वीर तक्षक
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आदरणीय भारतवासियों, युगों की राजनीति का इतिहास साक्षी है जिसमें अनेकों सत्ता व व्यवस्था परिवर्तन हुए। प्राचीन काल के राजा – महाराजाओं की धर्मनीति व कूटनीति, बादशाहों की क्रूर व दमन नीति, अंग्रेजों की कुटिल व कठोर नीति और वर्तमान सरकारों की भ्रष्ट व लूट नीति किसी से छिपी नहीं हैं और हमारी फूट के कारण हम पर कितने अत्याचार हुए इससे भी हम भली भांति परिचित हैं। सन 711 की बात है जब अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के बाद एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब कर व तलवारों से गर्दन काटकर मरने लगीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। भारतीय सैनिकों ने ऎसी बर्बरता पहली बार देखी थी।*
बालक तक्षक के पिता कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। युवाओं व बच्चों का कतल होने लगा और स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी। भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं। तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला।उसके बाद अरबों द्वारा काटी जा रही अपनी गाय की तरफ और बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया। आठ वर्ष का बालक तक्षक एकाएक समय के आह्वान को समझ गया। उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गय।
25 वर्ष बीत गए। अब वह बालक बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से उसके चेहरे पर प्रसन्नता का कोई भाव नहीं क्योंकि वह तो अपनी माता और बहनों को श्रद्धांजलि देने को बेचैन था। उदास सा व्यक्तित्व कभी खुश नहोता था।उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की वजह से अंगारे की तरह लाल रहती थीं। उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था। कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल शौर्य व पराक्रम से अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए विख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे,पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण पंद्रह वर्षों से मुस्लिम शासक आदत से मजबूर बार बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण कर रहे थे।
महाराज बागभट्ट ने युद्ध की मंत्रणा हेतु सभा बुलाई और मंत्रियों व सेनापति को गुप्तचरों द्वारा दी गई सूचना से अवगत कराया और बताया कि अरब के खलीफा से सहयोग लेकर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी। सारे सेनाध्यक्ष अपनी अपनी राय दे रहे थे…तभी अंगरक्षक तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला—*महाराज, हमें इस बार दुश्मन को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।*
महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- “अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।”
*”महाराज, अरब सैनिक महाबर्बर हैं, उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध करके हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। इन अत्याचारियों को उन्ही की शैली में हराना होगा।”*
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले- “किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक। “
तक्षक ने कहा- *”मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों। ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज। इनके लिए लूट, हत्या और बलात्कार ही धर्म है।”*
“पर यह हमारा धर्म नही हैं वीर”
“राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा। देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था। ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह आप भली भाँति जानते हैं।”
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए।
अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चुका था और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।
आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी। अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए।
इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य व क्रोध अपनी पराकाष्ठा पर था।वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। आज माँ और बहनों की आत्मा को श्रद्धांजलि देने का समय था….
उषा की प्रथम किरण से पूर्व ही अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।
विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था। सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह चमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया। युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट बोल उठा-
“आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक…. भारत ने अब तक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।”
*इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों कीें भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।*
प्रिय भारतवासियों, चिंता का विषय भाजपा सरकार द्वारा निर्मित कानूनों का राजनीतिक दलों द्वारा किया जा रहा विरोध नहीं वरन् नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के नाम पर सत्ता लोलुप कम्युनिस्ट, काग्रेस व अन्य क्षेत्रीय दलों का षडयंत्र है जिसके माध्यम से हिन्दू समाज व हमारे शिक्षण संस्थानों को भ्रमित करके आपस में लड़ाया जा रहा है जो कल के भारत का भविष्य तय करेगा। चिन्तन का विषय यह है कि सत्ता की लालसा में पागल नेता गुरु गोविन्द सिंह के त्याग से बचाए गए हिंदुत्व और महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्र शेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह, असफाकउल्लाह खान और अब्दुल हमीद के रक्त से सिंचित भारत को पुनः आक्रांता एवम दरिंदों के हाथों में सौंपकर जोरावर व फतह सिंह को फिर से दीवार में चिनवाना चाहते हैं। याद रखो मित्रो, आक्रांताओं व अंग्रेजों के आने से पहले भी देश द्रोहियों ने हमें इसी तरह आपस में बांटकर पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप , शिवाजी और वीर छत्रसाल की तलवार को बलहीन व असहाय करके हमें गुलाम होने के लिए विवश कर दिया था।
भाईयो, भारत बटवारे के समय 23 प्रतिशत हिन्दू पाकिस्तान व बांग्लादेश में था जो आज मात्र 3.5 प्रतिशत शेष है। आखिर कहां गई हिन्दुओं की जनसंख्या ? सब दरिंदों के अत्याचार, अनाचार, लूट व बलात्कार की भेंट चढ़ गई। सोच कर देखो मेरे देशवासियों, जिन परिवारों की बहू व बेटियों की इज्जत उनके सामने लुट रही हो, जिनके बच्चों को उन्हीं की आंखों के सामने मारा जा रहा हो और वो असहाय देख रहे हों क्या बीती होगी उनके दिल पर। हाल ही में कश्मीर में हिंदू पंडितों क्या हाल हुआ आपसे छिपा नहीं है। यदि चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गुर्गों व एजेंटों के बहकावे में आप बटे तो आपका भी यही हाल होगा।
आज हमारे प्रधानमंत्री ने स्वजनों को चाहे वह हिन्दू हों या सिक्ख अत्याचार से बचाने का निर्णय लिया है और इसके लिए आपसे सहयोग की अपेक्षा की है तो हमारे अपने राष्ट्र और समाज विरोधी शक्तियों के बहकावे में आकर स्वजनों को भारत की नागरिकता मिलने का विरोध करने लगे। सोचो! इससे घिनौना और क्या हो सकता है? हम कितने गिर गए हैं कि हम अपनों को पाकिस्तानी, बांग्लादेशी व अफगानी दरिंदों के सामने बलात्कार और कत्ल के लिए धकेल रहे हैं? हम कैसा भारत निर्माण चाहते हैं जिसमें हम स्वयं अपनों के लहू के प्यासे हो जाएं ? याद रखो,यदि भारत में फिर फूट पड़ी तो कोई शेष नहीं बचेगा ? न भाजपा, न कम्युनिस्ट, न कांग्रेस, न सपा, न बसपा और न उनके अनुयाई व समर्थक।
मेरे प्रिय भारतवासियों, तक्षक से सीखो मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण दिए ही नही, लिए भी जाते है। दुष्ट सिर्फ दुष्टता की ही भाषा जानता है, इसलिए उसके दुष्टतापूर्ण कुकृत्यों का प्रत्युत्तर उसे उसकी ही भाषा में देना होगा अन्यथा वह आपको अपमानित और प्रताड़ित ही करता रहेगा। प्रिय भारतवसियो, राष्ट्रहित और जनहित में अपने राष्ट्रहित चिंतक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भावना एवम् कार्यों का सम्मान व समर्थन करके राष्ट्ररक्षा के मार्ग पर आगे बढ़ो।
याद रखो देशवासियों, यह समय बार बार नहीं आएगा और नाही हमें बार बार नरेन्द्र मोदी मिलेगा। वक्त है जागो और एकजुट होकर धो डालो राष्ट्र विरोधी शक्तियों के षडयंत्रों को। भाईयो, हमारे पूर्वजों के साथ हुए अत्याचार व प्रताड़ना की पुनरावृत्ति न हो और फिर कोई दुष्ट दुराचारी हमारे बिछुड़े हुए भाइयों का कतल व बहू – बेटियों का बलात्कार न कर सके इसके लिए मोदी, शाह और योगी का समर्थन करो जिससे विरोध करने वाले वर्तमान राजनीति की दलदल में छिपे सत्ता लोलुप राजनीतिक माफिया जयचंद और मानसिंह हमको पुनः यातना सहने और धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य न कर सकें। केवल हिन्दू एकता ही समूचे भारत के सुरक्षित भविष्य का गारंटी कार्ड है।
निजी स्वार्थ से ऊपर देशहित एवं देशप्रेम को सर्वोपरि मानते हुए नागरिकता संशोधन बिल के समर्थन में अपनी आवाज़ बुलन्द कीजिए! एक सच्चे देशभक्त नागरिक होने का सबूत पुरी दुनियाँ को संदेश दीजिए !
भारत माता की जय 👏🇮🇳👏
वंदेमातरम 👏🇮🇳👏
शरणार्थियों के आंसू पोंछ रहा हिंदुस्तान
तो कुछ लोग क्यों हैं परेशान?
राष्ट्रहित में मेरा समर्थन
मैं भारतीय हूँ
पाक, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से जान बचाते आये हिन्दू, सिख, पारसी, बौद्ध, जैन, ईसाई को हिंदुस्तान शरण नहीं देगा तो फिर कौन सा देश शरण देगा?
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