अखंड कर्मयोगी डा. ओमप्रकाश मैंगी
आजादी का अमृत महोत्सव भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक पहचान के बारे में प्रगतिशील है। “आज़ादी का अमृत महोत्सव” की आधिकारिक यात्रा 12 मार्च, 2021 को शुरू होती है, जो हमारी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के लिए 75 सप्ताह की उलटी गिनती शुरू करती है और 15 अगस्त, 2023 को एक वर्ष के बाद समाप्त होगी।
आजादी के इस अमृत महोत्सव में आइए जानते हैं भारत के कुछ महानुभावों के बारे में हर दिन पावन के तहत :....
*#हरदिनपावन*
*🇮🇳स्वतंत्रता का75वां अमृतमहोत्सव🇮🇳*
*16 जनवरी/जन्म-दिवस*
*अखंड कर्मयोगी डा. ओमप्रकाश मैंगी*
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*संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता डा. ओमप्रकाश मैंगी का जन्म 16 जनवरी 1918 को जम्मू में एक समाजसेवी श्री ईश्वरदास जी के घर में हुआ था। सामाजिक कार्यों में सक्रिय पिताजी के विचारों का प्रभाव ओमप्रकाश जी पर पड़ा। प्रारम्भिक शिक्षा जम्मू, भद्रवाह और श्रीनगर में पूर्णकर उन्होंने मैडिकल कॉलिज अमृतसर से ‘जनरल फिजीशियन एंड सर्जन’ की उपाधि ली।*
इसके बाद वे जम्मू-कश्मीर सरकार में चिकित्सा अधिकारी तथा सतवारी कैंट चिकित्सालय में सेवारत रहे। फिर उन्होंने लाहौर से दंत चिकित्सा की उपाधि बी.डी.एस. लेकर इसे ही अपने जीवनयापन का आधार बनाया।
1940 में दीवान मंदिर, जम्मू में शाखा प्रारम्भ होने पर ओमप्रकाश जी स्वयंसेवक बने। श्री गुरुजी ने 1960 में उन्हें प्रांत संघचालक का दायित्व दिया, जिसे उन्होंने लगभग 40 साल तक निभाया। वे चिकित्सा कार्य के बाद का सारा समय सामाजिक गतिविधियों में लगाते थे।
1952-53 में जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाये रखने के लिए प्रजा परिषद द्वारा किये गये आंदोलन में उन्होंने पंडित प्रेमनाथ डोगरा के साथ सत्याग्रह कर जेल के कष्ट भोगे। 1966-67 के गोरक्षा आंदोलन में भी उन्होंने एक जत्थे के साथ दिल्ली में गिरफ्तारी दी। वे कहने की बजाय करने में अधिक विश्वास रखते थे।
1975 के आपातकाल में सत्याग्रह कर वे एक वर्ष तक 'मीसा' में बंदी रहे। 91 वर्ष की अवस्था में अमरनाथ आंदोलन के समय एक बार फिर उन्होंने गिरफ्तारी दी। वे संघ कार्य के साथ ही अन्य सामाजिक कार्याें में भी सदा आगे रहते थे। जम्मू की गोशाला, वृद्धाश्रम, बाल निकेतन, विवेकानंद अस्पताल, सेवा भारती आदि में उनका सक्रिय सहयोग रहता था।
डा. मैंगी की पत्नी सुशीला जी भी अनेक सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहती थीं। प्रजा परिषद के आंदोलन में वे भी महिलाओं का जत्था लेकर दिल्ली गयी थीं। 2002 में उनका देहांत हुआ। इससे पूर्व 1974 में उनके युवा पुत्र विक्रम मैंगी की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। ऐसे सब आघातों को ‘प्रभु की इच्छा’ मानकर वे सक्रिय बने रहे। संघ क्षेत्र में श्री गुरुजी तथा अध्यात्म क्षेत्र में वे हिमालय के महान संत श्री चंद्रास्वामी को अपना आदर्श मानते थे। आंतरिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए वे वर्ष में एक-दो बार मौनव्रत करते थे।
1975 में डा. मैंगी रोहतक में लगे संघ शिक्षा वर्ग में सर्वाधिकारी थे। वर्ग समाप्त होने से पूर्व ही देश में आपातकाल लग गया। पुलिस ने वर्ग स्थान को घेर लिया। यह देखकर डा. मैंगी ने स्वयं पुलिस थाने जाकर अधिकारियों से बात की। उनकी बातों से प्रभावित होकर पुलिस ने वर्ग में आये सब शिक्षक और शिक्षार्थियों को घर जाने की अनुमति दे दी। इस प्रकार उनकी सूझबूझ और निर्णय शक्ति से एक संकट टल गया। स्वभाव से अत्यधिक विनम्र होते हुए भी वे संगठन तथा देशहित में कठोर निर्णय लेने से नहीं चूकते थे।
डा. मैंगी तन, मन और धन से पूर्णतः समाज को समर्पित थे। उन्होंने अपने पिताजी व माताजी के नाम से ‘प्रभादेवी ईश्वरदास न्यास’ बनाकर सब पूंजी समाजसेवा के लिए अर्पित कर दी। इससे वे निर्धन परिवारों की सहायता करते थे। जम्मू के लोकप्रिय नेता पंडित प्रेमनाथ डोगरा जब कैंसर के इलाज के लिए मुंबई गये, तो डा. मैंगी ने वहां रहकर उनकी भरपूर सेवा की।
डा. मैंगी ने व्यक्तिगत सुख के बदले त्याग और समर्पण का मार्ग चुना और आजीवन उस पर चलते रहे। ऐसे अखंड कर्मयोगी का 92 वर्ष की आयु में 14 नवम्बर, 2009 को देहांत हुआ। उनकी परम्परा को निभाते हुए उनके सब परिवारजन संघ तथा अन्य सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हैं।
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