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Showing posts from July, 2022

शहीद उधम सिंह जी

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शहीद उधम सिंह जी ~~~~~~~~~~~ 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳  तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 🙏🙏 शहीद उधम सिंह जी एक राष्ट्रवादी भारतीय क्रन्तिकारी थे, जिनका जन्म शेर सिंह के नाम से 26 दिसम्बर 1899 को सुनम, पटियाला, में हुआ था। उनके पिता का नाम टहल सिंह था और वे पास के एक गाँव उपल्ल रेलवे क्रासिंग के चौकीदार थे। सात वर्ष की आयु में उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया जिसके कारण उन्होंने अपना बाद का जीवन अपने बड़े भाई मुक्ता सिंह के साथ 24 अक्टूबर 1907 से केंद्रीय खालसा अनाथालय Central Khalsa Orphanage में जीवन व्यतीत किया।  दोनों भाईयों को सिख समुदाय के संस्कार मिले अनाथालय में जिसके कारण उनके नए नाम रखे गए। शेर सिंह का नाम रखा गया उधम सिंह और मुक्त सिंह का नाम रखा गया साधू सिंह। साल 1917 में उधम सिंह के बड़े भाई का देहांत हो गया और वे अकेले पड़ गए।  उधम सिंह के क्रन्तिकारी जीवन की शुरुवात ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ उधम सिंह ने अनाथालय 1918 को अपनी मेट्रिक की पढाई के बाद छोड़ दिया। वो 13 अप्रैल 1919 को, उस जलिवा

भारत रत्न डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम

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डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी.... 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 प्रसिद्ध वैज्ञानिक, लेखक, अध्येता, प्राध्यापक, एयरोस्पेस इंजीनियर व देश के 11वें राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्र को अपनी सेवाएँ देने वाले भारत रत्न डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी को उनकी पुण्यतिथि पर हम सब भारतवासी उन्हें शत-शत नमन करते हैं। मशहूर सांइटिस्ट और देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति रह चुके डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का नाम आज भी लोगों की जु़बान पर है। उन्होंने अपने उम्दा कार्य से युवा पीढ़ि को तरक्की की एक राह दिखाई है। वे करोड़ों लोगों के प्रेरणा स्त्रोत हैं। उन्होंने अपने जीवन में ऊंचे मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है। जन्म : ~~~ डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडू के एक छोटे से गांव धनुषकोडी में हुआ। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर देते थे। वहीं उनकी माता एक गृहिणी थीं। अखबार बेचकर की पढ़ाई : ~~~~~~~~~~~~~~ घर की आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण डॉ. कलाम को पढ़ाई

महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त

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महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त ~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 भगत सिंह के साथ असेंबली में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त की कहानी बताती है कि अपने महान अमर शहीद क्रांतिकारियों को पूजने वाला यह देश जीते जी उनके साथ क्या सुलूक करता है...... हुसैनीवाला में एक और भी समाधि है.... यह आजादी के उस सिपाही की समाधि है, जो भगत सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा था लेकिन, उसे भुला दिया गया। भगत सिंह के इस साथी का नाम था.... बटुकेश्वर दत्त । भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को लोग फिर भी शहीद दिवस या जन्म दिन के बहाने याद कर लेते हैं लेकिन, बटुकेश्वर दत्त की जिंदगी और उनकी स्मृति, दोनों की आजाद भारत में उपेक्षा हुई है....... बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को तत्कालीन बंगाल में बर्दवान जिले के ओरी गांव में हुआ था। कानपुर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उनकी भगत सिंह से भेंट हुई। यह 1924 की बात है। भगत सिंह से प्रभावित होकर बटुकेश्वर दत्त उनके क्रांतिकारी संगठन हिन्दुस्तान

अमर शहीद मंगल पांडे

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अमर शहीद मंगल पांडे ~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌷🌻💐 1857 क्रांति के महानायक मंगल पांडे ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद ज़िले में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमति अभय रानी था। वे कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में "34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री" की पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही थे। भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई अर्थात 1857 के संग्राम की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई थी। जन्म तारीख और जगह का विवाद ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कुछ् सन्दर्भों में उनका जन्मस्थल अवध की अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर ग्राम (अब ज़िला अम्बेडकरनगर का एक भाग) बताया गया है। इन सन्दर्भों के अनुसार फ़ैज़ाबाद के दुगावाँ-रहीमपुर के मूल निवासी पण्डित दिवाकर पाण्डेय सुरहुरपुर स्थित अपनी ससुराल में बस गये थे। कुछ अन्य स्थानों पर उनकी जन्मतिथि भी 30 जनवरी 1831 बताई गई है। इन सन्दर्भों की सत्यता के बा

पेड़ लगाओ - पर्यावरण बचाओ - जीवन सफल बनाओ

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🙏 ★आओ कुछ अच्छी बातें करें★ दोस्तों, जब भी मुझे, कोई भी अच्छी बात, सोशल मीडिया या प्रिंट मीडिया पर पढ़ने को मिलती हैं, तो वो मैं कॉपी-पेस्ट-एडिट करके आप सब तक ★आओ कुछ अच्छी बातें करें★ के तहत शेयर जरूर करती हूँ। आज भी "पेड़ लगाओ - पर्यावरण बचाओ - जीवन सफल बनाओ" विषय पर कुछ अच्छी बातें आपसे शेयर कर रही हूँ, इस प्राथना के साथ कि अगर आपको भी ये बातें अच्छी लगें, तो कृपया दूसरों के लिए, आगे ज़रूर शेयर करे ........ ........विजेता मलिक पेड़ लगाओ - पर्यावरण बचाओ - जीवन सफल बनाओ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ *वृक्षारोपण के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां* *पुराणों व हिन्दू धर्मग्रंथों में उल्लेखित पर्यावरण ज्ञान* ★ 10 कुॅंओं के बराबर एक बावड़ी, 10 बावड़ियों के बराबर एक तालाब, 10 तालाब के बराबर 1 पुत्र एवं 10 पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है। ( मत्स्य पुराण ) ★ जीवन में लगाये गये वृक्ष अगले जन्म में संतान के रूप में प्राप्त होते हैं। (विष्णु धर्मसूत्र 19/4) ★ जो व्यक्ति पीपल अथवा नीम अथवा बरगद का एक, चिंचिड़ी (इमली) के 10, कपित्थ अथवा बिल्व अथवा ऑंवले के तीन

सिखों के आठवें गुरु हर किशन सिंह जी

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सिखों के आठवें गुरु हर किशन सिंह जी  ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~  सिखों के आठवें गुरु हर किशन सिंह जी का जन्म श्रावण मास, कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को सन् 1656 ई. में कीरतपुर साहिब में हुआ था। उनके पिता सिख धर्म के सातवें गुरु, गुरु हरि राय जी थे और उनकी माता का नाम किशन कौर था।  बचपन से ही गुरु हर किशन जी बहुत ही गंभीर और सहनशील प्रवृत्ति के थे। वे 5 वर्ष की उम्र में भी आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। उनके पिता अकसर हर किशन जी के बड़े भाई राम राय और उनकी कठीन से कठीन परीक्षा लेते रहते थे। जब हर किशन जी गुरुबाणी पाठ कर रहे होते तो वे उन्हें सुई चुभाते, किंतु बाल हर किशन जी गुरुबाणी में ही रमे रहते।   उनके पिता गुरु हरि राय जी ने गुरु हर किशन को हर तरह से योग्य मानते हुए सन् 1661 में गुरुगद्दी सौंपी। उस समय उनकी आयु मात्र 5 वर्ष की थी। इसीलिए उन्हें बाल गुरु कहा गया है। गुरु हर किशन जी ने अपने जीवन काल में मात्र तीन वर्ष तक ही सिखों का नेतृत्व किया।   गुरु हर किशन जी ने बहुत ही कम समय में जनता के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करके लोकप्रियता हासिल की थी। ऊंच-नीच और जाति का भेदभाव मिटाकर

प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जु भैया)

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प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जु भैया) ~~~~~~~~~~~~~~~~~ संघ कार्य को जीवन समर्पित करने वाले रज्जू भैया को नमन 🙏🙏 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह का जन्म 29 जनवरी, 1922 को ग्राम बनैल (जिला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश) के एक सम्पन्न एवं शिक्षित परिवार में हुआ था।  उनके पिता कुंवर बलबीर सिंह अंग्रेज शासन में पहली बार बने भारतीय मुख्य अभियन्ता थे। इससे पूर्व इस पद पर सदा अंग्रेज ही नियुक्त होते थे। उन्हें घर में सब प्यार से रज्जू कहते थे। आगे चलकर उनका यही नाम सर्वत्र लोकप्रिय हुआ।  रज्जू भैया बचपन से ही बहुत मेधावी थे। उनके पिता की इच्छा थी कि वे प्रशासनिक सेवा में जायें। इसीलिए उन्हें पढ़ने के लिए प्रयाग भेजा गया लेकिन रज्जू भैया को अंग्रेजों की गुलामी पसन्द नहीं थी। उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम-एस.सी. उत्तीर्ण की और फिर वहीं भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक हो गए।  उनकी एम-एस.सी. की प्रयोगात्मक परीक्षा लेने नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सी. वी. रमन आए थे। वे उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपने साथ बंगलुरू चलकर शोध करने का आग्रह किया लेकिन रज

चौधरी दारा सिंह जी

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विश्‍व प्रसिद्ध धारावाहिक ‘रामायण’ में प्रभु श्री राम जी के अनन्‍य सेवक श्री हनुमान जी का जीवंत अभिनय करने वाले अभिनेता एवं लोकप्रिय पहलवान ‘रुस्तम-ए-हिन्द’, अखिल भारतीय जाट महासभा के पूर्व अध्यक्ष स्व. चौ.दारा सिंह जी रंधावा जी की पुण्यतिथि पर उन्हेंकोटि कोटि नमन 🙏🙏💐💐 चौधरी दारा सिंह जी का जन्म 19 नवम्बर 1928 गाँव धरमूचक, अमृतसर पंजाब में श्रीमती बलवन्त कौर और श्री सूरत सिंह रन्धावा के यहाँ हुआ था। आप अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान रहे। चौ. दारा सिंह ने 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जार्ज गारडियान्का को पराजित करके कामनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। आप 1968 में वे अमरीका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बन गये। उन्होंने पचपन वर्ष की आयु तक पहलवानी की। आप आजीवन 500 कुश्तियों के अपराजित यौद्धा 53 इंच सीने वाले मर्द महान बलशाली जाट समाज की शान। आपने 1983 में अपने जीवन का अन्तिम मुकाबला जीतने के पश्चात कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया। उन्नीस सौ साठ के दशक में पूरे भारत में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तिय