मातंगिनी हाजरा

मातंगिनी हाजरा
~~~~~~~~~
मातंगिनी हाजरा जी, एक महान वीरांगना, जिन्होंने गोलियों से छलनी होने के बाद भी तिरंगे को ना तो झुकने दिया और नाही गिरने दिया !
💐💐
तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो शहीद हुए है उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
🙏🙏
मातंगिनी हाजरा जी भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाली बंगाल की वीरांगनाओं में से थीं। भारतीय इतिहास में उनका नाम बड़े ही मान-सम्मान के साथ लिया जाता है। मातंगिनी हज़ारा जी एक विधवा स्त्री अवश्य थीं, किंतु अवसर आने पर उन्होंने अदम्य शौर्य और साहस का परिचय दिया था। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के तहत ही सशस्त्र अंग्रेज़ सेना ने आन्दोलनकारियों को रुकने के लिए कहा। मातंगिनी हज़ारा जी ने साहस का परिचय देते हुए राष्ट्रीय ध्‍वज को अपने हाथों में ले लिया और जुलूस में सबसे आगे आ गईं। इसी समय उन पर गोलियाँ दागी गईं और इस वीरांगना ने देश के लिए अपनी कुर्बानी दी।

जन्म तथा विवाह
~~~~~~~~~~~~~
मातंगिनी हज़ारा जी का जन्म 19 अक्टूबर, 1870 ई. में पश्चिम बंगाल के मिदनापुर ज़िले में हुआ था। वे एक ग़रीब किसान की बेटी थीं। उन दिनों लड़कियों को अधिक पढ़ाया नहीं जाता था, इसलिए मातंगिनी भी निरक्षर रह गईं। उनके पिता ने बहुत छोटी उम्र मे ही उनका विवाह साठ वर्ष के एक धनी वृद्ध के साथ कर दिया था। जब मातंगिनी मात्र अठारह वर्ष की थीं, तभी वह विधवा हो गईं। अपने पति के मकान के पास एक कुटिया बनाकर वे रहने लगीं।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ
~~~~~~~~~~~~~~~~~
सन 1930 के आंदोलन में जब उनके गाँव के कुछ युवकों ने भाग लिया तो मातंगिनी जी ने पहली बार स्वतंत्रता की चर्चा सुनी। 1932 में उनके गाँव में एक जुलूस निकला। उसमें कोई भी महिला नहीं थी। यह देखकर मातंगिनी जी जुलूस में सम्मिलित हो गईं। यह उनके जीवन का एक नया अध्याय था।

फिर उन्होंने गाँधीजी के ‘नमक सत्याग्रह’ में भी भाग लिया। इसमें अनेक व्यक्ति गिरफ्तार हुए, किंतु मातंगिनी जी की वृद्धावस्था देखकर उन्हें छोड़ दिया गया। उस पर मौका मिलते ही उन्होंने तामलुक की कचहरी पर, जो पुलिस के पहरे में थी, चुपचाप जाकर तिरंगा झंडा फहरा दिया। इस पर उन्हें इतनी मार पड़ी कि मुँह से खून निकलने लगा। सन 1933 में गवर्नर को काला झंडा दिखाने पर उन्हें 6 महीने की सज़ा भोगनी पड़ी।

साहसिक महिला
~~~~~~~~~~~~
इसके बाद सन 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के दौरान ही एक घटना घटी। 29 सितम्बर, 1942 के दिन एक बड़ा जुलूस तामलुक की कचहरी और पुलिस लाइन पर क़ब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ा। मातंगिनी इसमें सबसे आगे रहना चाहती थीं। किंतु पुरुषों के रहते एक महिला को संकट में डालने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। जैसे ही जुलूस आगे बढ़ा, अंग्रेज़ सशस्त्र सेना ने बन्दूकें तान लीं और प्रदर्शनकारियों को रुक जाने का आदेश दिया। इससे जुलूस में कुछ खलबली मच गई और लोग बिखरने लगे। ठीक इसी समय जुलूस के बीच से निकलकर मातंगिनी हज़ारा सबसे आगे आ गईं।

शहादत
~~~~~~
मातंगिनी (Matangini Hazra) ने तिरंगा झंडा अपने हाथ में ले लिया। लोग उनकी ललकार सुनकर फिर से एकत्र हो गए। अंग्रेज़ी सेना ने चेतावनी दी और फिर गोली चला दी। पहली गोली मातंगिनी (Matangini Hazra) के पैर में लगी। मगर जब वह फिर भी आगे बढ़ती गईं तो उनके हाथ को निशाना बनाया गया। हाथ मे गोली लगने के बावजूद उन्होंने तिरंगा फिर भी नहीं छोड़ा। इस पर तीसरी गोली उनके सीने पर मारी गई और इस तरह यह एक अज्ञात नारी मातंगिनी हजारा जी ‘भारत माता’ के चरणों मे शहीद हो गई।

शत-शत नमन करूँ मैं आपको 💐💐💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP


Popular posts from this blog

वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐं आसमां

वीरांगना झलकारी बाई

मेजर शैतान सिंह भाटी जी