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Showing posts from July, 2021

मुंशी प्रेमचंद

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मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जन्म ~~~ प्रेमचन्द का जन्म ३१ जुलाई सन् १८८० को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे। जीवन ~~~~ धनपतराय की उम्र जब केवल आठ साल की थी तो माता के स्वर्गवास हो जाने के बाद से अपने जीवन के अन्त तक लगातार विषम परिस्थितियों का सामना धनपतराय को करना पड़ा। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक प्रेम व स्नेह को चाहते हुए भी ना पा सका। आपका जीवन गरीबी में ही पला। कहा जाता है कि आपके घर में भयंकर गरीबी थी। पहनने के लिए कपड़े न होते थे और न ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली माँ का व्यवहार भी हालत को खस्ता करने वाला था। शादी ~~~ आपके पिता ने केवल १५ साल की आयू में आपका विवाह करा दिया। पत्नी उम्र में आपसे बड़ी और बदसूरत थी। पत्नी की सूरत और उसके जबान ने आपके जले पर नमक का काम किया। आप स्वयं लिखते हैं, "उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया।......." उसके

शहीद उधम सिंह

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शहीद उधम सिंह जी ~~~~~~~~~~~ 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳 तुम भूल ना जाओ उनको इसलिए लिखी ये कहानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 🙏🙏 शहीद उधम सिंह जी एक राष्ट्रवादी भारतीय क्रन्तिकारी थे, जिनका जन्म शेर सिंह के नाम से 26 दिसम्बर 1899 को सुनम, पटियाला, में हुआ था। उनके पिता का नाम टहल सिंह था और वे पास के एक गाँव उपल्ल रेलवे क्रासिंग के चौकीदार थे। सात वर्ष की आयु में उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया जिसके कारण उन्होंने अपना बाद का जीवन अपने बड़े भाई मुक्ता सिंह के साथ 24 अक्टूबर 1907 से केंद्रीय खालसा अनाथालय Central Khalsa Orphanage में जीवन व्यतीत किया। दोनों भाईयों को सिख समुदाय के संस्कार मिले अनाथालय में जिसके कारण उनके नए नाम रखे गए। शेर सिंह का नाम रखा गया उधम सिंह और मुक्त सिंह का नाम रखा गया साधू सिंह। साल 1917 में उधम सिंह के बड़े भाई का देहांत हो गया और वे अकेले पड़ गए। उधम सिंह के क्रन्तिकारी जीवन की शुरुवात ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ उधम सिंह ने अनाथालय 1918 को अपनी मेट्रिक की पढाई के बाद छोड़ दिया। वो 13 अप्रैल 1919 को, उस ज

प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जु भैया)

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प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जु भैया) ~~~~~~~~~~~~~~~~~ संघ कार्य को जीवन समर्पित करने वाले रज्जू भैया को नमन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह का जन्म 29 जनवरी, 1922 को ग्राम बनैल (जिला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश) के एक सम्पन्न एवं शिक्षित परिवार में हुआ था। उनके पिता कुंवर बलबीर सिंह अंग्रेज शासन में पहली बार बने भारतीय मुख्य अभियन्ता थे। इससे पूर्व इस पद पर सदा अंग्रेज ही नियुक्त होते थे। उन्हें घर में सब प्यार से रज्जू कहते थे। आगे चलकर उनका यही नाम सर्वत्र लोकप्रिय हुआ। रज्जू भैया बचपन से ही बहुत मेधावी थे। उनके पिता की इच्छा थी कि वे प्रशासनिक सेवा में जायें। इसीलिए उन्हें पढ़ने के लिए प्रयाग भेजा गया लेकिन रज्जू भैया को अंग्रेजों की गुलामी पसन्द नहीं थी। उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम-एस.सी. उत्तीर्ण की और फिर वहीं भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक हो गए। उनकी एम-एस.सी. की प्रयोगात्मक परीक्षा लेने नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सी. वी. रमन आए थे। वे उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपने साथ बंगलुरू चलकर शोध करने का आग्रह किया लेकिन रज्ज

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालकों की सूची व सरसंघचालक परम्परा

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालकों की सूची व सरसंघचालक परम्परा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालकों की सूची : १. डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टर साहब (1925-1940) २. माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी (1940-1973) ३. मधुकर दत्तात्रय देवरस उपाख्य बालासाहेब देवरस (1973-1993) ४. प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया (1993-2000) ५. कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन उपाख्य सुदर्शनजी (2000-2009) ६. डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत (2009...) सरसंघचालक परम्परा ~~~~~~~~~~~~ प्राय: ऐसा कहा जाता है कि कि संघ एक विकासशील संगठन है। केवल शाखा या विविध कार्य ही नहीं, तो अनेक परम्पराएं भी स्वयं विकसित होती चलती हैं। पारिवारिक संगठन होने के कारण यहां हर काम के लिए संविधान नहीं देखना पड़ता। बाहर से देखने वाले को शायद यह अजीब लगता हो; पर जो लोग संघ और उसकी कार्यप्रणाली को लम्बे समय से देख रहे हैं, वे इसकी वास्तविकता से परिचित हैं। उनके लिए यह सामान्य बात है। यदि हम सरसंघचालक परम्परा को देखें, तो परम पूजनीय डाक्टर हेडगेवार को उनके सहयोगियों न