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Showing posts from May, 2025

तपस्वी राजमाता अहिल्याबाई होल्कर

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"जो देश अपने वीर और महान सपूतों को भूल जाता है, उस देश के आत्मसम्मान को हीनता की दीमक चट कर जाती है।" ....... याद रखना दोस्तों। हमें समय समय पर इन महान हस्तियों को याद करते रहना चाहिए। अपने बच्चों, छोटे भाई-बहनों, आदि को इन वीर सपूतों, वीरांगनाओं की वीर गाथाओं को समय-समय पर सुनाना चाहिए। इन अमर बलिदानियों के किस्से-कहानियों को कॉपी-पेस्ट करके अपने-अपने सोशल नेटवर्क पर डालना चाहिए व एक दूसरे को शेयर करना चाहिए, ताकि और लोगो को भी इन अमर वीरों, वीरांगनाओं, बलिदानियों व शहीदों के बारे में पता लग सके। 🙏🙏 तपस्वी राजमाता अहिल्याबाई होल्कर ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ नारी सशक्तिकरण, सुशासन तथा स्वावलंबन की प्रतीक, लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर जी की 300वीं जयंती पर उन्हें शत–शत नमन...💐💐 भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है, उनमें रानी अहल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही स...

लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा

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लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 3 मई/पुण्यतिथि  दस दिन की जंग और 93 हजार युद्धबंदी..... 1962 में चीन का हमला हो या 1965 में भारत-पाकिस्तान का युद्ध, जनरल अरोड़ा का हर जंग में अपूर्व रणकौशल दिखा। 1971 में उन्होंने साबित कर दिखाया कि कठिन लक्ष्य को सूझबूझ और हिम्मत से कैसे हासिल किया जा सकता है। देश के महान सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा जी को याद करते हुए आत्मिक खुशी की अनुभूति हो रही है। और हो भी क्यों ना। 16 दिसम्बर, 1971, ढाका का रेस कोर्स मैदान, पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण, भारत के कब्जे में पाकिस्तान की 5,139 वर्गमील भूमि का आना और पाकिस्तान के 93,000 युद्धबंदी...... ये कोई भूलने की बात नहीं है। इसके बाद ही विश्वमानचित्र पर उभरा था एक नया देश "बांग्लादेश"।  बांग्लादेश की जीत का जश्न हम जब–जब मनाएंगे तब-तब ऊंची कद-काठी के कद्दावर सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा याद किये जाएंगे क्योंकि इस सेनानायक की सूझबूझ और कुशल नेतृत्व में भारतीय सेना ने मात्र 10 दिन की लड़ाई में पाकिस्तान को धूल चटा दी थी।  ले. जन. अरोड़ा ...

वीर शहीद केसरी चन्द जी

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वीर शहीद केसरी चन्द जी ~~~~~~~~~~~~~ "जो देश अपने वीर और महान सपूतों को भूल जाता है, उस देश के आत्मसम्मान को हीनता की दीमक चट कर जाती है।" ....... याद रखना दोस्तों। हमें समय समय पर इन महान हस्तियों को याद करते रहना चाहिए। अपने बच्चों, छोटे भाई-बहनों, आदि को इन वीर सपूतों की वीर गाथाओं को समय-समय पर सुनाना चाहिए। इन अमर बलिदानियों के किस्से-कहानियों को कॉपी-पेस्ट करके अपने-अपने सोशल नेटवर्क पर डालना चाहिए व एक दूसरे को शेयर करना चाहिए, ताकि और लोगो को भी इन अमर बलिदानियों व शहीदों के बारे में पता लग सके। तुम भूल न जाओ उनको,  इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी,  ज़रा याद करो कुर्बानी ....... 🙏💐🌺🪷🌹🌷🙏 जौनसार के गौरव वीर केसरी चन्द की शहादत की याद में उनके शहादत दिवस (3 मई, 1945) पर विशेष... जौनसार, उत्तराखंड के ऐतिहासिक थाती का महत्वपूर्ण क्षेत्र, विशिष्ट सांस्कृतिक वैभव की भूमि, जीवंत और उन्मुक्त जीवन शैली से परिपूर्ण समाज, यहां की लोक-कथाओं और लोक-गाथाओं में बसी है। यहां की सौंधी खुशबू, लोक-गीत, नृत्यों और मेले-ठेलों में देख सकते हैं। लोक का बिंब, यहीं...

धर्मवीर बालवीर हकीकत राय

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धर्मवीर बालवीर हकीकत राय  ~~~~~~~~~~~~~~~ भारत वह वीरभूमि है, जहाँ हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों में छोटे बच्चे भी पीछे नहीं रहे। 1719 में स्यालकोट (वर्त्तमान पाकिस्तान) के निकट एक ग्राम में श्री भागमल खत्री के घर जन्मा हकीकतराय ऐसा ही एक धर्मवीर था।  हकीकतराय के माता-पिता धर्मप्रेमी थे। अतः बालपन से ही उसकी रुचि अपने पवित्र धर्म के प्रति जाग्रत हो गयी। उसने छोटी अवस्था में ही अच्छी संस्कृत सीख ली। उन दिनों भारत में मुस्लिम शासन था। अतः अरबी-फारसी भाषा जानने वालों को महत्त्व मिलता था। इसी से हकीकत के पिता ने 10 वर्ष की अवस्था में फारसी पढ़ने के लिए उसे एक मदरसे में भेज दिया। बुद्धिमान हकीकत वहाँ भी सबसे आगे रहता था। इससे अन्य मुस्लिम छात्र उससे जलने लगे। वे प्रायः उसे नीचा दिखाने का प्रयास करते थे; पर हकीकत सदा अध्ययन में ही लगा रहता था।  एक बार मौलवी को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था। उन्होंने बच्चों को पहाड़े याद करने को कहा और स्वयं चले गये। उनके जाते ही सब छात्र खेलने लगे; पर हकीकत एक ओर बैठकर पहाड़े याद करता रहा। यह देखकर मुस्लिम छात्र उसे...

पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर ब्रजबासी लाल

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पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर ब्रजबासी लाल ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 2 मई/जन्म-दिवस श्रीराम मंदिर आंदोलन के समय जनांदोलन और भारतीय संसद के साथ ही एक मोर्चा न्यायालय में भी खुला था, जहां यह बहस होती थी कि राम हुए भी हैं या नहीं ; उनका जन्मस्थान क्या अयोध्या है और अयोध्या में भी वही स्थान है, जिसके लिए आंदोलन हो रहा है। वहां पर पहले मंदिर था, इसका क्या प्रमाण है..? अंततः सब मोर्चों पर सत्य की जीत हुई। पुरातत्व के आधार पर न्यायालय में मंदिर के पक्ष में प्रमाण देने वाले एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे प्रोफेसर ब्रजबासी लाल। उनका जन्म दो मई, 1921 को झांसी में हुआ था। उन्होंने प्रयाग वि.वि. से संस्कृत में एम.ए. किया; पर पुरातत्व में रुचि के कारण प्रसिद्ध ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता मोर्टिमर व्हीलर के निर्देशन में 1943 में तक्षशिला की उत्खनन से जुड़ गये। इसके बाद उन्होंने महाभारतकालीन कई स्थलों का उत्खनन किया। इनमें हस्तिनापुर (उ.प्र.), शिशुपालगढ़ (उड़ीसा), पुराण किला (दिल्ली) तथा कालीबंगन (राजस्थान) आदि प्रमुख थे। प्रोफेसर बृजवासी लाल जी ने 1975 में ‘रामायण स्थलों का पुरातत्व’ परियोजना के अन्तर्गत अयोध्य...

शहीद खुदीराम बोस जी

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शहीद खुदीराम बोस जी ~~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🌷🌻💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी... 🌺🌹🥀🙏🌷🌻💐  आज शहीद प्रपुल्ल चाकी जी का बलिदान दिवस है, आज इस मौके पर हम उनके परम मित्र शहीद खुदीराम बोस जी को हम कैसे भूल सकते हैं। भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन में खुदीराम बोस की शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। उनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई, जिन्हें बंगाल के लोक गायक आज भी गाते हैं।  खुदीराम बोस (अंग्रेज़ी: Khudiram Bose, जन्म: 3 दिसंबर, 1889; मृत्यु : 11 अगस्त, 1908)  मात्र 19 साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारी थे। भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास क्रांतिकारियों के सैकड़ों साहसिक कारनामों से भरा पड़ा है। ऐसे ही क्रांतिकारियों की सूची में एक नाम खुदीराम बोस का है।  जीवन परिचय ~~~~~~~~ खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 ई. को बंगाल में मिदनापुर ...

निष्ठावान स्वयंसेवक बंसीलाल सोनी जी

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निष्ठावान स्वयंसेवक बंसीलाल सोनी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 1 मई/जन्म-दिवस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री बंसीलाल सोनी का जन्म एक मई, 1930 को वर्तमान झारखंड राज्य के सिंहभूम जिले में चाईबासा नामक स्थान पर अपने नाना जी के घर में हुआ था। इनके पिता श्री नारायण सोनी तथा माता श्रीमती मोहिनी देवी थीं। इनके पुरखे मूलतः राजस्थान के थे, जो व्यापार करने के लिए इधर आये और फिर यहीं बस गये। बाल्यावस्था में ही उन्होंने अपने बड़े भाई श्री अनंतलाल सोनी के साथ शाखा जाना प्रारम्भ किया। आगे चलकर दोनों भाई प्रचारक बने और आजीवन संघ के लिए कार्य करते रहे। यों तो बंसीलाल जी बालपन से ही स्वयंसेवक थे; पर कोलकाता के विद्यासागर काॅलिज में पढ़ते समय उनका घनिष्ठ सम्पर्क पूर्वोत्तर के क्षेत्र प्रचारक श्री एकनाथ रानाडे से हुआ। धीरे-धीरे उनका अधिकांश समय संघ कार्यालय पर बीतने लगा। 1949 में बी.काॅम. की परीक्षा उत्तीर्ण कर वे प्रचारक बन गये। सर्वप्रथम उन्हें हुगली जिले के श्रीरामपुर नगर में भेजा गया। एकनाथ जी के साथ उन्होंने हर परिस्थिति में संघ कार्य सफलतापूर्वक करने के गुर सीखे। कोलकाता लम्बे समय ...

शहीद प्रफुल्ल चंद्र चाकी

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शहीद प्रफुल्ल चंद्र चाकी  ~~~~~~~~~~~~ 1 मई/बलिदान दिवस "जो देश अपने वीर और महान सपूतों को भूल जाता है, उस देश के आत्मसम्मान को हीनता की दीमक चट कर जाती है।" ....... याद रखना दोस्तों। हमें समय समय पर इन महान हस्तियों को याद करते रहना चाहिए। अपने बच्चों, छोटे भाई-बहनों, आदि को इन वीर सपूतों की वीर गाथाओं को समय-समय पर सुनाना चाहिए। इन अमर बलिदानियों के किस्से-कहानियों को कॉपी-पेस्ट करके अपने-अपने सोशल नेटवर्क पर डालना चाहिए व एक दूसरे को शेयर करना चाहिए, ताकि और लोगो को भी इन अमर बलिदानियों व शहीदों के बारे में पता लग सके। 🙏🙏 तुम भूल न जाओ उनको,  इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी,  ज़रा याद करो कुर्बानी ....... 🙏🙏 प्रफुल्ल चाकी जी का जन्म 10 दिसम्बर 1888 को उत्तरी बंगाल के बोगरा जिला (अब बांग्लादेश में स्थित) के बिहारी गाँव में हुआ था। जब प्रफुल्ल दो वर्ष के थे तभी उनके पिता जी का निधन हो गया। उनकी माता ने अत्यन्त कठिनाई से प्रफुल्ल का पालन-पोषण किया। विद्यार्थी जीवन में ही प्रफुल्ल का परिचय स्वामी महेश्वरानन्द द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन...