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Showing posts from January, 2020

*मत चूको चौहान* *वसन्त पंचमी का शौर्य*

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*मत चूको चौहान*    *वसन्त पंचमी का शौर्य* ~~~~~~~~~~~~~~ *चार बांस, चौबीस गज,                                        अंगुल अष्ठ प्रमाण!* *ता उपर सुल्तान है,  चूको मत चौहान!!*  *वसंत पंचमी का दिन हमें "हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं।* *पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई।*  *चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।*  *इस प

प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जु भैया)

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प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जु भैया) ~~~~~~~~~~~~~~~~~ जन्मदिन विशेष: संघ कार्य को जीवन समर्पित करने वाले रज्जू भैया को नमन दिनांक : 29-जनवरी-2020 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह का जन्म 29 जनवरी, 1922 को ग्राम बनैल (जिला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश) के एक सम्पन्न एवं शिक्षित परिवार में हुआ था। उनके पिता कुंवर बलबीर सिंह अंग्रेज शासन में पहली बार बने भारतीय मुख्य अभियन्ता थे। इससे पूर्व इस पद पर सदा अंग्रेज ही नियुक्त होते थे। उन्हें घर में सब प्यार से रज्जू कहते थे। आगे चलकर उनका यही नाम सर्वत्र लोकप्रिय हुआ। रज्जू भैया बचपन से ही बहुत मेधावी थे। उनके पिता की इच्छा थी कि वे प्रशासनिक सेवा में जायें। इसीलिए उन्हें पढ़ने के लिए प्रयाग भेजा गया लेकिन रज्जू भैया को अंग्रेजों की गुलामी पसन्द नहीं थी। उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम-एस.सी. उत्तीर्ण की और फिर वहीं भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक हो गए। उनकी एम-एस.सी. की प्रयोगात्मक परीक्षा लेने नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सी. वी. रमन आए थे। वे उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपने साथ बंगलुरू चलकर श

लाचित बोड़फुकन

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लाचित बोड़फुकन ~~~~~~~~~~ लाचित दिवस (24 नवम्बर) इतिहास में गुम हैं मुगलों को 17 बार हराने वाले अहोम योद्धा: देश भूल गया ब्रह्मपुत्र के इन बेटों को...... 50,000 से भी अधिक संख्या में आई मुग़ल फ़ौज को हराने के लिए उन्होंने जलयुद्ध की रणनीति अपनाई। ब्रह्मपुत्र नदी और आसपास के पहाड़ी क्षेत्र को अपनी मजबूती बना कर लाचित ने मुगलों को नाकों चने चबवा दिए। उन्हें पता था कि ज़मीन पर मुग़ल सेना चाहे जितनी भी तादाद में हो या कितनी भी मजबूत हो, लेकिन, पानी में उन्हें हराया जा सकता है। काजीरंगा पार्क से लेकर कई अन्य जगहों ऊपर इन वीरों की प्रतिमाएँ लगी हुई हैं। आपने मुगलों और राजपूतों की लड़ाई ज़रूर सुनी होगी। बाबर के ख़िलाफ़ लड़ाई में सैकड़ों घाव लिए लड़ते राणा सांगा की वीरता और अकबर के विरुद्ध घास की रोटी खा कर आज़ादी का युद्ध लड़ने वाले महाराणा प्रताप का नाम सबसे सुना है। उनकी गाथाएँ घर-घर पहुँचनी चाहिए। आज हम आपको कुछ ऐसे योद्धाओं के बारे में बताना चाह रहे हैं, जिन्होंने मुगलों के पसीने छुड़ाए थे। ये हैं असम के अहोम योद्धा। असम को प्राचीन काल में कामरूप या प्राग्यज्योतियशपुरा के रूप में जान

वीर तक्षक

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वीर तक्षक ~~~~~~ आदरणीय भारतवासियों, युगों की राजनीति का इतिहास साक्षी है जिसमें अनेकों सत्ता व व्यवस्था परिवर्तन हुए। प्राचीन काल के राजा – महाराजाओं की धर्मनीति व कूटनीति, बादशाहों की क्रूर व दमन नीति, अंग्रेजों की कुटिल व कठोर नीति और वर्तमान सरकारों की भ्रष्ट व लूट नीति किसी से छिपी नहीं हैं और हमारी फूट के कारण हम पर कितने अत्याचार हुए इससे भी हम भली भांति परिचित हैं। सन 711 की बात है जब अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के बाद  एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब कर व तलवारों से गर्दन काटकर मरने लगीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। भारतीय सैनिकों ने ऎसी बर्बरता पहली बार देखी थी।* बालक तक्षक के पिता कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच

नरेन्द्र मोदी एप्प पर मेरे 10,00,000लाख एक्टिविटी पॉइंट्स

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मेरे दोस्तों, मेरे सहयोगियों, मेरे साथियों, मै जब भी कोई अच्छी बात होती है, तो आप सबसे ज़रूर शेयर करती हूँ । मैने बहुत समय पहले अपने मोबाइल में "NARENDER MODI APP" और "MyGov App" डाऊनलोड किया था । इसके द्वारा मैंने अपने महान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व हमारी भारतीय जनता पार्टी द्वारा हमारे महान देश भारत व देश के लोगो के लिये किये गये सभी महान कार्यो को Narendra Modi App से लेकर अपने अलग-अलग सोशल मीडिया एकाउंट जैसे फेसबुक, फेसबुक पेज, फेसबुक ग्रुप, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टम्बलर, गूगल +, MeWe आदि पर शेयर करके आप सब तक पहुँचाया। इस वजह से लगभग 5सालों में Narendra Modi App पर मेरे Activity Points 26,00,000 (छब्बीस लाख) से भी ज़्यादा हो गए थे और मैं देशभर में Top Volunteers की लिस्ट में चौथे व महिलाओं में पहले स्थान पर थी, तभी मुझे Top 100 Volunteers में शामिल कर लिया गया व मेरे Activity Points शून्य (0) हो गए। मैंने Narendra Modi App पर अपना काम जारी रखा हुआ हैं और आज फिर से मेरे Activity Points 10,00,000 (दस लाख) हो चुके हैं और आप जैसे 11,600 से भी ज़्या

महावीर चक्र विजेता शहीद जसंवत सिंह रावत

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महावीर चक्र विजेता शहीद जसंवत सिंह रावत ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 72 घंटों तक अकेले डटे रहकर 300 चीनी सैनिकों को मारने वाले राइफलमैन जसवंत सिंह की बायोपिक हुई रिलीज ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ देश की जनता ‘उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक’ फिल्म से अभिभूत हो भारतीय सेना के पराक्रम को सेल्यूट करते थक नहीं रही है। यह फिल्म सिर्फ लोगों की वाहवाही ही नहीं बटोर रही बल्कि बॉक्स ऑफिस पर भी खूब धमाल मचा रही है और इसी बीच भारतीय सेना की बहादुरी दिखाती और सिनेमाहॉल में दर्शकों के रोंगटे खड़े कर देने वाली एक और फिल्म रिलीज हो गई है। फिल्म का नाम है ’72 आवर्स: मारटायर हू नेवर डायड’। यह भारतीय सेना के राइफलमैन जसवंत सिंह की बायोपिक है। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान 4-गढ़वाल के राइफलमैन जसवंत सिंह ने अरुणाचल प्रदेश के नूरानंग की लड़ाई में अकेले ही चीन के 300 सैनिकों को मार गिराया था। जसवंत सिंह की कहानी यहीं खत्म नहीं होती, वे आज भी बॉर्डर पर रोज पहरा देते हैं। जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना के एक ऐसे जवान हैं जिन्हें शहीद होने के बाद भी पदोन्नत किया जाता रहा। सेना ने जसवंत सिंह के शहीद होने के 4

17 जनवरी/बलिदान दिवस, रामसिंह कूका और उनके गोभक्त शिष्य

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* 17 जनवरी/बलिदान दिवस,  रामसिंह कूका और उनके गोभक्त शिष्य * गुरु रामसिंह कुका ~~~~~~~~~~ राम सिंह का जन्म बसंतपंचमी, 1816 को भैनी (पंजाब) में एक प्रतिष्ठित, छोटे किसान परिवार में हुआ था। प्रारम्भ में वे अपने परिवार के साथ खेती आदि के काम में ही हाथ बंटाते थे, लेकिन आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण वे प्रवचन आदि भी दिया करते थे। अपनी युवावस्था में ही राम सिंह सांदगी पंसद और नामधारी आंदोलन के संस्थापक 'बालक सिंह' के शिष्य बन गए। बालक सिंह से उन्होंने महान् सिक्ख गुरुओं तथा खालसा नायकों के बारे में जानकारी हासिल की। अपनी मृत्यु से पहले ही बालक सिंह ने राम सिंह को नामधारियों का नेतृत्व सौंप दिया। 20 वर्ष की अवस्था में राम सिंह सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह की सेना में शामिल हुए। सिक्खों के मूलाधार रणजीत सिंह की मृत्यु के उपरांत उनकी सेना और क्षेत्र बिखर गए। ब्रिटिश ताकत और सिक्खों की कमज़ोरी से चिंतित राम सिंह ने सिंक्खों में फिर से आत्म-सम्मान जगाने का निश्चय किया और उन्हें संगठित करने के लिए अनेक उपाय किए। उन्होंने नामधारियों में नए रिवाजों की शुरुआत की और उन्हें उन्म

स्वामी रामभद्राचार्य जी

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*शत्-शत् नमन 14 जनवरी/जन्म-दिवस, विकलांग विश्वविद्यालय के निर्माता स्वामी रामभद्राचार्य* किसी भी व्यक्ति के जीवन में नेत्रों का अत्यधिक महत्व है। नेत्रों के बिना उसका जीवन अधूरा है, पर नेत्र न होते हुए भी अपने जीवन को समाज सेवा का आदर्श बना देना सचमुच किसी दैवी प्रतिभा का ही काम है। जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ऐसे ही व्यक्तित्व हैं। स्वामी जी का जन्म ग्राम शादी खुर्द (जौनपुर, उ.प्र.) में 14 जनवरी, 1950 को पं. राजदेव मिश्र एवं शचीदेवी के घर में हुआ था। जन्म के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि यह बालक अति प्रतिभावान होगा, पर दो माह की अवस्था में इनके नेत्रों में रोहु रोग हो गया। नीम हकीम के इलाज से इनकी नेत्र ज्योति सदा के लिए चली गयी। पूरे घर में शोक छा गया, पर इन्होंने अपने मन में कभी निराशा के अंधकार को स्थान नहीं दिया। चार वर्ष की अवस्था में ये कविता करने लगे। 15 दिन में गीता और श्रीरामचरित मानस तो सुनने से ही याद हो गये। इसके बाद इन्होंने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से नव्य व्याकरणाचार्य, विद्या वारिधि (पी-एच.डी) व विद्या वाचस्पति (ड

सेना दिवस

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15 जनवरी- राष्ट्र कृतज्ञता व्यक्त कर रहा अपने रक्षकों के प्रति आज “थल सेना दिवस” के अवसर पर.. “जय हिन्द की सेना” ये दिन है वर्दी वाले उन फरिश्तों को समर्पित जिनकी भुजाओं के दम पर राष्ट्र की शक्ति का आंकलन हम से लड़ने के झूठे सपने पालता कोई अन्य देश करता है .. ये वही वीर हैं जिनकी भुजाओं के दम पर चीन तक वापस लौट गया और कश्मीर के आतंकी हर दिन अपने अंजाम को पहुचायें जा रहे हैं .. "परित्राणाय साधूना विनाशाय च दुष्कृताम" का सिद्धांत रखने वाली हमारी भारतीय सेना का आज थल सेना दिवस है जिस दिन पूरा देश नमन कर रहा अपने रक्षको को.. ये वही हैं जिनके दम पर हम हैं .. जिनकी वजह से हम अपने घरों में सुरक्षित हैं .. हर कठिन परिस्थिति में अपनी जान की परवाह किए बगैर देश के लिए लड़ने वाली भारतीय सेना हर साल की तरह आज सेना दिवस मना रही है। आज के दिन सेना की कमान पहली बार पूर्ण रूप से भारत के हाथ में आई थी। आज से मुक्त होने के बाद भारतीय फौज ने ऐसे ऐसे युद्ध लड़े जो शायद ही किसी देश की सेना में हिम्मत हो.. इतना ही नही सर्जिकल स्ट्राइक तक को कभी म्यंमार तो कभी पाकिस्तान में घुस क

शौर्य दिवस

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शौर्य दिवस ~~~~~~ 14 जनवरी, इतिहास का एक बड़ा दिन। 259 वर्ष पहले आज ही के दिन पानीपत का तीसरा युद्ध लड़ा गया था (14 जनवरी 1761)। इस युद्ध मे एक लाख मराठो ने अपना बलिदान दिया। युद्ध सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में अफगान के बादशाह अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध हुआ था। आज मराठो द्वारा हरियाणा और महाराष्ट्र में इसे शौर्य दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। युद्ध क्या था, कैसे हुआ, इस पर आज कई पोस्ट लिखे जाएंगे मगर युद्ध के बाद क्या हुआ यह जानना अधिक आवश्यक है। मौलाना अबुल कलाम की शिक्षा ने यह कभी जानने नही दिया कि पानीपत के बाद भारत का क्या हुआ विशेषकर उत्तर भारत का। पानीपत युद्ध से पहले भारत हिंदुराष्ट्र बन चुका था, उड़ीसा से लेकर आज पाकिस्तान के अटक प्रान्त तक मराठा साम्राज्य फैल चुका था। मगर युद्ध के बाद मराठे एक बार फिर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और गुजरात मे सिमट गए। अब्दाली खुद इस युद्ध मे पूरी तरह बर्बाद हो गया और उसे वापस अफगानिस्तान भी जाना था क्योकि वहाँ ईरान के शाह ने हमला कर दिया। अब्दाली जानता था कि अब पेशवा अपने भाई रघुनाथ राव को भेजेंगे, रघुनाथ राव से अब्दाली भी डरता थ

कैलेंडर बदलिए अपनी संस्कृति नही

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कलेंडर बदलिए अपनी संस्कृति नही। अपनी संस्कृति की झलक को अवश्य पढ़ें और साझा करें ।। 1 जनवरी को क्या नया हो रहा है ????? * न ऋतु बदली.. न मौसम * न कक्षा बदली... न सत्र * न फसल बदली...न खेती * न पेड़ पौधों की रंगत * न सूर्य चाँद सितारों की दिशा * ना ही नक्षत्र।। 1 जनवरी आने से पहले ही सब नववर्ष की बधाई देने लगते हैं। मानो कितना बड़ा पर्व हो। नया केवल एक दिन ही नही कुछ दिन तो नई अनुभूति होनी ही चाहिए। आखिर हमारा देश त्योहारों का देश है। ईस्वी संवत का नया साल 1 जनवरी को और भारतीय नववर्ष (विक्रमी संवत) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। आईये देखते हैं दोनों का तुलनात्मक अंतर : 1. प्रकृति- एक जनवरी को कोई अंतर नही जैसा दिसम्बर वैसी जनवरी.. वही चैत्र मास में चारो तरफ फूल खिल जाते हैं, पेड़ो पर नए पत्ते आ जाते हैं। चारो तरफ हरियाली मानो प्रकृति नया साल मना रही हो I 2. मौसम,वस्त्र- दिसम्बर और जनवरी में वही वस्त्र, कंबल, रजाई, ठिठुरते हाथ पैर.. लेकिन चैत्र मास में सर्दी जा रही होती है, गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है I 3. विद्यालयो का नया सत्र- दिसंबर जनवरी मे वही

गोकुल सिंह

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गोकुल सिंह ~~~~~~ गोकुल सिंह तिलपत गाँव के सरदार थे। 10 मई 1666 को जाटों व औरंगजेब की सेना में तिलपत में लड़ाई हुई। लड़ाई में जाटों की विजय हुई। मुगल शासन ने इस्लाम धर्म को बढावा दिया और किसानों पर कर बढ़ा दिया। गोकुला ने किसानों को संगठित किया और कर जमा करने से मना कर दिया। औरंगजेब ने बहुत शक्तिशाली सेना भेजी और भीषण युद्ध के बाद आखिरकार गोकुला को बंदी बना लिया गया और 1 जनवरी 1670 को आगरा के किले पर जनता को आतंकित करने के लिये टुकडे़-टुकड़े कर मारा गया। गोकुला के बलिदान ने मुगल शासन के खातमें की शुरुआत की। मुगल साम्राज्य के विरोध में विद्रोह ~~~~~~~~~~~~~~~~~ मुगल साम्राज्य के राजपूत सेवक भी अन्दर ही अन्दर असंतुष्ट होने लगे परन्तु जैसा कि "दलपत विलास" के लेखक दलपत सिंह [सम्पादक: डॉ॰ दशरथ शर्मा ] ने स्पष्ट कहा है, राजपूत नेतागण मुगल शासन के विरुद्ध विद्रोह करने की हिम्मत न कर सके। असहिष्णु, धार्मिक, नीति के विरुद्ध विद्रोह का बीड़ा उठाने का श्रेय उत्तर प्रदेश के कुछ जाट नेताओं और जमींदारों को प्राप्त हुआ। आगरा, मथुरा, अलीगढ़, इसमें अग्रणी रहे। शाहजहाँ के अन्