तपस्वी राजमाता अहिल्याबाई होल्कर
तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए सुनो ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
जरा याद करो कुर्बानी.....
तपस्वी राजमाता अहिल्याबाई होल्कर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
शत्-शत् नमन 31 मई/जन्म-दिवस
भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है, उनमें रानी अहल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहिल्या पर भी पड़े।
जीवनगाथा
इसलिए सुनो ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
जरा याद करो कुर्बानी.....
तपस्वी राजमाता अहिल्याबाई होल्कर
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शत्-शत् नमन 31 मई/जन्म-दिवस
भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है, उनमें रानी अहल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहिल्या पर भी पड़े।
जीवनगाथा
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एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते, उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी।
इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालान्तर में उन्हें दो पुत्री तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। 1754 में उनके पति खांडेराव एक युद्ध में मारे गये। 1766 में उनके ससुर मल्हार राव का भी देहांत हो गया। इस संकटकाल में रानी ने तपस्वी की भांति श्वेत वस्त्र धारण कर राजकाज चलाया, पर कुछ समय बाद उनके पुत्र, पुत्री तथा पुत्रवधू भी चल बसे। इस वज्राघात के बाद भी रानी अविचलित रहते हुए अपने कर्तव्यमार्ग पर डटी रहीं।
ऐसे में पड़ोसी राजा पेशवा राघोबा ने इन्दौर के दीवान गंगाधर यशवन्त चन्द्रचूड़ से मिलकर अचानक हमला बोल दिया। रानी ने धैर्य न खोते हुए पेशवा को एक मार्मिक पत्र लिखा। रानी ने लिखा कि यदि युद्ध में आप जीतते हैं, तो एक विधवा को जीतकर आपकी कीर्ति नहीं बढ़ेगी। और यदि हार गये, तो आपके मुख पर सदा को कालिख पुत जाएगी। मैं मृत्यु या युद्ध से नहीं डरती। मुझे राज्य का लोभ नहीं है, फिर भी मैं अन्तिम क्षण तक युद्ध करूंगी।
इस पत्र को पाकर पेशवा राघोबा चकित रह गया। इसमें जहां एक ओर रानी अहल्याबाई ने उस पर कूटनीतिक चोट की थी, वहीं दूसरी ओर अपनी कठोर संकल्पशक्ति का परिचय भी दिया था। रानी ने देशभक्ति का परिचय देते हुए उन्हें अंग्रेजों के षड्यन्त्र से भी सावधान किया था। अतः उसका मस्तक रानी के प्रति श्रद्धा से झुक गया और वह बिना युद्ध किये ही पीछे हट गया।
रानी के जीवन का लक्ष्य राज्यभोग नहीं था। वे प्रजा को अपनी सन्तान समझती थीं। वे घोड़े पर सवार होकर स्वयं जनता से मिलती थीं। उन्होंने जीवन का प्रत्येक क्षण राज्य और धर्म के उत्थान में लगाया। एक बार गलती करने पर उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को भी हाथी के पैरों से कुचलने का आदेश दे दिया था, पर फिर जनता के अनुरोध पर उसे कोड़े मार कर ही छोड़ दिया।
धर्मप्रेमी होने के कारण रानी ने अपने राज्य के साथ-साथ देश के अन्य तीर्थों में भी मंदिर, कुएं, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि बनवाईं। काशी का वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर 1780 में उन्होंने ही बनवाया था। उनके राज्य में कला, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, कृषि आदि सभी क्षेत्रों का विकास हुआ।
एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते, उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी।
इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालान्तर में उन्हें दो पुत्री तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। 1754 में उनके पति खांडेराव एक युद्ध में मारे गये। 1766 में उनके ससुर मल्हार राव का भी देहांत हो गया। इस संकटकाल में रानी ने तपस्वी की भांति श्वेत वस्त्र धारण कर राजकाज चलाया, पर कुछ समय बाद उनके पुत्र, पुत्री तथा पुत्रवधू भी चल बसे। इस वज्राघात के बाद भी रानी अविचलित रहते हुए अपने कर्तव्यमार्ग पर डटी रहीं।
ऐसे में पड़ोसी राजा पेशवा राघोबा ने इन्दौर के दीवान गंगाधर यशवन्त चन्द्रचूड़ से मिलकर अचानक हमला बोल दिया। रानी ने धैर्य न खोते हुए पेशवा को एक मार्मिक पत्र लिखा। रानी ने लिखा कि यदि युद्ध में आप जीतते हैं, तो एक विधवा को जीतकर आपकी कीर्ति नहीं बढ़ेगी। और यदि हार गये, तो आपके मुख पर सदा को कालिख पुत जाएगी। मैं मृत्यु या युद्ध से नहीं डरती। मुझे राज्य का लोभ नहीं है, फिर भी मैं अन्तिम क्षण तक युद्ध करूंगी।
इस पत्र को पाकर पेशवा राघोबा चकित रह गया। इसमें जहां एक ओर रानी अहल्याबाई ने उस पर कूटनीतिक चोट की थी, वहीं दूसरी ओर अपनी कठोर संकल्पशक्ति का परिचय भी दिया था। रानी ने देशभक्ति का परिचय देते हुए उन्हें अंग्रेजों के षड्यन्त्र से भी सावधान किया था। अतः उसका मस्तक रानी के प्रति श्रद्धा से झुक गया और वह बिना युद्ध किये ही पीछे हट गया।
रानी के जीवन का लक्ष्य राज्यभोग नहीं था। वे प्रजा को अपनी सन्तान समझती थीं। वे घोड़े पर सवार होकर स्वयं जनता से मिलती थीं। उन्होंने जीवन का प्रत्येक क्षण राज्य और धर्म के उत्थान में लगाया। एक बार गलती करने पर उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को भी हाथी के पैरों से कुचलने का आदेश दे दिया था, पर फिर जनता के अनुरोध पर उसे कोड़े मार कर ही छोड़ दिया।
धर्मप्रेमी होने के कारण रानी ने अपने राज्य के साथ-साथ देश के अन्य तीर्थों में भी मंदिर, कुएं, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि बनवाईं। काशी का वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर 1780 में उन्होंने ही बनवाया था। उनके राज्य में कला, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, कृषि आदि सभी क्षेत्रों का विकास हुआ।
मृत्यु
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13 अगस्त, 1795 ई0 को 70 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। उनका जीवन धैर्य, साहस, सेवा, त्याग और कर्तव्यपालन का पे्ररक उदाहरण है। इसीलिए एकात्मता स्तोत्र के 11वें श्लोक में उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, चन्नम्मा, रुद्रमाम्बा जैसी वीर नारियों के साथ याद किया जाता है।
(संदर्भ : राष्ट्रधर्म मासिक, मई 2011)
कुशल रणनीतिकार, उदारमना, जनहितकारी, धर्मपरायण राजमाता द्वारा काशी, केदारनाथ, अयोध्या समेत देशभर में मंदिरों, धर्मशालाओं व कुंड के निर्माण व जीर्णोद्धार की सेवा वन्दनीय है। पिछले 6साल में मोदी सरकार में तीर्थों के कायाकल्प के अभूतपूर्व कार्य हुए हैं। फिर चाहे उन्हें ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी से जोड़ना हो, संरक्षण हो या मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना हो। जिसमें केदारनाथ, वैष्णोदेवी, काशी, अयोध्या, वृंदावन, उज्जैन, से लेकर रामेश्वरम तक शामिल हैं। मैं पिछले साल श्री रामेश्वरम धाम व श्रीरामसेतु गई थी, जिसे दुर्दशा से निकालने में मोदी सरकार व हमारे महान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। पूर्व की सरकारों ने कभी भारत की संस्कृति के असली चिन्हों को सहेजने का प्रयास नहीं किया, बल्कि उन्हें नष्ट करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। तीर्थों का उद्धार आज शताब्दियों बाद कोई शासक कर रहा है, जिसकी शक्ति 100 करोड़ हिन्दू हैं। सच तो यह है कि राजमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर जी के बाद हिन्दू मन्दिरों की सुधि अगर किसी ने ली है तो उसे इतिहास नरेन्द्र मोदी जी के नाम से याद रखेगा।
महान योद्धा एवं वीरांगना राजमाता #अहिल्याबाई होलकर जी की जन्म जयन्ती पर मेरा शत-शत नमन ! 💐💐💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP
13 अगस्त, 1795 ई0 को 70 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। उनका जीवन धैर्य, साहस, सेवा, त्याग और कर्तव्यपालन का पे्ररक उदाहरण है। इसीलिए एकात्मता स्तोत्र के 11वें श्लोक में उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, चन्नम्मा, रुद्रमाम्बा जैसी वीर नारियों के साथ याद किया जाता है।
(संदर्भ : राष्ट्रधर्म मासिक, मई 2011)
कुशल रणनीतिकार, उदारमना, जनहितकारी, धर्मपरायण राजमाता द्वारा काशी, केदारनाथ, अयोध्या समेत देशभर में मंदिरों, धर्मशालाओं व कुंड के निर्माण व जीर्णोद्धार की सेवा वन्दनीय है। पिछले 6साल में मोदी सरकार में तीर्थों के कायाकल्प के अभूतपूर्व कार्य हुए हैं। फिर चाहे उन्हें ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी से जोड़ना हो, संरक्षण हो या मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना हो। जिसमें केदारनाथ, वैष्णोदेवी, काशी, अयोध्या, वृंदावन, उज्जैन, से लेकर रामेश्वरम तक शामिल हैं। मैं पिछले साल श्री रामेश्वरम धाम व श्रीरामसेतु गई थी, जिसे दुर्दशा से निकालने में मोदी सरकार व हमारे महान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। पूर्व की सरकारों ने कभी भारत की संस्कृति के असली चिन्हों को सहेजने का प्रयास नहीं किया, बल्कि उन्हें नष्ट करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। तीर्थों का उद्धार आज शताब्दियों बाद कोई शासक कर रहा है, जिसकी शक्ति 100 करोड़ हिन्दू हैं। सच तो यह है कि राजमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर जी के बाद हिन्दू मन्दिरों की सुधि अगर किसी ने ली है तो उसे इतिहास नरेन्द्र मोदी जी के नाम से याद रखेगा।
महान योद्धा एवं वीरांगना राजमाता #अहिल्याबाई होलकर जी की जन्म जयन्ती पर मेरा शत-शत नमन ! 💐💐💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP