Posts

Showing posts from February, 2021

वासुदेव बलवंत फड़के - एक अमर स्वतंत्रता सेनानी

Image
वासुदेव बलवंत फड़के - एक अमर स्वतंत्रता सेनानी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ हम भूल गए अमर सेनानी वासुदेव बलवंत फड़के को .......... तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी ........... वासुदेव बलवंत फडके .... (4 नवम्बर, 1845 – 17 फरवरी, 1883) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे जिन्हें आदि क्रांतिकारी कहा जाता है। जिनका केवल नाम लेने से युवकोंमें राष्ट्रभक्ति जागृत हो जाती थी, ऐसे थे वासुदेव बलवंत फडके । वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आद्य क्रांतिकारी थे । स्वतंत्र भारत के इस मन्दिर की नींव में पड़े हुए असंख्य पत्थरों को कौन भुला सकता है? जो स्वयं स्वाहा हो गए किन्तु भारत के इस भव्य और स्वाभिमानी मंदिर की आधारशिला बन गए। ऐसे ही एक गुमनाम पत्थर के रूप में थे, बासुदेव बलवन्त फड़के, जिन्होंने 1857 की प्रथम संगठित महाक्रांति की विफलता के बाद आजादी के महासमर की पहली चिनगारी जलायी थी। बासुदेव महाराष्ट्र के कालवा जिले के श्रीधर ग्राम में जन्मे थे। बासुदेव के पिता चाहते थे कि वह एक व्यापारी की दुकान पर दस रुपए मासिक वेतन क

हिन्दू सम्राट महाराज सुहेलदेव जी

Image
महाराजा सुहेलदेव जी ~~~~~~~~~~~ ग्यारवी सदी के प्रारंभिक काल मे भारत मे एक घटना घटी जिसके नायक श्रावस्ती सम्राट वीर सुहलदेव राजभर थे ! राष्ट्रवादियों पर लिखा हुआ कोई भी साहित्य तब तक पूर्ण नहीं कहलाएगा जब तक उसमे राष्ट्रवीर श्रावस्ती सम्राट वीर सुहलदेव राजभर की वीर गाथा शामिल न हो ! कहानियों के अनुसार वह सुहलदेव, सकर्देव, सुहिर्दाध्वाज राय, सुहृद देव, सुह्रिदिल, सुसज, शहर्देव, सहर्देव, सुहाह्ल्देव, सुहिल्देव और सुहेलदेव जैसे कई नामों से जाने जाते है ! श्रावस्ती सम्राट वीर सुहलदेव राजभर का जन्म बसंत पंचमी सन् १००९ ई. मे हुआ था ! इनके पिता का नाम बिहारिमल एवं माता का नाम जयलक्ष्मी था ! सुहलदेव राजभर के तीन भाई और एक बहन थी बिहारिमल के संतानों का विवरण इस प्रकार है ! १. सुहलदेव २. रुद्र्मल ३. बागमल ४. सहारमल या भूराय्देव तथा पुत्री अंबे देवी ! सुहलदेवराजभर की शिक्षा-दीक्षा योग्य गुरुजनों के बिच संपन्न हुई ! अपने पिता बिहारिमल एवं राज्य के योग्य युद्ध कौशल विज्ञो की देखरेख मे सुहलदेवराजभर ने युद्ध कौशल, घुड़सवारी, आदि की शिक्षा ली ! सुहलदेव राजभर की बहुमुखी प्रतिभा एवं लोकप्

बलिदानी बालक वीर हकीकत राय

Image
#बलिदानी_बालक_वीर_हकीकत_राय ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ *बसंत पंचमी - एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य* 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 ऐतिहासिक महत्व - ~~~~~~~~~~ वसंत पंचमी का दिन हमें धर्मवीर हकीकतराय के बलिदान दिवस की भी याद दिलाता है। तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... भारत वह वीरभूमि है, जहाँ हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों में छोटे बच्चे भी पीछे नहीं रहे। हकीकत राय का जन्म पंजाब प्रांत के सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में 1719 में एक खत्री व्यापारी घराने में हुआ। हकीकत अपने माता पिता की इकलौती संतान थे। उनके पिता का नाम भागमल तथा माता का नाम गौरा था। बालक हकीकत बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि तथा धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अपनी संस्कृति तथा वैदिक धर्म के प्रति उनकी निष्ठा अटूट थी। उस समय भारत पर मुस्लिम साम्राज्य था, जिसके चलते  विद्यालयों की जगह मदरसे हुआ करते थे जिनमें पढ़ाने का काम काजियों का था तथा उर्दू व फारसी राज्यकीय भाषा थी, इसलिए फारसी का ज्ञान होना आवश्यक था, जिस कारण हकीकत के माता पिता ने उन्हें पढ़ाई के लि

बसन्त पंचमी

Image
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥ या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥ समस्त देश एवं प्रदेशवासियों को बसंत पंचमी एवं सरस्वती पूजा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। यह बसंत आप सभी के जीवन में सुख-समृद्धि एवं धन वैभव की वर्षा करें।  #HappyVasantPanchami #BasantPanchami2021 #SaraswatiPooja * बसंत पंचमी - एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य * 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ | इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। ऐतिहासिक महत्व - ~~~~~~~~~~ वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और सद्गुण विकृति के कारण उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उन

सुषमा स्वराज जी

Image
सुषमा स्वराज जी ~~~~~~~~~ देश की प्रिय नेत्री, सौम्यता व सादगी की प्रतिमूर्ति, ओजस्वी वक्ता, पद्म विभूषित, परम श्रद्धेय सुषमा स्वराज जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन💐💐 (१४ फरवरी, १९५२ - ०६ अगस्त, २०१९)  एक भारतीय महिला राजनीतिज्ञ और भारत की पूर्व विदेश मंत्री थीं। वे वर्ष २००९ में भारत की भारतीय जनता पार्टी द्वारा संसद में विपक्ष की नेता चुनी गयी थीं, इस नाते वे भारत की पन्द्रहवीं लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता रही हैं। इसके पहले भी वे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में रह चुकी हैं तथा दिल्लीकी मुख्यमन्त्री भी रही हैं। वे सन २००९ के लोकसभा चुनावों के लिये भाजपा के १९ सदस्यीय चुनाव-प्रचार-समिति की अध्यक्ष भी रही थीं। सुषमा स्वराज संक्षिप्त परिचय ~~~~~~~~ विदेश मंत्री पद बहाल २६ मई २०१४ – 24 मई 2019 विपक्ष की नेता पद बहाल २१ दिसम्बर २००९ – २६ मई २०१४ संसदीय मामलों की मंत्री पद बहाल २९ जनवरी २००३ – २२ मई २००४ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्री पद बहाल २९ जनवरी २००३ – २२ मई २००४ सूचना एवं प्रसारण मंत्री पद बहाल ३० सितम्बर २००० – २९ जनवरी २००३ दिल्ली की मुख्यमंत्री पद बहाल १३ अक्तूबर

हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल जी

Image
महाराजा सूरजमल ~~~~~~~~~~ महाराजा सूरजमल नाम है उस राजा का, जिसने मुगलों के सामने कभी घुटने नहीं टेके। राजस्थान की रेतीली जमीन में चाहे अनाज की पैदावार भले ही कम होती रही हो, पर इस भूमि पर वीरों की पैदावार सदा ही बढ़ोतरी से हुई है। अपने पराक्रम और शौर्य के बल पर इन वीर योद्धाओं ने राजस्थान के साथ-साथ पूरे भारतवर्ष का नाम समय-समय पर रौशन किया है। कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान नाम पड़ने से पहले इस मरू भूमि को 'राजपुताना' कहकर पुकारा था. इस राजपूताने में अनेक राजपूत राजा-महाराजा पैदा हुए। पर आज की कहानी है, इन राजपूत राजाओं के बीच पैदा हुए इतिहास के एकमात्र जाट महाराजा सूरजमल की। जिस दौर में राजपूत राजा मुगलों से अपनी बहन-बेटियों के रिश्ते करके जागीरें बचा रहे थे। उस दौर में यह बाहुबली अकेला मुगलों से लोहा ले रहा था. सूरजमल को स्वतंत्र हिन्दू राज्य बनाने के लिए भी जाना जाता है। महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ. यह इतिहास की वही तारीख है, जिस दिन हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हुई थी। मुगलों के आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देने में उत्तर भारत में जिन राज

स्वामी दयानन्द सरस्वती जी

Image
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ~~~~~~~~~~~~~~~ स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म गुजरात के भूतपूर्व मोरवी राज्य के टकारा गाँव में 12 फरवरी 1824 (फाल्गुन बदि दशमी संवत् 1881) को हुआ था।  मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण आपका नाम मूलशंकर रखा गया।  आपके पिता का नाम अम्बाशंकर था। आप बड़े मेधावी और होनहार थे।  मूलशंकर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।  दो वर्ष की आयु में ही आपने गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण करना सीख लिया था। घर में पूजा-पाठ और शिव-भक्ति का वातावरण होने के कारण भगवान् शिव के प्रति बचपन से ही आपके मन में गहरी श्रद्धा उत्पन्न हो गयी। अत: बाल्यकाल में आप शंकर के भक्त थे।  कुछ बड़ा होने पर पिता ने घर पर ही शिक्षा देनी शुरू कर दी।  मूलशंकर को धर्मशास्त्र की शिक्षा दी गयी। उसके बाद मूलशंकर की इच्छा संस्कृत पढने की हुई। चौदह वर्ष की आयु तक मूलशंकर ने सम्पूर्ण संस्कृत व्याकरण, `सामवेद' और 'यजुर्वेद' का अध्ययन कर लिया था। ब्रह्मचर्यकाल में ही आप भारतोद्धार का व्रत लेकर घर से निकल पड़े। मथुरा के स्वामी विरजानंद इनके गुरू थे।  शिक्षा प्राप्त कर गुरु की आज्ञा से ध

अमर शहीद सोहनलाल पाठक जी

Image
अमर शहीद सोहनलाल पाठक ~~~~~~~~~~~~~~~~ सोहनलाल पाठक जी (१८८३-) भारतीय स्वतंत्रतता के लिये शहीद होने वाले क्रांतिकारी थे। परिचय : ~~~~~ सोहनलाल का जन्म सन् १८८३ में पट्टी गाँव जिला अमृतसरमें पंडित जिंदा राम के घर में हुआ था। गाँव में मिडिल पास कर वह शिक्षक बन गए। इसी बीच उनका सम्पर्क लाला हरदयाल और लाला लाजपत राय से हुआ, जिनकी प्रेरणा से वह निष्ठावान क्रांतिकारी बने। उनके एक मित्र ज्ञान सिंह स्याम देश में रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े थे। उन्हीं के आग्रह पर सोहनलाल पाठक भी यहाँ पहुंचे, परन्तु कार्यक्षेत्र सीमित जानकर वहाँ से उन्होंने अमेरिका जाने का निश्चय किया। सोहनलाल पाठक को जहाँ विनायक दामोदर सावरकर से क्रांतिकारी बनने की प्रेरणा मिली वहीं नलिनी घोष भी उनके प्रेरणास्रोत रहे। नलिनी घोष नज़रबंद थे। अंग्रेजों की आँख में धूल झोंक कर वह चंदन नगर पहुँच गए और वेश बदलकर सन् १९१९ में बिहार पहुँच कर संगठन कार्य का संचालन करने लगे। पुलिस के पीछा करने पर वह गौहाटी चले गए और वहाँ सक्रिय हो गए। लेकिन पुलिस ने उनका पीछा यहाँ भी नहीं छोड़ा और तंग आकर घोष को दूसरा अड्डा तलाशना पड़

प्रेरक संस्मरण पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी

Image
प्रेरक संस्मरण पंडित दीनदयाल उपाध्याय :  एकात्म मानववाद के प्रणेता ~~~~~~~~~~~~~~ किसी ने सच ही कहा है कि कुछ लोग सिर्फ समाज बदलने के लिए जन्म लेते हैं और समाज का भला करते हुए ही खुशी से मौत को गले लगा लेते हैं । उन्हीं में से एक हैं पं. दीनदयाल उपाध्याय जी, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी समाज के लोगों को ही समर्पित कर दी । पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के बचपन की कहानी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कहते हैं कि जो व्यक्ति प्रतिभाशाली होता है, उसने बचपन से प्रतिभा का अर्थ समझा होता है और उनके बचपन के कुछ किस्से ऐसे होते हैं जो उन्हें प्रतिभाशाली बना देते हैं । उनमें से एक हैं पं. दीनदयाल उपाध्याय जी , जिन्होंने अपने बचपन से ही जिन्दगी के महत्व को समझा और अपनी जिन्दगी में समय बर्बाद करने की अपेक्षा समाज के लिए नेक कार्य करने में समय व्यतीत किया । पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को ब्रज के मथुरा ज़िले के छोटे से गांव, जिसका नाम “नगला चंद्रभान” था, में हुआ था । पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का बचपन घनी परेशानियों के बीच बीता । पं. दीनदयाल जी के पिता का नाम ‘श्री भगवती प्रसा

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी

Image
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ~~~~~~~~~~~~~~ पूरा नाम      : पंडित दीनदयाल उपाध्याय अन्य नाम    : दीना जन्म          : 25 सितंबर, सन् 1916 ई. जन्म भूमिन : गला चंद्रभान, मथुरा मृत्यु           : 11 फ़रवरी, सन् 1968 ई. मृत्यु स्थान   : मुग़लसराय अभिभावक  : पिता-भगवती प्रसाद उपाध्याय, माता-रामप्यारी पार्टी            : भारतीय जनता पार्टी पद              : अध्यक्ष कार्य काल    : सन 1953 से 1968 ई. शिक्षा           : बी. ए. विद्यालय       : बिड़ला कॉलेज, एस.डी. कॉलेज, कानपुर भाषा            : हिन्दी रचनाएँ          : राष्ट्र धर्म, पांचजन्य, स्वदेश, एकात्म मानववाद, लोकमान्य तिलक की राजनीति अन्य जानकारी: दीनदयाल उपाध्याय की पुस्तक 'एकात्म मानववाद' (इंटीग्रल ह्यूमेनिज़्म) है जिसमें साम्यवाद और पूंजीवाद, दोनों की समालोचना की गई है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय (जन्म:25 सितंबर, 1916 - मृत्यु: 11 फ़रवरी 1968) भारतीय जनसंघ के नेता थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक प्रखर विचारक, उत्कृष्ट संगठनकर्ता तथा एक ऐसे नेता थे जिन्होंने जीवनपर्यंन्त अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी व सत्यनिष्ठा को महत्त्व दिया। वे