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Showing posts from January, 2018

अमर शहीद मेजर सोमनाथ शर्मा

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मेजर सोमनाथ शर्मा ~~~~~~~~~~~ मेजर सोमनाथ शर्मा (अंग्रेज़ी: Major Somnath Sharma, जन्म: 31 जनवरी, 1923; शहादत: 3 नवम्बर, 1947) भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर थे जिन्होंने अक्टूबर-नवम्बर, 1947 के भारत-पाक संघर्ष में अपनी वीरता से शत्रु के छक्के छुड़ा दिये। उन्हें भारत सरकार ने मरणोपरान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया। परमवीर चक्र पाने वाले ये प्रथम व्यक्ति हैं। जीवन परिचयमेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी, 1923 को जम्मू में हुआ था। इनके पिता मेजर अमरनाथ शर्मा भी सेना में डॉक्टर थे और आर्मी मेडिकल सर्विस के डायरेक्टर जनरल के पद से सेवामुक्त हुए थे। मेजर सोमनाथ की शुरुआती स्कूली शिक्षा अलग-अलग जगह होती रही, जहाँ इनके पिता की पोस्टिंग होती थी। लेकिन बाद में उनकी पढ़ाई शेरवुडा, नैनीताल में हुई। मेजर सोमनाथ बचपन से ही खेल कूद तथा एथलेटिक्स में रुचि रखते थे। पिता और मामा का प्रभाव ~~~~~~~~~~~~~~ मेजर सोमनाथ का कीर्तिमान एक गौरव की बात भले...

संत रविदास

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संत रविदास ~~~~~~~ संत कुलभूषण कवि संत शिरोमणि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। मधुर एवं सहज संत शिरोमणि रैदास की वाणी ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एवं प्रेमाश्रयी शाखाओं के मध्य सेतु की तरह है।प्राचीनकाल से ही भारत में विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे हैं। इन सबमें मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए सन्तों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे सन्तों में शिरोमणि रैदास का नाम अग्रगण्य है। वे सन्त कबीर के गुरूभाई थे क्योंकि उनके भी गुरु स्वामी रामानन्द थे। इनकी याद में माघ पूर्ण को रविदास जयंती मनाई जाती हैं। जीवन ~~~~ गुरू रविदास जी का जन्म काशी में हुआ था। उनके पिता का नाम संतो़ख दास (रग्घु) और माता का नाम कलसा देवी बताया जाता है। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज...

महात्मा गांधी

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महात्मा गांधी ~~~~~~~ महात्मा गांधी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने जिंदगीभर भारत को आज़ादी दिलाने के लिये संघर्ष किया। महात्मा गांधी एक ऐसे महापुरुष थे जो प्राचीन काल से भारतीयों के दिल में रह रहे है। महात्मा गांधी अपने अतुल्य योगदान के लिये ज्यादातर “राष्ट्रपिता और बापू” के नाम से जाने जाते है। वे एक ऐसे महापुरुष थे जो अहिंसा और सामाजिक एकता पर विश्वास करते थे। उन्होंने भारत में ग्रामीण भागो के सामाजिक विकास के लिये आवाज़ उठाई थी, उन्होंने भारतीयों को स्वदेशी वस्तुओ के उपयोग के लिये प्रेरित किया और बहोत से सामाजिक मुद्दों पर भी उन्होंने ब्रिटिशो के खिलाफ आवाज़ उठायी। वे भारतीय संस्कृति से अछूत और भेदभाव की परंपरा को नष्ट करना चाहते थे। बाद में वे भारतीय स्वतंत्रता अभियान में शामिल होकर संघर्ष करने लगे। भारतीय इतिहास में वे एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने भारतीयों की आज़ादी के सपने को सच्चाई में बदला था। आज भी लोग उन्हें उनके महान और अतुल्य कार्यो के लिये याद करते है। आज भी लोगो को उनके जीवन की मिसाल दी जाती है। वे जन्म से ही सत्य और अहिंसावादी नही थे बल्कि उन्हो...

प्रो० राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक

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चतुर्थ सरसंघचालक आदरणीय रज्जू भैया जी को हम देशवासियों का शत-शत नमन 🚩 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो0 राजेन्द्र सिंह का जन्म 29 जनवरी, 1922 को ग्राम बनैल (जिला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश) के एक सम्पन्न एवं शिक्षित परिवार में हुआ था। उनके पिता कुँवर बलबीर सिंह अंग्रेज शासन में पहली बार बने भारतीय मुख्य अभियन्ता थे।इससे पूर्व इस पद पर सदा अंग्रेज ही नियुक्त होते थे। राजेन्द्र सिंह को घर में सब प्यार से रज्जू कहते थे। आगे चलकर उनका यही नाम सर्वत्र लोकप्रिय हुआ। रज्जू भैया बचपन से ही बहुत मेधावी थे। उनके पिता की इच्छा थी कि वे प्रशासनिक सेवा में जायें। इसीलिए उन्हें पढ़ने के लिए प्रयाग भेजा गया; पर रज्जू भैया को अंग्रेजों की गुलामी पसन्द नहीं थी। उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम-एस.सी.उत्तीर्ण की और फिर वहीं भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक हो गये। उनकी एम-एस.सी.की प्रयोगात्मक परीक्षा लेने नोबेल पुरस्कार विजेता डा0 सी.वी.रमन आये थे। वे उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए तथा उन्हें अपने साथ बंगलौर चलकर शोध करने का आग्रह किया; पर रज्जू भैया के जीवन का लक्ष्य तो कुछ और ही था। प्रयाग ...

महाराणा प्रताप - एक महान योद्धा

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महाराणा प्रताप ~~~~~~~~ वैसे तो भारतभूमि अनेक महान योद्धाओ के जीवन, त्याग बलिदान और बहादुरी के गाथाओ से इतिहास भरा पड़ा है उनमे से प्रमुख रूप से महाराणा प्रताप का भी नाम आता है जिनके बहादुरी के किस्से सुनकर लोग दातो तले ऊँगली दबा लेते है। महाराणा प्रताप पूरी जिन्दगी मुगलों से संघर्ष करते रहे और फिर 29 जनवरी 1597 (कई इतिहासकार उनकी पुण्यतिथि 19 जनवरी 1597 भी बताते हैं) को दुर्घटना में घायल होने के पश्चात अपने प्राणों को गवा देते है। भारत के महान योद्धाओ ने जीवनभर अपने बहादुरी के दम पर हमेसा विरोधियो को पराजित किया है और कभी भी उनके सामने घुटने नही टेके है इसी परिभाषा को परिलक्षित करते हुए महाराणा प्रताप का नाम भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है जिन्होंने अपने आजीवन कभी भी धुर विरोधी बादशाह अकबर के सामने कभी भी पराधीनता स्वीकार नही किया और पूरे जीवन भर अकबर से लोहा लेते रहे। तो आईये जानते है महाराणा प्रताप के जीवन इतिहास और उनसे जुडी हुई शौर्य गाथाये जो आज भी स्वतंत्रता की राह पर चलने का मार्ग दिखाते है। महाराणा प्रताप का जीवन परिचय और इतिहास : ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ महाराणा प्रत...

पंडित जसराज

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पंडित जसराज ~~~~~~~~ पंडित जसराज की सालगिरह पर, उनके संघर्ष की कहानी वो साल 1933 था, जब हैदराबाद के आख़िरी निज़ाम उस्मान अली खां के दरबार में उस दोपहर बड़ी चहल-पहल थी। उस शाम मेवाती घराने से ताल्लुक रखने वाले हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे जाने-माने गायक पंडित मोती राम को 'राज संगीतज्ञ' घोषित किया जाना था। इधर समारोह की तैयारी हो रही थी और उधर मोती राम के घर में जश्न मनाया जा रहा था। उनके दोनों बेटे भी पिता को मिलने वाले इस सम्मान से खुश थे। लेकिन कुदरत का भी ये अजीब संयोग हुआ। शाम होते-होते खुशी गम में बदल गई। उसी शाम पंडित मोती राम जी का देहांत हो गया। सजे धजे घर में अचानक मातम होने लगा, रोने चीखने की आवाज़ें गूंजने लगी।उस वक्त उनके छोटे बेटे की उम्र महज़ तीन साल थी। ज़रा सी उम्र में पिता का साया सर से उठ जाने से वो खुद को अंदर से बेहद टूटा हुआ महसूस कर रहा था। लेकिन उस मुश्किल वक्त में उसने क़सम खाई को वो भी पिता जी की तरह बड़ा संगीतज्ञ बनेगा।इसके कुछ साल बाद दोनों भाइयों ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाना शुरु किया। छोटा बेटा तबला बज...

फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा

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फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा Field Marshal K. M. Cariappa ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जीवनी ~~~~ जन्म: 28 जनवरी, 1899, कुर्ग, कर्नाटक मृत्यु: 15 मई, 1993, बंगलौर कार्यक्षेत्र: प्रथम भारतीय सेनाध्यक्ष, फ़ील्ड मार्शल फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा भारतीय सेना के प्रथम कमांडर-इन-चीफ थे। के.एम. करिअप्पा ने सन् 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर सेना का नेतृत्व किया था। वे भारतीय सेना के उन दो अधिकारियों में शामिल हैं जिन्हें फील्ड मार्शल की पदवी दी गयी। फील्ड मार्शल सैम मानेकशा दूसरे ऐसे अधिकारी थे जिन्हें फील्ड मार्शल का रैंक दिया गया था। उनका मिलिटरी करियर लगभग 3 दशक लम्बा था जिसके दौरान 15 जनवरी 1949 में उन्हें सेना प्रमुख नियुक्त किया गया। इसके बाद से ही 15 जनवरी ‘सेना दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। करिअप्पा का सम्बन्ध राजपूत रेजीमेन्ट से था। वे सन 1953 में सेवानिवृत्त हो गये फिर भी किसी न किसी रूप में भारतीय सेना को सहयोग देते रहे। प्रारंभिक जीवन ~~~~~~~~ फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी, 1899 में कर्नाटक के कोडागु (कुर्ग) में शनिवर्सांथि नाम...

लाला लाजपत राय - एक अमर शहीद

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★ लाला लाजपत राय ★  ~~~~~~~~~~~~~ जिनकी मौत ने ब्रिटिश राज के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ साइमन कमीशन के विरोध में ब्रिटिश पुलिस की लाठियों से घायल होकर 17 नवंबर 1928 को हुआ था लाला लाजपत राय का देहांत । तब लालाजी ने मरते वक्त कहा था कि मेरे शरीर पर पड़ी एक एक लाठी, ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में गड़ी एक एक कील साबित होगी ....... और आज ही के दिन पंजाब के मोंगा जिले में 28 जनवरी 1865 को उर्दू के अध्यापक के घर में जन्मे थे ये महान व्यक्तित्व *लाला लाजपत राय* ....... एक दौर था जब ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता था. पूरी दुनिया में अंग्रेजों की तूती बोलती थी. सर्वशक्तिमान ब्रिटिश राज के खिलाफ 1857 में भारत में हुए बहुत बड़े सशस्त्र आंदोलन को बेहद निर्ममता के साथ कुचल दिया गया था. अंग्रेज भी यह मानते थे अब उन्हें भारत से कोई हिला भी नहीं सकता. साल 1928 में भारत में एक शख्स की ब्रिटिश पुलिस की लाठियों के मौत हुई. और इस मौत ने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलों को हिला दिया. 30 अक्टूबर 1928 को पंजाब में महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय पर बरसीं ब...

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

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नेताजी सुभाषचंद्र बोस ~~~~~~~~~~~~ स्वतंत्रता अभियान के एक और महान क्रान्तिकारियो में सुभाष चंद्र बोस – Netaji Subhash Chandra Bose का नाम भी आता है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रिय सेना का निर्माण किया था। जो विशेषतः “आजाद हिन्द फ़ौज़” के नाम से प्रसिद्ध थी। सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद को बहुत मानते थे। “तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा”  सुभाष चंद्र बोस का ये प्रसिद्ध नारा था। उन्होंने अपने स्वतंत्रता अभियान में बहोत से प्रेरणादायक भाषण दिये और भारत के लोगो को आज़ादी के लिये संघर्ष करने की प्रेरणा दी। सुभाषचंद्र बोस की जीवनी ~~~~~~~~~~~~~~ पूरा नाम   – सुभाषचंद्र जानकीनाथ बोस जन्म        – 23 जनवरी 1897 जन्मस्थान – कटक (ओरिसा) पिता         – जानकीनाथ माता         – प्रभावती देवी शिक्षा        – 1919 में बी.ए. 1920 में आय.सी.एस. परिक्षा उत्तीर्ण। सुभास चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता सं...

डॉ० होमी जहांगीर भाभा

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डॉ० होमी जहांगीर भाभा ~~~~~~~~~~~~~ वैज्ञानिक जन्म: 30 अक्टूबर 1909, मुंबई मृत्यु : भारत के इस महान वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा का निधन 24 जनवरी 1966 में स्विट्जरलैंड में एक विमान दुर्घटना में हो गया। कार्य/पद : भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम के जनक ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ होमी जहांगीर भाभा भारत के महान परमाणु वैज्ञानिक थे। उन्हे भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। उन्होंने देश के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की ऐसी मजबूत नींव रखी, जिसके चलते भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा है। मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से परमाणु क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य शुरू वाले डॉ भाभा ने समय से पहले ही परमाणु ऊर्जा की क्षमता और विभिन्न क्षेत्रों में उसके उपयोग की संभावनाओं को परख लिया था। उन्होंने नाभिकीय विज्ञान के क्षेत्र में उस समय कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्होंने क...

गुरु रामसिंह कुका

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गुरु रामसिंह कुका ~~~~~~~~~~ राम सिंह का जन्म बसंतपंचमी, 1816 को भैनी (पंजाब) में एक प्रतिष्ठित, छोटे किसान परिवार में हुआ था। प्रारम्भ में वे अपने परिवार के साथ खेती आदि के काम में ही हाथ बंटाते थे, लेकिन आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण वे प्रवचन आदि भी दिया करते थे। अपनी युवावस्था में ही राम सिंह सांदगी पंसद और नामधारी आंदोलन के संस्थापक 'बालक सिंह' के शिष्य बन गए। बालक सिंह से उन्होंने महान् सिक्ख गुरुओं तथा खालसा नायकों के बारे में जानकारी हासिल की। अपनी मृत्यु से पहले ही बालक सिंह ने राम सिंह को नामधारियों का नेतृत्व सौंप दिया। 20 वर्ष की अवस्था में राम सिंह सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह की सेना में शामिल हुए। सिक्खों के मूलाधार रणजीत सिंह की मृत्यु के उपरांत उनकी सेना और क्षेत्र बिखर गए। ब्रिटिश ताकत और सिक्खों की कमज़ोरी से चिंतित राम सिंह ने सिंक्खों में फिर से आत्म-सम्मान जगाने का निश्चय किया और उन्हें संगठित करने के लिए अनेक उपाय किए। उन्होंने नामधारियों में नए रिवाजों की शुरुआत की और उन्हें उन्मत मंत्रोच्चार के बाद चीख की ध्वनि उत्पन्न ...

अपने दोस्तों से एक गुज़ारिश

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💐अपने दोस्तों से एक गुज़ारिश 💐 दोस्तों, आज सोशल मिडिया हमारी एक ताकत बन गया हैं । इसके जरिये हम अपनी बात बहुत से  लोगो तक पहुँचा पाते हैं, अपनी आवाज उठा पाते हैं । अपने दिल की बात लोगों को सुना पाते हैं । अब मैं ये चाहती हूँ कि हम भी अपने इस छोटे से ग्रुप "My India-My People" को अपनी एक ताकत बनाये और अपनी बात ज़्यादा से ज़्यादा अच्छे लोगो तक पहुचाये । अच्छे लोगों को अपने इस ग्रुप से जोड़ें । उन जुड़े हुऐ लोगों के विचारों को पढ़ें, सीखें व आगे बढ़ाये । मैं चाहती हूँ कि आप अपनी फ्रेंड लिस्ट से सभी अच्छे लोगों को हमारे इस ग्रुप से जोड़ें । आप अपने उस दोस्त को ग्रुप से जोड़ें, जो बनना तो लेखक, कार्टूनिस्ट या कुछ और, चाहते थे, मगर आज कॉपरेटिव हॉउस में नौकरी कर रहे हैं । वो अपने लेख या अन्य बाते हम सबके साथ ग्रुप में शेयर करें। आप अपनी माता जी-दादी जी को ग्रुप से जोड़े, जिनके बीमारियों के घरेलू नुसखों, अनुभव व अच्छी बातों से आप हमेशा गर्व करते आये हैं । हमसे भी वो ये सब बाते शेयर करें । आप अपने पिता जी-दादा जी को ग्रुप से जोड़े, जिनकी रिटायरमेंट के बाद उनके ढ़ेर सारे अच्छे अनुभव व अच्छी...

गुरुकुल

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माननीय प्रधानमंत्री जी व माननीय मुख्यमंत्री जी, प्रत्येक राष्ट्र अपनी सभ्यता संस्कृति की रक्षा प्राणपन से करता है । हमारा देश जो विश्व गुरु था और जिसे विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता का गौरव प्राप्त है । इसके मूल में संस्कृत भाषा का विशेष योगदान रहा है । किंतु दुख है कि आधुनिकता की दौड़ में हम अंधानुकरण करते हुए अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास को भुलाते जा रहे है । लेकिन चंद लोग अभी भी संस्कृत और संस्कृति की रक्षा में बिना प्रतिफल के भी जी जान से लगे हुए गुरुकुल चला रहे है । ये गुरुकुल ना केवल संस्कृत व्याकरण , वेद पढ़ाते है वरन आधुनिक शिक्षा भी देते है । मेरा पुत्र भी ऐसे ही गुरुकुल में पढ़ चुका है और आज वह बी बी ए कर चुका है । इस गुरुकुल ने उसे सदाचरण , अनुशासन , चारित्रिक दृढ़ता और राष्ट्रभक्ति की शिक्षा दी जो उसमें स्पष्ट परिलक्षित होती है । इसी कारण मुझे विचार आया था कि हर शहर में इन गुरुकुलों की स्थापना की जाये । आरम्भ में कम से कम एक गुरुकुल प्रत्येक राज्य में हो तो निश्चित ही संस्कृत भाषा और हमारे राष्ट्र का हित होगा । काफी समय पूर्व मैने अपने स्थानीय सांसद जी को भी इस विषय प...

प्रसाद का अर्थ

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शायद बहुत कम लोग जानते होंगे की प्रसाद का अर्थ क्या होता है !! प्र - प्रभु के सा - साक्षात् द - दर्शन हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है और कोई भी अक्षर वैसा क्यूँ है उसके पीछे कुछ कारण है , अंग्रेजी भाषा में ये बात देखने में नहीं आती | ____________________ क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है। एक बार बोल कर देखिये | च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है। एक बार बोल कर देखिये | ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है। एक बार बोल कर देखिये | त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है। एक बार बोल कर देखिये | प, फ, ब, भ, म,- ओष्ठ्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है। एक बार बोल कर देखिये । ______________________ हम अपनी भाषा पर गर्व करते हैं ये सही है परन्तु लोगो को इसका कारण भी बताईये | इतनी वैज्ञानिकता दुनिया की किसी भाषा मे नही है जय हिन्द क,ख,ग क्या कहता है जरा गौर करें.... ••••••••••••••••...

शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल

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शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल ~~~~~~~~~~~~~~~~ सहायता के लिए लिखे पत्र पर अंग्रेजों ने चढ़ा दिया था फांसी........ शहीद लाला हुकम चंद अग्रवाल के वंशजों ने सहेज रखी हैं उनकी यादें........ देश को अंग्रेजी हुकुमत से आजाद करवाने के लिए हुई 1857 की क्रांति के पहले शहीद कानपुर के मंगल पांडे थे, यह तो सभी जानते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि देश के दूसरे शहीद थे, हरियाणा में हांसी के रहने वाले शहीद लाला हुकमचंद अग्रवाल (जैन)।  अंग्रेजो को उत्तर भारत में हरियाणा और पंजाब की सीमा पर रोकने की तैयारी करने के लिए रसद व सहायता के लिए लिखे गए पत्र को आधार बना कर उन्हें उनकी हवेली के सामने फांसी पर टांग दिया गया था। उस समय उनकी आयु मात्र 40 वर्ष थी। पत्र लिखने में जुर्म में अंग्रेजों ने उनके भतीजे फकीरचंद को भी पकड़ा था, लेकिन 13 वर्ष की उम्र को देखते हुए उसे छोड दिया गया। लाला हुकमचंद के परिजन बताते हैं कि फकीरचंद ने खिड़की से खड़े होकर अंग्रेजी हुकुमत की खिलाफत की तो तत्काल उसे भी फांसी पर चढ़ा दिया। इस दर्दनाक दृश्य की साक्षी हुकमचंद की पत्नी ने अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को लंहगे में छुपाया और ...