विरांगना नीरा आर्य जी
विरांगना नीरा आर्य
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★ ज़रा याद करो कुर्बानी ★
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तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो लडे आज़ादी के लिए उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी .....
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शहीदों, आज़ादी के मतवालों और देशभक्तों को इतनी यातनाएं दी गईं और नेहरू कहते थे कि सिर्फ चरखे से आजादी मिली?
भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंदशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, रौशन सिंह, आदि-आदि को नेहरू आतंकवादी लिखते हैं। आज़ादी के आज 71सालों के बाद भी उन्हें शहीद का दर्जा नहीं मिला, क्यों?
सुभाष चन्द्र बोस की मौत एक राज़, उनके दस्तावेज तक सावर्जनिक नही किये गए, क्यों?
सरदार वल्लभ भाई पटेल को 44 साल बाद भारत रत्न दिया गया, क्यों?
सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की देशभक्त, आज़ादी की लड़ाई में गांधी जी की सहयोगी व योग्य बेटी मणिबेन पटेल को नेहरू ने पटेल के निधन के बाद दरकिनार कर दिया, क्यों?
इतिहास में अकबर को महान व देशभक्तों व शहीदों को इतिहास से गायब कर दिया, क्यों?
ऐसी बहुत सी बातें हैं, क्या-क्या कहें। चलिये एक कहानी बताती हूँ, नीरा आर्य की कहानी ......
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जेल में जब मेरे स्तन काटे गए !
स्वाधीनता संग्राम की मार्मिक गाथा।
एक बार अवश्य पढ़े.....
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नीरा आर्य (१९०२ - १९९८) की संघर्ष पूर्ण जीवनी के कुछ अंश :
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नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था, लेकिन इस देशभक्त महान नारी नीरा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी।
नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है। इस आत्म कथा का एक ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है -
5 मार्च, 1902 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के खेकड़ा नगर में एक प्रतिष्ठित व्यापारी सेठ छज्जूमल के घर जन्मी नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झांसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था।
इन्हें नीरा नागिनी के नाम से भी जाना जाता है। इनके भाई बसंत कुमार भी आजाद हिन्द फौज में थे। इनके पिता सेठ छज्जूमल अपने समय के एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे, जिनका व्यापार देशभर में फैला हुआ था। खासकर कलकत्ता में इनके पिताजी के व्यापार का मुख्य केंद्र था, इसलिए इनकी शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में ही हुई।
नीरा नागिनी और इनके भाई बसंत कुमार के जीवन पर कई लोक गायकों ने काव्य संग्रह एवं भजन भी लिखे | 1998 में इनका निधन हैदराबाद में हुआ।
नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था |
नीरा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी।
आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें सुभाष चंद्र बोस के लिए अपने पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा हुई थी, जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई।
आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।
नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है। इस आत्म कथा का एक ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है -
‘‘मैं जब कोलकाता जेल से अंडमान पहुंची, तो हमारे रहने का स्थान वे ही कोठरियाँ थीं, जिनमें अन्य महिला राजनैतिक अपराधी रही थी अथवा रहती थी।
हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कंबल आदि का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी कि इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहाँ अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी है?
जैसे-तैसे जमीन पर ही लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कम्बल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंककर चला गया। कंबलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा, परंतु कंबलों को पाकर संतोष भी आ ही गया।
अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था।
‘‘सूर्य निकलते ही मुझको खिचड़ी मिली और लुहार भी आ गया। हाथ की सांकल काटते समय थोड़ा-सा चमड़ा भी काटा, परंतु पैरों में से आड़ी बेड़ी काटते समय, केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरों की हड्डी को जाँचा कि कितनी पुष्ट है।
मैंने एक बार दुःखी होकर कहा, ‘‘क्या अंधा है, जो पैर में मारता है?’’
‘‘पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’’ उसने मुझे कहा था।
‘‘बंधन में हूँ तुम्हारे, कर भी क्या सकती हूँ...’’ फिर मैंने उनके ऊपर थूक दिया था, ‘‘औरतों की इज्जत करना सीखो?’’
जेलर भी साथ थे, तो उसने कड़क आवाज में कहा, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कहाँ हैं?’’
‘‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे,’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘सारी दुनिया जानती है।’’
‘‘नेताजी जिंदा हैं....झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’’ जेलर ने कहा।
‘‘हाँ नेताजी जिंदा हैं।’’ मैंने कहा।
‘‘तो कहाँ हैं...।’’ जेलर ने कहा।
‘‘मेरे दिल में जिंदा हैं वे।’’
जैसे ही मैंने कहा, तो जेलर को गुस्सा आ गया था और बोले, ‘‘तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल देंगे।’’ और फिर उन्होंने मेरे आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आँगी को फाड़ते हुए फिर लुहार की ओर संकेत किया...लुहार ने एक बड़ा सा जंबूड़ औजार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढ़ी हुई पत्तियाँ काटने के काम आता है, उस ब्रेस्ट रिपर को उठा लिया और मेरे दाएँ स्तन को उसमें दबाकर काटने चला था...लेकिन उसमें धार नहीं थी, ठूँठा था और उरोजों (स्तनों) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दूसरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, ‘‘अगर फिर जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएँगे...’’
उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी नाक पर मारते हुए कहा, ‘‘शुक्र मानो महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड़ जाते।’’
नमन हैं ऐसी देशभक्त को।
आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर अपना जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।
जय हिन्द, जय माँ भारती, वन्देमातरम !!!
शत शत नमन करूँ मैं आपको नीरा आर्य जी....💐💐💐💐
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