शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल जी

शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल
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सहायता के लिए लिखे पत्र पर अंग्रेजों ने चढ़ा दिया था फांसी........
शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल के वंशजों ने सहेज रखी हैं उनकी यादें........

देश को अंग्रेजी हुकुमत से आजाद करवाने के लिए हुई 1857 की क्रांति के पहले शहीद कानपुर के मंगल पांडे थे, यह तो सभी जानते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि देश के दूसरे शहीद थे, हरियाणा में हांसी के रहने वाले शहीद लाला हुकमचंद अग्रवाल (जैन)। 

अंग्रेजो को उत्तर भारत में हरियाणा और पंजाब की सीमा पर रोकने की तैयारी करने के लिए रसद व सहायता के लिए लिखे गए पत्र को आधार बना कर उन्हें उनकी हवेली के सामने फांसी पर टांग दिया गया था। उस समय उनकी आयु मात्र 40 वर्ष थी। पत्र लिखने में जुर्म में अंग्रेजों ने उनके भतीजे फकीरचंद को भी पकड़ा था, लेकिन 13 वर्ष की उम्र को देखते हुए उसे छोड दिया गया। लाला हुकमचंद के परिजन बताते हैं कि फकीरचंद ने खिड़की से खड़े होकर अंग्रेजी हुकुमत की खिलाफत की तो तत्काल उसे भी फांसी पर चढ़ा दिया। इस दर्दनाक दृश्य की साक्षी हुकमचंद की पत्नी ने अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को लंहगे में छुपाया और वहां से निकलकर उनकी जान बचाई। वे वर्षों तक भिखारी के वेष में अपना जीवनयापन करती रहीं।

उनकी इन यादों और अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजाने की गाथा को लाला के वंशज आज भी बड़े गर्व से कहते हैं। हांसी की कचहरी में आज भी उनकी यादें सहेजी हुई हैं। इंदौर में स्कीम नंबर 54 में रह रहे परिजन अजीत कुमार जैन, अजय कुमार जैन, संजय जैन व वीणा बंसल बताती हैं, 'अंग्रेजों ने लालाजी को फांसी ही नहीं दी, उनका सब कुछ जब्त कर लिया। सरकारी दस्तावेजों में उनके नाम 9 हजार एकड़ जमीन और सोने-चांदी के गहने थे। बाद में 80 सालों तक अंग्रेज हमारे परिवार के पीछे लगे रहे और हांसी में घुसने नहीं दिया।'

उन्होंने बताया, 'लाला हुकमसिंह बहादुरशाह जफर के कानूनी सलाहकार थे। उन्होंने हिसार जिले के हांसी से ही अंग्रेजों को पंजाब व हरियाणा में आने से रोकने का प्रयास किया था। इसके लिए कुछ लोगों को साथ लेकर करनाल के निकट संघर्ष किया। इसी बीच अंग्रेजों ने बहादुरशाह जफर को पकड़ लिया। उनके दस्तावेजों की दिल्ली में जांच हुई। उसी फाइल से हुकुमचंद के क्रांतिकारी होने का प्रमाण मिला। उन्हें गिरफ्तार कर ले गए। एक माह तक कोर्ट की कार्रवाई चलाकर उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई।'

लाला हुकमचंद के बेटे लाला नियामतसिंह और सुगनचंद जैन ने बाद में परिवार को आगे बढ़ाया। अजय जैन बताते हैं, 'हमारा परिवार भटकते-भटकते नागदा पहुंचा। यहां से हमारे पिता रणवीरसिंह जैन व चाचा शरणवीरसिंह जैन 1969 में इंदौर आकर बस गए। रणवीरसिंहजी आज भी मिक्सरवाले जैन साहब के नाम से जाने जाते हैं।'

वीणा बंसल बताती हैं, 'हांसी में आज भी अज्ञात वास का चिमटा और झोला अबेर कर रखा हुआ है। सभी का कहना है, हरियाणा सरकार ने हांसी में लालाजी का स्मारक बनाया है। हम चाहते हैं, इंदौर में भी उनकी यादों को सहेजने के लिए स्मारक बनाया जाए।'

शत-शत नमन करूँ मैं आपको शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल जी। 
आपके परिवार को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP

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