महाराणा प्रताप - एक महान योद्धा

महाराणा प्रताप
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वैसे तो भारतभूमि अनेक महान योद्धाओ के जीवन, त्याग बलिदान और बहादुरी के गाथाओ से इतिहास भरा पड़ा है उनमे से प्रमुख रूप से महाराणा प्रताप का भी नाम आता है जिनके बहादुरी के किस्से सुनकर लोग दातो तले ऊँगली दबा लेते है। महाराणा प्रताप पूरी जिन्दगी मुगलों से संघर्ष करते रहे और फिर 29 जनवरी 1597 (कई इतिहासकार उनकी पुण्यतिथि 19 जनवरी 1597 भी बताते हैं) को दुर्घटना में घायल होने के पश्चात अपने प्राणों को गवा देते है।

भारत के महान योद्धाओ ने जीवनभर अपने बहादुरी के दम पर हमेसा विरोधियो को पराजित किया है और कभी भी उनके सामने घुटने नही टेके है इसी परिभाषा को परिलक्षित करते हुए महाराणा प्रताप का नाम भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है जिन्होंने अपने आजीवन कभी भी धुर विरोधी बादशाह अकबर के सामने कभी भी पराधीनता स्वीकार नही किया और पूरे जीवन भर अकबर से लोहा लेते रहे।

तो आईये जानते है महाराणा प्रताप के जीवन इतिहास और उनसे जुडी हुई शौर्य गाथाये जो आज भी स्वतंत्रता की राह पर चलने का मार्ग दिखाते है।

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय और इतिहास :
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महाराणा प्रताप  का जन्म 9 May 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था इनके पिता राणा उदय सिंह माता का नाम जयवंताबाई था महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका था महाराणा प्रताप ने कुल 11 शादिया की थी महाराणा प्रताप की सबसे बड़ी पत्नी का नाम अज्बदे पुनवर था तथा इनकी 17 पुत्र थे जिनमे अमर सिंह इनके ज्येष्ठ पुत्र थे।

महाराणा प्रताप बचपन से बड़े प्रतापी वीर योद्धा थे तथा वे स्वाभिमानी और किसी के अधीन रहना स्वीकार नही करते थे वे स्वतंत्राप्रेमी थे जिसके कारण वे अपने जीवन में कभी भी मुगलों के आगे नही झुके उन्होंने कई वर्षो तक कई बार मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किये उनकी इसी दृढ वीरता के कारण बादशाह अकबर भी सपने में महाराणा प्रताप के नाम से कापता था महाराणा प्रताप इतने बड़े वीर थे की वे कई बार अकबर को युद्ध में पराजित भी किये थे उनकी यही वीरता के किस्से इतिहास के पन्नो में भरे पड़े है जिसके फलस्वरूप अकबर ने शांति प्रस्ताव के लिए 4 बार शांतिदूतो को महाराणा प्रताप के पास भेजा जिसके लिए महाराणा प्रताप ने पूरी तरह से हर बार अधीनता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था इन शांतिदूतो में जलाल खान, मानसिंह, भगवान दास और टोडरमल थे।

लेकिन महाराणा प्रताप कहते थे मै पूरी जिन्दगी घास की रोटी और पानी पीकर जिन्दगी गुजार सकता हु लेकिन किसी की पराधीनता मुझे तनिक भी स्वीकार नही है जिसके चलते महाराणा प्रताप पूरी जिन्दगी मुगलों से संघर्ष करते रहे और फिर 29 जनवरी 1597 (कई इतिहासकार उनकी पुण्यतिथि 19 जनवरी 1597 भी बताते हैं) को दुर्घटना में घायल होने के पश्चात अपने प्राणों को गवा देते है लेकिन भले ही महाराणा प्रताप इस दुनिया को छोड़कर चले गये लेकिन उनके बहुदुरी के किस्से आज भी जनमानस में अति प्रसिद्द है।

महाराणा प्रताप और अकबर हल्दीघाटी युद्ध :
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हल्दीघाटी की युद्द 18 जून 1576 को हुआ था यह युद्ध इतिहास के पन्नो में महाराणा प्रताप के वीरता के लिए जाना जाता है महज 20000 सैनिको को लेकर महाराणा प्रताप ने मुगलों के 80000 सैनिको का मुकबला किया जो की अपने आप में अद्वितीय और अनोखा है।

इस युद्ध में मुगल सेना का संचालन मानसिंह और आसफ खां ने किया था जबकि मेवाड़ के सैनिको का संचालन खुद महाराणा प्रताप और हाकिम खान सूरी ने किया था इतिहासकारों की दृष्टि से देखा जाय तो इस युद्ध का कोई नतीजा नही निकलता दिखाई पड़ता है लेकिन महाराणा प्रताप के वीरता के मुट्ठी भर सैनिक, मुगलों के विशाल सेना के छक्के छुड़ा दिए थे और फिर फिर जान बचाने के लिए मुगल सेना मैदान छोड़ कर भागने भी लगी थी इस युद्ध की सबसे बड़ी यही खासियत थी की दोनों सेना का आमने सामने लडाई हुई थी जिसमे प्रत्यक्ष रूप से महाराणा प्रताप की विजय मानी जाती है।

हल्दीघाटी घाटी युद्ध के पश्चात तो बादशाह अकबर को महाराणा प्रताप के पराक्रम से इतना खौफ हो गया था की उसने अपनी राजधानी आगरा से सीधा लाहौर से विस्थापित हो गया था और फिर दुबारा महाराणा प्रताप के पश्चात ही उसने अपनी राजधानी आगरा को बनाया।

महाराणा प्रताप और चेतक की कहानी
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महाराणा प्रताप को बचपन से घुड़सवारी करना बहुत पसंद आता था जिसके फलस्वरूप एक दिन इनके पिता के एक अफगानी सफ़ेद घोडा और दूसरा नील घोडा पसंद करने को बोलते है लेकिन दुसरे भाई की पसंद के आगे महाराणा प्रताप को नीला घोडा मिलता है जिनका नाम महाराणा प्रताप ने चेतक रखा था महाराणा प्रताप की तरह उनके घोड़े की वीरता के किस्से भी इतिहास में सुनने को मिलते है .......

रण बीच चोकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था,
राणाप्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था,
जो तनिक हवा से बाग़ हिली लेकर सवार उड़ जाता था,
राणा की पुतली फिरी नहीं, तब तक चेतक मुड जाता था.....

अर्थात युद्ध के चाहे कितने भी विकट परिस्थिति में महाराणा प्रताप क्यू न फसे हो लेकिन उनका प्रिय घोडा चेतक महाराणा प्रताप के जान बचाने में हमेसा सफल रहता था उसकी फुर्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था की महाराणा प्रताप के तनिक इशारे पर चेतक हवा की चाल में उड़ने लगता था और महाराणा प्रताप के पलक झपक भी नही पाती थी चेतक इतना तेज था की वह इशारे से सबकुछ समझ जाता था।

हल्दीघाटी युद्ध के दौरान युद्ध में चेतक बुरी तरह घायल हो जाता है और भागते समय 21 फीट की चौडाई के नाले को पार करने के पश्चात चेतक कुछ दूर चलते ही गिर जाता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है चेतक की मृत्यु पर महाराणा प्रताप बहुत ही दुखी रहते थे और चेतक की मृत्यु का दुःख उन्हें साथ नही छोड़ता है। वीरगति के बाद महाराणा ने स्वयं चेतक का अंतिम संस्कार किया था। हल्दीघाटी में उसकी समाधि है। मेवाड़ में लोग चेतक की बाहादुरी के लोकगीत गाते हैं।

एक सच्चे राजपूत के रूप में बेहद पराक्रमी देशभक्त योद्धा के रूप में हमेसा महाराणा प्रताप का नाम आज भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है महाराणा प्रताप के पराक्रम की तुलना किसी से भी नही की जा सकती है वे आज भी हमारे देश भारत के शौर्य साहस राष्ट्रभक्ति की मिशाल बन गये है जिसके नाम से ही हर भारतीय अपने आप को गौरवान्वित करता है।

208 किलो का सुरक्षा कवच लेकर चलते थे महाराणा प्रताप। महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था, और उनके छाती का तवच 72 किलो का था। उनके भाले, कवच, ढ़ाल और दो तलवारों का वजन 208 किलो था।

शत-शत नमन करूँ मैं आपको 💐💐💐
🙏🙏

#VijetaMalikBJP

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