केरल की प्रथम शाखा के स्वयंसेवक पी.माधव
केरल की प्रथम शाखा के स्वयंसेवक पी.माधव
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31 मई/जन्म-दिवस.... शत-शत नमन
केरल के कार्यकर्ताओं में श्री पी.माधव का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। वहां शाखा कार्य का प्रारम्भ 1942 में कोझीकोड (कालीकट) में श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी ने किया। श्री पी.माधव उसी शाखा के स्वयंसेवक थे।
माधव जी का जन्म कोझीकोड के प्रतिष्ठित सामोरिन राजपरिवार में 31 मई, 1926 को हुआ था। उनके पिता श्री मानविक्रमन राजा वकील थे। लोग उन्हें सम्मानपूर्वक कुन्मुणि राजा कहते थे। उनकी माता जी का नाम श्रीमती सावित्री था। इस दम्पति की आठ सन्तानों में माधव सबसे बड़े थे।
कोझीकोड से प्रारम्भिक शिक्षा लेकर माधव जी चेन्नई चले गये और वहां से रसायनशास्त्र में बी.एस-सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। गणित तथा संस्कृत में उनकी विशेष रुचि थी। वहां पढ़ते समय तमिलनाडु के तत्कालीन प्रान्त प्रचारक श्री दादाराव परमार्थ से भी उनका अच्छा सम्पर्क हो गया।
चेन्नई में श्री गुरुजी के आगमन पर माधव जी को उनकी सेवा व्यवस्था में रखा गया। श्री गुरुजी के आग्रह पर वे प्रचारक बन गयेे। सर्वप्रथम उन्हें 1947-48 में केरल के कन्नूर जिले में तलसेरि में भेजा गया। उसी दौरान देश स्वतन्त्र हुआ और फिर कुछ समय बाद गांधी जी की हत्या हो गयी।
इस समय तक केरल में मुस्लिम और ईसाई बहुत प्रभावी हो चुके थे। संघ का काम शिशु अवस्था में था। अतः न केवल संघ अपितु सम्पूर्ण हिन्दू समाज को अपार कष्ट उठाने पड़े। मल्लापुरम में हिन्दुओं का नरसंहार हुआ तथा शबरीमला अयप्पा मंदिर को जला दिया गया। संघ पर प्रतिबन्ध के विरोध में हुए सत्याग्रह में माधव जी अनेक स्वयंसेवकों को लेकर जेल गये।
प्रतिबन्ध की समाप्ति के बाद 1950 में माधव जी को त्रावणकोर भेजा गया। वहां उन्होंने ‘हिन्दू महामंडलम्’ के नाम से एक बड़ा सम्मेलन किया। इसके माध्यम से उन्होंने सुप्रसिद्ध नायर नेता श्री पद्मनाभम् और एक अन्य वरिष्ठ एस.एन.डी.पी. नेता श्री आर.शंकरन को अपने साथ जोड़ा। इस सम्मेलन से संघ के काम को बहुत सहारा मिला। केरल में मुसलमान और ईसाइयों के साथ ही कम्युनिस्ट भी संघ का विरोध करते थे। अतः माधव जी तथा अन्य प्रचारकों को अनेक शारीरिक व मानसिक कष्ट उठाने पड़े।
माधव जी जिला और विभाग प्रचारक के बाद केरल में प्रथम प्रान्त बौद्धिक प्रमुख रहे। वे तन्त्र-मन्त्र तथा मंदिर वास्तुशास्त्र के भी विशेषज्ञ थे। उन्हें यह देखकर बहुत कष्ट होता था कि लोग वंश परम्परा से पुजारी तो बन जाते हैं, पर उन्हें पूजा-पाठ और कर्मकांड की प्राथमिक जानकारी भी नहीं है। अतः पुजारियों के प्रशिक्षण के लिए उन्होंने ‘तंत्रविद्या पीठम्’ तथा मंदिरों की देखभाल के लिए ‘केरल क्षेत्र संरक्षण समिति’ बनाई।
माधव जी जन्म से जाति व्यवस्था को मान्य नहीं करते थे। उन्होंने केरल के वरिष्ठ पुजारियों और घटमाचार्यों को एकत्रकर यह प्रस्ताव पारित कराया कि मंदिर में सब जाति के हिन्दुओं को निर्बाध प्रवेश मिले तथा सबके उपनयन आदि संस्कारों की वहां व्यवस्था हो। वे मंदिर को भी शाखा की तरह संस्कार प्रदान करने वाला सबल केन्द्र बनाना चाहते थे। 1982 में केरल में हुए विशाल हिन्दू सम्मेलन के मुख्य संगठनकर्ता माधव जी ही थे।
श्री पी.माधव एक अच्छे वक्ता तथा लेखक थे। उनके भाषण सब आयु वर्ग के लोगों में स्फूर्ति भर देते थे। उन्होंने संस्कृत के छात्र और आचार्यों के लिए ‘क्षेत्र चैतन्य रहस्यम्’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। उन्होंने श्री गुरुजी की ही तरह ब्रह्मकपाल में स्वयं का श्राद्ध किया था। केरल के कार्यकर्ताओं में नवस्फूर्ति का संचार करने वाले इस मंत्रदाता का सितम्बर 1988 में शरीरांत हो गया।
🚩🚩
शत-शत नमन करूँ मैं आपको 💐💐💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP
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31 मई/जन्म-दिवस.... शत-शत नमन
केरल के कार्यकर्ताओं में श्री पी.माधव का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। वहां शाखा कार्य का प्रारम्भ 1942 में कोझीकोड (कालीकट) में श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी ने किया। श्री पी.माधव उसी शाखा के स्वयंसेवक थे।
माधव जी का जन्म कोझीकोड के प्रतिष्ठित सामोरिन राजपरिवार में 31 मई, 1926 को हुआ था। उनके पिता श्री मानविक्रमन राजा वकील थे। लोग उन्हें सम्मानपूर्वक कुन्मुणि राजा कहते थे। उनकी माता जी का नाम श्रीमती सावित्री था। इस दम्पति की आठ सन्तानों में माधव सबसे बड़े थे।
कोझीकोड से प्रारम्भिक शिक्षा लेकर माधव जी चेन्नई चले गये और वहां से रसायनशास्त्र में बी.एस-सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। गणित तथा संस्कृत में उनकी विशेष रुचि थी। वहां पढ़ते समय तमिलनाडु के तत्कालीन प्रान्त प्रचारक श्री दादाराव परमार्थ से भी उनका अच्छा सम्पर्क हो गया।
चेन्नई में श्री गुरुजी के आगमन पर माधव जी को उनकी सेवा व्यवस्था में रखा गया। श्री गुरुजी के आग्रह पर वे प्रचारक बन गयेे। सर्वप्रथम उन्हें 1947-48 में केरल के कन्नूर जिले में तलसेरि में भेजा गया। उसी दौरान देश स्वतन्त्र हुआ और फिर कुछ समय बाद गांधी जी की हत्या हो गयी।
इस समय तक केरल में मुस्लिम और ईसाई बहुत प्रभावी हो चुके थे। संघ का काम शिशु अवस्था में था। अतः न केवल संघ अपितु सम्पूर्ण हिन्दू समाज को अपार कष्ट उठाने पड़े। मल्लापुरम में हिन्दुओं का नरसंहार हुआ तथा शबरीमला अयप्पा मंदिर को जला दिया गया। संघ पर प्रतिबन्ध के विरोध में हुए सत्याग्रह में माधव जी अनेक स्वयंसेवकों को लेकर जेल गये।
प्रतिबन्ध की समाप्ति के बाद 1950 में माधव जी को त्रावणकोर भेजा गया। वहां उन्होंने ‘हिन्दू महामंडलम्’ के नाम से एक बड़ा सम्मेलन किया। इसके माध्यम से उन्होंने सुप्रसिद्ध नायर नेता श्री पद्मनाभम् और एक अन्य वरिष्ठ एस.एन.डी.पी. नेता श्री आर.शंकरन को अपने साथ जोड़ा। इस सम्मेलन से संघ के काम को बहुत सहारा मिला। केरल में मुसलमान और ईसाइयों के साथ ही कम्युनिस्ट भी संघ का विरोध करते थे। अतः माधव जी तथा अन्य प्रचारकों को अनेक शारीरिक व मानसिक कष्ट उठाने पड़े।
माधव जी जिला और विभाग प्रचारक के बाद केरल में प्रथम प्रान्त बौद्धिक प्रमुख रहे। वे तन्त्र-मन्त्र तथा मंदिर वास्तुशास्त्र के भी विशेषज्ञ थे। उन्हें यह देखकर बहुत कष्ट होता था कि लोग वंश परम्परा से पुजारी तो बन जाते हैं, पर उन्हें पूजा-पाठ और कर्मकांड की प्राथमिक जानकारी भी नहीं है। अतः पुजारियों के प्रशिक्षण के लिए उन्होंने ‘तंत्रविद्या पीठम्’ तथा मंदिरों की देखभाल के लिए ‘केरल क्षेत्र संरक्षण समिति’ बनाई।
माधव जी जन्म से जाति व्यवस्था को मान्य नहीं करते थे। उन्होंने केरल के वरिष्ठ पुजारियों और घटमाचार्यों को एकत्रकर यह प्रस्ताव पारित कराया कि मंदिर में सब जाति के हिन्दुओं को निर्बाध प्रवेश मिले तथा सबके उपनयन आदि संस्कारों की वहां व्यवस्था हो। वे मंदिर को भी शाखा की तरह संस्कार प्रदान करने वाला सबल केन्द्र बनाना चाहते थे। 1982 में केरल में हुए विशाल हिन्दू सम्मेलन के मुख्य संगठनकर्ता माधव जी ही थे।
श्री पी.माधव एक अच्छे वक्ता तथा लेखक थे। उनके भाषण सब आयु वर्ग के लोगों में स्फूर्ति भर देते थे। उन्होंने संस्कृत के छात्र और आचार्यों के लिए ‘क्षेत्र चैतन्य रहस्यम्’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। उन्होंने श्री गुरुजी की ही तरह ब्रह्मकपाल में स्वयं का श्राद्ध किया था। केरल के कार्यकर्ताओं में नवस्फूर्ति का संचार करने वाले इस मंत्रदाता का सितम्बर 1988 में शरीरांत हो गया।
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शत-शत नमन करूँ मैं आपको 💐💐💐💐
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