खेजड़ली बलिदान

“★ खेजड़ली बलिदान ★”
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दान में सबसे बड़ा दान प्राणों का दान होता है. पर्यावरण संरक्षण हेतु पेड़ों को बचाने के लिए 363 बिश्नोई समाज के लोगों ने प्राणों की आहुति दी।

सन् 1730 में राजस्थान के जोधपुर से 25 किलोमीटर दूर छोटे से गांव खेजड़ली में यह घटना घटित हुई. सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह ने नया महल बनाने के कार्य में चूने का भट्टा जलाने के लिए इंर्धन हेतु खेजड़ियाँ काटने के लिए अपने कर्मचारियों को भेजा। वहां अमृतादेवी बेनीवाल सहित कुल 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। विश्व में ऐसा अनूठा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है।

“सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” – को सही साबित कर दिया.

अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा ने वृक्षों की रक्षा हेतु खेजड़ली में बलिदान होने वाले 363 शहीदों का विवरण, महलाणा के भाटों की सहायता से तैयार करके ‘खेजड़ली के 363 बिश्नोई अमर-शहीद’ नाम से प्रकाशित करवाया था।

क्या है खेजड़ली बलिदान
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जोधपुर जिले के गांव खेजड़ली में घटित हुई थी ये घटना......

खेजडली गांव में वृक्षों की अत्यधिक मात्रा होने के कारण इस ग्राम का नाम खेजड़ली पड़ा था। यह गांव जोधपुर से 21 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में स्थित है। यह घटना जोधपुर के तत्कालीन महाराजा अभय सिंह के शासनकाल में सन 1730 विक्रम संवत 1787 में घटित हुई तथा लगातार 1 साल तक चलती रही इस घटना के समय महाराजा अभय सिंह गुजरात में युद्ध रत थे। उनका पुश्तैनी दीवान गिरधर दास भंडारी था जिसने राजा के आदेश अनुसार खेजड़ी के वृक्षों को काटने का फरमान जारी किया था क्योंकि उस समय जोधपुर के किले का निर्माण चल रहा था ।

चूने के पत्थरों को जलाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता थी इसलिए दीवान गिरधर दास भंडारी ने जोधपुर के आस-पास उन गांव का पता करवाया जहां सबसे अधिक पेड़ थे। भौतिक स्थिति का अवलोकन करने के बाद खेजडली गांव में सबसे अधिक खेजड़ी के पेड़ पाए गए। तब महाराज का दीवान गिरधर दास भंडारी अपने सैनिकों के साथ खेजडली गांव में आया तो गांव के लोगों ने पूछा कि आप लोग अस्त्र-शस्त्र सहित आज हमारे गांव खेजड़ली कैसे आए हो तब गिरधर दास भंडारी ने बताया की राजदरबार में महल बनाने के लिए काम आने वाले चूने के पत्थर को जलाने के लिए पेड़ों को काट कर ले जाएंगे और खेजडली गांव के खेजड़ी के पेड़ों को कटवाने शुरू कर दिए।

खेजडली गांव में बिश्नोई जाति के अत्यधिक लोग रहते थे और वन्य प्राणियों तथा पेड़ों की रक्षा करते थे। खेजड़ली के लोगों ने जब इस घटना की सूचना 84 गांव के बिश्नोईयों के पास भिजवा कर गुड़ा गांव में एक महापंचायत रखी और उस महापंचायत में यह निर्णय हुआ कि बिश्नोई समाज के लोग खेजड़ी के पेड़ों को नहीं काटने देंगे यह सूचना साफ-साफ शब्दों में गिरधर दास भंडारी के पास पहुंचा दी गई। फिर भी सैनिकों ने खेजड़ी के पेड़ों को काटना जारी रखा तो बिश्नोईयों ने यह निर्णय लिया कि पेड़ों को नहीं काटने देंगे और अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में एक व्यक्ति एक पेड़ के साथ लिपट कर कटता गया इस बलिदान में 60 गांव के 64 गोत्रों के 217 परिवारों के 294 पुरुष और 69 महिलाओं सहित कुल 363 लोगों ने श्री गुरु जंभेश्वर भगवान की वाणी "जीव दया पालनी रुंख लिलो नहीं घावै" को चरितार्थ करते हुए अपने घर परिवार की परवाह किए बगेर अपने प्राणों की आहुति दे दी।

इस बलिदान में 36 दंपत्तियाँ तो पूरी तरह से स्वाह हो गई इस महा समर में सबसे पहले अपना बलिदान देने वाली बिश्नोई शहीद अमृता देवी के नाम को चिरस्थाई रखने के लिए भारत सरकार, राजस्थान सरकार और मध्य प्रदेश सरकार पेड़ों और वन्यजीवों के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को अमृता देवी बिश्नोई के नाम से पुरस्कार से प्रदान करते हैं। इस मेले की स्थापना घटना के 250 वर्ष बीतने के बाद बलिदान की तिथि भादो सुदी दशमी होने के कारण उसी दिल लगाने की तैयारियां शुरू की गई और अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतकुमार राहड़ साधु सन्तो और अनेकों बिश्नोईयों की मेहनत से 12 सितंबर 1978 को पहला मेला भरा गया। तब से पिछले 38 वर्षों से लगातार प्रतिवर्ष भादवा सुदी दशमी को खेजड़ली में व्रहद स्तर पर इस मेले का आयोजन होता है और वर्ष भर में पर्यावरण और जीव रक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों को जीव रक्षा सभा द्वारा सम्मानित भी किया जाता है। काफी लंबे प्रयास के बाद मेंलाणा गांव के बही भाट मांगीलाल और भागीरथ राय राव ने 363 बलिदानियों की सूची उपलब्ध करवाई जो आज विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हो चुकी हैं।

शत शत नमन करूँ मैं अमृता देवी बिश्नोई जी व सभी 363 अमर महान शहीदों को 💐💐💐💐
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#VijetaMalikBJP

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