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Showing posts from May, 2022

गोवा की आजादी की लड़ाई

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गोवा की आजादी की लड़ाई ~~~~~~~~~~~~~~ 🙏 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी..... 🙏 साथियों, आज अमर शहीद करतार सिंह सराभा जी की जयंती हैं, हम सब भारतवासी उन्हें याद कर रहे हैं। पर एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसके शहीद करतार सिंह सराभा, शहीद भगत सिंह, शहीद ऊधम सिंह, जैसे महान अमर शहीद जिसके आदर्श थे और वो अपने स्कूल में व अन्य मीटिंग में अक्सर इनके क़िस्से, कहानियां व गीत अपने साथियों को सुनाया करते थे और अपने आदर्श इन्हीं अमर शहीदों की तरह एक दिन खुद भी शहीद हो गए। वो थे "अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ( बेनीवाल )"। आइये जानते हैं कुछ उनके बारे मे ........ अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ( बेनीवाल ) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ करनैल सिंह बेनिपाल जी का जन्म 9 सितम्बर 1930 को ज़िला लुधियाना के खन्ना क़स्बे के पास इस्सरू गाँव में हुआ था । उनके पिता का नाम सरदार सुन्दर सिंह व माता का नाम हरनाम कौर था। जब करनैल सिंह मात्र 7 वर्ष के ही थे तो इनके पिता जी चल बसे। करनैल सिंह की चार बहने व तीन भाई थे। पिता की मृत्यु ये बाद इनकी माता जी व बड

राजमाता अहिल्याबाई होल्कर जी

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राजमाता अहिल्याबाई होल्कर ~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🌷🙏🙏🌻🌼💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी... 🌺🌹🌷🙏🙏🌻🌼💐 राजमाता अहिल्याबाई होल्कर.. हिन्दू संस्कृति को किया स्थापित.. आक्रान्ताओं द्वारा तोड़े गए मन्दिरों का कराया जीर्णोद्धार.. धर्ममूर्ति राजमाता अहिल्याबाई होल्कर के महान योगदान की गौरव गाथा को निष्पक्ष भारतीय इतिहास कभी विस्मृत नहीं कर सकता.. हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिए अहिल्याबाई होलकर जी का योगदान अद्वितीय है..! . मुहम्मद बिन कासिम (712) के आक्रमण से लेकर मुगलों के शासन तक मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हजारों मन्दिर तोड़े गए.. लेकिन हिन्दू समाज अवसर प्राप्त होते ही उस स्थान पर नये मन्दिरों का निर्माण करता रहा.. इस कार्य में देश की जिन महान विभूतियों ने सर्वाधिक योगदान दिया उसमें एक प्रमुख नाम मराठा सरदार एवं मालवा के शासक मल्हार राव होल्कर जी की पुत्रवधु और खण्डेराव जी की धर्मपत्नी अहिल्या बाई होल्कर जी का है..! . मुगलों पर मराठों की विजय के पश्चात मल्हार राव ने मस्जिद को हटाकर उसी प्राचीन स्थान पर काशी विश्वेश्वर मन्दिर के निर्माण का संकल्प लि

गुरु अर्जुन देव जी

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गुरु अर्जुन देव (पंचम सिख गुरु) ~~~~~~~~~~~~~~~~ अपनी शहादत और अध्यात्म दर्शन के लिए मशहूर, सिख पंथ के पांचवें गुरु अर्जन देव जी के प्रकाश पर्व पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। गुरू अर्जुन देव (15 अप्रेल 1563 – 30 मई 1606 सिखों के 5वे गुरु थे। गुरु अर्जुन देव जी शहीदों के सरताज एवं शान्तिपुंज हैं। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है। गुरुग्रंथ साहिब में तीस रागों में गुरु जी की वाणी संकलित है। गणना की दृष्टि से श्री गुरुग्रंथ साहिब में सर्वाधिक वाणी पंचम गुरु की ही है। ग्रंथ साहिब का संपादन गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास की सहायता से 1604में किया। ग्रंथ साहिब की संपादन कला अद्वितीय है, जिसमें गुरु जी की विद्वत्ता झलकती है। उन्होंने रागों के आधार पर ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझबूझ का ही प्रमाण है कि ग्रंथ साहिब में 36महान वाणीकारों की वाणियां बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई। अर्जुन देव जी गुरु राम दास के सुपुत्र थे।

चौधरी चरण सिंह जी

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चौधरी चरण सिंह ~~~~~~~~~ राजनेता व भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जन्म: 23 दिसम्बर, 1902, नूरपुर, यूनाइटेड प्रोविंस, ब्रिटिश इंडिया निधन: 29 मई, 1987 कार्य: राजनेता, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह एक भारतीय राजनेता और देश के पांचवे प्रधानमंत्री थे। भारत में उन्हें किसानों की आवाज़ बुलन्द करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है। हालांकि वे भारत के प्रधानमंत्री बने पर उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा। प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने भारत के गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के तौर पर भी कार्य किया था। वे दो बार उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे और उसके पूर्व दूसरे मंत्रालयों का कार्यभार भी संभाला था। वे महज 5 महीने और कुछ दिन ही देश का प्रधानमंत्री रह पाए और बहुमत सिद्ध करने से पहले ही त्यागपत्र दे दिया। प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~ चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को यूनाइटेड प्रोविंस (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के नूरपुर गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। इनके परिवार का सम्बन्ध बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह से था जिन्होंने 1887 की क्रान्ति में विशेष योगदान दिया था

वीर सावरकर

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सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व, सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य, सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार। ......... अटल बिहारी वाजपेयी #VeerSavarkar जी की जयंती पर कोटि कोटि नमन। 🙏 🌺🌺🌺🌺🌺 वीर सावरकर ~~~~~~~ भारत के स्वंत्रता सेनानियों में विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें वीर सावरकर / Veer Savarkar के नाम से हम सब भलीभांति परिचित है। वीर सावरकर एक ऐसे सिद्धहस्त लेखक थे जब इन्होने पहली बार लेखनी चलायी तो सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजो के दमनकारी सन 1857 के स्वंत्रता संग्राम का इतना सटीक वर्णन किया की इनके पहले ही प्रकाशन से अंगेजी सत्ता इतनी डर गयी कि यहाँ तक की अंगेजो को इनके प्रकाशन पर रोक लगाना पड़ा था। वीर सावरकर एक ऐसे देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया पर जब नाशिक में शोक सभा का आयोजन किया गया तो सबसे पहले इसका खुलकर विरोध वीर सावरकर ने ही किया था और विरोध करते हुए सावरकर ने कहा था की क्या कोई अंग्रेज हमारे देश के महापुरुषों की मृत्यु पर शोक सभा करते है। जब अंग्रेज हमारे देश में होकर भी हमारे बा

हिन्दू कुलभूषण चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान

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हिन्दू कुलभूषण चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 🚩 पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है। हिंदुत्व के योद्धा कहे जाने वाले चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे। महज 11 वर्ष की उम्र मे, उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था, परंतु अंत मे वे विश्वासघात के शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया। पृथ्वीराज को राय पिथोरा भी कहा जाता था। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे, उन्होने युध्द के अनेक गुण सीखे थे। उन्होने अपने बाल्यकाल से ही शब्ध्भेदी बाण विद्या का भी अभ्यास किया था और इसमें वे अत्यंत कुशल थे। पृथ्वीराज चौहान का जन्म ~~~~~~~~~~~~~~ भारत धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 मे हुआ। पृथ्वीराज अजमेर के महाराज सोमेश्र्वर और क

हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहन

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महान हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहन ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🌷🙏🙏🌻🌼💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🌹🌷🙏🙏🌻🌼💐 पुरा नाम :-          पृथ्वीराज चौहान अन्य नाम :-         राय पिथौरा माता/पिता :-       राजा सोमेश्वर चौहान/कमलादेवी पत्नी :-               संयोगिता जन्म :-               1149 ई.  राज्याभिषेक :-     1169 ई.   मृत्यु :-                1192 ई. राजधानी :-          दिल्ली, अजमेर वंश :-                 चौहान (राजपूत) हिन्दू आज की पिढी इनकी वीर गाथाओ के बारे मे.. बहुत कम जानती है..!! तो आइए जानते है.. #HinduSamratPrithvirajChauhan  से जुडा इतिहास एवं कुछ रोचक तथ्य,,, ''(1)  प्रथ्वीराज चौहान ने 12 वर्ष कि उम्र मे बिना किसी हथियार के खुंखार जंगली शेर का जबड़ा फाड़ ड़ाला था । (2) पृथ्वीराज चौहान ने 16 वर्ष की आयु मे ही महाबली नाहरराय को युद्ध मे हराकर माड़वकर पर विजय प्राप्त की थी। (3) पृथ्वीराज चौहान ने तलवार के एक वार से जंगली हाथी का सिर धड़ से अलग कर दिया था । (4) महान सम्

मल्हारराव होलकर जी

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मल्हारराव होल्कर   ~~~~~~~~~ मल्हारराव होलकर जी का जन्म:16 मार्च 1693 ई. को हुआ था। वो इंदौर के होल्कर वंश का प्रवर्तक थे। मल्हार राव विशेष रूप से मध्य भारत में मालवा के पहले मराठा सूबेदार होने के लिये जाना जाते थे। यह होल्कर परिवार के पहले राजकुमार थे, जिन्होंने इंदौर के राज्य पर शासन किया था। उन्होंने पेशवा बाजीराव प्रथम को कई युद्धों में विजय दिलवाई थी। उनके वंशजों द्वारा शासित राज्य को 1948 ई. में भारतीय गणराज्य में सम्मिलित कर लिया गया था। मल्हारराव अपने मामा बाजीराव बरगल के घर पर तलोदा में पले बढ़े थे। 1717 ई. में मल्हाराव का विवाह गौतमा बाई से हुआ था। उन्होंने बाना बाई साहिब होल्कर, द्वारका बाई साहिब होल्कर, हरकू बाई साहिब होल्कर के साथ भी विवाह किया था। वे प्रारम्भ में पेशवा बाजीराव प्रथम (1720-1740 ई.) की सेवा में रहे थे। पेशवा बाजीराव प्रथम की मल्हाराव ने काफ़ी दिनों तक सेवा की तथा कई विजय अभियानों में भी भाग लिया था। पेशवा बाजीराव प्रथम ने उनकी स्वामी भक्ति के फलस्वरूप मध्य भारत में एक बड़ा क्षेत्र उसके शासन में कर दिया गया। मल्हारराव होल्कर के उत्तराधिका

किसान मसीहा बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत जी

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चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत #किसान_मजदूर_और_कमेरे_वर्ग_के_महात्मा_की_पुण्यतिथि_पर_विशेष ----------------------- #जीवन_यात्रा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत जी की पुण्यतिथि पर शत्-शत् नमन् 🙏🏻 (6 अक्टूबर 1935 – 15 मई 2011) --------------------------------------------- #किसान_मसीहा_चौधरी_महेंद्र_सिंह_टिकैत का जन्म #मुजफ्फरनगर के कस्बा #सिसौली में 6 अक्टूबर 1935 में एक जाट परिवार में हुआ था। गांव के ही जूनियर हाईस्कूल में कक्षा सात तक पढ़ाई की। उनके पिता का नाम चौधरी चौहल सिंह टिकैत और माता जी श्रीमती मुख्त्यारी देवी थीं। चौधरी चौहल सिंह टिकैत बालियान खाप के चौधरी थे। चौधरी महेन्‍द्र सिंह टिकैत को एक जुझारु किसान नेता के तौर पर पूरी दुनिया जानती है लेकिन यह व्‍यक्ति एक दिन में या किसी की कृपा से 'किसानों का मसीहा' नहीं बन गया बल्कि सच तो यह है कि कभी इस शख्‍सीयत ने धूप-छांव, भूख-प्‍यास, लाठी-जेल की परवाह नहीं की। अगर अपने कदमों को किसान संघर्ष के लिए बाहर निकाल दिया तो फिर कभी पीठ नहीं दिखाई चौधरी साहब किसानों के सच्चे हितैषी और किसानों को उनका हक दिलाने के लिए सदैव तत

अमर शहीद सुखदेव जी

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क्रांतिवीर श्री सुखदेव जी ~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 स्वतन्त्रता संग्राम के समय उत्तर भारत में क्रान्तिकारियों की दो त्रिमूर्तियाँ बहुत प्रसिद्ध हुईं। पहली चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल तथा अशफाक उल्ला खाँ की थी, जबकि दूसरी भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु की थी। इनमें से सुखदेव का जन्म ग्राम नौघरा (जिला लायलपुर, पंजाब, वर्तमान पाकिस्तान) में 15 मई, 1907 को हुआ था। इनके पिता प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता श्री रामलाल थापर तथा माता श्रीमती रल्ली देई थीं। सुखदेव के जन्म के दो साल बाद ही पिता का देहान्त हो गया। अतः इनका लालन-पालन चाचा श्री अचिन्तराम थापर ने किया। सुखदेव के जन्म के समय वे जेल में मार्शल लाॅ की सजा भुगत रहे थे। ऐसे क्रान्तिकारी वातावरण में सुखदेव बड़ा हुए। जब वह तीसरी कक्षा में थे, तो गवर्नर उनके विद्यालय में आये। प्रधानाचार्य के आदेश पर सब छात्रों ने गवर्नर को सैल्यूट दिया; पर सुखदेव ने ऐसा नहीं किया। जब उनसे पूछताछ हुई, तो उन्होंने साफ कह दिया

अपराजेय, अप्रतिम वीर छत्रपति संभाजी महाराज

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अपराजेय, अप्रतिम वीर छत्रपति संभाजी महाराज ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🙏🌻🌷💐 हिन्दुस्थान में हिंदवी स्वराज एवं हिन्दू पातशाही की गौरवपूर्ण स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के जयेष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर गढ पर हुआ। छत्रपति संभाजी के जीवन को यदि चार पंक्तियों में संजोया जाए तो यही कहा जाएगा कि: 'देश धरम पर मिटने वाला, शेर शिवा का छावा था। महा पराक्रमी परम प्रतापी, एक ही शंभू राजा था।।' संभाजी महाराज का जीवन एवं उनकी वीरता ऐसी थी कि उनका नाम लेते ही औरंगजेब के साथ तमाम मुगल सेना डर से थर्राने लगती थी। संभाजी के घोड़े की टाप सुनते ही मुगल सैनिकों के हाथों से अस्त्र-शस्त्र छूटकर गिरने लगते थे। यही कारण था कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद भी संभाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज को अक्षुण्ण रखा था। वैसे शूरता-वीरता के साथ निडरता का वरदान भी संभाजी को अपने पिता शिवाजी महाराज से मानों विरासत में प्राप्त हुआ

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह

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वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ महाराणा प्रताप जन्मभूमि की स्वतंत्रता के संघर्ष के प्रतिक है। वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, आदर्श संगठनकर्ता और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहने वाले महान सेनानी थे।  अपनी संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए उन्होंने वन-वन भटकना तो स्वीकार किया मगर क्रूर मुग़ल सम्राट अकबर के सामने अधीनता स्वीकार नहीं की।  महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के ऐसे महानायक है, जिनकी अनन्य विशेषताओ पर भारतीय इतिहासकारों ही नहीं, पाश्चात्य लेखकों और कवियों को भी अपनी लेखनी चालायी है। प्रताप स्वदेश पर अभिमान करने वाले, स्वतंत्रता के पुजारी, दृढ़ प्रतिज्ञ और एक वीर क्षत्रिये थे।  सम्राट अकबर ने अपना समस्त बुद्धिबल, धनबल और बाहुबल लगा दिया था, मगर वो महाराणा प्रताप को झुका नहीं पाया था। महाराणा प्रताप का प्रण था की बाप्पा रावल का वंशज, अपने गुरु, भगवान, और अपने माता-पिता को छोड़ कर किसी के आगे शीश नहीं झुकाएगा।  महाराणा प्रताप अपनी सारी जिंदगी अपने दृढ़ संकल्प पर अटल रहे, वे अकबर को ‘बादशाह’ कह कर सम्बोधित कर दे ऐसा असंभव माना जाता