वीर बाल दिवस


वीर बाल दिवस 
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26 दिसम्बर घोषित किया गया है। 

सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी के दोनो छोटे साहबजादे फतह सिंह और जोरावर सिंह और गुरुजी की माता गुजरी देवी जी की शहादत दिवस को ही अब "वीर बाल दिवस" के रूप में मनाया जायेगा। 

यही हम सबकी उनकी शहादत को सच्ची श्रद्धांजलि होगी...... 

जोरावर जोर से बोला 
फतेह सिंह शेर सा बोला 
रखो ईंटे भरो गारे 
चुनों दीवार हत्यारें 
निकलती सांस बोलेगी 
हमारी लाश बोलेगी 
यही दीवार बोलेगी 
हजारो बार बोलेगी 
हमारे देश की जय हो 
हमारे धर्म की जय हो 
गुरुग्रंथ की जय हो
पितादशमेश की जय हो। 

साहिब श्री गोबिंद सिंह जी के साहिबजादे फतेहसिंह जी व जोरावरसिंह जी के शहीदी दिवस पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम! 

साहिबजादो के बलिदान का दिवस : वीर बाल दिवस 
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20 से 27 दिसम्बर का वह सप्ताह, जब गुरुगोविंद सिंह के परिवार ने राष्ट्र के लिए सर्वस्व समर्पित किया ...... 

"चार साहिबज़ादे "  शब्द का प्रयोग सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के चार सुपुत्रों - साहिबज़ादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, ज़ोरावर सिंह, व फतेह सिंह को सामूहिक रूप से संबोधित करने हेतु किया जाता है। 

छोटे साहिबजादे
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“निक्कियां जिंदां, वड्डा साका”.... गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहादत को जब भी याद किया जाता है तो सिख संगत के मुख से यह लफ्ज़ ही बयां होते हैं। 

गुरु गोविंद सिंह, जो कि सिखों के दसवें गुरु थे, उन्हें वर्ष 1704 में 20 दिसंबर को आनंदपुर साहिब किले को अचानक से बेहद कडक़ड़ाती ठंड में छोडऩा पड़ा था, क्योंकि मुगल सेना ने इस पर आक्रमण कर दिया था। गुरु गोविंद सिंह चाहते थे कि वे किले में ही रुक कर आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ा दें, लेकिन उनके दल में जो लोग शामिल थे, उन्होंने खतरे को भांप लिया था। ऐसे में उन्होंने गुरु गोविंद सिंह से आग्रह किया कि इस वक्त यहां से निकल जाना ही उचित होगा। गुरु गोविंद सिंह जी ने आखिरकार उनकी बात मान ली और आनंदपुर किले को छोडक़र वे अपने परिवार के साथ वहां से निकल गए। 

बिछड़ गया गुरु गोविंद सिंह जी का परिवार : 
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सरसा नदी को जब वे पार कर रहे थे, तो इस दौरान नदी में पानी का बहाव बहुत तेज होने की वजह से गुरु गोविंद सिंह के परिवार के सदस्य एक-दूसरे से बिछड़ गए थे। गुरु गोविंद सिंह के दो बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह उनके साथ ही रह गए और वे उनके साथ चमकौर पहुंच गए थे। वहीं, दूसरी ओर गुरु गोविंद सिंह की माता गुजरी देवी और उनके दो बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह अलग हो गए थे। गुरु गोविंद सिंह का सेवक गंगू इन्हीं लोगों के साथ में था। उसने माता गुजरी और गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों को उनके परिवार से मिलाने का भरोसा दिलाया और उन्हें अपने घर लेकर चला गया। गंगू को सोने के मोहरों का लोभ हो गया था। इस वजह से उसने वजीर खां को इनके बारे में खबर कर दी। 

चमकौर का युद्ध 
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1704 में 21, 22, और 23 दिसम्बर को गुरु गोविंद सिंह और मुगलों की सेना के बीच पंजाब के चमकौर में लड़ा गया था। गुरु गोबिंद सिंह जी 20 दिसम्बर की रात आनंद पुर साहिब छोड़ कर 21 दिसम्बर की शाम को चमकौर पहुंचे थे और उनके पीछे मुगलों की एक विशाल सेना जिसका नेतृत्व वजीर खां कर रहा था, भी 22 दिसम्बर की सुबह तक चमकौर पहुँच गयी थी। 

वजीर खां गुरु गोबिंद सिंह को जीवित या मृत पकड़ना चाहता था। चमकौर के इस युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह की सेना में केवल उनके दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह एवं जुझार सिंह और 40 अन्य सिंह थे। इन 43 लोगों ने मिलकर ही वजीर खां की आधी से ज्यादा सेना का विनाश कर दिया था। वजीर खान गुरु गोविंद सिंह को पकड़ने में असफल रहा, लेकिन इस युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्रों साहिबज़ादा अजीत सिंह व साहिबज़ादा जुझार सिंह और 40 सिंह भी शहीद हो गए। 

गुरु गोविंद सिंह ने इस युद्ध का वर्णन ज़फ़रनामा में किया है। उन्होंने बताया है कि जब वे सरसा नदी को पार कर चमकौर पहुंचे तो किस तरह मुगलों ने उन पर हमला किया। 

गिरफ्तार हो गए गुरु गोविंद सिंह के दो छोटे साहिबजादे :
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सरसा नदी पर जब गुरु गोबिंद सिंह जी परिवार से जुदा हो रहे थे, तो एक ओर जहां बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ चले गए, वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह, माता गुजरी जी के साथ रह गए थे। उनके साथ ना कोई सैनिक था और ना ही कोई उम्मीद थी, जिसके सहारे वे परिवार से वापस मिल सकते। 

गंगू नौकर
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अचानक रास्ते में उन्हें गंगू मिल गया, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू ने उन्हें यह आश्वासन दिलाया कि वह उन्हें उनके परिवार से मिलाएगा और तब तक के लिए वे लोग उसके घर में रुक जाएं। 

माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादे
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माता गुजरी जी और साहिबजादे गंगू के घर चले तो गए, लेकिन वे गंगू की असलियत से वाकिफ नहीं थे। गंगू ने लालच में आकर तुरंत वजीर खां को गोबिंद सिंह जी की माता और छोटे साहिबजादों के उसके यहां होने की खबर दे दी जिसके बदले में वजीर खां ने उसे सोने की मोहरें भेंट की। 

ठंडे बुर्ज में रखा
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खबर मिलते ही वजीर खां के सैनिक माता गुजरी और 7 वर्ष की आयु के साहिबजादा जोरावर सिंह और 5 वर्ष की आयु के साहिबजादा फतेह सिंह को गिरफ्तार करने गंगू के घर पहुंच गए। उन्हें लाकर ठंडे बुर्ज में रखा गया और उस ठिठुरती ठंड से बचने के लिए कपड़े का एक टुकड़ा तक ना दिया। 

रात भर ठंड में ठिठुरने के बाद सुबह होते ही दोनों साहिबजादों को वजीर खां के सामने पेश किया गया, जहां भरी सभा में उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा गया। कहते हैं सभा में पहुंचते ही बिना किसी हिचकिचाहट के दोनों साहिबजादों ने ज़ोर से जयकारा लगा “जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल”। 

यह देख सब दंग रह गए, वजीर खां की मौजूदगी में कोई ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं कर सकता, लेकिन गुरु जी की नन्हीं जिंदगियां ऐसा करते समय एक पल के लिए भी ना डरीं। सभा में मौजूद मुलाजिम ने साहिबजादों को वजीर खां के सामने सिर झुकाकर सलामी देने को कहा, लेकिन इस पर उन्होंने जो जवाब दिया वह सुनकर सबने चुप्पी साध ली। 

दोनों ने सिर ऊंचा करके जवाब दिया कि ‘हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे, यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम अपने दादा को क्या जवाब देंगे जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहीं’। 

साहबजादे अपने निर्णय पर अटल रहे
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वजीर खां ने दोनों साहिबजादों को काफी डराया, धमकाया और प्यार से भी इस्लाम कबूल करने के लिए राज़ी करना चाहा, लेकिन दोनों अपने निर्णय पर अटल थे। 

मुगलों का कहर
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आखिर में वजीर खां द्वारा दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवारों में चुनवाने का ऐलान किया गया। कहते हैं दोनों साहिबजादों को जब दीवार में चुनना आरंभ किया गया तब उन्होंने ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करना शुरू कर दिया और दीवार पूरी होने के बाद अंदर से जयकारा लगाने की आवाज़ भी आई। 

ऐसा कहा जाता है कि वजीर खां के कहने पर दीवार को कुछ समय के बाद तोड़ा गया, यह देखने के लिए कि साहिबजादे अभी जिंदा हैं या नहीं। तब दोनों साहिबजादों के कुछ श्वास अभी बाकी थे, लेकिन ज़ालिम मुगल मुलाजिमों का कहर अभी भी जिंदा था। उन्होंने दोनों साहिबजादों को जबर्दस्ती मौत के गले लगा दिया। 

माता गुजरी जी का निधन
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उधर दूसरी ओर साहिबजादों की शहीदी की खबर सुनकर माता गुजरी जी ने अकाल पुरख को इस गर्वमयी शहादत के लिए शुक्रिया किया और उनकी शहादत पर आँसू नहीं बहाए, क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की शहादत पर गर्व था। पर हाय एक माँ का दिल..... 27 तारीख को माता ने भी अपने प्राण त्याग दिए। 

दोनों साहबजादों ने खुशी-खुशी मौत स्वीकार कर ली लेकिन ज़ालिम मुगलों के आगे अपने घुटने नहीं टेके। लेकिन उनके इस बलिदान के बारे में सब लोग नहीं जानते थे। इसलिए उनकी शौर्य गाथा को याद रखने के लिए 26 दिसम्बर को हमारे महान प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी व भारत सरकार द्वारा "वीर बाल दिवस" के रूप में मनाने की घोषणा की, ताकि लोग इन चारों वीर भाइयों के बलिदान को याद कर सके। गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों के बलिदान से प्रेरित होकर लोग अपने धर्म के प्रति जागरूक हो सकेंगे। 

सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के चारों शहीद साहबजादे अजीत सिंह जी, जुझार सिंह जी और आज के दिन शहीद हुए साहबजादे जोरावर सिंह जी और फतेह सिंह जी के शहादत दिवस पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। इन साहिबजादों की राष्ट्र निष्ठा को कृतज्ञ राष्ट्र का प्रणाम है। 

तुम भूल न जाओ उनको, 
इसलिए लिखी यह कहानी, 
जो शहीद हुए हैं उनकी, 
ज़रा याद करो कुर्बानी...
🚩 💐💐🙏🙏💐💐🚩
#VijetaMalikBJP 

#VeerBaalDiwas

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