अमर बलिदानी मदनलाल ढींगरा

अमर बलिदानी मदनलाल ढींगरा
~~~~~~~~~~~~~~~~~

तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी .....

18 फरवरी – जन्मदिवस क्रांतिवीर मदनलाल ढींगरा. लंदन में जा कर क्रूर कर्जन वाइली का वध किया और वहीं श्रीमद्भागवत गीता ले कर झूल गए थे फाँसी ........

जरा खुद से सोचिये कि हमको क्या क्या पढाया गया और हम क्या क्या पढ़ते रहे .. पढाया गया कि बदले अगर कहीं कहीं रटाया गया शब्द प्रयोग किया जाय तो निश्चित रुप से कुछ गलत नहीं माना जायेगा क्योंकि बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी आना एक दिवस्वप्न ही होगा.. भारत को आज़ाद करवाने के लिए बलिवेदी पर चढ़ गए तमाम ज्ञात व अज्ञात वीरों की अंतहीन श्रृंखला में आज जन्मदिवस है उस महान क्रांतिकारी का जिसने ब्रिटिश धरती पर ही एक ब्रिटिश अत्याचारी का वध कर के भारत के शौर्य का वो परचम फहराया था जो आज तक ब्रिटिश लोगों को अक्षरशः याद है, भले ही भारत की सेकुलर और तथाकथित अहिंसावादी नीति के चलते उनको कुछ लोगों के प्रभाव में विस्मृत कर दिया गया हो.... ना जाने कितने फांसी पर झूले थे, कितनो ने गोलियां खाई थी क्यों झूठ बोलते हो कि चरखे से आजादी पाई थी।

शहीद मदन लाल ढींगरा, जन्म 18 फरवरी, 1883 फांसी 17 अगस्त, 1909 स्थान लंदन .....

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे स्वतंत्रत भारत के निर्माण के लिए भारत-माता के कितने शूरवीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं महान शूरवीरों में ‘अमर बलिदानी मदन लाल ढींगरा’ का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं। अमर शहीद मदनलाल ढींगरा महान देशभक्त, धर्मनिष्ठ क्रांतिकारी थे.  वे भारत माँ की आज़ादी के लिए जीवन-पर्यन्त प्रकार के कष्ट सहन किए परन्तु अपने मार्ग से विचलित न हुए और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए फांसी पर झूल गए।

मदन लाल ढींगरा का जन्म सन् 1883 में पंजाब में एक संपन्न हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता सिविल सर्जन थे और अंग्रेज़ी रंग में पूरे रंगे हुए थे; परंतु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं. जब मदन लाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक विद्यालय से निकाल दिया गया, तो परिवार ने मदन लाल से नाता तोड लिया। मदन लाल को एक क्लर्क रूप में, एक तांगा-चालक के रूप में और एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पडा। वहाँ उन्होंने एक यूनियन (संघ) बनाने का प्रयास किया; परंतु वहां से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में भी काम किया। अपनी बड़े भाई से विचार विमर्श कर वे सन् 1906 में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैड गये जहां ‘यूनिवर्सिटी कॉलेज’ लंदन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी में प्रवेश लिया। इसके लिए उन्हें उनके बडे भाई एवं इंग्लैंड के कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से आर्थिक सहायता मिली।

तेजस्वी तथा लक्ष्यप्रेरित लोग किसी के जीवन को कैसे बदल सकते हैं, मदनलाल ढींगरा इसका उदाहरण है। बी.ए. करने के बाद मदनलाल को उन्होंने लन्दन भेज दिया। वहाँ उसे क्रान्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित ‘इण्डिया हाउस’ में एक कमरा मिल गया।

उन दिनों विनायक दामोदर सावरकर भी वहीं थे। 10 मई, 1908 को इण्डिया हाउस में 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की अर्द्धशताब्दी मनायी गयी। उसमें बलिदानी वीरों को श्रद्धांजलि दी गयी तथा सभी को स्वाधीनता के बैज भेंट दिये गये। सावरकर जी के भाषण ने मदनलाल के मन में हलचल मचा दी।

अगले दिन बैज लगाकर वह जब कॉलेज गया, तो अंग्रेज छात्र मारपीट करने लगे। ढींगरा का मन बदले की आग में जल उठा। उसने वापस आकर सावरकर जी को सब बताया। उन्होंने पूछा, क्या तुम कुछ कष्ट उठा सकते हो ? मदनलाल ने अपना हाथ मेज पर रख दिया। सावरकर के हाथ में एक सूजा था। उन्होंने वह उसके हाथ पर दे मारा। सूजा एक क्षण में पार हो गया; पर मदनलाल ने उफ तक नहीं की। सावरकर ने उसे गले लगा लिया। फिर तो दोनों में ऐसा प्रेम हुआ कि राग-रंग में डूबे रहने वाले मदनलाल का जीवन बदल गया।

सावरकर की योजना से मदनलाल ‘इण्डिया हाउस’ छोड़कर एक अंग्रेज परिवार में रहने लगे। उन्होंने अंग्रेजों से मित्रता बढ़ायी; पर गुप्त रूप से वह शस्त्र संग्रह, उनका अभ्यास तथा शस्त्रों को भारत भेजने के काम में सावरकर जी के साथ लगे रहे। लंदन में वह विनायक दामोदर सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे कट्टर देशभक्तों के संपर्क में आए। सावरकर ने उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। मदनलाल ढींगरा ‘अभिनव भारत मंडल’ के सदस्य होने के साथ ही ‘इंडिया हाउस’ नाम के संगठन से भी जुड़ गए जो भारतीय विद्यार्थियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों का आधार था। इस दौरान सावरकर और ढींगरा के अतिरिक्त ब्रिटेन में पढ़ने वाले अन्य बहुत से भारतीय छात्र भारत में खुदीराम बोस, कनानी दत्त, सतिंदर पाल और कांशीराम जैसे देशभक्तों को फांसी दिए जाने की घटनाओं से तिलमिला उठे और उन्होंने बदला लेने की ठानी। ब्रिटेन में भारत सचिव का सहायक कर्जन वायली था। वह विदेशों में चल रही भारतीय स्वतन्त्रता की गतिविधियों को कुचलने में स्वयं को गौरवान्वित समझता था। मदनलाल को उसे मारने का काम सौंपा गया।

मदनलाल ने एक कोल्ट रिवाल्वर तथा एक फ्रैच पिस्तौल खरीद ली। वह अंग्रेज समर्थक संस्था ‘इण्डियन नेशनल एसोसिएशन’ का सदस्य बन गये। एक जुलाई, 1909 को इस संस्था के वार्षिकोत्सव में कर्जन वायली मुख्य अतिथि था। मदनलाल भी सूट और टाई में सजकर मंच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गये। उनकी जेब में एक पिस्तौल, रिवाल्वर तथा दो चाकू थे। कार्यक्रम समाप्त होते ही मदनलाल ने मच के पास जाकर कर्जन वायली के सीने और चेहरे पर गोलियाँ दाग दीं। वह नीचे गिर गया। कर्ज़न को बचाने की कोशिश करने वाला डॉक्टर कोवासी भी मदनलाल ढींगरा की गोलियों से मारा गया। मदनलाल को पकड़ लिया गया। 5 जुलाई को इस हत्या की निन्दा में एक सभा हुई; पर सावरकर ने वहाँ निन्दा प्रस्ताव पारित नहीं होने दिया। उन्हें देखकर लोग भय से भाग खड़े हुए। कर्ज़न वाइली को गोली मारने के बाद मदन लाल ढींगरा ने अपने पिस्तौल से अपनी हत्या करनी चाही, परंतु उन्हें पकड लिया गया।

23 जुलाई को ढींगरा के प्रकरण की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट, लंदन में हुई। अब मदनलाल पर मुकदमा शुरू हुआ। मदनलाल ने कहा – मैंने जो किया है, वह बिल्कुल ठीक किया है। भगवान से मेरी यही प्रार्थना है कि मेरा जन्म फिर से भारत में ही हो। उन्होंने एक लिखित वक्तव्य भी दिया। शासन ने उसे वितरित नहीं किया; पर उसकी एक प्रति सावरकर के पास भी थी। उन्होंने उसे प्रसारित करा दिया। इससे ब्रिटिश राज्य की दुनिया भर में थू-थू हुई।

बेली कोर्ट, लंदन में उनको मृत्युदण्ड दिया गया और 17 अगस्त सन् 1909 को फांसी दे दी गयी।17 अगस्त, 1909 को पेण्टनविला जेल में मदनलाल ढींगरा ने खूब बन-ठन कर भारत माता की जय बोलते हुए फाँसी का फन्दा चूम लिया। उस दिन वह बहुत प्रसन्न थे। इस घटना का इंग्लैण्ड के भारतीयों पर इतना प्रभाव पड़ा कि उस दिन सभी ने उपवास रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

इस महान क्रांतिकारी के रक्त से राष्ट्रभक्ति के जो बीज उत्पन्न हुए उनका हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है। आज स्वतन्त्रता के उस महान सूत्रधार को उनके जयंती पर हम देशवासी बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेते है और एक सवाल भी करते है कि उन स्वघोषित आज़ादी के ठेकेदारों से कि ऐसे वीरों का नाम इतिहास के पन्नों से मिटाने के पीछे आखिर उनकी क्या साजिश थी ?

शत शत नमन करूँ मैं आपको 💐💐💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP


Popular posts from this blog

वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐं आसमां

वीरांगना झलकारी बाई

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी