नायक जदुनाथ सिंह
नायक जदुनाथ सिंह
~~~~~~~~~~~
पाकिस्तानी सैनिकों को भारत से खदेड़ने वाले परमवीर सिपाही .....
★परमवीर चक्र विजेता★
वतन पर मिट जाने वाले अमर शहीद नौजवान !
आपकी हर साँस का कर्ज़दार है हिन्दुस्तान !!
उपरोक्त ये पक्तियां हमारे देश के उन वीर जवानों को समर्पित हैं, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दीं। आज हम उन्हीं वीर सिपाहियों की वजह से अपने देश मे चैन की साँस ले रहे हैं।
बहरहाल, 1947 में अंग्रेजों ने गुलाम भारत को आज़ाद करने का फैसला लिया। देश आज़ाद तो हुआ, मगर उसके दो टुकड़े हो चुके थे। बटवारें के बाद पाकिस्तान की नज़र पूरे कश्मीर पर थी. ऐसी परिस्थिति में हमारे देश के वीर सिपाहियों ने विरोधी पाकिस्तान से जमकर लोहा लिया था।
उन्हीं वीर सपूतों में एक नाम नायक जदुनाथ सिंह का भी आता है। देश के इस वीर सिपाही ने ना सिर्फ अपनी मुठ्ठीभर टुकड़ी का कुशल नेतृत्व किया बल्कि अंत में पाकिस्तान के सैनिकों पर अकेले ही जमकर गोलियां बरसाई।
इनके अदम्य साहस के सामने विरोधी पाकिस्तान को कई बार पीछे हटना पड़ा था, मगर अफ़सोस देश की रक्षा करते हुए सिपाही नायक जदुनाथ शहीद हो गए थे। ऐसे में हमारे लिए भारत के इस जाबांज सिपाही शहीद जदुनाथ सिंह की वीरता को करीब से जानना दिलचस्प होगा।
तो चलिए भारत के परमवीर चक्र विजेता नायक जदुनाथ की जिंदगी से आपका परिचय कराती हूँ....
बचपन से रही इनमें देशभक्ति की भावना
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
राठौर राजपूत नायक जदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ। उनके पिता बीरबल सिंह राठौर एक गरीब किसान थे. इनकी माता का नाम जमुना कंवर था।
जदुनाथ अपने 8 भाई-बहनों में तीसरे स्थान पर थे। बड़ा परिवार होने के साथ-साथ परिवार की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं थी। इनकी पढ़ाई में भी गरीबी विलन साबित हुई। शायद यही वजह रही कि उन्हें कक्षा 4 के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी।
जदुनाथ पिता के साथ खेतों में काम करने लगे। ये भगवान हनुमान के एक बड़े भक्त थे। गांव के लोग भी इन्हें ‘हनुमान भक्त’ कहकर पुकारते थे। उन्होंने सदा ब्रह्मचारी का जीवन बिताने का फैसला किया।
जदुनाथ के अंदर बचपन से देश भक्ति व मानवता की भावना निहित थी। उनका देश के लिए कुछ कर दिखाने का एक सपना था। वे लोगों की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे। जदुनाथ अपने गांव में पहलवानी भी किया करते। इसकी वजह से इन्हें आस-पास के गांव में ‘कुश्ती चैम्पियन’ के तौर पहचान मिली।
साल 1941 में उनका देश के लिए कुछ कर दिखाने का सपना भी पूरा हो गया। जदुनाथ को ब्रिटिश भारतीय सैनिक में शामिल कर लिया गया। उस वक़्त उनकी उम्र 25 साल की थी। वे राजपूत रेजिमेंट का हिस्सा बने। सैन्य विभाग में भर्ती होना उनके लिए सौभाग्य की बात थी।
भारत-पाकिस्तान युद्ध का हिस्सा बनें
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सैन्य प्रशिक्षण पूरा करने के बाद रेजिमेंट के पहले बटालियन में शामिल हुए। साल 1942 में बर्मा अभियान के लिए अराकान प्रान्त में तैनात किए गए. जहां उन्होंने जापानियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
जदुनाथ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपनी बहादुरी का परिचय दिया। युद्ध समाप्त होने के बाद उनके पद में इजाफा कर दिया गया। उन्हें नायक पद से नवाजा गया।
आगे, अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान अपने सैनिकों को भारी सशस्त्र के साथ कश्मीर भेजा। वो पूरे कश्मीर पर कब्ज़ा करने की फ़िराक में था। ऐसा तब हुआ जब भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से यह घोषित कर दिया कि, महाराजा हरि सिंह औपचारिक रूप से कश्मीर को भारत के साथ विलय करने को तैयार हैं।
ऐसे में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के कई स्थानों पर एक साथ हमले किये। दिसंबर में पाकिस्तानियों ने झांगर पर अपना कब्ज़ा कर लिया। तब राजपूत बटालियन को हमलावरों को बाहर खदेड़ने और नौशेरा सेक्टर को सुरक्षित करने का आदेश मिला।
उसी नौशेरा क्षेत्र में टैनधार मोर्चा दुश्मन के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे श्रीनगर एयरफील्ड के नियंत्रण को आसानी से संभाला जा सकता था। अब दुश्मन की नज़र नौशेरा पर थी. यहां पर उसके काबिज हो जाने पर कश्मीर का नियंत्रण उनके हाथों में आ जाता।
ऐसे में ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में 1 फ़रवरी 1948 को भारत के 50 पैराब्रिगेड ने नौशेरा पर हमला किया। वे अपनी बहादुरी व साहस से पाकिस्तान को पीछे धकलने में कामयाब रहे। भारतीय सैनिकों ने नौशेरा पर अपना नियंत्रण प्राप्त कर लिया था।
पाकिस्तानियों को लगातार दो बार पीछे धकेला
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ब्रिगेडियर उस्मान अपने सैनिकों की मदद से कश्मीर को बचाने में कामयाब हो चुके थे। वे नौशेरा मोर्चे के बाद पाकिस्तान की चालों से अच्छी तरह वाकिफ थे। उन्होंने सभी पैराब्रिगेड को सेना की टुकड़ियों के साथ अलग-अलग मोर्चे पर तैनात कर दिया था।
भारतीय सैनिकों का नौशेरा पर मजबूती से काबिज होने पर पाकिस्तान बहुत हताहत हुआ। उसने 6 फ़रवरी को टैनधार पर हमला कर दिया। यहीं पर नायक जदुनाथ सिंह अपने 9 सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ मोर्चा संभाले हुए थे।
पाकिस्तान ने सुबह टैनधार के आसपास आगजनी कर दिया, जिससे धुंए में वो आसानी से अपना लक्ष्य हासिल कर सके। पाकिस्तान लगातार हमले कर रहा था। ऐसे में नायक जदुनाथ अपनी छोटी सेना के साथ दुश्मनों से जमकर लोहा लेने लगे। वे अपने कुशल नेतृत्व से पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे धकलने में कामयाब रहे।
कुछ देर बाद पाकिस्तान ने दोबारा से हमला करना शुरू कर दिया। उसके सैनिकों व हथियारों में बढ़ोत्तरी हो चुकी थी। वहीं नायक जदुनाथ के 4 सैनिक घायल हो गए थे। ऐसे में नायक जदुनाथ अपने बचे सैनिकों का लगातार प्रोत्साहन कर रहे थे। वे दुश्मनों से बड़ी बहादुरी व वीरता से लड़ रहे थे। अचानक विरोधियों ने उन्हें भी घायल कर दिया।
जख्मी होने बावजूद जदुनाथ ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने साहस का परिचय दिया और लड़ते रहे। उनके जोश को देखते हुए घायल सैनिकों को भी बल मिला। वे भी दोबारा दुश्मनों पर हमला करने लगे।
जदुनाथ के गजब के साहस व नेतृत्व से एक बार फिर पाकिस्तान सैनिकों ने दम तोड़ दिया और पीछे हट गए।
जख्मी होने के बावजूद अकेले ही लड़ते रहे और...
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जदुनाथ दूसरी बार मोर्चा लेते हुए पकिस्तान को पीछे धकेल दिया था। उनके कुछ सैनिक शहीद भी हो चुके थे। पाकिस्तानी अभी भी हमले के फिराक में था। वहीं ब्रिगेडियर उस्मान जदुनाथ ने जदुनाथ को बैकअप देने के लिए सेना की एक टुकड़ी को भेजा।
मगर, जब तक भारतीय सेना की वह टुकड़ी यहां पहुँचती दुश्मनों ने तीसरी बार जवाबी करवाई शुरू कर दी। अभी भी भारत के इस वीर सपूत ने हार नहीं मानी थी। जदुनाथ एक बार फिर विरोधियों को मुंह तोड़ जवाब देने लगे।। उनके बचे सैनिक लगातार फायरिंग कर रहे थे।
उधर जदुनाथ भी घायल होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी थी। उन्हें सैनिकों के आने तक मोर्चा संभालना था। इनके सभी सैनिक घायल हो चुके थे। ऐसे में जदुनाथ अकेले ही दुश्मनों से लोहा लेते रहे। जब उनसे रहा नहीं गया तो वे अपने मशीनगन को हाथ में लिए सामने से फ़ायरिंग शुरू कर दी।
तब दुश्मनों की दो गोलियों ने नायक जदुनाथ को अपना शिकार बना लिया। एक गोली इनके सिर में जबकि दूसरी इनके सीने में आ लगी। जदुनाथ रणभूमि पर गिर गए और बड़ी निडरता के साथ दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए।
इनके शहीद होने तक बैकअप वाली सेना वहां पहुँच चुकी थी। उसने पाकिस्तान को तीसरी बार पीछे धकलने पर मजबूर कर दिया। ऐसा सिर्फ जदुनाथ जी के कुशल नेतृत्व व निडरता के कारण ही संभव हो सका था।
6 फ़रवरी 1948 को शहीद होने वाले नायक जदुनाथ को बाद में भारतीय सेना के सर्वोच्च पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से भी नवाजा गया था।
इस तरह भारत-पाकिस्तान की युद्ध में पाकिस्तान से कश्मीर बचाने वाले सैनिकों में एक नाम जदुनाथ का भी है, जिन्होंने अपनी वीरता से पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे। उन्होंने देश के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी।
तो ये थी परमवीर चक्र विजेता नायक जदुनाथ की वीरता व बहादुरी की कहानी।
शत-शत नमन करूँ मैं आपको🌺🌺🌺🌺
#VijetaMalikBJP
~~~~~~~~~~~
पाकिस्तानी सैनिकों को भारत से खदेड़ने वाले परमवीर सिपाही .....
★परमवीर चक्र विजेता★
वतन पर मिट जाने वाले अमर शहीद नौजवान !
आपकी हर साँस का कर्ज़दार है हिन्दुस्तान !!
उपरोक्त ये पक्तियां हमारे देश के उन वीर जवानों को समर्पित हैं, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दीं। आज हम उन्हीं वीर सिपाहियों की वजह से अपने देश मे चैन की साँस ले रहे हैं।
बहरहाल, 1947 में अंग्रेजों ने गुलाम भारत को आज़ाद करने का फैसला लिया। देश आज़ाद तो हुआ, मगर उसके दो टुकड़े हो चुके थे। बटवारें के बाद पाकिस्तान की नज़र पूरे कश्मीर पर थी. ऐसी परिस्थिति में हमारे देश के वीर सिपाहियों ने विरोधी पाकिस्तान से जमकर लोहा लिया था।
उन्हीं वीर सपूतों में एक नाम नायक जदुनाथ सिंह का भी आता है। देश के इस वीर सिपाही ने ना सिर्फ अपनी मुठ्ठीभर टुकड़ी का कुशल नेतृत्व किया बल्कि अंत में पाकिस्तान के सैनिकों पर अकेले ही जमकर गोलियां बरसाई।
इनके अदम्य साहस के सामने विरोधी पाकिस्तान को कई बार पीछे हटना पड़ा था, मगर अफ़सोस देश की रक्षा करते हुए सिपाही नायक जदुनाथ शहीद हो गए थे। ऐसे में हमारे लिए भारत के इस जाबांज सिपाही शहीद जदुनाथ सिंह की वीरता को करीब से जानना दिलचस्प होगा।
तो चलिए भारत के परमवीर चक्र विजेता नायक जदुनाथ की जिंदगी से आपका परिचय कराती हूँ....
बचपन से रही इनमें देशभक्ति की भावना
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
राठौर राजपूत नायक जदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ। उनके पिता बीरबल सिंह राठौर एक गरीब किसान थे. इनकी माता का नाम जमुना कंवर था।
जदुनाथ अपने 8 भाई-बहनों में तीसरे स्थान पर थे। बड़ा परिवार होने के साथ-साथ परिवार की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं थी। इनकी पढ़ाई में भी गरीबी विलन साबित हुई। शायद यही वजह रही कि उन्हें कक्षा 4 के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी।
जदुनाथ पिता के साथ खेतों में काम करने लगे। ये भगवान हनुमान के एक बड़े भक्त थे। गांव के लोग भी इन्हें ‘हनुमान भक्त’ कहकर पुकारते थे। उन्होंने सदा ब्रह्मचारी का जीवन बिताने का फैसला किया।
जदुनाथ के अंदर बचपन से देश भक्ति व मानवता की भावना निहित थी। उनका देश के लिए कुछ कर दिखाने का एक सपना था। वे लोगों की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे। जदुनाथ अपने गांव में पहलवानी भी किया करते। इसकी वजह से इन्हें आस-पास के गांव में ‘कुश्ती चैम्पियन’ के तौर पहचान मिली।
साल 1941 में उनका देश के लिए कुछ कर दिखाने का सपना भी पूरा हो गया। जदुनाथ को ब्रिटिश भारतीय सैनिक में शामिल कर लिया गया। उस वक़्त उनकी उम्र 25 साल की थी। वे राजपूत रेजिमेंट का हिस्सा बने। सैन्य विभाग में भर्ती होना उनके लिए सौभाग्य की बात थी।
भारत-पाकिस्तान युद्ध का हिस्सा बनें
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सैन्य प्रशिक्षण पूरा करने के बाद रेजिमेंट के पहले बटालियन में शामिल हुए। साल 1942 में बर्मा अभियान के लिए अराकान प्रान्त में तैनात किए गए. जहां उन्होंने जापानियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
जदुनाथ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपनी बहादुरी का परिचय दिया। युद्ध समाप्त होने के बाद उनके पद में इजाफा कर दिया गया। उन्हें नायक पद से नवाजा गया।
आगे, अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान अपने सैनिकों को भारी सशस्त्र के साथ कश्मीर भेजा। वो पूरे कश्मीर पर कब्ज़ा करने की फ़िराक में था। ऐसा तब हुआ जब भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से यह घोषित कर दिया कि, महाराजा हरि सिंह औपचारिक रूप से कश्मीर को भारत के साथ विलय करने को तैयार हैं।
ऐसे में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के कई स्थानों पर एक साथ हमले किये। दिसंबर में पाकिस्तानियों ने झांगर पर अपना कब्ज़ा कर लिया। तब राजपूत बटालियन को हमलावरों को बाहर खदेड़ने और नौशेरा सेक्टर को सुरक्षित करने का आदेश मिला।
उसी नौशेरा क्षेत्र में टैनधार मोर्चा दुश्मन के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे श्रीनगर एयरफील्ड के नियंत्रण को आसानी से संभाला जा सकता था। अब दुश्मन की नज़र नौशेरा पर थी. यहां पर उसके काबिज हो जाने पर कश्मीर का नियंत्रण उनके हाथों में आ जाता।
ऐसे में ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में 1 फ़रवरी 1948 को भारत के 50 पैराब्रिगेड ने नौशेरा पर हमला किया। वे अपनी बहादुरी व साहस से पाकिस्तान को पीछे धकलने में कामयाब रहे। भारतीय सैनिकों ने नौशेरा पर अपना नियंत्रण प्राप्त कर लिया था।
पाकिस्तानियों को लगातार दो बार पीछे धकेला
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ब्रिगेडियर उस्मान अपने सैनिकों की मदद से कश्मीर को बचाने में कामयाब हो चुके थे। वे नौशेरा मोर्चे के बाद पाकिस्तान की चालों से अच्छी तरह वाकिफ थे। उन्होंने सभी पैराब्रिगेड को सेना की टुकड़ियों के साथ अलग-अलग मोर्चे पर तैनात कर दिया था।
भारतीय सैनिकों का नौशेरा पर मजबूती से काबिज होने पर पाकिस्तान बहुत हताहत हुआ। उसने 6 फ़रवरी को टैनधार पर हमला कर दिया। यहीं पर नायक जदुनाथ सिंह अपने 9 सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ मोर्चा संभाले हुए थे।
पाकिस्तान ने सुबह टैनधार के आसपास आगजनी कर दिया, जिससे धुंए में वो आसानी से अपना लक्ष्य हासिल कर सके। पाकिस्तान लगातार हमले कर रहा था। ऐसे में नायक जदुनाथ अपनी छोटी सेना के साथ दुश्मनों से जमकर लोहा लेने लगे। वे अपने कुशल नेतृत्व से पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे धकलने में कामयाब रहे।
कुछ देर बाद पाकिस्तान ने दोबारा से हमला करना शुरू कर दिया। उसके सैनिकों व हथियारों में बढ़ोत्तरी हो चुकी थी। वहीं नायक जदुनाथ के 4 सैनिक घायल हो गए थे। ऐसे में नायक जदुनाथ अपने बचे सैनिकों का लगातार प्रोत्साहन कर रहे थे। वे दुश्मनों से बड़ी बहादुरी व वीरता से लड़ रहे थे। अचानक विरोधियों ने उन्हें भी घायल कर दिया।
जख्मी होने बावजूद जदुनाथ ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने साहस का परिचय दिया और लड़ते रहे। उनके जोश को देखते हुए घायल सैनिकों को भी बल मिला। वे भी दोबारा दुश्मनों पर हमला करने लगे।
जदुनाथ के गजब के साहस व नेतृत्व से एक बार फिर पाकिस्तान सैनिकों ने दम तोड़ दिया और पीछे हट गए।
जख्मी होने के बावजूद अकेले ही लड़ते रहे और...
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जदुनाथ दूसरी बार मोर्चा लेते हुए पकिस्तान को पीछे धकेल दिया था। उनके कुछ सैनिक शहीद भी हो चुके थे। पाकिस्तानी अभी भी हमले के फिराक में था। वहीं ब्रिगेडियर उस्मान जदुनाथ ने जदुनाथ को बैकअप देने के लिए सेना की एक टुकड़ी को भेजा।
मगर, जब तक भारतीय सेना की वह टुकड़ी यहां पहुँचती दुश्मनों ने तीसरी बार जवाबी करवाई शुरू कर दी। अभी भी भारत के इस वीर सपूत ने हार नहीं मानी थी। जदुनाथ एक बार फिर विरोधियों को मुंह तोड़ जवाब देने लगे।। उनके बचे सैनिक लगातार फायरिंग कर रहे थे।
उधर जदुनाथ भी घायल होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी थी। उन्हें सैनिकों के आने तक मोर्चा संभालना था। इनके सभी सैनिक घायल हो चुके थे। ऐसे में जदुनाथ अकेले ही दुश्मनों से लोहा लेते रहे। जब उनसे रहा नहीं गया तो वे अपने मशीनगन को हाथ में लिए सामने से फ़ायरिंग शुरू कर दी।
तब दुश्मनों की दो गोलियों ने नायक जदुनाथ को अपना शिकार बना लिया। एक गोली इनके सिर में जबकि दूसरी इनके सीने में आ लगी। जदुनाथ रणभूमि पर गिर गए और बड़ी निडरता के साथ दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए।
इनके शहीद होने तक बैकअप वाली सेना वहां पहुँच चुकी थी। उसने पाकिस्तान को तीसरी बार पीछे धकलने पर मजबूर कर दिया। ऐसा सिर्फ जदुनाथ जी के कुशल नेतृत्व व निडरता के कारण ही संभव हो सका था।
6 फ़रवरी 1948 को शहीद होने वाले नायक जदुनाथ को बाद में भारतीय सेना के सर्वोच्च पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से भी नवाजा गया था।
इस तरह भारत-पाकिस्तान की युद्ध में पाकिस्तान से कश्मीर बचाने वाले सैनिकों में एक नाम जदुनाथ का भी है, जिन्होंने अपनी वीरता से पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे। उन्होंने देश के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी।
तो ये थी परमवीर चक्र विजेता नायक जदुनाथ की वीरता व बहादुरी की कहानी।
शत-शत नमन करूँ मैं आपको🌺🌺🌺🌺
#VijetaMalikBJP