढ़ने को मिलती हैं, तो वो मैं कॉपी-पेस्ट-एडिट करके आप सब तक ★आओ कुछ अच्छी बातें करें★ के तहत शेयर जरूर करती हूँ। आज भी "आवाज दो, हम एक हैं, हम एक हैं" विषय पर कुछ अच्छी बातें आपसे शेयर कर रही हूँ, इस प्राथना के साथ कि अगर आपको भी ये बातें अच्छी लगें, तो कृपया दूसरों के लिए, आगे ज़रूर शेयर करे ........ 🙏🙏 #VijetaMalikBJP 🙏आवाज दो, हम एक हैं, हम एक हैं🙏 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ दोस्तों, सिकन्दर लोदी (1489-1517) के शासनकाल से पहले पूरे भारतीय इतिहास में 'चमार' नाम की किसी जाति का उल्लेख नहीं मिलता। आज जिन्हें हम चमार जाति से संबोधित करते हैं और जिनके साथ छूआछूत का व्यवहार करते हैं, दरअसल वह वीर चंवर वंश के क्षत्रिय हैं। जिन्हें सिकन्दर लोदी ने चमार घोषित करके अपमानित करने की चेष्टा की थी। भारत के सबसे विश्वसनीय इतिहास लेखकों में से एक विद्वान कर्नल टाड को माना जाता है, जिन्होनें अपनी पुस्तक द हिस्ट्री आफ राजस्थान में चंवर वंश के बारे में विस्तार से लि

अमर शहीद अशफाक़ उल्ला खां

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अमर शहीद अशफाक़ उल्ला खां ~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🌷🥀🌻🌼💐 तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🌷🌻🌼💐 जीवन परिचय : ~~~~~~~~ अमर शहीद अशफाक़उल्ला खां (22 अक्टूबर 1900 -19 दिसंबर 1927)  भारत माता के वीर सपूत थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिये हँसते –हँसते फांसी पर झूल गए। उनका पूरा नाम अशफाक़ उल्ला खां वारसी ‘हसरत’ था। वे शाहजहांपुर के एक रईस खानदान से आते थे। बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और बाद में

पांड्य नरेश कट्टबोमन जी

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पांड्य नरेश कट्टबोमन जी ~~~~~~~~~~~~~ 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🥀🌹🙏🌷🪷💐 17वीं शताब्दी के अन्त में दक्षिण भारत का अधिकांश भाग अर्काट के नवाब के अधीन था। वह एक बेदम व्यक्तित्व का था, प्रजा में भी अप्रशंसनीय था और लगान भी ठीक से वसूल नहीं कर पाता था। अतः उसने यह काम ईस्ट इंडिया कम्पनी को दे दिया। फिर क्या था; अंग्रेज छल, बल से लगान वसूलने लगे। उनकी शक्ति से अधिकांश राजा डर गये; पर तमिलनाडु के पांड्य नरेश कट्टबोमन ने झुकने से मना कर दिया। उसने अपने जीते जी धूर्त अंग्रेजों को एक पैसा नहीं दिया। कट्टबोमन (बोम्मु) का जन्म 3 जनवरी, 1760 को हुआ था। उनके कुमारस्वामी और दोरेसिंह नामक दो भाई और थे। दोरेसिंह जन्म से ही गूँगा-बहरा थे; पर उसने कई बार अपने भाई कट्टबोमन को संकट से बचाया था। बोम्मु पांड्य नरेश जगवीर के सेनापति थे। उनकी योग्यता एवं वीरता देखकर राजा ने अपनी मृत्यु से पूर्व उन्हें ही राजा बना दिया। राज्य का भार सँभालते ही बोम्मु ने नगर के चारों ओर सुरक्षा हेतु मजबूत परकोटे बनवाये और सेना में नयी

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी

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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ~~~~~~~~~~~~~~ हिन्दी के महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है। जीवन परिचय ~~~~~~~~ सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २१ फ़रवरी, सन् १८९९ में हुआ था। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई। उनका जन्म मंगलवार को हुआ था। जन्म-कुण्डली बनाने वाले पंडित के कहने से उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। उनके पिता पंडित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोलानामक गाँव के निवासी थे। निराला की शिक्षा हाई स्क