#IndiaForMtSikdar

साथियों, 
Zee News ने Mount Everest को Mount Sikdar कहने की एक बहुत ही अच्छी मुहिम चलाई हैं। इसके तहत भारत के श्री राधानाथ सिकदर जी जिन्होंने कई सालों की कोशिश व बहुत मेहनत के बाद दुनिया को सन 1852 में एवरेस्ट की ऊंचाई बताई थी और जिन्हें अंग्रेज अधिकारियों ने एक तरफ किनारे करके, हिमालय पर्वत की सबसे ऊँची चोटी जो आज नेपाल में हैं, उसका नाम सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रख दिया गया जो इस चोटी पर कभी गए भी नही थे।

इस मुहिम के द्वारा Zee News की एक ईमानदार कोशिश हैं कि भारत, नेपाल व सारी दुनियां द्वारा Mount Everest को Mount Sikdar कहा जाए। Zee News की इस मुहिम मकसद Mount Everest पर भारत का हक जताना या नेपाल का हक हटाना नहीं हैं। Mount Everest नेपाल में हैं, नेपाल का हैं और उस पर नेपाल का ही हक रहेगा। सिर्फ Mount Everest का नाम अब बदल देना चाहिए व Mount Everest को अब Mount Sikdar कहना चाहिए।

मेरी सभी देशवासियों से हाथ जोड़कर प्राथना हैं कि इस पोस्ट को  #IndiaForMtSikdar  हैशटैग के तहत आगे शेयर जरूर करें, ताकि एक देशभक्त न्यूज़ चैनल Zee News के द्वारा चलाई जा रही ये मुहिम हमारे महान देशभक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी तक पहुँच सके।

आइये अब आपको मैं श्री राधानाथ सिकदर जी बारे में बताती हूँ .......

राधानाथ सिकदर: दुनिया को एवरेस्ट की ऊंचाई बताने वाला भारतीय
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साल 1852 के आसपास का वक्त रहा होगा। एक रोज सुबह सवेरे सर्वे जनरल ऑफ इंडिया के डॉयरेक्टर ‘एंड्रयू स्कॉट वा’ अपने दफ्तर में थे। उनके साथ दूसरे कर्मचारी भी दफ्तर पहुंच कर काम में व्यस्त हो चले थे।

उसी वक्त एक शख्स तूफान की तरफ ‘स्कॉट’ के कमरे में  दाखिल होता है और खुशी से चींखते हुए कहता है, ‘सर, मैंने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी का पता लगा लिया है!’

यह सुनकर स्कॉट हक्के-बक्के रह जाते हैं। वह शख्स आगे बताता है कि सबसे ऊंची चोटी 29002 फीट है। कालांतर में ‘सर्वे ऑफ इंडिया‘ के पूर्व डॉयरेक्टर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर उक्त पर्वत का नाम ‘माउंट एवरेस्ट’ रखा गया।

चूंकि, उस दौर में पर्वत की ऊंचाई को नापा गया, था जिसमें तकनीक उतनी विकसित नहीं थी। साथ ही संसाधन सीमित थे, इसलिए इसे मुमकिन बनाने वाले ‘राधानाथ सिकदर’ और उनके इसमें अद्भुत कारनामे को जानना दिलचस्प रहेगा—

कलकत्ता में जन्म, स्कॉलरशिप से की पढ़ाई
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राधानाथ का जन्म 1813 में अक्टूबर के महीने को कोलकाता (पहले कलकत्ता) के जोड़ासांको में हुआ था। उनके पिता का नाम तितुराम सिकदर था। राधानाथ को पढ़ने-लिखने का खूब शौक था, लेकिन उनके घर की माली हालत ठीक नहीं थी। ऐसे में उनके पास एक ही विकल्प था कि किसी तरह स्कॉलरशिप हासिल कर लें।

चूंकि वह मेधावी थे, तो उन्हें आसानी से स्कॉलरशिप भी मिल गयी। राधानाथ के छोटे भाई श्रीनाथ का दिमाग भी राधानाथ की तरह ही तेज था और उन्होंने भी प्रतिभा के बूते स्कॉलरशिप ले ली थी। अपने स्कॉलरशिप के पैसे से राधानाथ किताबें खरीदते और श्रीनाथ को मिलने वाले स्कॉलरशिप से घर का चूल्हा जलता।

इस तरह स्कॉलरशिप के पैसे से ही पढ़ाई और पेट की आग भी बुझने लगी।

सन् 1824 में राधानाथ सिकदर ने हिन्दू स्कूल (संप्रति प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय) में एडिमशन ले लिया। उनका प्रिय विषय गणित था, इसलिए गणित विषय लेकर ही वह पढ़ने लगे। हिन्दू स्कूल में उन्हें प्रोफेसर जॉन टाइटलर नाम का एक टीचर मिला और टाइटलर को एक प्रतिभाशाली शागिर्द। दोनों में खूब बनती थी।

राधानाथ कितने विद्वान थे, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दू स्कूल में पढ़ते हुए ही उन्होंने कॉमन टांजेंट बनाने का नया तरीका ईजाद कर, वहां के टीचरों को आश्चर्यचकित कर दिया था। हालांकि, आश्चर्यचकित करने वाला एक बड़ा वाकया अभी होना बाकी था।


पहली बार भारत का मानचित्र हुआ तैयार
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अंग्रेज जब भारत में आए, तब उनका कामकाज व्यापार तक ही सीमित था। बाद में उन्हें धीरे-धीरे यह अहसास होने लगा कि वे भारत पर राज भी कर सकते हैं। इसके लिए उन्होंने ग्राउंड वर्क शुरू कर दिया। उस वक्त तक किसी को पता नहीं था कि भारत कितने क्षेत्रफल में पसरा हुआ है और किस इलाके की लंबाई-चौड़ाई कितनी है।

अंग्रेजों ने क्षेत्रफल का पता लगाने और भारत का पुख्ता मानचित्र तैयार करने के लिए सर्वे का काम शुरू किया। चूंकि, ब्रिटिश ने बंगाल पर ही सबसे पहले शासन करना शुरू किया था, तो जाहिर तौर पर सर्वेक्षण की शुरुआत भी बंगाल से ही हुई।

सन 1746 में रॉबर्ट क्लाईव भारत के कमांडर बनकर बंगाल आए।

उन्होंने सन 1767 में पहली जनवरी को ‘मेजर जेम्स रीनेल’ को सर्वेयर जनरल नियुक्त कर बंगाल का मानचित्र तैयार करने की अहम जिम्मेवारी सौंपी। इसी नियुक्ति के साथ ‘सर्वे ऑफ इंडिया नामक’ एजेंसी वजूद में आई और देहरादून में इसका दफ्तर बना।

सर्वे का काम 6 साल तक चला और सन् 1773 में सर्वे का मुकम्मल दस्तावेज तैयार कर लिया गया। इसी तरह दूसरे प्रांतों का भी सर्वेक्षण किया गया और सन 1783 में भारत का एक मोटा-मोटी मानचित्र तैयार कर इंग्लैंड भेज दिया गया।

इसी क्रम में 1767 के बाद से अलग-अलग प्रांतों के लिए अलग-अलग सर्वेयर जनरल नियुक्त होते रहे, जोकि अगले कई सालों तक चलती रही।

ब्रिटिश ने सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया का पद सृजित किया और कॉलिन मैकेंजी पहले सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया बने। यहां सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया का जिक्र अनायास नहीं किया गया है। असल में सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया, एवरेस्ट और राधानाथ सिकदर के बीच एक अटूट रिश्ता था, जिसका जिक्र आगे होगा।


सर्वे दफ्तर में 40 रुपए माहवार पर मिली नौकरी
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कॉलिन मैकेंजी के बाद आधा दर्जन अंग्रेज सर्वेयर जनरल बनकर आए और चले गए. जून, 1830 में जॉर्ज एवरेस्ट को सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया बनाकर भारत भेजा गया।

जॉर्ज एवरेस्ट को गणित व ट्रिग्नोमेंट्री में महारत हासिल थी। भारत आने के बाद उन्हें देहरादून दफ्तर के लिए ऐसे व्यक्ति की जरूरत पड़ी, जो स्फेरिकल ट्रिग्नोमेट्री में विशेषज्ञता रखता हो। उन्होंने यह बात जॉन टाइटलर से कही, तो जॉन के दिमाग में सिर्फ एक चेहरा कौंधा।

वह चेहरा किसी और का नहीं बल्कि 19 साल के राधानाथ सिकदर का था। इस तरह 40 रुपए माहवार पर राधानाथ ने 19 दिसंबर 1831 को ‘सर्वे ऑफ इंडिया’ में नौकरी शुरू की।

उन्हें कम्प्यूटर का पद मिला। जी हां, कंप्यूटर!

उस वक्त तक कम्प्यूटर का ईजाद नहीं हुआ था। सो कम्प्यूटर का काम आदमी ही किया करता था और ऐसे काम करने वालों को कम्प्यूटर कहा जाता था।

सर्वे ऑफ इंडिया में उन्होंने लंबे समय तक काम किया। इस बीच सर जॉर्ज एवरेस्ट रिटायर हो गए और उनकी जगह एन्ड्रू स्कॉट वा (सन् 1843 में) सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया बनकर भारत आए। बताते चलें कि जॉर्ज एवरेस्ट और स्कॉट वा के बीच गुरू-शिष्य का रिश्ता माना जाता था।

बहरहाल, राधानाथ के काम से ‘स्कॉट वा’ भी काफी खुश हुए और सन् 1849  में पदोन्नत कर उन्हें चीफ कम्प्यूटर बना दिया।

राधानाथ सिकदर की काबिलियत से स्कॉट वा वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने ‘पीक xv’ की ऊंचाई नापने का दायित्व सिकदर को सौंपा। ‘पीक XV’ के बारे में बता दें कि अंग्रेजों के अनुमान के आधार पर एक चोटी की शिनाख्त की थी, जिसे कंचनजंघा से ऊंचा माना जा रहा था।

हालांकि, उसकी नापी नहीं हुई थी।

थियोडोलाइट से नापी विश्व की सबसे ऊंची चोटी
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स्कॉट वा से मिली महत्वपूर्ण जिम्मेवारी को उन्होंने चुनौती की तरह लिया।

उन दिनों ऊंचाई मापने के लिए थियोडोलाइट ही सबसे अच्छा जरिया हुआ करती थी। सो राधानाथ सिकदर ने भी इसी मशीन की मदद ली। करीब 450 किलोग्राम वजन की इस मशीन को उठाने के लिए एक दर्जन लोगों की जरूरत पड़ती थी।

39 वर्षीय सिकदर ने करीब 800 किलोमीटर दूर से थियोडोलाइट मशीन लगाकर ‘पीक xv’ को नापा। उन्होंने काफी माथापच्ची की और सन् 1852 में इस नतीजे पर पहुंचे कि ‘पीक xv’ की ऊंचाई 29002 फीट है, जो विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत है।

…लेकिन सारा क्रेडिट मिला जॉर्ज एवरेस्ट को
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सिकदर ने स्कॉट वा को उनके दफ्तर में पहुंचकर यह अहम जानकारी दी, लेकिन स्कॉट ने उसे तुरंत सार्वजनिक नहीं किया, बल्कि दो-तीन स्रोतों से इसकी पुष्टि करना मुनासिब समझा।

कई स्रोतों से मिली जानकारी ने स्कॉट वा को तसल्ली दी और सिकदर की नापी जानकारी सही साबित हुई। 1856 में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि ‘पीक xv’ दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है।

यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती है।

‘पीक xv’ की ऊंचाई तो माप ली गयी, लेकिन उसका नाम क्या रखा जाए, यह किसी को समझ नहीं आ रहा था। उसी वक्त स्कॉट को खयाल आया कि अपने गुरु एवरेस्ट को गुरुदक्षिणा देने का यह सबसे सही वक्त है।

उन्होंने तुंरत एवरेस्ट के नाम पर ‘पीक xv’ का नामकरण माउंट एवरेस्ट  कर दिया।

…और इस तरह दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को मापनेवाले श्री राधानाथ सिकदर इतिहास में हाशिए पर धकेल दिए गए। 1862 में वह सर्वे ऑफ इंडिया से रिटायर हुए और अपने गृह राज्य बंगाल लौट आए।

वहां 17 मई 1870 में उन्होंने अपनी आखिरी सांसें लेते हुए दुनिया को अलविदा कह दिया।

https://roar.media/hindi/main/history/indian-mathematician-radhanath-sikdar-who-measured-mount-everest

शत शत नमन करूँ मैं आपको श्री राधानाथ सिकदर जी 💐💐💐💐
🙏🙏
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