सिर्फ पांच फीट जमीन और जगरानी देवी जी
सिर्फ पांच फीट जमीन और जगरानी देवी
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तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
जरा याद करो कुर्बानी..
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“ अरे बुढिया तू यहाँ ना आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए गोरों ने उसे मार दिया “ जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़ें भील ने हंसते हुए कहा।
“ नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं “ बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा..
उस बुजुर्ग औरत का नाम जगरानी देवी था और इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमे आखरी बेटा कुछ दिन पहले ही शहीद हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से चंदू कहती थी और दुनियां कहती थीं उसे “आजाद“। जी हाँ ! दुनियां उन्हें शहीद चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है।
हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, चंद्रशेखरआजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करतें हुए उनके गाँव पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद गरीबी में उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी। गरीबी में ही आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी। अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं, लेकिन अब वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि अपने लिए भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें। कभी ज्वार, कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं, क्योंकि दाल, चावल, गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं बची थी।
शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949 ) तक जारी रही।
शहीद चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था, अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की।
मार्च 1951 में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ, तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था।
आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक स्थान पर पीठ का निर्माण किया। प्रदेश की तत्कालीन सरकार (प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे, गोविन्द बल्लभ पन्त) ने नेहरू के इशारे पर इस निर्माण को झाँसी की जनता द्वारा किया हुआ अवैध और गैरकानूनी कार्य घोषित कर दिया, किन्तु झाँसी के नागरिकों ने तत्कालीन सरकार के उस शासनादेश को महत्व न देते हुए शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया।
मूर्ति बनाने का कार्य शहीद चंद्रशेखर आजाद के ख़ास सहयोगी कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी को सौपा गया, उन्होंने फोटो को देखकर आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी।
जब उत्तर प्रदेश के कांग्रेस सरकार को यह पता चला कि आजाद की माँ की मूर्ति तैयार की जा चुकी है और सदाशिव राव, रूपनारायण, भगवान् दास माहौर समेत कई क्रांतिकारी झांसी की जनता के सहयोग से मूर्ति को स्थापित करने जा रहे है, तो उसने अमर बलिदानी शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश, समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा दिया। चप्पे–चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई, ताकि अमर बलिदानी शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना ना की जा सके।
झांसी की जनता और क्रन्तिकारी, आजाद की माता की प्रतिमा लगाने के लिए निकल पड़ें। अपने आदेश की झाँसी की सडकों पर बुरी तरह उड़ती धज्जियों से तिलमिलाई तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अपनी पुलिस को सदाशिव को गोली मार देने तक का आदेश दे डाला, किन्तु चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर पीठ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में ले लिया। जुलूस पर पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया, सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग भी हुए और कुछ लोगो की मौत भी हुईं (कांग्रेस सरकार के इशारे पर मौत की पुष्टि नही हुईं )। अंततः चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी।😡
जिस शहीद चंद्रशेखर आजाद ने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे, आजादी के बाद उनकी माताश्री की 2-3 फुट की मूर्ति के लिए उस देश की सरकार ने 5 फुट जमीन भी नहीं दी।😡😡
संदर्भ : कई लेख एवं Indian Revolutionaries: A Comprehensive Study 1757-1961, Volume 3
उपसंहार ::::
यह सिर्फ शहीद चंद्रशेखर आजाद जी के साथ हुआ, ऐसा भी नहीं हैं। आजादी के बाद कांग्रेस की सरकार ने क्रांतिकारियों और उनके परिवारों के साथ बहुत घृणित और बुरा व्यवहार किया। आजादी के संघर्ष में जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी, उनके परिवार को आजादी के बाद भी बहुत तकलीफ उठानी पड़ी और जिन्होंने एक लाठी तक नहीं खायी, सदैव अंग्रेजो की चापलूसी किया, अंग्रेजों के साथ खाना–पीना, उठना-बैठना किया, वो और उनका परिवार दशको तक सत्ता सुख भोगते रहे।
हम अपने आजादी के महान नायकों, शहीदों को उनके कार्यों अनुसार प्रतिष्ठा नहीं दे पाए....नए नायक कैसे मिलेंगे....खुद से आज प्रश्न कीजिए।🙄🤔
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#VijetaMalikBJP
#HamaraAppNaMoApp