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Showing posts from October, 2025

स्वामीभक्त 'शुभ्रक'

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स्वामीभक्त 'शुभ्रक'  ~~~~~~~~~~ *कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर कर मरा,* यह तो सब जानते हैं, *लेकिन कैसे?* यह आज हम आपको बताएंगे.. वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है, लेकिन 'शुभ्रक' नहीं! तो मित्रो आज सुनिए *कहानी 'शुभ्रक' की......* मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने उदयपुर पर आक्रमण कर राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, और *उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।* *कुंवर कर्णसिंह का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,* जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी अपने साथ ले गया। एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत की सजा सुनाई गई.. और सजा देने के लिए उन्हें 'जन्नत बाग' में लाया गया। यह तय हुआ कि *राजकुंवर कर्णसिंह का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) की तरह खेला जाएगा..* . कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया। 'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था ...

शहीद ज़िनाइदा पोरत्नोवा

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शहीद ज़िनाइदा पोरत्नोवा  ~~~~~~~~~~~~~ 100 नाज़ियों को ज़हर देने वाली लड़की —  ज़िनाइदा का घातक बदला...💀🔥 केवल 16 साल की उम्र में ज़िनाइदा पोरत्नोवा के पास कोई हथियार नहीं था। लेकिन उसके पास उम्र से कहीं ज़्यादा हिम्मत थी। बेलारूस की यह युवा लड़की द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भूमिगत प्रतिरोध दल से जुड़ी, जहाँ वह चुपचाप दुश्मनों के बीच रहते हुये उनके ख़िलाफ़ साज़िश रचती रही। नाज़ी रसोई में काम करते हुए उसे आखिरकार मौका मिला। काँपते हाथों से लेकिन अडिग हौसले के साथ उसने जर्मन अधिकारियों के खाने में ज़हर मिला दिया। कुछ ही घण्टों में 100 से ज़्यादा नाज़ी मर चुके थे, और एक किशोरी ने प्रतिरोध के इतिहास में सबसे साहसिक प्रहार किया था। लेकिन किस्मत ने उसे नहीं छोड़ा। गेस्टापो ने ज़िनाइदा को पकड़ लिया और अंधेरे कमरे में पूछताछ के लिये घसीट लाया। उन्हें लगा यह बस एक डरी हुयी बच्ची है, जिसे तोड़ना आसान होगा। पर जैसे ही नाज़ी अफ़सर उसे चिढ़ाने झुका, ज़िनाइदा ने मौका देखा - एक झटके में उसने उसकी पिस्तौल छीनी और सीधे उसके सिर में गोली मार दी। वह आवाज़ केवल एक गोली की नहीं थी -...

विश्व आयोडीन अल्पता दिवस

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विश्व आयोडीन अल्पता दिवस 21 अक्टूबर 2025 - महत्व और इतिहास ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ विश्व आयोडीन अल्पता दिवस आयोडीन के सेवन के महत्व और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 21 अक्टूबर को दुनिया भर में आयोडीन अल्पता विकार दिवस मनाया जाता है । इस दिन को विश्व आयोडीन अल्पता विकार दिवस के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) सहित विभिन्न स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन, आयरन की कमी के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कई कार्यक्रम, अभियान, शैक्षिक कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित करते हैं। विश्व आयोडीन अल्पता दिवस का महत्व ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आयोडीन एक सूक्ष्म पोषक तत्व है जो शरीर को थायरॉइड ग्रंथि के लिए आवश्यक होता है। थायरॉइड ग्रंथि हृदय गति, चयापचय, शरीर के तापमान और मांसपेशियों के संकुचन जैसे कई शारीरिक कार्यों को प्रभावित करती है। इस प्रकार, आयोडीन की कमी से कई स्वास्थ्य और विकास संबंधी परिणाम हो सकते हैं जिन्हें आय...

अमर शहीद जसवंत सिंह रावत जी

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अमर शहीद जसवंत सिंह रावत  ~~~~~~~~~~~~~~~~ "जो देश अपने वीर और महान सपूतों को भूल जाता है, उस देश के आत्मसम्मान को हीनता की दीमक चट कर जाती है।" ....... याद रखना दोस्तों। हमें समय समय पर इन महान हस्तियों को याद करते रहना चाहिए। अपने बच्चों, छोटे भाई-बहनों, आदि को इन वीर सपूतों की वीर गाथाओं को समय-समय पर सुनाना चाहिए। इन अमर बलिदानियों के किस्से-कहानियों को कॉपी-पेस्ट करके अपने-अपने सोशल नेटवर्क पर डालना चाहिए व एक दूसरे को शेयर करना चाहिए, ताकि और लोगो को भी इन अमर बलिदानियों व शहीदों के बारे में पता लग सके। जो शहीद हुए हैं उनकी,  ज़रा याद करो कुर्बानी ....... 🙏🙏 19 अगस्त, 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल जिले के बादयूं में जसवंत सिंह रावत का जन्म हुआ था। उनके अंदर देशप्रेम इस कदर था कि 17 साल की उम्र में ही सेना में भर्ती होने चले गए। लेकिन कम उम्र के चलते उन्हें नहीं लिया गया। हालांकि, 19 अगस्त 1960 को जसवंत को सेना में बतौर राइफल मैन शामिल कर लिया गया। 14 सितंबर, 1961 को उनकी ट्रेनिंग पूरी हुई। इसके एक साल बाद ही यानी 17 नवंबर, 1962 को चीन की सेना ने अरुणाच...

पंडित श्रद्धाराम शर्मा "ॐ जय जगदीश हरे आरती के रचनाकार"

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पंडित श्रद्धाराम शर्मा ॐ जय जगदीश हरे आरती के रचनाकार ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 30 सितम्बर/ जन्मदिवस पंडित श्रद्धाराम शर्मा जी का जन्म 30 सितम्बर1837 को पंजाब के जालंधर के फिल्लोर ग्राम में हुआ । सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी के ही नहीं, बल्कि पंजाबी के भी श्रेष्ठ साहित्यकारों में से एक थे। इनकी गिनती उन्नीसवीं शताब्दी के श्रेष्ठ साहित्यकारों में होती थी। अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी वक्तृता के बल पर उन्होंने पंजाब में नवीन सामाजिक चेतना एवं धार्मिक उत्साह जगाया, जिससे आगे चलकर आर्य समाज के लिये पहले से निर्मित उर्वर भूमि मिली। उनका लिखा उपन्यास 'भाग्यवती' हिन्दी के आरंभिक उपन्यासों में गिना जाता है। पं. श्रद्धाराम शर्मा जी गुरुमुखी और पंजाबी के अच्छे जानकार थे और उन्होंने अपनी पहली पुस्तक गुरुमुखी मे ही लिखी थी; परंतु वे मानते थे कि हिन्दी के माध्यम से इस देश के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है। उन्होंने अपने साहित्य और व्याख्यानों से सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ जबर्दस्त मा...

स्वतन्त्रता सेनानी मातंगिनी हाजरा जी

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स्वतन्त्रता सेनानी मातंगिनी हाजरा जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 29 सितम्बर/बलिदान-दिवस भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी कदम से कदम मिलाकर संघर्ष किया था। मातंगिनी हाजरा जी एक ऐसी ही बलिदानी माँ थीं, जिन्होंने अपनी अशिक्षा, वृद्धावस्था तथा निर्धनता को इस संघर्ष में आड़े नहीं आने दिया। मातंगिनी जी का जन्म 1870 में ग्राम होगला, जिला मिदनापुर, पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। गरीबी के कारण 12 वर्ष की अवस्था में ही उनका विवाह ग्राम अलीनान के 62 वर्षीय विधुर त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया; पर दुर्भाग्य उनके पीछे पड़ा था। छह वर्ष बाद वह निःसन्तान विधवा हो गयीं। पति की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र उनसे बहुत घृणा करता था। अतः मातंगिनी एक अलग झोपड़ी में रहकर मेहनत मजदूरी से अपना जीवनयापन करने लगी। गाँव वालों के दुःख-सुख में सदा सहभागी रहने के कारण वे पूरे गाँव में माँ के समान पूज्य हो गयीं। 1932 में गान्धी जी के नेतृत्व में देश भर में स्वाधीनता आन्दोलन चला। वन्देमातरम् का घोष करते हुए जुलूस प्रतिदिन निकलते थे। जब ऐसा...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र साधना के 100 वर्ष

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की कलम से ✍️ : राष्ट्र साधना के 100 वर्ष... राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना को 100 वर्ष पूरे हो गए हैं। संघ प्रारंभ से ही राष्ट्रभक्ति और सेवा का पर्याय रहा है। संघ के लिए देश की प्राथमिकता ही उसकी अपनी प्राथमिकता रही। अपनी 100 वर्षों की इस यात्रा में संघ ने समाज के अलग-अलग वर्गों में आत्मबोध जगाया। संघ ने हमेशा राष्ट्र निर्माण का मार्ग चुना। 100 वर्ष पूर्व विजयदशमी के महापर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। ये हजारों वर्षों से चली आ रही उस परंपरा का पुनर्स्थापन था, जिसमें राष्ट्र चेतना समय-समय पर उस युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए,नए-नए अवतारों में प्रकट होती है। इस युग में संघ उसी अनादि राष्ट्र चेतना का पुण्य अवतार है। ये हमारी पीढ़ी के स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमें संघ के शताब्दी वर्ष जैसा महान अवसर देखने मिल रहा है। मैं इस अवसर पर राष्ट्रसेवा के संकल्प को समर्पित कोटि-कोटि स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं देता हूं। मैं संघ के संस्थापक, हम सभी के आदर्श… परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार जी के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित क...

श्री लाल बहादुर शास्त्री जी

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श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ~~~~~~~~~~~~~~ सादा जीवन, उच्च विचार वाले प्रधानमंत्री 2 अक्टूबर, 1904  – 11 जनवरी, 1966  ★जय जवान - जय किसान★ का नारा देने वाले हमारे पूर्व-प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे। जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी माँ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर जाकर बस गईं।  उस छोटे-से शहर में लाल बहादुर की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही लेकिन गरीबी की मार पड़ने के बावजूद उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता।  उन्हें वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था ताकि वे उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर सकें। घर पर सब उन्हें नन्हे के नाम से पुकारते थे। वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहाँ तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था।  बड़े होने के साथ-ही लाल बहादुर श...