वीरांगना किरण देवी


वीरांगना किरण देवी
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बीकानेर के संग्रहालय में लगी यह तस्वीर साक्षी हैं वीरांगना किरण देवी की और साक्षी हैं इस बात की कि मुगल बादशाह
अकबर एक चरित्रहीन आक्रांता के सिवाय कुछ भी नही था और इस सत्यकथा में यह स्पष्ट है...

राजस्थान वीरों ओर योद्धाओं की धरती है। यहां के रेतीले धोरों का वीरता और शौर्य से बहुत पुराना रिश्ता रहा है। इतिहास आज भी ऐसे वीरों और वीरांगनाओं की कहानी कहता है जिनके त्याग और बलिदान ने इस धरा की शान बढ़ाई।

ऐसी ही कहानियों में एक वीरांगना किरण देवी का भी जिक्र आता है। कहते हैं कि उसने शहंशाह अकबर को अपने आगे झुकने के लिए मजबूर कर दिया था। अकबर ने किरण देवी से अपने प्राणों की भीख मांगी थी।

इस घटना का संबंध नौरोज मेले से है। यह मेला अकबर आयोजित करता था। ऐसी मान्यता है कि अकबर इस मेले में वेश बदलकर आता और यहां सुंदर महिलाओं की तलाश करता था और फिर उन्हें अपने हरम में बुला कर उनसे अपने शरीर की भूख शांत करता था।

एक बार अकबर नौरोज के मेले में बुरका पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर ही रहा था कि उसकी नजर मेले में घूम रही किरण देवी पर जा पड़ी। वह किरण देवी के रमणीय रूप पर मोहित हो गया।
वह किसी भी कीमत पर उसे हासिल करना चाहता था। उसने अपने गुप्तचरों से उसका पता मालूम करने को कहा। गुप्तचरों ने बताया कि वह मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह के छोटे भाई शक्ति सिंह की बेटी है। उसका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ से हुआ है।

अकबर ने पृथ्वीराज राठौड़ को किसी युद्ध के बहाने बाहर भेज दिया और किरण देवी को एक सेविका के जरिए संदेश भेजा कि बादशाह ने आपको बुलाया है। किरण देवी ने बादशाह के हुक्म का पालन किया और वह महल में गई।

अब किरण देवी पहुंची अकबर के महल में,
तो स्वागत तो होना ही था और इन शब्दो में हुआ,

‘‘हम तुम्हें अपनी बेगम बनाना चाहते हैं।’’
कहता हुआ अकबर आगे बढ़ा,
तो किरण देवी पीछे को हटी...
अकबर आगे बढ़ते गया और किरण देवी उल्टे पांव पीछे हटती गयी...

लेकिन कब तक हटती बेचारी पीछे को...
आखिर उसकी कमर दीवार से जा लगी।
‘‘बचकर कहाँ जाओगी,’’ अकबर मुस्कुराया, ‘‘ऐसा मौका फिर कब मिलेगा, तुम्हारी जगह पृथ्वीराज के झोंपडे में नहीं हमारे ही महल में है’’
‘‘हे भगवान, ’’ किरण देवी ने मन-ही-मन में सोचा,
‘‘इस राक्षस से अपनी इज्जत आबरू कैसे बचाउ?’’
‘‘हे धरती माता, किसी म्लेच्छ के हाथों अपवित्र होने से पहले मुझे सीता जी की तरह अपनी गोद में ले लो।’’

यह व्यथा से सोचते हुए उसकी आँखों से अश्रूधारा बहने लगी और वह निसहाय बनी धरती की ओर देखने लगी, तभी उसकी नजर फर्श पर बिछे कालीन पर पड़ी। उसने तुरन्त कालीन का किनारा पकड़कर उसे जोरदार झटका दिया। उसके ऐसा करते ही अकबर जो कालीन पर चल रहा था, पैर उलझने पर वह पीछे को सरपट गिर पड़ गया, ‘‘या अल्लाह!’’ और बादशाह फर्श पर धराशायी हो गया।

उसके नीचे गिरते ही किरणदेवी को संभलने का मौका मिल गया। किरण देवी हथियार चलाने और आत्मरक्षा में भी पारंगत थी और वह उछलकर अकबर की छाती पर जा बैठी और अपनी अंगी से कटार निकालकर उसे अकबर की गर्दन पर रखकर बोली, ‘‘अब बोलो शहंशाह, तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है? किसी स्त्री से अपनी हवस मिटाने की या कुछ और..?’’

एकांत महल में गर्दन से सटी कटार को और क्रोध में दहाडती किरण देवी को देखकर अकबर भयभीत हो गया।

बाजी इतनी जल्दी पलट जाएगी, इसका अंदाजा अकबर को भी नहीं था। वह किरण देवी से माफी मांगने लगा, बोला- किरण, तुम यकीनन दुर्गा हो। मुझे माफ करो। अगर मैं मर गया तो देश में कई समस्याएं हो जाएंगी। मैं कसम खाकर कहता हूं कि अब कभी नौरोज मेला नहीं लगाऊंगा और ना कभी किसी महिला के बारे में ऐसी सोच रखूंगा।

अकबर को काफी खरी-खोटी सुनाने के बाद किरण ने उसे माफ कर दिया और चेतावनी देकर वापस अपने महल में आ गई। कहा जाता है कि अकबर ने फिर कभी नौरोज मेला नहीं लगाया। इस घटना का चित्रण राजस्थान के कई कवियों ने किया है। एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है :

सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख! यह प्यासी तेरे खून की मेरी कटार हैं।
......
शत–शत नमन वीरांगना किरण देवी को.......
🙏🙏
#VijetaMalikBJP

#HamaraAppNaMoApp

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