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Showing posts from November, 2017

महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले

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ज्योतिराव गोविंदराव फुले ~~~~~~~~~~~~~~ ज्योतिराव गोविंदराव फुले (जन्म - ११ अप्रैल १८२७, मृत्यु - २८ नवम्बर १८९०), महात्मा फुले एवं ज्‍योतिबा फुले के नाम से प्रचलित 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। सितम्बर १८७३ में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाजनामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। ज्योतिराव गोविंदराव फुले जन्म : 11 अप्रैल 1827 खानवाडी, पुणे, ब्रिटिश भारत (अब महाराष्ट्र में) मृत्यु : 28 नवम्बर 1890 (उम्र 63) पुणे, ब्रिटिश भारत अन्य नाम : महात्मा फुले/ज्योतिबा फुले/ ज्योतिराव फुले धार्मिक मान्यता : सत्य शोधक समाज जीवन साथी : सावित्रीबाई फुले युग१९वी सदीं आरंभिक जीवन :- महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने कुछ समय

कर्त्तव्यनिष्ठा से उत्कृष्ट जीवन जीने की प्रेरणा देती है गीता – डॉ. मोहन भागवत जी

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कर्त्तव्यनिष्ठा से उत्कृष्ट जीवन जीने की प्रेरणा देती है गीता – डॉ. मोहन भागवत जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा, गीता का अनुसरण करते हुए समाज में लानी होगी एकता एवं आत्मीयता की भावना : कुरुक्षेत्र (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि देश आज जिस परिस्थिति से गुजर रहा है, उसमें गीता का अनुसरण आवश्यक है. समाज में एकता एवं आत्मीयता की भावना लानी होगी. समाज को गीता का संदेश प्रत्यक्ष रूप से जीवन में उतारना होगा. गीता कर्त्तव्य निष्ठा से लेकर उत्कृष्ट जीवन जीने की प्रेरणा देती है. बिना परिणाम की चिंता किए कर्म करना ही गीता का सिद्धांत है. जो जैसा कर्म करेगा, उसे वैसे ही परिणाम मिलेंगे. जो करेगा वह भोगेगा. फल में मोह न रखते हुए कर्म को उत्कृष्ट बना कर समबुद्धि रखते हुए जीवन जीना चाहिए. सरसंघचालक जी शनिवार को कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के शुभारंभ अवसर पर संबोधित कर रहे थे. इस अवसर पर हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी जी, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जी तथा हिमाचल के राज्यपाल आ

डॉ. हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना भारत को परम वैभव संपन्न बनाने के लिए की थी – नरेंद्र कुमार जी

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डॉ. हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना भारत को परम वैभव संपन्न बनाने के लिए की थी – नरेंद्र कुमार जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रांची (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र कुमार जी ने कहा कि प. पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने सन् 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना भारत को परम वैभव सम्पन्न बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रख कर की थी. राष्ट्र को परम वैभव सम्पन्न बनाने का अर्थ है – भारत विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बने. अपने राष्ट्र को परम वैभव सम्पन्न बनाने के लिए डॉ. हेडगेवार जी ने दो सूत्र बताए…..पहला – व्यक्ति निर्माण यानि अनुशासित, देशभक्त, संस्कारित, देश – समाज के लिए निःस्वार्थ भाव से सेवा के लिए तत्पर रहने वाले नागरिकों का निर्माण. दूसरा – समाज का संगठन यानि वैसे संस्कारित व्यक्तियों के माध्यम से ही समाज को संगठित करना. डॉ. हेडगेवार जी ने इन दोनों कार्यों के लिये शाखा पद्धति बनायी. शाखा में खेल, व्यायाम, समता अभ्यास, गीत, बौद्धिक आदि के माध्यम से जीवन में अनुशासन आता है और सामूहिकता विकसित होती है, जिससे समाज संगठित होता है. संघ का लक्ष

27 नवम्बर / इतिहास स्मृति – कोटली के अमर बलिदानी स्वयंसेवक

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27 नवम्बर / इतिहास स्मृति – कोटली के अमर बलिदानी स्वयंसेवक ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ नई दिल्ली. ‘हंस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान’ की पूर्ति के लिए नवनिर्मित पाकिस्तान ने वर्ष 1947 में ही कश्मीर पर हमला कर दिया था. देश रक्षा के दीवाने संघ के स्वयंसेवकों ने उनका प्रबल प्रतिकार किया. उन्होंने भारतीय सेना, शासन तथा जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह को इन षड्यन्त्रों की समय पर सूचना दी. इस गाथा का एक अमर अध्याय 27 नवम्बर, 1948 को कोटली में लिखा गया, जो इस समय पाक अधिकृत कश्मीर में है. युद्ध के समय भारतीय वायुयानों द्वारा फेंकी गयी गोला-बारूद की कुछ पेटियां शत्रु सेना क्षेत्र में जा गिरीं थीं. उन्हें उठाकर लाने में बहुत जोखिम था. वहां नियुक्त कमांडर अपने सैनिकों को गंवाना नहीं चाहते थे, अतः उन्होंने संघ कार्यालय में सम्पर्क किया. उन दिनों स्थानीय पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधक चंद्रप्रकाश जी कोटली में नगर कार्यवाह थे. उन्होंने कमांडर से पूछा कि कितने जवान चाहिए ? कमांडर ने कहा – आठ से काम चल जाएगा. चंद्रप्रकाश जी ने कहा – एक तो मैं हूं, बाकी सात को लेकर आधे घंटे में आता हूं

भारतीय शास्त्रीय संगीत विश्व को सत्य, करुणा और पवित्रता की ओर ले जाता है –  डॉ. मोहन भागवत जी

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भारतीय शास्त्रीय संगीत विश्व को सत्य, करुणा और पवित्रता की ओर ले जाता है –  डॉ. मोहन भागवत जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत का शास्त्रीय संगीत विश्व को सत्य, करुणा और पवित्रता की ओर ले जाता है. जहां विश्व में संगीत में मनोरंजन पक्ष पर ध्यान रखा जाता है, जबकि हमारे देश में परंपरा से संगीत को सत्य, करुणा और पवित्रता उत्पन्न करने वाला माना जाता है. सरसंघचालक जी रविवार को वैशाली नगर स्थित चित्रकूट स्टेडियम में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वर गोविन्दम् कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. संगीत से पैदा होता है समरसता का भाव : सरसंघचालक जी ने कहा कि हमारे संगीत की विशेषता के कारण ही संघ स्थापना के दो-तीन साल में ही कार्य पद्धति में संगीत को स्वीकार कर लिया गया था. गाने वाले और सुनने वालों में संस्कार होते हैं. सामूहिक स्वर में सबके साथ रहने से संस्कार पैदा होता है, समस्वरता से समरसता का भाव पैदा होता है. हम विविधता में एकता को देखें, इसलिए प्रांगणिक संगीत और वादन का चलन संघ में हैं. संगीत के जरिए सभी को