अमर शहीद अशफाक़ उल्ला खां

अमर शहीद अशफाक़ उल्ला खां
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तुम भूल न जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी..
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जीवन परिचय :
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अमर शहीद अशफाक़उल्ला खां (22 अक्टूबर 1900 -19 दिसंबर 1927)  भारत माता के वीर सपूत थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिये हँसते –हँसते फांसी पर झूल गए।

उनका पूरा नाम अशफाक़ उल्ला खां वारसी ‘हसरत’ था। वे शाहजहांपुर के एक रईस खानदान से आते थे। बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए।

वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे।

उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे।

एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले – मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ, लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो। यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।

उनको बिस्मिल जी से बहुत प्रेम था। एक बार अशफाक बीमार हो गए और उनको दौरा आ गया। वे राम-राम पुकारने लगे। माता – पिता ने जब सुना तो उनको समझाया – बेटा तुम मुसलमान हो खुदा-खुदा कहो। लेकिन उस प्रेम के पुजारी को यह बात समझ में नहीं आयी और वह राम-राम पुकारते रहे। उनके सभी सगे संबंधी भी उनके इस व्यवहार से हैरान और परेशान थे। उसी समय उनके साथी ने आकर घरवालों को बताया कि यह राम प्रसाद बिस्मिल को याद कर रहे हैं। ये एक दूसरे को राम और कृष्ण कहते हैं। एक आदमी जाकर राम प्रसाद बिस्मिल को बुलाकर लाया। उनको देखकर अशफाक बोले – राम तुम आ गए। थोड़ी देर में उनका दौरा समाप्त हो गया। तब जाकर उनके घरवालों को राम का पता चला।

इसी सब वजह से उनके घरवाले उनको काफ़िर कहते लेकिन अशफाक उसकी परवाह नहीं करते थे। जब काकोरी कांड हुआ और उन पर मामला चला तो वे पुलिस की आँख बचाकर भाग निकले। लोगों ने उनसे रूस चले जाने को कहा तो  वे टाल जाते और कहते – मै सजा के डर से फरार नहीं हुआ हूँ, मैं गिरफ्तार नहीं होना चाहता क्योंकि देश के लिये मुझे अभी बहुत काम करना है।

वे लगातार संगठन के लिये काम करते रहे। आखिरकार 8 सितम्बर, 1926 में दिल्ली में उन्हें पकड़ लिया गया। उन्हें लखनऊ लाया गया। उन्हें फांसी की सजा दी गयी। उनका व्यवहार बड़ा मस्ताना था। उनको राम प्रसाद बिस्मिल का लेफ्टिनेंट कहा जाता था। जब उनको फांसी की सजा सुनाई गई तो उनहे इसका थोडा सा भी दुःख नहीं था।

जब वह फांसी पर चढ़ रहे थे तो उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा –“ मेरे हाथ इंसान के खून से कभी नहीं रंगे, मेरे ऊपर जो इल्जाम लगाया गया वह गलत है, खुदा के यहाँ मेरा इन्साफ होगा” इसके बाद उनके गले में फंदा पड़ा और वे खुदा को याद करते हुए दुनिया से कूच कर गए।

उनकी अंतिम यात्रा को देखने के लिये लखनऊ की जनता सड़कों पर उमड़ पड़ी। वृद्ध जन इस तरह से रो रहे थे मानो उन्होंने अपना ही पुत्र खोया हो। अमर शहीद अशफाकउल्ला खान देश की आजादी के लिये अपना सर्वस्व बलिदान कर पुण्य वेदी पर चढ़ गए, ऐसे वीर शहीद को मेरा कोटिशः-कोटिशः नमन।

अशफ़ाक उल्ला खाँ के जन्‍मदिवस (22-10-1900) के शुभ अवसर पर उनके कुछ कथन :

~सात करोड़ मुसलमानों को शुद्ध करना नामुमकिन है, और इसी तरह यह सोचना भी फिजूल है कि पच्चीस करोड़ हिन्दुओं से इस्लाम कबूल करवाया जा सकता है। मगर हाँ, यह आसान है कि हम सब गुलामी की जंजीरें अपने गर्दन में डाले रहें।

~बुज़दिलों को सदा मौत से डरते देखा।
वो कि सौ बार रोज़ ही उन्हें मरते देखा।।

~ मौत से वीर को हमने नहीं डरते देखा।
तख्ता-ए-मौत पे भी खेल ही करते देखा।

~ कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे।
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।।

~ हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से।
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।।

~ अशफ़ाक उल्ला खाँ
नौजवान भारत सभा,
दिल्ली - Nbs Delhi

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बिस्मिल और अशफाक की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का बे–जोड़ उदाहरण है। भारत की आजादी के लिए अपना प्राण न्यौछावर करने वाले, हिंदू-मुस्लिम एकता के अटल पक्षधर, अमर शहीद अशफाक उल्ला खां जी की जयंती पर मैं उन्हें सादर नमन करती हूँ।
🙏🙏
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