शहीदेआजम भगत सिंह जी
शहीदेआजम भगत सिंह
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★जरा याद करो कुर्बानी★
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तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
जरा याद करो कुर्बानी..
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मैं रहूं या ना रहूं पर, ये वादा है मेरा तुझसे...
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा।
अपने बलिदान से हर भारतीय के मन में स्वाधीनता की अलख जगाने वाले महान क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह जी को पावन जयंती पर शत्-शत् नमन..!!
#BhagatSingh
#भगतसिंह
#जयंती_दिवस
#भगत_सिंह --
उनकी जेब में करतार सिंह साराभाई, भगवत गीता और स्वामी विवेकानंद की जीवनी रहती थी और फिर वो लिखते हैं ‘वाइ आई एम एन अथीस्ट’? मैं नास्तिक क्यों हूँ ??
जी हाँ मैं बात कर रही हूँ अमर शहीद भगत सिंह जी की ......
आज उनकी जयंती दिवस है तो आइए उनके कुछ अनसुने किस्से आपसे साझा करती हूँ --
मेरे जीने का मकसद
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★★ लाहौर जेल में बंद कुछ कैदियों की एक चिट्ठी जेल में ही बंद एक नौजवान के पास पहुंची, जिसमें लिखा था कि "हमने अपने भागने के लिए एक रास्ता बनाया है, लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी जगह आप उससे निकल जाएं"।
युवक ने चिट्ठी के बदले में जवाब भेजा। "धन्यवाद.....मैं आपका आभारी हूं लेकिन ये आग्रह स्वीकार नहीं कर सकता अगर ऐसा किया तो मेरे जीने का मकसद ही खत्म हो जाएगा। मैं चाहता हूं मेरी शहादत देश के काम आए और युवाओं में प्रेरणा और जोश भरने का काम करे, जिससे देश को जल्द से जल्द आजादी मिल सके।"
वो युवक थे 24 साल के भगत सिंह।
#फाँसी_के_वक़्त_वो_लेनिन_को_पढ़_रहे_थे_ये_सफेद_झूठ --
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23मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिंध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी।
क्योंकि लेनिन की कोई भी जीवनी उस समय नही छपी थी।।
#भगतसिंह_भारत_के_या_पाकिस्तान_के -
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कांग्रेस समय की भारत सरकार के भगत सिंह के बारे में उनके गृह मंत्रालय का कहना था कि भगत सिंह के बारे में ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं जिससे उन्हें शहीद माना जाए। गृह मंत्रालय ने यह जानकारी एक आरटीआई के तहत दी है।
वही पाकिस्तान में- जिस सेंट्रल जेल में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई वह भी लाहौर में है। जन्म और शहादत के स्थान की नजर से देखा जाए तो पाकिस्तान का भगत सिंह पर दावा हमसे थोड़ा मजबूत ही नजर आता है।पाकिस्तान सरकार ने उनके पैतृक घर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर रखा है और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल ने भी पाकिस्तान सरकार से बंगा गांव में शहीद के स्मारक में आर्थिक सहयोग करने की इच्छा व्यक्त की थी।
जबकि वही पाकिस्तान में शहीद भगत सिंह के नाम पर चौराहे का नाम रखे जाने पर खूब बवाल मचा था। लाहौर प्रशासन ने ऐलान किया था कि मशहूर शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक किया जाएगा। फैसले के बाद प्रशासन को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा था।
#फाँसी_की_सजा_और_भगत_सिंह_के_विचार --
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भगत सिंह के आखिरी पत्र (पंजाब के गवर्नर को लिखा पत्र)‘.... अंत में हम केवल यह कहना चाहते हैं कि आपकी अदालत के फैसले के अनुसार हम पर सम्राट के विरुद्ध युद्ध करने का अभियोग लगाया गया है। और इस प्रकार हम युद्ध के शाही कैदी हैं। अतएव हमें फांसी पर ना लटका कर गोली से उड़ाया जाना चाहिए। इसका निर्णय अब आपके ही ऊपर है कि जो कुछ अदालत ने निर्णय किया है उसके अनुसार आप कार्य करेंगे या नहीं। हमारी आपसे विनम्र प्रार्थना है और हमें पूर्ण आशा है कि आप कृपा कर फौजी महकमे को आज्ञा देकर हमारे प्राण दंड के लिए एक फौज या पल्टन के कुछ जवान बुलवा लेंगे’-
सरदार भगत सिंह, मार्च 1931, लाहौर सेंट्रल जेल
#भगत_सिंह_बचाये_जा_सकते_थे --
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महात्मा गांधी जी ने भगतसिंह को बचाने का प्रयास किया था, लेकिन वो उन्हें बचाने में असफल रहे थे।
भगत सिंह के दोस्त रहे जितेन्द्र नाथ सान्याल ने उनके बारे में अपनी पुस्तक में लिखा था कि वायसराय लार्ड इर्विन ने भगत सिंह की फांसी की सजा को कम करके काला पानी में तब्दील कर दिया था। उन्होंने इसके आदेश भी जारी कर दिए थे। इससे पहले कि ये आदेश प्रशासन तक पहुंच पाते और इन पर अमल हो पाता पोस्टमास्टर जनरल ने जानबूझकर ये आदेश तब तक रोके रखे जब तक भगत सिंह को फांसी नहीं दे दी गई। रोके किसकी वजह से गये थे ये आप सभी को बताने की जरूरत नही है, आप समझ ही गये होंगे ।।
#विशेष --
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ब्रिटिश हुकूमत के बहरे कानों को खोलने के मंथन के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह मौत से खेलने दिल्ली आ धमके थे। महीने भर यह जोड़ी दिल्ली में जमी रही। दोनों क्रांतिकारियों ने कई शाम बम को अखबार में लपेटे कपड़ों में छिपाते हुए संसद भवन की रेकी की। सर्वाधिक विचार सम्पन्न भगत सिंह ने अंतिम दौर में अपने बाल कटवा लिए थे। केन्द्रीय असेम्बली में धमाका करने के चार दिन पहले भगत सिंह ने बटुक से कहा, ''चलो, फोटो खिंचवाएं।'' बटुक ने इसे टालना चाहा, लेकिन भगत सिंह जि़द पर अड़े रहे।
आखिरकार 3 अप्रैल, 1929 को कश्मीरी गेट पर इन्होंने फोटो खिंचवाई। शामलाल की खींची हुई यह बहुप्रचलित तस्वीर आखिरी यादगार है। फ्लैट हैट में भगत सिंह की यह तस्वीर आज तक लोगों के जेहन में मौजूद है ।
जितेंदर सान्याल की लिखी किताब ‘भगत सिंह’ के अनुसार ठीक फांसी पर चढ़ने के भगत सिंह ने उनसे कहा, मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने आदर्शो के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं।’
भगत सिंह के बलिदान के दिन यानी 23 मार्च को उनकी याद में बंगा गांव में एक मेला भी लगता है। क्या इसे इत्तेफाक ही कहा जाए कि जगदंबिका प्रसाद मिश्र के गीत-
‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।’
।। #श्रद्धांजलि ।।
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#VijetaMalikBJP
#HamarAappNaMoApp
शहीदेआजम भगत सिंह को शत–शत नमन 💐💐🙏🙏💐💐
https://youtube.com/watch?v=IyIjKqTWiGc&si=M80YAjvwctXUFrRe